कोशिका (cell in hindi) क्या है यह कितने प्रकार की होती है सचित्र वर्णन कीजिए

कोशिका (cell in hindi) की खोज इंगलैण्ड के वैज्ञानिक राबर्ट हुक ने (1665) में मैगनीफाइन्ग लैन्स से कार्क की रचना का अध्ययन किया ।

उन्होंने बताया कि कार्क शहद की मक्खी के छत्ते के समान खाली वेश्मों का बना होता है जिनके लिये हुक ने cell (Gr. Kytos = hollow space) शब्द दिया ।

कोशिका का बायोलॉजिकल या टेक्निकल नाम "cyto" होता है ।

कोशिका विज्ञान - "कोशिका विज्ञान, वह विज्ञान हैं, जिसमें कोशिका का अध्ययन किया जाता है।"

कोशिका का अर्थ | cell meaning in hindi

के कोशिका के अल्ट्रा-संरचनात्मक अध्ययन को अल्ट्रा - संरचनात्मक कोशिका विज्ञान कहते हैं ।

इसमें महा अणुओं के कणों, प्रारम्भिक तन्तुओं, कुण्डलिनियों एवं पटलिकाओं में व्यवस्था का अध्ययन किया जाता हैं जो कि लाइट माइक्रोस्कोप की विभेदन क्षमता सीमा से बाहर होते हैं ।

कोशिका का अर्थ (cell meaning in hindi) - "जीवों की सरंचना में कोशिका एक आकारकी तथा शरीर क्रियात्मक इकाई होती है ।"

कोशिका क्या है परिभाषा लिखिए? | defination of cell in hindi

कोशिका की परिभाषा - "कोशिका शरीर की सबसे छोटी संरचनात्मक एवं ‌क्रियात्मक इकाई है, कोशिका (cell in hindi) कहलाती है ।"


कोशिका कितने प्रकार की होती है? | types of cell in hindi


कोशिका मुख्यत: दो प्रकार की होती है -

  • प्रोकैरियोटिक कोशिका ( Prokaryotic Cells )
  • यूकैरियोटिक कोशिका ( Eukaryotic Cells )


1. प्रोकैरियोटिक कोशिका ( prokaryotic cells ) -

कोशिका जिनमें व्यवस्थित न्यूक्लियस अर्थात् न्यूक्लीय झिल्ली नहीं होती है । जैसे बैक्टीरिया तथा नील - हरित शैवाल । प्रौकैरियोटिक कोशिकायें छोटी सामान्यतः लगभग 1u ( एक माइक्रोन ) व्यास की होती हैं तथा इनकी संरचनात्मक व्यवस्था आपेक्षित सरल होती है ।

2. यूकैरियोटिक कोशिका ( eukaryotic cells ) -

कोशिका जिनमें सुव्यवस्थित न्यूक्लियस होता है , जो कि साइटोप्लाज्म में न्यूक्लीय झिल्ली द्वारा अलग रहता है । सभी उच्च वर्गीय जीव यूकैरियोटिक होते हैं ।

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पादप कोशिका एवं उसके विभिन्न भागों का सचित्र वर्णन कीजिए?

उच्च वर्गीय पौधों की प्रारूपिक कोशिका एक भित्ति से घिरी रहती है जिसे cell wall (कोशिका भित्ति) कहते हैं ।

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प्राथमिक रूप से इसके दो प्रमुख भाग होते हैं -

1. मध्यभित्ति ( The middle lamella )
2. प्राथमिक भित्ति ( The primary wall )

बहुत से पादप कोशिकाओं में एक तीसरी भित्ति भी बन जाती हैं जिसे द्वितीय भित्ति ( Secondary wall ) कहते हैं ।

कोशिका के अन्दर एक पारदर्शक हल्का गाढ़ा, कणदार एवं कोलॉइड पदार्थ भरा रहता है इसे "प्रोटोप्लाज्य” कहते हैं ।

यह समंगी ( homogenous ) नहीं होता है, इसमें बहुत - सी संरचनायें डूबी पड़ी रहती हैं । इनमें सबसे प्रमुख लगभग गोलाकार सघनकाय 'nucleus' (केन्द्रक) होती है । केन्द्रक के बाहर के सारे प्रोटोप्लाज्म को कोशिका द्रव्य (Cytoplosm) कहते हैं ।

आमतौर से साइटोप्लाज्म में बहुत - सी विभिन्नकाय या संरचनायें होती हैं, जिनके विशेषित कार्य होते हैं । इनका वर्गीकरण इनके जीवित कोशिकांग (organelles) या मृत अन्तर्वेश (inclusions) होने के आधार पर किया जाता है ।

लाइट माइक्रोस्कोप व इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के अध्ययन के आधार पर साइटोप्लाज्म के भाग निम्नलिखित होते हैं -

  • कोशिकाद्रव्यी मैट्रिक्स ( Groundplasm or matrix )
  • प्लाज्मालैमा ( Plasmalemma )
  • अन्तद्रव्यी जालिका ( Endoplasmic Reticulum )
  • टोनोप्लास्ट एवं रिक्तिका ( Tonoplast and vacuole )
  • स्फैरोसोम्स ( Spherosomes )
  • राइबोसोम्स ( Ribosomes )
  • लाइसोसोम्स ( Lysosomes )
  • गोल्जी काय ( Golgi apparatus )
  • कोशिकाद्रव्यी अन्तर्वेश ( Cytoplasmic inclusions )
  • प्लैस्टिड ( Plastids )
  • माइटोकान्ड्रिया ( Mitochondria )

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1. कोशिका भित्ति ( Cell Wall )

पौधों की कोशिकायें बाहरी सीमा से घिरी रहती हैं जिसे कोशिका भित्ति कहते हैं । कोशिका भित्ति को वृद्धि, विकास तथा विभिन्न पदार्थों के जमाव के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है -

  • मध्य भित्ति ( Middle lamella )
  • प्राथमिक भित्ति ( Primary Wall )
  • द्वितीय भित्ति ( Secondary Wall )


