फार्मयार्ड खाद ( Farmyard Manure in hindi )

फार्मयार्ड खाद क्या है एवं फार्मयार्ड खाद बनाने की विधि (Farmyard Manure and Method of making farmyard manure in hindi)


फार्मयार्ड खाद क्या है एवं फार्मयार्ड खाद बनाने की विधि (Farmyard Manure and Method of making farmyard manure in hindi)
फार्मयार्ड खाद ( Farmyard Manure in hindi )


फार्मयार्ड खाद क्या है (Farmyard Manure in hindi)


फार्मयार्ड खाद Farmyard manure (F.Y.M.) फार्म पर रहने वाले पशुओं के मल , मूत्र , उनके नीचे की बिछावन और उनके खाने से बचे हुए व्यर्थ चारे को फार्मयार्ड खाद Farmyard manure (F.Y.M.) कहते हैं ।

इस खाद से फसल को पौधों के भोजन के लिये आवश्यक सभी पोषक तत्व उपलब्ध हो जाते हैं ।

इसके अतिरिक्त इसके द्वारा भूमि की भौतिक रचना भी सुधरती है ।

यह सर्वोत्तम खाद है जो किसानों को सबसे अधिक सरलता से प्राप्त हो जाती है ।

भारत में गोबर फार्म के क्षेत्र में उपलब्ध खाद का प्रमुख अंग है ।
अत : इसे गोबर ( बाड़े , अहाता या प्रक्षेत्र ) की खाद भी कहते हैं  ।

फार्मयार्ड खाद का वर्गीकरण (Farmyard manure classification in hindi)


फार्मयार्ड खाद Farmyard manure (F.Y.M.) के मुख्य अवयव गोबर , पशु - मूत्र , उनकी बिछावन तथा खाने से बचा हुआ व्यर्थ चारा है ।

फार्म के क्षेत्र में एकत्रित होने वाली खाद के विभिन्न अवयवों का वर्णन निम्न प्रकार किया जा सकता है -

1. गोबर ( Dung ) -


गोबर बहुत से पदार्थों का एक जटिल मिश्रण होता है । ताजे गोबर में प्राय : 70 - 80 % पानी और 20 - 30 % अघुलनशील तथा बिना पचे खाद्य पदार्थ होते हैं ।

इसमें प्रायः वसा , स्टार्च , बिना पचा सेलुलोज , काष्ठी तन्तु ( Woody fibres ) तथा पाचक रसों से प्राप्त पदार्थ आदि होते हैं । इसकी रचना परिवर्तनशील होती है ।

इसमें नाइट्रोजन , पोटाश तथा फॉस्फोरस क्रमश : समस्त ठोसों का लगभग एक तिहाई , पाँचवा भाग तथा समान होते हैं ।

2. मूत्र ( Urine ) -


मूत्र में लगभग 69 % पानी तथा 4 % घुले हुए ठोस होते हैं ।
इसमें लगभग 2 % यूरिया के अतिरिक्त सोडियम यूरियेट , सोडियम हिप्यूरेट , सोडियम क्लोराइड , सोडियम सल्फेट , पोटेशियम सल्फेट तथा मैगनीशियम फॉस्फेट आदि होते हैं ।

3. बिछावन ( Litter ) —


पशुओं के बाँधने के स्थान पर रेत . राख , विभिन्न अनाजों के भूसे , गन्ने की या अन्य पत्तियाँ , घास , लकड़ी का बुरादा , मक्का की पूलियाँ या पुआल आदि बिछा देते हैं ।

यह बिछावन बैठने वाले पशु को आराम प्रदान करता है और मूत्र आदि द्रव पदार्थों को शोषित करता है ।

बिछावन में पौधे की आवश्यकता के सभी पोषक तत्व विद्यमान होते हैं ।

यह खाद को पतला ( Dilute ) कर देता है जिससे खाद को खेत में एक सा फैलाने में सुविधा होती है ।

फार्मयार्ड खाद का औसत संगठन  ( Average organization of farmyard manure )


ताजी फार्मयार्ड खाद Farmyard manure (F.Y.M.) के ठोस और द्रव दो भाग होते हैं । भार की दृष्टि से ठोस लगभग 75 % और द्रव 25 % होता है ।

फार्मयार्ड खादF manure (F.Y.M.) समस्त नाइट्रोजन । तथा पोटाश का आधा और फॉस्फोरस का पूरा अंश ठोस में होता है ।

की रचना स्थिर न होकर परिवर्तनशील होती है ।

फार्मयार्ड खाद का औसत संगठन निम्न प्रकार होता है -


नाइट्रोजन 05 % , 
पोटाश ( K , 0 ) 05 % व 
फॉस्फोरस ( P205 ) 025 % ।

इसके अतिरिक्त फार्मयार्ड खाद में Ca , Mg तथा सल्फर आदि पोषक तत्व भी विद्यमान होते हैं ।

फार्मयार्ड खाद बनाने की विधि  (Method of making farmyard manure in hindi)


