कुछ ऐसे जीवाणुओं को जो पौधों के साथ असहजीवी रूप में रहकर वायुमण्डलीय नत्रजन को मृदा में स्थिर करते है, जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) कहलाते है ।
मृदा में विटामिन अघुलनशील फॉस्फोरस को घुलनशील रूप में परिवर्तित करने का कार्य करते हैं।
जिससे मृदा में पौधों के लिए नत्रजन तथा फॉस्फोरस की उपलब्धता बढ़ जाये ।
किसानों तक पहुँचाने के लिए किसी उपयुक्त माध्यम की आवश्यकता होती है ।
जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) तैयार करने के लिये कोयले के चूर्ण, लिग्नाइट मृदा तथा रासायनिक पोषक तत्वों की निश्चित मात्रा को 10% पानी में नम करके मशीनों में अनावश्यक जीवाणुओं का हनन किया जाता है ।
इस प्रकार बने जीवाणु रहित माध्यम को 48 घण्टे तक ठण्डा करते है ।
जैव उर्वरक क्या है अर्थ एवं परिभाषा defination and meaning of bio fertilizer in hindi
जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) |
जैव उर्वरक की परिभाषा (defination of bio fertilizer in hindi)
फसलों के लिये उपयोगी जीवाणुओं को मिलाकर पैकेट बनाये जाते हैं जिन्हें जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) कहते है ।
अब इन पैकेटों को उचित तापमान पर रखने पर लगभग एक सप्ताह में जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है ।
इन पैकेटों को किसानों में वितरित किया जाता है
जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) को जैव कल्चर या जैव टीके भी कहा जाता है ।
ये भी पढ़ें
जैव उर्वरक के नाम (Name of bio fertilizer in hindi)
जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) के प्रमुख प्रकार -
1. माइक्रोफॉस जैव उर्वरक (Microfoss bio fertilizer)
2. एजोटोबैक्टर जैव उर्वरक (Azotobacter Bio Fertilizer)
3. राइजोबियम जैव उर्वरक (Rhizobium bio fertilizer)
4. नील हरित शैवाल जैव उर्वरक (Indigo Green Algae Bio Fertilizer)
जैव उर्वरक कितने प्रकार के होते है? (types of bio fertilizers in hindi)
जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) निम्नलखित प्रकार के होते है -
1. माइक्रोफॉस जैव उर्वरक (Microfoss bio fertilizer)
इस वर्ग के उर्वरकों में ऐसे जीवाणुओं का समावेश किया जाता है, जो रॉक फॉस्फेट तथा मृदा में विद्यमान अघुलनशील फॉस्फोरस को घुलनशील बना देते हैं ।
इससे पौधों में फॉस्फोरस तत्व की उपलब्धता में वृद्धि हो जाती है ।
ऐसे जीवाणुओं में स्यूडोमोनास स्ट्रिएटा तथा बैसीलस पौलीमिक्सा मुख्य हैं ।
माइक्रोफॉस जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) में एस्परजिलस अवामोरी नामक फफूंदी का समावेश किया जाता है ।
इस प्रकार पौधों को दिये जाने वाले फॉस्फेट उर्वरकों की उपयोग क्षमता 15 से 20 प्रतिशत होती है ।
क्योंकि शेष फॉस्फोरस अचल होने और अघुलनशील रूप में रहने के कारण पौधों को प्राप्त नहीं होता ।
2. एजोटोबैक्टर जैव उर्वरक (Azotobacter Bio Fertilizer)
इस वर्ग के उर्वरकों में ऐसे जीवाणुओं का समावेश किया जाता है ।
जो पौधों के साथ असहजीवी रूप में रहकर वायुमण्डलीय नत्रजन का मृदा में स्थिरीकरण कर पौधों को नत्रजन उपलब्ध कराते हैं ।
इनमें एजोटोबैक्टर जीवाणु प्रमुख हैं ।
3. राइजोबियम जैव उर्वरक (Rhizobium bio fertilizer)
इस वर्ग के उर्वरकों में उपस्थित राइजोबियम जीवाणु वायु से नत्रजन ग्रहण कर पौधों को भोजन के रूप में प्रदान करते हैं ।
विभिन्न फसलों में कई प्रकार के राइजोबियम जीवाणु पाये जाते है और उनके द्वारा नाइट्रोजन बन्धन क्षमता भी भिन्न - भिन्न होती हैं ।
4. नील हरित शैवाल जैव उर्वरक (Indigo Green Algae Bio Fertilizer)
नील हरित शैवाल मुख्यत: धान के खत जाती है ।