( i ) मध्य भित्ति - 

दो विभाजित कोशिकाओं के बीच गोल्जीकाय के पुटिकाओं (vesicles) के सम्मिलन (coalescence) से कोशिका पट्ट (cell plate) विकसित होती है । इस पर पेक्टिन तथा कोलॉइडी पेक्टिन पदार्थों के जमाव से जो पर्त बनती है, इसे मध्य भित्ति कहते हैं । यह भित्ति अपने पास की कोशिकाओं की भित्तियों के साथ मिली रहती है । यह कोशिकाओं के बीच में सीमेन्ट की तरह जोड़ने का कार्य करती है ।

( ii ) प्राथमिक भित्ति - 

मध्य भित्ति के दोनों ओर प्रोटोप्लाज्म से पैक्टिक कम्पाउन्ड्स तथा सेलूलोस के जमाव से जो पतली भित्ति बनती है उसे प्राथमिक भित्ति कहते हैं । यह मुख्यतः सेलूलोस तथा कुछ पैक्टिक कम्पाउन्डस की बनी होती है । इसके अलावा हेमीसेलूलोस, लिग्निन, सुबरिन तथा मोम की उपस्थिति भी पायी जाती है । यह भित्ति लचीली तथा पारदर्शक होती है । कैम्बियम तथा पैरेन्काइमा कोशिकाओं की कोशिका भित्ति इसके उदाहरण हैं ।

( iii) द्वितीय भित्ति — 

कुछ विशेषित कोशिकाओं में, हेमीसेलूलोस, बहु - शर्कराइड, लिग्निन, सुबरिन एवं क्यूटिन आदि पदार्थों का प्राथमिक भित्ति पर जमाव हो जाता है जिससे द्वितीय भित्ति बनती है । यह मुख्यतः सहारा देने का तथा अन्य विशेषतायें उत्पन्न करती हैं । द्वितीय भित्ति केवल कुछ विशेष प्रकार की कोशिकाओं में पाई जाती है । फ्लोएम रेशे, स्टोनकोशिका, ट्रेकिड्स तथा जाइलम रेशे आदि द्वितीय भित्ति के उदाहरण हैं ।

सामान्यतः द्वितीय भित्ति कोशिका वृद्धि रुक जाने के उपरान्त निर्मित होती है अतः प्राथमिक भित्ति के समान इसकी पृष्ठतल में वृद्धि नहीं होती है । यह एक संपूरक भित्ति होती है । इसका मुख्य कार्य बलकृत (machanical) होता है तथा अक्सर परिपक्व अवस्था में इनमें जीव द्रव्य नहीं रहता है ।

जैसेकाष्ट तन्तु, ट्रेकिड्स व वाहिनिया । एक कोशिका से दूसरी कोशिका में प्रोटोप्लाज्म का सम्बन्ध स्थापित रखने के लिये कोशिका भित्ति में महीन छिद्र होते हैं जिन्हें प्लाजमोडैस्मेटा कहते हैं । जन्तुओं की कोशिकाओं में सबसे बाहर की पर्त प्लाज्मैलेमा होती है, जिसे 'Cell membrane' या 'Plasma membrane' भी कहते हैं । प्रोकैरियोट्स की कोशिका भित्ति में सेलूलोस नहीं होता है । इनकी भित्ति म्यूरिन (murein) की बनी होती है । मयूरिन यूकैरियोट्स की भित्ति में नहीं होता है ।


2. प्लाज्मालैमा ( Plasmalemma )

कोशिका का प्रोटोप्लाज्म बाह्य वातावरण से एक विशेष गुणों वाली पर्त से अलग रहता है जिसे नेजैली तथा क्रैमर (1855) ने कोशिका कला (cell membrane) नाम दिया । पलोव (1931) ने इनके लिये प्जाल्मालैमा शब्द दिया । पादप कोशिकाओं में प्लाज्मालैमा अन्दरूनी प्रोटोप्लाज्म व कोशिका भित्ति के मध्य होती है । जन्तु कोशिकाओं में यह बाह्य वातावरण (culture medium) व प्रोटोप्लाज्म के बीच सीमा का कार्य करती है ।


3. अन्तः प्रद्रव्यी जालिका ( Endoplasmic Reticulum )

पहले कोशिका वैज्ञानिक अन्तः प्रद्रव्यी कोशिका कला को कोशिका - झिल्लियों में सम्मिलित करते थे । ग्रेनियर (1897) ने इसके लिये आर्गेस्टोप्लाज्म (Ergastoplasm) नाम दिया । पेंटर (1948) ने इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से कोशिका निरीक्षण द्वारा इसे जालिकावत् सह - सम्बन्ध नहरीकायें (Canals), पुटिका (Vesicles) , नलिका (tubulles) तथा कुँडिका (cisternae) तन्त्र पाया तथा इसको अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic Reticulum) शब्द दिया ।


4. टोनोप्लास्ट एवं रिक्तिका ( Tonoplast and Vacuole )

पूर्ण विकसित पादप कोशिकाओं में एक केन्द्रीयक रिक्तिका (Central vacuole) एक अर्द्ध - पारगम्य झिल्ली से घिरी रहती है जिसे डीवरीज (1885) ने 'टोनोप्लास्ट' नाम दिया । टोनोप्लास्ट रिक्तिका की झिल्ली होती है । यह प्लाज्मालैमा की अपेक्षा अधिक दृढ़ तथा यान्त्रिक रूप से अधिक शक्तिशाली होती है । टोनोप्लास्ट को माइक्रोसर्जिकल सेक्शन के द्वारा कोशिका से बाहर निकाला जा सकता है जहाँ पर इसे उचित माध्यम में काफी समय तक बनाये रखा जा सकता है तथा यह अपने अर्द्धपारगम्यता गुण को बनाये रखती है ।

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5. माइटोकॉन्ड्रिया ( Mitochondria )

पुकारा हालांकि फ्लैपिंग (1882) तथा आल्टमैन (1890) को माइटोकॉन्ड्रिया का खोजकर्ता समझा जाता है परन्तु माइटोकान्ड्रिया शब्द बैन्डा (1897) ने दिया था । माइटोकॉन्ड्रिया कई नाम जैसे, chondriocontes, chodriomites तथा chondriosomes आदि से जाता है ।

