मौसम विज्ञान (metrology in hindi) क्या हैं कृषि मौसम विज्ञान का क्षेत्र एवं सम्बन्ध लिखिए

प्राचीन काल से ही मौसम ने मनुष्य के जीवन एवं उसके दैनिक कार्यों को प्रभावित किया है, हमारी मूलभूत आवश्कताएं मौसम पर आधारित होती है ।

मनुष्य निरंतर मौसम संबंधित रहसयों के उद्घाटन में प्रयत्नशील रहा है इसीलिए आजकल मौसम विज्ञान (metrology in hindi) संबंधित विभिन्न सेवाएं उपलब्ध है ।

मौसम विज्ञान का अर्थ एवं परिभाषा | defination of metrology in hindi

मौसम विज्ञान (meterology in hindi) शब्द की उत्पत्ति ग्रीक दार्शनिक अरस्तू की पुस्तक मेट्रोलाजिका (meterologica) से हुई, जिसका अर्थ ऊपर की वस्तुओं का अध्ययन एवं विवेचना है ।

अरस्तू की यह पुस्तक ईसा से 350 वर्ष पूर्व लिखी गई थी । इस पुस्तक में सम्पूर्ण विश्व का पाँच जलवायु क्षेत्रों में विभाजन किया गया था ।

कृषि मौसम विज्ञान agro-metrology in hindi -

कृषि मौसम विज्ञान को संक्षिप्त में Agro-met या agrometerology (कृषि मौसम विज्ञान) भी कहते हैं इसे ही कृषि जलवायु विज्ञान भी कहा जाता है । इसके अन्तर्गत कृषि से सम्बन्धित विभन्न मौसमी अवस्थाओं का अध्ययन किया जाता है ।

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कृषि एवं मौसम विज्ञान का सम्बन्ध | agriculture and metrology in hindi


कृषि एवं मौसम का अटूट सम्बन्ध है इन्हें एक दूसरे से पृथक कर नहीं देखा जा सकता कृषि को 'मानूसन का जुआ' भी कहा जाता है ।

फसलों की वृद्धि एवं विकास का मौसम से अटूट नाता है, मौसम के द्वारा ही बीज की बुआई, खेत की तैयारी एवं खेत की कटाई ही नहीं अपितु कटाई के उपरांत की जाने वाली क्रियाएँ भी प्रभावित होती हैं ।

इस प्रकार से जलवायु सम्बन्धी विभिन्न कारकों एवं उनका कृषि एवं फसलोत्पादन पर प्रभाव की जानकारी अच्छी कृषि के लिए नितान्त आवश्यक है ।

कृषि मौसम विज्ञान का क्षेत्र | scope of agriculture metrology in hindi

फसलोत्पादन से सम्बन्धित विभिन्न क्रियाओं का मौसम एवं जलवायु से घनिष्ठ सम्बन्ध है ।
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मौसम विज्ञान (metrology in hindi) क्या हैं कृषि मौसम विज्ञान का क्षेत्र एवं सम्बन्ध लिखिए


फसलों की वृद्धि एवं विकास हेतु उपयुक्त मौसम एवं जलवायु अति आवश्यक है । अनुकूल जलवायु में फसलों की वृद्धि एवं विकास सुचारू रूप से हो जाता है जबकि प्रतिकूल परिस्थितियों में अवरोध उत्पन्न होता है । मौसम सम्बन्धी वे समस्त कियाये जो प्रत्यक्ष रूप से कृषि उत्पादन को प्रभावित करती है कृषि मौसम विज्ञान के अन्तर्गत आती है ।

कृषि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करने वाले मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी महत्वपूर्ण कारक निम्न प्रकार हैं -

  • सूर्य का प्रकाश
  • तापक्रम
  • आर्द्रता
  • वर्षा
  • ओला
  • पाला
  • वायु

उक्त कारकों में कुछ का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार का प्रभाव फसलों पर पड़ता है कृषि मौसम विज्ञान का उद्देश्य विभिन्न मौसम सम्बन्धी तथ्यों की जानकारी करना, उनका फसल् पर प्रभाव जानना एवं उनका विश्लेषण एवं अन्वेषण करना होता है ।