यह वायुमण्डल से नाइट्रोजन ग्रहण कर मदा में संचित करती है ।
अतः यह नत्रजन प्राप्त करने का प्रमुख साधन है ।
ये भी पढ़ें
जैव उर्वरक के लाभ (benefits of bio-fertilizer in hindi)
जैव उर्वरक (benefits of bio fertilizer in hindi) के निम्नलखित लाभ है-
1. जैव उर्वरक बहुत सस्ते होते हैं । अत : सभी किसान इनका प्रयोग कर सकते हैं ।
2. इनके उपयोग से मृदा की भौतिक संरचना एवं इसके रासायनिक गुणों में ( जल धारण क्षमता, आयन विनिमय तथा बफर क्षमता आदि ) में पर्याप्त सुधार होता है ।
3. जैव उर्वरक द्वारा वायुमण्डलीय अप्राप्य नाइट्रोजन से प्रतिवर्ष 50 से 200 किलोग्राम प्राप्य नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर मृदा में स्थिर कर दी जाती है । इस प्रकार मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है । इसके अतिरिक्त इनके प्रयोग से नाइट्रोजन उर्वरक की मात्रा में 10 से 20 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की कमी करके फसलोत्पादन की लागत भी घटाई जा सकती है ।
4. एजोटोबैक्टर तथा माइक्रोफॉस जैव उर्वरकों द्वारा उपचारित शाकीय फसलों में क्रमश: 15 से 37 और 12 से 27 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त होती है ।
5. शुष्क एवं वर्षा आधारित कृषि में रासायनिक जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) की अपेक्षा जैव उर्वरक प्रयोग कर भरपूर उपज ली जा सकती है ।
6. जैव उर्वरकों के प्रयोग से नत्रजन एवं फॉस्फोरस के अतिरिक्त विशेष प्रकार के हॉर्मोन्स तथा विटामिन्स भी पौधों को उपलब्ध हो जाते हैं जिससे बीजों की अंकुरण क्षमता तथा पौधों की वृद्धि बढ़ जाती है ।
7. जैव उर्वरक एन्टीबायोटिक्स का स्रावण करते हैं । अत: ये बायो - पेस्टीसाइड का कार्य करते हैं ।
8. इनके प्रयोग में वायुमण्डलीय प्रदूषण नहीं होता और जमीन तथा मानव स्वास्थ्य पर इनका विषैला प्रभाव नहीं पड़ता ।
जैव उर्वरक की प्रयोग विधि (Bio fertilizer application method)
विशेषकर सब्जियों और दलहनी फसलों में जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) का समुचित उपयोग करने हेतु विभिन्न विधियाँ प्रस्तावित की गयी हैं ।
1. बीज उपचार विधि -
यह विधि भिण्डी, करेला, तोरई, लौकी तथा टिण्डा आदि उन फसलों के लिये उपयोग में लायी जाती है जिनके बीज बिना पौध तैयार किये सीधे खेत में बोये जाते हैं ।
ऐसी फसलों में जैव उर्वरकों से बीज उपचार हेतु पहले एक लीटर पानी में 100 ग्राम गुड़ या शक्कर मिलाकर उबालते हैं ।
इस घोल को ठंडा करके इसमें जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) का एक पैकेट डाल कर भली - भाँति मिलाते हैं ।
प्राप्त घोल को बीजों के ऊपर छिड़क कर इस प्रकार मिलाते है कि सभी बीजों के ऊपर घोल की समान परत चढ जाये ।
उपचारित बीजों को छाया में सुखाकर बोया जाता है ।
उपचार के 24 घण्टे बाद तक बुवाई सम्भव न हो तो बीजों को पुन: उपचारित किया जाता है ।
यदि बीजों का उपचार कीटनाशी रसायनों एवं फफंदी नाशक से भी करना हो तो पहले कीटनाशी दवाओं से और फिर फफूंदी नाशक दवाओं से उपचार किया जाता है ।
इसके एक सप्ताह पश्चात् जैव उर्वरक से उपचार करना चाहिये ।
2. जड़ों को घोल में डुबोकर -
इस विधि का प्रयोग प्याज, टमाटर, बैंगन तथ मिर्च आदि उन शाकीय फसलों में किया जाता है जिनकी पहले से नर्सरी में पौध तैयार की जाती है ।
ऐसी फसलों में जैव उर्वरक का प्रयोग करने के लिये 5 लीटर पानी में जैव उर्वरक का एक पैकेट मिलाकर घोल बनाते हैं ।
नर्सरी से उखाड़े गये पौधों की जड़ों को इस घोल में 2 - 3 मिनट तक डुबोकर पौधारोपण किया जाता है ।
3. मृदा में छिड़क कर -