पौधों में माइटोकॉन्ड्रिया की खोज मीवीज (1904) ने की थी, नील - हरित एल्गी तथा परिपक्व रक्त कोशिकाओं को छोड़कर माइटोकॉन्ड्रिया पौधों तथा जन्तुओं के साइटोप्लाज्म में समान रूप से पाये जाते हैं । इनका परिमाण (size) लगभग 0.24 से 7p4 तक सकता है । इनमें ब्राउनैयन गति होती है । आमतौर से ये पूरे साइटोप्लाज्म में समान रूप बिखरे पड़े रहते हैं । परन्तु कुछ कोशिकाओं में से साइटोप्लाज्म में एक तरफ समूह में पड़ी रहती हैं या न्यूक्लियस को घेरे रहती हैं । विभाजित होने वाली कोशिकाओं में ये सेन्ट्रोसोम्स या ध्रुव के पास एकत्र रहती हैं या तर्कसूत्र पर एकत्र हुई रहती हैं ।

सम्भवतः ऊर्जा देने से सम्बन्धी कार्य करती हैं । इसलिये ही ये इन भागों के पास एकत्र रहती हैं । कोशिका के विभाजित होने पर ये संतति कोशिकाओं में बराबर - बराबर मात्रा में चली जाती हैं । माइटोकॉन्ड्रिया जीवित कोशिकाओं में प्रेक्षित किया जा सकता है । इन्हें जैन्स ग्रीन से अभिरंजित करने पर अधिक स्पष्टता से देखा जा को सकता है ।


6. गॉल्जीकाय ( Golgi Apparatus )

गॉल्जी (Camillo Golgi 1882) ने लाइट माइक्रोस्कोप की सहायता से नर्व कोशिकाओं को सिल्वर नाइट्रेट या आस्मिक एसिड से अभिरंजन करके एक जालिकावत पदार्थ का पता लगाया जिसको उन्हीं के नाम पर गॉल्जीकाय कहा जाता है ।

इसके विभिन्न नाम जैसे — golgi complex, golgi apparatus, golgi body, vaccum golgi system, dictyosome रखे गये हैं । गॉल्जीकाय की रचना तथा प्रकृति का विषय, सदैव वाद - विवादपूर्ण रहा है । इसका सरलता से पता नहीं लगाया जा सकता है । इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से अध्ययन किये गये सभी जन्तुओं तथा पादप कोशिकाओं में इन्हें पाया गया है ।


7. लवक या प्लेस्टिड्स ( Plastids )

सर्वप्रथम सिमपर ने 1883 में प्लैस्टिड (Plastid) पद का प्रयोग किया । प्लैस्टिड्स पादप कोशिकाओं में उपापचयी क्रिया (metabolic process) से सम्बन्धित साइटोप्लाज्मी काय होती हैं जो कि सम्भवतः बैक्टीरिया, कुछ एल्गी, फन्जाई तथा माइक्जोमाइसिटीज को छोड़कर लगभग समस्त वनस्पतिक संसार में पायी जाती है । ये बहुत छोटी तथा लगभग गोल सी रचनायें होती हैं । इनका परिमाण सामान्यतः 4-4 से 6.5um होता है । अधिकतर प्लैस्टिड्स में वर्णक (pigments) पाये जाते हैं, कुछ प्लैस्टिड्स रंगहीन भी होते हैं । वर्णकों के आधार पर ही इनका वर्गीकरण किया गया है ।

इन्हें मुख्यतः तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है -

  • क्लोरोप्लास्ट ( choloroplast )
  • क्रोमोप्लास्ट ( chromoplast )
  • ल्यूकोप्लास्ट ( leucoplast )


( i ) क्लोरोप्लास्ट ( Chloroplasts ) - 

यह हरे रंग के प्लैस्टिड्स होते हैं । पौधे के सभी हरे भागों में इनकी उपस्थिति होती है । क्लोरोप्लास्ट में हरा वर्णक क्लोरोफिल होता है । जिसमें सूर्य के प्रकाश से विकिरण ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलने की अद्भुत शक्ति होती है । सूर्य प्रकाश में क्लोरोफिल की उपस्थिति में ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है ।

( ii ) क्रोमोप्लास्ट ( Chromoplast ) - 

हरे रंग के अलावा दूसरे रंगों के प्लैस्टिड्स क्रोमोप्लास्ट कहलाते हैं । फूल, फल तथा दूसरे भागों में पीले, बैंगनी, लाल आदि रंग क्रोमोप्लास्ट से ही उत्पन्न होते हैं । क्रोमोप्लास्ट मुख्यतः क्लोरोप्लास्ट से रूपान्तरित होते हैं । ये ल्यूकोप्लास्ट से भी बन जाते हैं ।

( iii ) ल्यूकोप्लास्ट ( Leucoplast ) - 

सभी प्रकार के रंगहीन पलैस्टिड्स को ल्यूकोप्लास्ट कहते हैं । ये प्लैस्टिड्स अधिकतर अंधेरे में रहने वाले तथा रंगहीन भागों जैसे, विभाज्योतक कोशिकाओं इत्यादि में पाये जाते हैं । ये मुख्यतः भोजन संग्रह से सम्बन्धित कार्य करते हैं । इसके अलावा भी इनके दूसरे कार्य हो सकते हैं ।


8. स्ट्रोमा ( Stroma )

जैल - द्रव्य अवस्था (gel fluid phase) होता है जिसमें क्लोरोप्लास्ट के लगभग 50% प्रोटीन्स होते हैं । इसमें DNA, राइबोसोम्स, DNA प्रतिकृति, RNA अनुलेखन (transcription) तथा प्रोटीन संश्लेषण के लिये सभी जैव रासायनिक कारक होते हैं । थाइलेकोइड झिल्ली की सूक्ष्म संरचना का अध्ययन फ्रीज फ्रैक्चरिंग (Freeze fracturing) द्वारा सर्वोत्तम रूप से किया जा सकता है । द्वि - आणविक लीपिड कला में विभिन्न आकार के कण प्रेक्षित किये जा सकते हैं ।

क्लोरोफिल अणु तथा संरचनात्मक प्रोटीन्स सम्बद्ध (assembled) होकर 5 मुख्य complexes बनाते हैं—