फार्मयार्ड खाद बनाने की टैंच (खाई) विधि -


फार्मयार्ड खाद Farmyard manure (F.Y.M.)तैयार करने के लिये उपयुक्त आकार के गड्ढे ( Trenches ) बनाये जाते हैं ।

इन गड्ढों की लम्बाई 21 - 25 ' , चौड़ाई 5 - 6 तथा गहराई 3 . 5 ' रक्खी जाती है । 

फार्म और घर के समस्त शुष्क बिछावन ( बिछाली ) एवं कूड़ा - करकट को पशुशाला के समीप एक ढेर में एकत्रित करते हैं ।

रात के समय मिट्टी मिले बिछावन को 5 पौण्ड प्रति पशु की दर से पशु बाँधने के स्थान पर मूत्र शोषित करने के लिये फैला देते हैं ।

प्रतिदिन प्रायः मूत्र शोषित बिछावन तथा गोबर को भली - भांति मिलाकर गड्ढे में ले जाते हैं । इस आधे गड्ढे को 3 ' चौड़ाई तक भरते हैं ।

यह भाग पृथ्वी तल से 1 . 5 - 2 ' ऊँचे तक भर जाये तो उसका गुम्बद सा बनाकर गोबर या मिट्टी से लेप देते हैं । इसके पश्चात् गड्ढ़े के शेष दूसरे भाग को भरकर लेप देते हैं ।

जब एक गड्ढा पूरा भर जाये तो उसी प्रकार दूसरा गड्डा भरते हैं ।

इस प्रकार 2 - 3 मास की अवधि में पहले गड्डे का खाद सड़कर अर्थात अपघटित होकर तैयार हो जाता है ।

इस खाद को खेत में देने के पश्चात् गड्डा खाली हो जाता है जो पुनः खाद भरने के लिये उपयोग में ले लिया जाता है ।

जब तक यह भरेगा , दूसरे गड्ढ़े का खाद खेत में देने योग्य हो जायेगा ।

इस प्रकार खाद निरन्तर तैयार होता रहता है । इस खाद में शुष्क भार के आधार पर 1 . 4 - 1 . 6 % नाइट्रोजन होती है ।


गोबर की खाद के एक ढेर में ( सड़ने में ) होने वाले रासायनिक परिवर्तन -


फार्मयार्ड खाद, Farmyard manure, गोबर की खाद का ढेर (बिछावन)
गोबर की खाद का ढेर (बिछावन)


फार्मयार्ड खाद Farmyard manure (F.Y.M.) में होने वाले परिवर्तन –


गोबर की खाद के एक ढेर में सड़ते समय अनेको रासायनिक तथा जैविक परिवर्तन होते हैं ।

ये परिवर्तन गोबर में उपस्थित जीवाणुओं तथा बैक्टीरियाओं द्वारा होते हैं जिसके फलस्वरूप खाद का अपघटन किण्वन ( Fermentation ) द्वारा होता रहता है ।

फार्मयार्ड की खाद में होने वाले परिवर्तन निम्न प्रकार हैं -


1. नाइट्रोजनी पदार्थों का अपघटन -


इस अपघटन को तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं -


( i ) अमोनियाई अथवा यूरिया किण्वन

( ii ) ठोस पदार्थों के गलन तथा सड़न का किण्वन

( iii ) ऐमीनो यौगिकों का किण्वन

2. नाइट्रोजनरहित पदार्थों का अपघटन -


इसे भी तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं -


( i ) वसीय ( Fatty ) अम्लों का किण्वन

( ii ) हाइड्रोजन सल्फाइड किण्वन

( iii ) कार्बोहाइड्रेटों का किण्वन

3. नाइट्रोजनमयी पदार्थों का अपघटन -


( i ) अमोनिया अथवा किवण्न

फार्मयार्ड खाद का द्रव भाग मत्र होता है । नाइटोजनयुक्त पदार्थों में सबसे अधिक यूरिया ( 2 % ) होता है ।

यूरिया का मूत्र में विद्यमान नाइट्रोजनयुक्त पदार्थों में सबसे अपघटन जीवाणुओं विशेषकर माइक्रोकोकस यूरियेज है ।

यह जीवाणु वायु , धूल , शोचालयों , अस्तबलों तथा पशुशालाओं में अत्यधिक पाया जाता है ।

इस प्रकार के खाद के सड़ते समय यूरिया के अपघटन से अमोनिया बनती है जो कार्बनिक अम्ल के साथ संयुक्त होकर आमेनियम बाइकार्बोनेट तथा कार्बोनेट बनाती है

यूरिया का अमोनियम कार्बोनेट में परिवर्तन अत्यधिक तेजी से होता है । नाइट्रोजन की मात्रा में कमी तब तक नहीं आती जब तक कि इस अमोनियम कार्बोनेटयुक्त द्रव का वाष्पीकरण नहीं होता ।

शौचालयों , मूत्रालयों एवं अस्तबलों आदि के समीप विशिष्ट गन्ध अमोनियम यौगिकों के अपघटन से उत्पन्न अमोनिया की उपस्थिति के कारण ही आती है ।