मौसम विज्ञान का ज्ञान कृि सम्बन्धी कार्यों में निम्न प्रकार से उपयोगी हो सकता है -

  • मौसम सम्बन्धी ज्ञान के आधार पर कृषि कार्यों जैसे खेत की तैयारी, बुआई, कटाई, सिंचाई आदि करने में सहायता मिलती है । इस प्रकार से मौसम सम्बन्धी ज्ञान के आधार पर कृषक को प्रतिकूल मौसम में फसल सुरक्षा सम्बन्धी उपाय करने में सहायता मिलती है ।
  • मौसम सम्बन्धी ज्ञान के आधार पर कृषकों को मौसम सम्बन्धी पूर्वानुमान के अनुसार उपयुक्त फसलों एवं प्रजातियों के चयन में सहायता मिलती है । मौसम के आधार पर फसलोत्पादन की योजना निर्धारित कर सकते हैं ।
  • फसलों को विभिन्न रोगों एवं आपदाओं जैसे सूखा, पाला, ओला, कुहरा, मृदा क्षरण आदि विपरीत मौसमी जटिलताओं से बचाने में सहायता मिलती है ।
  • मौसम सम्बन्धी सूचनाओं के आधार पर, भूमि उपयोग योजना, जलवायु सम्बन्धी खतरों की जानकारी का विश्लेषण, उत्पादन तथा कटाई सम्बन्धी क्रियाओं में समायोजन तथा फसलों के उत्पादन एवं अनुकूल सम्बन्धी योजना का समायोजन सम्भव होता है ।

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कृषि को प्रभावित करने वाले मौसम एवं जलवायु संबंधी कारक

मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी विभिन्न कारकों का कृषि क्रियाओं एवं कृषि उत्पादन पर काफी प्रभाव पड़ता है, इन मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी कारकों का अध्ययन हम निम्न शीर्षको में कर सकते हैं -

  • तापमान ( Temperature )
  • सूर्य प्रकाश ( Sunlight )
  • आर्द्रता ( Moisture )
  • तुषार / पाला ( Frost )
  • वर्षा ( Rainfall )
  • सूखा ( Draught )
  • हिमपात ( Snow Fall )
  • वायु एवं वायुराशियाँ ( Air and Airmasses )


मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी कारक -

तापमान ( Temperature ) -

तापमान के द्वारा पौधों के विकास सम्बन्धी सभी क्रियायें प्रभावित होती है । बीजों का अंकुरण, वृद्धि एवं पकने के लिए उचित समय पर अलग - अलग तापमान की आवश्यकता होती है इसीलिए उष्ण कटिबन्धीय भाग में ऐसी फसलें उगाई जाती है । जिन्हें निरन्तर अधिक तापमान की आवश्यकता होती है । जैसे— रबड़, चाय, गन्ना, कपास, चावल, केला, जूट, गर्म मसाले आदि । विभिन्न फसलों के लिए एक निर्धारित तापमान की आवश्यकता होती है । तापमान न केवल कृषि फसलों को प्रभावित करता है बल्कि उनकी किस्मों व अन्य विशेषताओं को भी नियंत्रित करता है ।

सूर्य प्रकाश ( Sunlight ) -

पौधे के विकास में सूर्य के प्रकाश का महत्वपूर्ण योगदान होता है । प्रकाश संश्लेषण ( Photosynthesis ) की सम्पूर्ण क्रिया का सम्बन्ध सीधा सूर्य के प्रकाश से होता है । सूर्य के प्रकाश द्वारा ही पौधों को भोजन मिलता है और उनका विकास होता है प्रकाश के अभाव में अनेक प्रदेशों में फसलोत्पादन नहीं हो पाता है सूर्य प्रकाश के अभाव में पत्तियों का रंग प्रभावित होता है ।