  • PSI ( Photo system I ) - इसमें अभिक्रिया केन्द्र अणु P 700 होता है ।
  • PS II ( Photo system II ) - इसमें अभिक्रिया केन्द्र अणु P 680 होता है ।
  • Cytochrome b f complex - इसमें एक साइटोक्रोम f, दो साइटोक्रोम b 563 तथा एक FeS केन्द्र होता है ।
  • ATP synthetase - इसमें ADP तथा Pi से ATP का संश्लेषण होता है ।
  • LHC ( Light - Harvesting Complex ) - इसका मुख्य कार्य सूर्य की ऊर्जा को पकड़ना (capture solar energy) है ।

स्लैस्टिड्स से सम्बन्धित कोशिकानुवंशिकी की यह समस्या है कि प्लैस्टिड्स की वंशानुगति किन्हीं निश्चित जीन्स से नियन्त्रित होती है अथवा ये स्वतन्त्र साइटोप्लाज्मी संरचना हैं, जो कि अपने कार्य तथा प्रभाव का नियन्त्रण स्वयं करते हैं । क्लोरोप्लास्ट की आदिम नील - हरित शैवाल (blue green algae) के अन्तः कोशिकी सहजीवता (symbiosis) से उत्पत्ति प्रमाणित हुई है । ये इन आदिम प्रकाश संश्लेषी प्रोकैरयोट्स से कोशिकीय तथा आनुवंशिकता में समानता रखते हैं । इनका DNA क्लोरोप्लास्ट DNA (CDNA) के समान होता है । क्लोरोप्लास्ट अर्ध स्वायत (semiautonomous) कोशिकांग होती है ।

आधुनिक समय में रोहेडस ( 1940 ) ने नोनमैन्डेलियन प्रकार का व्यवहार देखा है । इसके अनुसार प्लैस्टिड अपने कार्य तथा प्रभाव में स्वतन्त्र रचनायें हैं जिनमें उत्परिवर्तन (mutation) होती है । इनकी साइटोप्लाज्म के साथ वंशगति होती है । इस प्रकार से इन्हें प्लाज्माजीन्स समझा जा सकता है ।

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9. कोशिकीय-कंकाल ( Cytoskeleton )

कोशिका की बाह्य एवं आन्तरिक आकृति के निर्माण की विशिष्टताओं के समुच्चय को कोशिकीय - कंकाल कहते हैं ।

The set of features that together account for the shape of the cell, internal and external, is called cytoseleton.” - Lewin

हालाँकि कोशिका की संरचना में व्यवस्थित तन्तुवत व्यूह (fibrous array) की उपस्थिति कोल्टजोफ (Koltzoff) ने 1928 में अभिगृहित की थी परन्तु इन्हें स्थिरीकरण की त्रुटि (fixation artifacts) समझकर अमान्य कर दिया था । अब इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के द्वारा कोशिकीय - कंकाल की उपस्थिति की संपुष्टि की गयी है । कोशिकीय - कंकाल प्रोटीन तन्तुओं के जाल का बना होता है जो कि सम्पूर्ण कोशिका में विस्तृत रहता है ।

इसमें तीन प्रकार के तन्तु ( fibres ) होते हैं —

  • माइक्रोट्यूब्यूल्स ( Microtubules )
  • माइक्रोफिलामैन्टस् ( Microfilaments )
  • इण्टरमीडिएट फिलामैन्टस् ( Intermediate filaments )


( i ) माइक्रोट्यूब्यूल्स ( Microtubules ) - 

माइक्रोट्यूब्यूल्स अशाखित (unbranched), लगभग 25 nm व्यास के बेलन (hollow cylinders) होते हैं जिनकी लम्बाई कुछ नैनोमीटर (nm) से कई माइक्रोमीटर (um) तक होती है । ये दो निकट सम्बन्धी प्रोटीन्स, जिन्हें संयुक्त रूप से ट्यूब्यूलिन (tubulin) कहते हैं , के बने होते हैं । ट्यूब्यूलिन की निकट सम्बन्धी प्रकारों को एल्फा और बीटा ट्यूब्यूलिन (alfa and B tubulin) कहते हैं । एल्फा और बीटा ट्यूब्यूलिन अणु आकार तथा एमिनो एसिड की श्रेणियों में समान होते हैं । माइक्रोट्यूब्यूल्स की भित्तियों में प्रोटीन उपइकाइयाँ छोटे (small), गोलाकार (spherical) लगभग 4-5 nm व्यास के कणों के समान प्रतीत होती हैं माइक्रोट्यूब्यूल की भित्ति ट्यूब्यूलिन उपइकाइयों के एक वृत्त से बनी होती है । अधिकतर जातियों के माइक्रोट्यूब्यूल्स के वृत्त में 13 उपइकाइयाँ (13 subunits) होती हैं जो कि लम्बवत् समानान्तर पंक्तियों में व्यवस्थित रहती है । लम्बवत् पंक्तियाँ एल्फा तथा बीटा ट्यूब्यूलिन की एकान्तरित पंक्तियों की बनी होती हैं ।