यदि उपरोक्त दोनों विधियों का प्रयोग असम्भव हो तो इस विाधम 100 किलोग्राम गोबर की पर्णतः सही हर्ड खाद तथा 5 किलोग्राम नम मिट्टी क साथ जैव उर्वरक के 10 पैकेट मिलाकर एक मिश्रण तैयार करते हैं जिसे पौध रोपन स कुछ पूर्व छिड़क कर मृदा में मिला देते हैं ।
जैव उर्वरक की पयोग की जाने वाली माता विभिन्न फसलो के अनुसार होती है ।
सामान्यत: 2 पैकेट ( 500 ग्राम ) जैव उर्वरक एक हैक्टेयर क्षेत्र र बीज एवं रोपी जाने वाली पौध के उपचार हेतु पर्याप्त होता है ।
ये भी पढ़ें
जैव उर्वरक के प्रयोग में बरतने वाली सावधानियां (Precautions in the use of bio fertilizer or bio fertilizer)
जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) से भरपूर लाभ लेने के लिये निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिये -
1. इनके पैकेटों का प्रयोग उसी फसल के लिये करें जिसके लिये वह प्रस्तावित हो ।
2. पैकेट खरीदते समय उसका नाम तथा उपयोग में लाने की अन्तिम तिथि अवश्य देखें और अन्तिम तिथि से पूर्व ही टीके का प्रयोग कर लेना चाहिये ।
3. पैकेट खरीदने के पश्चात् इन्हें कीटनाशक दवाओं, धूप एवं गर्मी से बचाकर सरक्षित रखें और उन्हें केवल प्रयोग के समय ही खोलना चाहिये ।
4. जीवाणु रोधकों को रासायनिक उर्वरकों के साथ नहीं मिलाना चाहिये । विशेषकर यरिया को फसल की बुवाई तथा पौधारोपण के समय नहीं देना चाहिये । जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) के साथ नहीं मिलानी चाहिये । यदि कीटनाशकों से तो पहले कीटनाशक से और फिर एक सप्ताह पश्चात् जैव उर्वरकों से किया जाता हैं।
5. कीटनाशक दवायें जैव उर्वरक के साथ बीज उपचार करना हो तो पहले कीटनाशक से और फिर उपचार करना चाहिये । पारायुक्त रसायनों से बीज उपचार करने पर जैव की दोगनी मात्रा प्रयोग में लानी चाहिये ।
6. मृदा की जाँच अवश्य करानी चाहिये । यदि मृदा अम्लीय हो तो जैव उर्वरक से उपचारित बीजों पर तरन्त कैलशियम कार्बोनेट पाउडर ( बीजों की मात्रानुसार 400 ग्राम से किलोग्राम तक ) और क्षारीय हो तो बारीक जिप्सम पाउडर की परत चढ़ानी चाहिये ।
7. बीज उपचार की पूरी प्रक्रिया सुबह एवं छायादार स्थान पर करनी चाहिये और बीजों को छाया में सुखाकर तुरन्त बुवाई करनी चाहिये । उपचार के 24 घण्टे बाद तक बवाई सम्भव न होने पर पुन : जैव उर्वरक से उपचार करना चाहिये ।
8. जीवाणु टीकों के प्रयोग बारे कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिये ।
जैव उर्वरक को सुरक्षित करना क्यों आवश्यक है? (bio fertilizer safeguarding in hindi)
जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) को किसी कारणवश उपयोग में न लाया जाय तो इसे सुरक्षापूर्वक भण्डारित करना आवश्यक होता है ।
इसके लिये मिट्टी के घड़े में जैव उर्वरक के पैकेट रखकर मुँह बन्द कर देते हैं ।
द्रव शुष्क, अंधेरे एवं छायादार स्थान पर गड्ढा खोदकर इसमें घड़े को इस प्रकार दबा देते है कि इसके चारों ओर 6 से 8 इंच मोटी बालू की परत लग जाए ।
घड़े के मुँह को जमीन की सतह से ऊपर रखते हैं और बालू को समय - समय पर पानी से नम रखते हैं ।
जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों का विकल्प है? (Bio-fertilizers are an alternative to chemical fertilizers)
जैविक उर्वरक, रासायनिक उर्वरकों का विकल्प - हर फसल मृदा के स्थूल तथा सूक्ष्म दोनों प्रकार के पोषक तत्वों को खींच लेती है जिनकी पूर्ति हेतु रासायनिक उर्वरक मृदा में डाले जाते हैं ।
सन् 1964 - 65 में कृषि में जो हरित क्रान्ति आई थी उसमें रासायनिक उर्वरकों का लगभग 50% योगदान था ।
अत: स्पष्ट है, कि कृषि में रासायनिक उर्वरकों का समुचित उपयोग कर प्रति इकाई क्षेत्र उपज बढ़ाई जा सकती है ।