आर्द्रता ( Moisture ) -

कृषि जलवायविक कारकों में अर्द्रता का महत्वपूर्ण स्थान है । पौधों की वृद्धि वं विकास के लिए आर्द्रता भी अति आवश्यक तत्व है । बहुत से पौधे आर्द्रता से ही जल ग्रहण करते हैं । निम्न आर्द्रता के कारण सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है । अतः विभिन्न फसलों, वनस्पतियों के समुचित विकास के लिए आर्द्रता एक आवश्यक तत्व है ।

तुषार/पाला ( Frost ) -

पाला कृषि के लिए हानिकारक होता है । पाला एक ऐसी असामायिक घटना है जिससे कृषि फसलों को भारी नुकसान होता है । ग्रीष्म ऋतु में जब तुषार/पाला पड़ता है तो जमी हुई अवमृदा के कारण जल विकास अवरूद्ध हो जाता है देर रात तक पड़ते रहने वाले पाले से भी हानि होती है ।

वर्षा ( Rainfall ) -

वर्षा जलवायु का एक महत्वपूर्ण घटक है । फसलों की वृद्धि एवं विकास के लिए वर्षा जल एक आवश्यक अवयव है । इसके माध्यम से मृदा में नमी बनी रहती है । मृदा में नमी की कमी से पौधों का विकास अवरूद्ध हो जाता है । कृत्रिम रूप से मिट्टी में आर्द्रता से कायम रखने के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है । पशुपालन व्यवसाय भी वर्षा से प्रभावित होता है । चारागाहों का प्रत्यक्ष सम्बन्ध वर्षा से होता है दुधारु पशुओं को अधिक जल की आवश्यकता होती है । वर्षा की कमी एवं वर्षा की अधिकता दोनों ही कृषि के लिए हानिकारक होती है ।

सूखा ( Draught ) -

सूखे का सीधा सम्बन्ध अनावृष्टि अथवा कम वर्षा से होता है । सूखे का भी सीधा प्रभाव कृषि कार्यों एवं फसलोत्पादन पर पड़ता है । अंकुरण से समय सूखा पड़ने पर फसलें उग ही नहीं पाती, बहुत सी फसलें पकते समय सूखे के कारण नष्ट हो जाती है । शुष्क जलवायु वाले प्रदेश में स्थाई रूप से सूखे की स्थिति बनी रहती है ऐसे प्रदेशों में कृषि नहीं के बराबर होती है । इन प्रदेशों के लिए सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है ।

हिमपात ( Snow Fall ) —

हिमपात से भी कृषि कार्य प्रभावित होता है उच्च भू - भागो एवं उच्च अक्षांशो पर हिमपात अधिक मात्रा में होता है जिसके कारण फसलोत्पादन एवं पशुपालन प्रभावित होता है जिन प्रदेशों में लगातार या दीर्घ अवधि तक हिमपात होता है वहाँ पर कृषि कार्य सम्भव नहीं हो पाते । हिमपात के कारण पशुओं एवं वृक्षों को भी हानि पहुँचती है । कभी - कभी हिमपात कृषि के लिए लाभदायक भी होता है । उष्ण कटिबान्धीय प्रदेशों में ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में कभी - कभी हिमपात के कारण मौसम शीलत हो जाता है जिससे फल वृक्षों में वृद्धि होती है

वायु एवं वायुराशियाँ ( Air and Airmasses ) —

वायु विभिन्न प्रकार से कृषि कार्यो को प्रभावित करती है । वायुदाब में विभिन्नता के कारण जब शीत क्षेत्रों से शीतल पवनों का बहाव उष्ण क्षेत्र की ओर होता है तो उस क्षेत्र की फसलें नष्ट हो जाती हैं । वायुदाब की विभिन्नता से चक्रवातों की स्थिति उत्पन्न होती है जो वर्षा प्रदान करती है । ऐसी स्थिति में कुछ प्रदेशों में फसलोत्पादन में वृद्धि होती है तो कुछ प्रदेशों में इसके कारण फसले नष्ट हो जाती हैं ।

इस प्रकार से मौसम एवं जलवायु सम्बन्धी विभिन्न कारकों का कृषि, फसलोत्पादन, पशुपालन पर सीधा प्रभाव पड़ता है ।