( ii ) माइक्रोफिलामैन्ट्स (Microfilaments) - 

अति महीन, अशाखित तथा विविध लम्बाई के तन्तु होते हैं जिनका व्यास लगभग 5 से 7 nm होता है । ये एक्टिन (actin) नामक प्रोटीन के बने होते हैं । माइक्रोफिलामैन्ट्स के एक्टिन अणु एक - दूसरे प्रोटीन मायोसीन के संगुणन में रहते हैं । माइक्रोफिलामैन्टस द्वारा उत्पन्न गति एक्टिन तथा मोयासिन की समन्वित क्रिया द्वारा होती है । व्यक्तिगत एक्टिन अणु लगभग 5nm व्यास की गोलाकार उप - इकाइयों के बने होते हैं । उपयुक्त परिस्थितियों में एक्टिन अणु दो पंक्तिबद्ध श्रेणियों में जुड़ते हैं जो कि द्विकुण्डलन में एक दूसरे से लिपट जाते हैं । इसमें लगभग 300 से 400 व्यक्तिगत एक्टिन अणु होते हैं । व्यक्तिगत मायोसिन अणु दो अलग - अलग परन्तु समान पोलीपैटाइड श्रेणियों से बनी लम्बी तन्तुमय (fibrous) संरचनायें होती हैं । प्रत्येक दोनों पोलीपैप्टाइड्स में एक गोलाभी (globular) शीर्ष (head) तथा एक लम्बी पूँछ (tail) होती है । मायोसिन अणु में शीर्ष पार्श्व से पार्श्व (side by side) लगे रहते हैं तथा पूँछ द्वि - कुन्डलन (double spiral) में लिपटी रहती है । सम्पूर्ण अणु की लम्बाई लगभग 140nm होती है । प्रत्येक मायोसिन अणु एक ATPase enzyme के समान कार्य कर सकता है जो कि ATP को ADP + Phophate में तोड़ सकता है ATPase की यह क्रिया मायोसिन अणु के शीर्ष से सम्बन्धित होती है  माइक्रोट्यूब्यूल्स तथा माइक्रोफिलामैन्ट्स दोनों अलग - अलग या सहकारिता से विभिन्न प्रकार की कोशिकीय गति उत्पन्न करते हैं । उदाहरणत:, शुक्राणु पूँछ (sperm tails) की कोड़े जैसी गति (whip like motion) तथा दूसरे प्रकार के कशाभिका (flagella) तथा पक्ष्माभिका (cilia) की गति प्राथमिक या पूर्णरूपेण माइक्रोट्यूब्यूल्स पर निर्भर करती है । माइक्रोफिलामैन्ट्स जन्तुओं में पेशी - कोशिकाओं (muscle cells) की (contractile) गति तथा जन्तुओं तथा पौधों दोनों के कोशिक द्रव्य की धारा गति (steaming motion) उत्पन्न करते हैं । माइक्रोट्यूब्यूल तथा माइक्रोफिलामैन्ट्स की क्रिया का समन्वय जन्तुओं के कोशिका विभाजन में होता है जिसमें माइक्रोट्यूब्यूल्स कोशिका न्यूक्लियस के क्रोमोसोम्स का विभाजन करते हैं तथा माइक्रोफिलामैन्ट्स कोशिका द्रव्य को विभाजित करने वाली गति उत्पन्न करते हैं ।

( iii ) इन्टरमीडिएट फिलामैन्ट्स ( Intermediate Filaments ) - 

इनके अन्तर्गत पाँच विभिन्न प्रकार के तन्तु सम्मिलित हैं । प्रत्येक विशिष्ट प्रकार की कोशिका में उपस्थित होता है । सामान्यतः एक विशिष्ट प्रकार की कोशिका में केवल एक प्रकार का इन्टरमीडिएट तन्तु होता है ।

  • केराटिन ( Keratin ) - ये उपकला (epithtilal) कोशिकाओं में पाये जाते हैं ।
  • डैसमिन ( Desmin ) - ये पेशी कोशिका (myogenic-muscle) में पाये जाते हैं ।
  • वैमिनटिन ( Vimentin ) - ये मेसेनकाइमल (mesenchymal) कोशिकाओं में उपस्थित होते हैं ।
  • GFAP ( Glial Filaments Acidic Proteins ) – ये मस्तिष्क (astroglial) कोशिकाओं में उपस्थित होते हैं ।
  • न्यूरोफिलामैन्ट्स ( Neurofilaments ) – ये तन्त्रिका - कोशिकाओं (neuronal) में उपस्थित होते हैं ।

इन्टरमीडिएट तन्तुओं की मध्यमान (mean) मोटाई 10nm होती है । हालाँकि इन्टरमीडिएट तन्तुओं की उपइकाइयाँ विविध होती हैं । इनकी संरचना में एक सामान्य विशिष्टता होती है कि प्रत्येक का केन्द्रीय क्षेत्र > 300 ऐमिनो एसिड्स लम्बा होता है जो कि a helical व्यवस्था पर आधारित एक छड़ (rod) बनाता है । इस छड़ के प्रत्येक N - terminal या C - terminal और प्रदेश (domain) विशिष्ट प्रकार के भिन्न - भिन्न होते हैं । में अधिकतर इन्टरमीडिएट फिलामैन्ट्स का संरचनात्मक कार्य होता है । उदाहरणतः, कोशिका आकृति को दृढ़ता प्रदान करते हैं । हालाँकि अभी तक इनके कार्य एवं व्यवस्था के विषय में बहुत कम ज्ञात है ।

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10. केन्द्रक या न्यूक्लियस ( Nucleus )


अभिरंजन, स्थिरीकरण तथा जैविक क्रियाओं के अध्ययन से पता चलता है कि केन्द्रक बहुत जटिल परन्तु नियमित तथा स्थिर अवस्थाओं में को गुजरता है । केन्द्रक कला ( nuclear membrane ) लुप्त होने तथा गुणसूत्रों के बनने से ये विशेषतायें प्रदर्शित होती हैं । इन तथ्यों के आधार पर बेलार (belar) ने केन्द्रक की निम्नलिखित परिभाषा दी है - “कोशिका-द्रव्य से घिरी वह संरचना है जिससे विभाजन के समय गुणसूत्र बनते हैं ।"

केन्द्रक (nucleus) को दो अवस्थाओं में गुजरना पड़ता हैं ।

  • विभाजनांतराल अवस्था या उपापचयी अवस्था ( Inter phase or metabolic phase )
  • विभाजन - काल या सूत्री विभाजन अवस्था ( Peroid of division or mitotic phase )

दोनों में मुख्यतः केन्द्रक (nucleus) की आकृति में परिवर्तन होते हैं । प्रथम अवस्था, विभाजन अन्तराल अवस्था में क्रोमेटिन का संश्लेषण होता है । दूसरी अवस्था में गुणसूत्रों का विभाजन होता है जिससे सन्तति केन्द्रक बनते हैं ।