वास्तव में रासायनिक उर्वरकों के महंगा होने और निरन्तर बढ़ रही कीमतों के कारण अधिकांश किसान सब्जियों की खेती में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग प्रस्तावित मात्रा के अनुसार नहीं कर पाते ।
दूसरी ओर अपने देश में रासायनिक उर्वरकों की आन्तरिक माँग को पूरा करने के लिये प्रतिवर्ष इनका आयात भारी मात्रा में करना पड़ता है जिसके कारण देश की पर्याप्त मुद्रा व्यय होती है ।
ऐसी स्थिति में जैव उर्वरकों का उपयोग कृषि उत्पादन के लिये वरदान सिद्ध हुआ है ।
जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों की तुलना (comparison of bio-fertilizers chemical fertilizer)
( i ) अधिक प्रभावशाली होते हैं ।
( ii ) सन्तुलित एवं सस्ते होते है, जिन्हें गरीब से गरीब किसान उपयोग में ला सकता है ।
( iii ) पौधों को नत्रजन एवं फॉस्फोरस तत्वों की उपलब्धता में कम खर्च पर अधिक वृद्धि करते हैं ।
( iv ) कुछ विशेष हॉर्मोन्स एवं विटामिन भी पौधों को उपलब्ध कराते हैं जिससे बीजों का अंकुरण , जड़ों का विकास और पौधों की वृद्धि अच्छी होती है ।
( v ) वायुमण्डलीय प्रदूषण नहीं कराते और मृदा तथा मानव के स्वास्थ्य पर विषैला प्रभाव नहीं डालते है । इसके अतिरिक्त रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के प्रयोग से जमीन के तत्वों का हरण होता है ।
मृदा विशेषज्ञों के अनुसार सघन पैदावार के कारण मृदा से जिंक, तांबा, मैंगनीज, मैगनीशियम तथा बोरॉन आदि महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक लुप्त हो रहे हैं ।
फलत: हरित क्रान्ति सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी को मारने वाली भी सिद्ध हुई है ।
किसी सूक्ष्म तत्व की भरपाई के लिये शुद्ध रासायनिक रूप में उस तत्व को डालने से मदा के अन्य सक्ष्म तत्वों की समाप्ति का भय रहता है ।
वैसे सूक्ष्म खनिजों को खरीदना भी कठिन होता है । जिंक जैसे तत्व को डालने में बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है अन्यथा मृदा जहरीली हो जाती है ।
डाले गये जिंक का 80 से 90% भाग ऐसे रूप में परिणत हो जाता है । जिसे पौधे उपयोग में नहीं ला सकते ।
इस समस्या के समाधान हेतु देसी उपाय के तौर पर प्राकृतिक खाद का प्रयोग करना चाहिये और फलीदार फसलों के साथ नाना प्रकार की फसलें बोनी चाहिये ।
कीटनाशकों के प्रयोग से इनके जहरीले अंश अनाज, फल, सब्जियाँ, दूध, जल तथा मांस - मछली आदि खाद्य पदार्थों में भी पाये जाने लगे हैं ।
यदि कीटनाशक शरीर में पहुँच जायें तो इसके घातक परिणाम होते हैं ।
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के सम्बन्ध में स्वास्थ्य एवं पर्यावरण चेतावनी के उपरान्त कृषि विशषज्ञ अब जैव उर्वरकों को रासायनिक उर्वरकों के के रूप में अपनाने लगे है ।
फलत: नील हरित शैवाल तथा राइजोबियम जैसे विशेषज्ञों की चेतावनी के उपरान्त कृषि विशेषज्ञ निरापद विकल्प के रूप में अपनाने लगे जैव उर्वरकों का उत्पादन , वितरण और प्रयोग इस समय उत्तर प्रदोश, पंजाब, जम्मू - कश्मीर बिहार, मध्य प्रदेश, केरल तथा तमिलनाडु राज्यों में चल रहा है ।
इसके अतिरिक्त पश्चिम बंगाल के सुन्दर वन के दलदली क्षेत्रों में नील हरित शैवाल के प्रयोग से चावल की उपज में सात प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है ।
रासायनिक उर्वरकों के साथ जैव उर्वरक (bio fertilizer in hindi) के प्रयोग से प्रति हैक्टेयर पैदावार में वृद्धि होने के साथ - साथ पौधे अधिक स्वस्थ और हरे - भरे दिखाई देते हैं ।
हॉर्मोन्स के उत्पादन के साथ ही 25% नत्रजन की बचत भी होती है ।
अत: स्पष्ट है, कि जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों का विकल्प है ।
Thank you brother...
जवाब देंहटाएंAapka bhi blog kafi acha hai, aapne bhi achi jankari di hai.