न्यूक्लियोप्लाज्म ( Nucleoplasm ) -

क्रोमेटिन एवं केन्द्रिकाओं (nucleoli) के अतिरिक्त शेष न्यूक्लियस संरचनाहीन न्यूक्लियोप्लाज्म से भरा रहता है, जिसमें बहुत से इलेक्ट्रॉन सघन कण होते हैं, जिनमें से कुछ में RNA होता है । ये न्युक्लियोप्लाज्मिक कण, राइबो - न्यूक्लियो प्रोटीन पारटीकिल्स (RNP) होते हैं जिनमें, सम्भवत: “mRNA precursors” होते हैं । न्यूक्लिओप्लाज्म में प्रोट प्रकृति का न्यूक्लियर मैट्रीक्स (or nuclear skeleton) हो सकता है । इसका सबसे विशेषित भाग न्यूक्लियर लेमिना (lamina) होता है जो कि न्यूक्लियर झिल्ली के अन्दर की ओर संलग्न रहता है । न्यूक्लियर लेमिना तीन प्रोटीन्स लेमिन्स (lamins) A, B तथा C का बना होता है । सूत्री विभाजन में प्रत्येक लेमिन फास्फीकृत हो जाता है । जिससे ये विलय हो जाते हैं । इस घटना से लेमिना टूट जाता है । यह क्रिया प्रोटीन काइनेज एन्जाइम द्वारा होती है जो कि लेमिन्स में फॉस्फेट समूह जोड़ देता है । सूत्री विभाजन के अन्त में यह क्रिया उत्क्रमणीय हो जाती है जिसमें विशेषित फॉस्फेट्स फॉस्फेट समूह को हटा देता है तथा लेमिना व्यवस्थित हो जाता है ।


न्यूक्लीय झिल्ली ( Nuclear Membrane ) -

न्यूक्लीय झिल्ली, दोहरी कला (double membrane) की बनी होती है । दोनों कलाओं के बीच के स्थान को बाह्य केन्द्रकीय अन्तराल (perinuclear space) कहते हैं । इसकी चौड़ाई 10nm से कई सौ nm तक होती है । इसमें सिरम जैसा द्रव भरा रहता है । जिसे इन्काइलैमा (enchylema) कहते हैं । बाहरी तथा अन्दर की कला इकाई कला होती है । न्यूक्लीय झिल्ली का मुख्य गुण छिद्रता (porosity) है । इसमें बहुत से 65-70nm व्यास के छिद्र पाये जाते हैं । छिद्रों के द्वार को 'annulus' कहते हैं । छिद्र बाह्य तथा अन्तः न्यूक्लीय कला के संयुक्त होने से बनते हैं । ये अष्टकोणीय (octagonal) प्रतीत होते हैं । ये खुले रास्ते नहीं होते हैं इनमें एक इलेक्ट्रॉन सघन प्रोटीनयुक्त पदार्थ भरा रहता है जिसे छिद्रीय पदार्थ (annular material) कहते हैं जो कि प्लग की तरह कार्य करता है । सम्भवतः इससे पदार्थों के आवागमन का नियन्त्रण होता है । इन छिद्रों से साइटोप्लाज्म के आधार पदार्थ तथा न्यूक्लियोप्लाज्म का प्रत्यक्ष सम्बन्ध रहता है ।


न्युक्लिओलस ( Nucleolus ) -

अभिरंजित न्यूक्लियस में क्रोमेटिन के साथ गहरा अभिरंजन लिये हुये गोल सी एक या अधिक काय होती हैं इन्हें न्यूक्लिओलस कहते हैं । इनके अभिरंजन से पता चलता है कि इसमें हिस्टोन तथा राइबोजन्यूक्लिक एसिड अधिक मात्रा में पाया जाता है । न्यूक्लिओलस क्रोमेटिन के विशेष भाग से जुड़े रहते हैं जिसे न्यूक्लीय संगठक (nucleolar organiser) कहते हैं ।


इलेक्ट्रॉन माइक्रोग्राफ के द्वारा किये गये अध्ययन से पता चलता है कि इनकी संरचना दो भिन्न भागों की बनी होती है -

  • एक भाग राइबोसोम जैसे दानेदार (granular) पदार्थ का बना होता है जिनका आकार 15-20nm होता है ।
  • एक भाग तन्तुओं (fibers) का बना होता है जिनका व्यास 8-10nm होता है । इन्हें न्यूक्लियोनेमा कहते हैं ।

इनका सम्बन्ध न्यूक्लियर पदार्थ के संग्रह से भी समझा जाता है । न्यूक्लिओलस राइबोसोम्स के RNA का संश्लेषण करता है तथा इस RNA को राइबोसोम्स की उपइकाइयों के राइबोसोमीय प्रोटीन्स के साथ संयुक्त करता है जो कि न्यूक्लीय झिल्ली के छिद्रों के द्वारा कोशिका द्रव्य में अभिगमन करता है । इनका दूसरा महत्वपूर्ण कार्य mRNA के लिये न्यूक्लियो - टाइड्स को निकालना (emission) होता है । वह RNA साइटोप्लाज्म में चला जाता है । जहाँ पर यह प्रोटीन संश्लेषण में भाग लेता है ।


न्यूक्लीय जालिका ( Nuclear Reticulum ) -

कोशिका की विभाजन अन्तराल अवस्था में क्रोमोसोम्स कोमल, गोल, सूत्रीय जाल के समान प्रतीत होते हैं जिसे क्रोमेटिन जालिका कहते हैं । विभाजन काल में यह आकृति तथा परिमाण में अलग - अलग छोटे - मोटे तथा गोल सूत्रों के समान दिखाई देते हैं । जिन्हें गुणसूत्र (chromosomes) कहते हैं । वंशानुगति पदार्थ का मुख्य भाग गुणसूत्रों पर ही स्थित होता है । गुणसूत्रों पर पायी जाने वाली जीन्स (genes) ही जीवन कार्यों को निर्धारित करती है ।


11. आधार पदार्थ या साइटोप्लाज्मिक मैट्रिक्स ( Cytoplasmic matrix )


इलेक्ट्रोन माइक्रोस्कोप से दिखाई पड़ने वाली सभी कोशिकांगों व कणों को छोड़कर साइटोप्लाज्म के संभागी पदार्थ को आधार पदार्थ (fundamental या ground plasm या cytoplasmic matrix या hyloplasm) कहते हैं । इस आधार पदार्थ में सभी साइटोप्लाज्मिक कोशिकांग (आर्गेनल) डूबी पड़ी रहती हैं । साइटोप्लाज्मिक मैट्रिक्स कणीय संरचना का बना प्रतीत होता है । इन कणिकाओं का व्यास 10A से कम होता है जो कि इलेक्ट्रोन माइक्रोस्कोप से दिखाई नहीं देते हैं । ये गोलाकर प्रोटीन अणु हो सकते हैं । यह भाग कोलॉइडी होता है इसमें सोल जैल उत्क्रमणीय परिवर्तन की विशेषता होती है ।


इस आधार पदार्थ के कार्य विभिन्न प्रकार के होते हैं -

  • इसमें एन्जाइम व्यवस्था होती है ।
  • यह जीन्स के नियन्त्रण में कार्य करता है ।
  • इसके अन्दर सम्भाविक आकारिक जनन प्रवृत्ति होती है ।

साइटोप्लाज्म में आनुवंशिकी पदार्थ भी उपस्थित होता है । इन आनुवंशिक इकाइयों को प्लाज्मा जीन्स  (plasma genes या cytogenes) कहते हैं । साइटोप्लाज्मिक मैट्रिक्स में स्वउत्प्रेरण की विशेषता होती है । यह एक संवेदनशील तथा स्वयं चालित व्यवस्था है । इसकी शरीर - क्रियात्मक रासायनिक विशेषताओं का अध्ययन बहुत कठिन होता है क्योंकि इस आधार पदार्थ को इसमें डूबी रचनाओं से शुद्ध रूप से अलग करना बहुत सी जटिलताओं की वजह से सम्भव नहीं हो पाया हैं ।


12. स्फैरोसोम्स ( Spherosomes )


पादप कोशिकाओं के साइटोप्लाज्म में छोटी - छोटी चमकदार रचनाओं (referective bodies) को हेनस्टीन ( 1880 ) ने माइक्रोसोम्स कहा । इन्हें डेनगीरड ने 1919 में 'Sphersomes' (स्फैरोसोम्स) नाम दिया । स्फैरोसोम्स छोटी - छोटी चमकदार तेल की बूंदों (oil drops) के समान रचनायें होती हैं लेकिन इन्हें ओसमिक अम्ल से अभिरंजित किया जा सकता है जिसमें ये बहुत बारीक कणीय प्रतीत होती हैं । जबकि तेल की बूँद आस्मिक अम्ल नहीं लेती हैं तथा समजात होती हैं । स्पैरोसोम्स की चमक टाइरोसीन की उपस्थिति के कारण होती है । इनका आकार 0-54-14 होता है ये इकाई कला से घिरे रहते हैं जो ER से बनती हैं । अन्दर का कणीय पदार्थ प्रोटीनयुक्त होता है, इनमें लगभग 40 % लीपिड्स होते हैं । इनमें साइटोक्रोम ऑक्सीडेज तथा एसिड फॉस्फेटेज एन्जाइम्स भी होते हैं । प्रोटीनयुक्त होने के कारण ये नाड़ी प्रतिक्रिया करते हैं । ये मुख्यतः वसा संश्लेषण करते हैं । इनकी उत्पत्ति ER से कटे सूक्ष्म बूँदों (globules) से होती है जिनका आकार 10 nm होता है । ये बढ़कर 100-150 nm के हो जाते हैं तो उन्हें प्रोस्फैरोसोम्स ( prosphersomes कहते हैं तथा ये बढ़कर पूर्ण स्फैरोसोम्स (0-5-14) बनते हैं ।

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13. लाइसोसोम्स ( Lysosomes )


डे डवे ( De Dave 1959 ) ने जन्तु कोशिकाओं में पाये जाने वाली सघन काय के लिये लाइसोसोम्स नाम दिया है लाइसोसोम्स का आकार लगभग 0.44 होता है । ये लिपोप्रोटीन कला (lipoprotein membrane) से घिरे रहते हैं जिसमें सघन दानेदार स्ट्रोमा भरा रहता है तथा एक बड़ा वैक्योल होता है । इनमें मुख्यतः हाइड्रोलाइटिक एन्जाइम जैसे फॉस्फेटेज, राइबोन्यूक्लियेज, एसिड डिऑक्सीराइबोन्यूक्लियेज, कैथिपसीन, बी ग्लयुकोरेनेस भरे रहते हैं । इनकी उपस्थिति के कारण इनमें आत्मघात (anutolytic) का गुण होता है । इसलिये इन्हें "आत्मघाती थैले" (suicidal bags) भी कहते हैं । ये पादप कोशिका में भी पाये जाते हैं । विघटनकारी एन्जाइम्स की उपस्थिति के कारण ये हानिकारक बाह्यकोशिकीय पदार्थों का कोशिका में प्रवेश करने पर विघटन कर देते हैं जिनका विसर्जन हो जाता है अतः इनका मुख्य कार्य रक्षण तथा स्वच्छता है । सम्भवतः ये पदार्थों का पुनः चक्रण (recycling) करते हैं । अक्रियाशील हुये कोशिकांगों या मृत व जीर्ण कोशिकाओं का स्वपचयन करके उनसे प्राप्त पदार्थों को जीव के पुनः उपयोग के लिये तैयार करते हैं ।


14. तारक केन्द्र ( Centrosome )


तारक केन्द्र जन्तुओं तथा निम्न श्रेणी के पौधों की कोशिकाओं में ही पाये जाते हैं । ये उच्च श्रेणी के पौधों में नहीं पायी जाती है । तारक केन्द्रक का कोशिका विभाजन से सम्बन्ध होता है । अविभाजित कोशिकाओं में यह गहरा रंग लेने वाले बिन्दु के समान रहता है । इसे केन्द्रिका (centriole) कहते हैं । क्रियाशील कोशिका विभाजन के समय यह दो भागों में बँट कर न्यूक्लियस के दोनों सिरों पर आ जाता है । जहाँ पर यह जैलेशन केन्द्र बनाता है । जिसमें से तारा रश्मि (astral rays  तथा तर्क सूत्र (spindle fibre) को बनाने वाले तन्तु निकालते हैं । उच्च वर्गीय पौधों में तारक केन्द्र की जगह ध्रुव टोपी (polar cap) बनती है ।


15. राइबोसोम्स ( Ribosomes )


सर्वप्रथम, राइबोसोम्स टिजरस तथा वाटसन (1958) ने निकाले थे । TRNA कोशिकीय RNA का अधिकतर भाग होता है । RNA के अतिरिक्त, राइबोसोम्स में लगभग 37% प्रोटीन होते हैं । इस प्रकार राइबोसोम्स पूर्णरूपेण RNA प्रोटीन कण (RNP particles) होते हैं । राइबोसोमीय प्रोटीन्स को r-proteins कहते हैं । विभिन्न जातियों से प्राप्त राइबोसोम्स की मात्रा, बेससंघटन तथा RNA प्रोटीन अनुपात में भिन्नता हो सकती है तथापि इनकी संरचना तथा कार्य - विधि में समानता पायी जाती है ।

राइबोसोम्स का वर्गीकरण अवसादन स्थिरांक के अनुसार किया जाता है । एशोरेशिया कोलाई (E, Coli) के पूर्ण राइबोसोम्स का अवसादन स्थिरांक 70S होता है तथा अणुभार 2.6x10° होता है । इनका पाचन (digestion) राइबोन्यूक्लिएस के द्वारा नहीं किया जा सकता है । परन्तु Mg+ (मैग्नीशियम) की कम सान्द्रता पर 705 राइबोसोम्स दो भागों में अलग हो जाते हैं । एक 50S (M.W. 1.8x109) तथा दूसरा 30S (M.W. 800,000) । इन अलग हुये भागों को Mg++ की सान्द्रता बढ़ाकर फिर से जोड़ा जा सकता है ।

इन दोनों अलग हुये भागों का बेस संगठन तथा RNA:protein अनुपात समान होता 50S राइबोसोम्स इकाई में 23S FRNA व छोटा 5S FRNA तथा 31 प्रोटीन्स होते हैं तथा छोटी 30S राइबोसोम इकाई में 16S TRNA तथा 21 प्रोटीन्स होते हैं ।

एशोरेशिया कोलाई के राइबोसोम का इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से ऋणात्मक अभिरंजन (negative staining) के बाद अध्ययन करने से, इसकी रचना दो स्पष्ट भागों की जुड़कर बनी प्रतीत होती है । एक बड़ा गुम्बज की आकृति (dome shaped) का 140-169 व्यास का खण्ड तथा दूसरा छोटा अनियमित एवं कुछ चपटा - सा 70 A व्यास वाला खण्ड छोटा 30S खण्ड बड़े 50S खण्ड़ की खाँच (notch) पर टोपी की तरह (cap like) जमा रहता है तथा दोनें मिलकर 70S कण बनाते हैं जिनका व्यास 160-180 A होता है ।

यूरेनाइल एसिटेट से धनात्मक अभिरंजन करने पर इसके RNA सूत्र को निकाला जा सकता है । इसके RNA सूत्र में काफी मात्रा में बेस युग्मन पाया जाता है । प्रोटीन RNA सूत्र से चिपके रहते हैं । स्तनधारियों (mammals) के राइबोसोम्स एशोरिशिया कोलाई राइबोसोम्स से बड़े होते हैं । इनमें 40S तथा 605 दो भाग मिलकर 80S कण बनाते हैं । 40S इकाई में 185 TRNA तथा 33 प्रोटीन्स होते हैं तथा 60S इकाई में 285 rRNA, 5-8S TRNA 5S TRNA तथा 49 प्रोटीन्स होते हैं ।


कोशिकावाद क्या है? | Cell theory in hindi

इंगलैण्ड के वैज्ञानिक राबर्ट हुक ने (1665) में मैगनीफाइना लैन्स से कार्क की रचना का अध्ययन करते हुये बताया कि कार्क शहद की मक्खी के छत्ते के समान खाली वेश्मों का बना होता है जिनके लिये हुक ने cell (Gr. Kytos hollow space) शब्द दिया । कोशिकावाद कि "सभी प्राणी तथा पौधे कोशिकाओं के बने होते हैं ।"

श्लेडन तथा श्वान (1838) के नाम से सम्बन्धित है । श्लेडन (1838) ने पौधों की ऊतकों को कोशिकाओं का बना हुआ बताया । श्वान (1839) ने श्लेडेन के विचारों को प्रमाणित किया तथा उन्होंने जन्तुओं की रचना को कोशिकाओं की बनी हुई बताया । उसने जन्तुओं के शरीर के ऊतकों (tissues) और कोशिका के विकास का सूक्ष्म अन्वेषण किया तथा “cell theory" शब्द का सर्वप्रथम इस प्रकार बताते हुये प्रयोग किया कि, "कोशिका जीव होते हैं और जन्तु तथा पौधे इन्हीं जीवों के समूह हैं जो कि नियमित रूप में विन्यस्त रहते हैं ।"

श्वान के परिणामों से ही कोशिकावाद स्थापित हुआ । यह वाद जल्दी ही एक कोशिकीय जीवों के लिये लागू हुआ तथा प्रोटोजोआ को एक कोशिका का बना हुआ माना गया । वोन सीबोल्ड (1845) तथा हैकल (1845) ने जन्तु संसार को दो मुख्य भागों प्रोटोजोआ तथा मैटाजोआ में विभक्त किया ।


वंश परम्परावाद ( Theory of Cell Lineage )

वीरकोव ने (1858) में कोशिका परम्परावाद प्रस्तुत किया । इस वाद के अनुसार, "कोशिका पहले से उपस्थित कोशिका से उत्पन्न होती है ।"

वीरकोव की इस प्रसिद्ध धारणा "Omnis cellulae ecellula” से कोशिका वाद पूर्ण हुआ -

  • सभी जीव केन्द्रकयुक्त (nucleated) कोशिकाओं के बने होते हैं ।
  • कोशिका जीवन की कार्यात्मक इकाई (functional unit) होती है ।
  • सभी कोशिकायें पहले से उपस्थित कोशिकाओं से उत्पन्न होती हैं ।