खाद के ढेरों में पाये जाने वाले बहुत से बैक्टीरिया अमोनिया को नाइट्रोजन में ऑक्सीकृत कर देते हैं और कुछ यूरिया को अमोनियम कार्बेमेट में परिवर्तित कर देते हैं।

NHS CONH2 + H2O → NH COONH2

इसके अतिरिक्त कुछ अमोनियम आयनों के नाइट्रीकरण द्वारा नाइट्रेट आयन ( NO3 ) भी उत्पन्न हो जाते हैं ।

साथ ही कुछ नाइट्राइट आयनों ( NO , ' ) के अपचयन से तात्विक नाइट्रोजन उत्पन्न होकर नष्ट हो जाती है ।

( ii ) ठोस पदार्थों के गलन व सड़न का किण्वन —


बिना पचे चारे और बिछावन के रूप में खाद में प्रोटीन एवं ऐल्बुमिनॉइड आ जाते हैं ।

इनका अपघटन खाद के सड़ते समय कुछ बैक्टीरिया विशेषकर कोलीकोम्युनिस सरल यौगिकों में कर देते हैं । यह बैक्टीरिया पशुओं की अंतड़ियों से मल के साथ आ जाता है ।

इस अपघटन में पहले घुलनशील पेप्टोन बनते हैं जो फिर ऐमीनो अम्लों एमाइडों में परिवर्तित होते हुए अन्त में वसीय अम्ल और अमोनिया में अपघटित हो जाते हैं ।

इस घटना में दुर्गन्धयुक्त गैसें भी निकलती हैं । खाद के ढेर में ठोस पदार्थों का यह परिवर्तन वायुजीवी ( Aerobic ) तथा अवायुजीवी ( Anaerobic ) दशाओं पर भी निर्भर करता है ।

पहले वायुजीवी अपघटन में सरल क्रियाफल जैसे - जल , CO , तथा अमोनिया आदि बनते हैं और दुर्गन्धयुक्त गैसें नहीं निकलती ।

अवायु जीवी दशाओं में अनॉक्सीकत जटिल यौगिक बनते हैं जिनके साथ दुर्गन्धयुक्त गैसें जैसे मेथेन , हाइड्रोजन सल्फाइड आदि भी निकलती हैं ।

इनमें ट्राइमेथिल ऐमीन ( CH3 ) 3N . ब्यूटारक अम्ल ( CH . COOH ) तथा मरकैप्टन्स ( C , HSH ) आदि भी होते हैं ।

साधारणतया आरम्भ में जटिल यौगिकों का सरल यौगिकों में अपघटन शीघ्रता से होता है परन्तु फिर इसके विपरीत भी परिवर्तन होने लगता है ।

यही कारण है कि गोबर को अधिक समय तक रखने पर अमोनिया से अधिक प्रोटीन बनती है ।

( iii ) ऐमीनो यौगिकों का किण्वन -


ऐल्बुमिनाइड्स के विघटन के क्रियाफल ऐमीनो अम्ल होते हैं जैसे - ऐमीनो ऐसीटिक अम्ल ( ग्लाइसीन ) , NHD . CH2 . COOH तथा टायरोसिन वायु की अनुपस्थिति में टायरोसिन के किण्वन से इण्डोल , CO , हाइड्रोजन बनते हैं ।

परन्तु वायु की उपस्थिति में फिनॉलअमोनिया बनते हैं । प्रायः ऐमीनो अम्लों के अपघटन से वसीय अम्ल और अमोनिया बनते हैं ।

2. नाइट्रोजन रहित पदार्थों का अपघटन -


( i ) वसीय अम्लों का किण्वन -


ऐमीनो अम्ल के अपघटन से उत्पन्न वसीय अम्ल या उनके लवण ( विशेषकर कैल्सियम लवण ) अनेकों जीवाणुओं के प्रभाव से सरल कार्बनिक यौगिकों या ऐल्कोहॉलCO , में परिवर्तित हो जाते हैं ।

( ii ) हाइड्रोजन सल्फाइड किण्वन -


कुछ जीवाणु ऐल्बुमिन में उपस्थित गंधक को किण्वन द्वारा हाइड्रोजन सल्फाइड में परिवर्तित कर देते हैं 

( iii ) कार्बोहाइड्रेट्स किण्वन –


Farmyard manure (F.Y.M.) में भूसा होता है जो अनेक जीवाणुओं द्वारा ह्यमस में परिवर्तित हो जाता है ।

भूसे और गोबर में उपस्थित कार्बोहाइड्रेट धूल एवं वायु में विद्यमान जीवाणुओं द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल आदि में पूर्णतया ऑक्सीकृत हो जाते हैं ।

अधिक तापक्रम , पर्याप्त वायु एवं नमी की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट्स का अपघटन शीघ्र होता है । 

अधिक नमी से वायु कम हो जाने पर क्रिया सीमित हो जाती है । वायुजीवी तथा मुख्य रूप से अवायुजीवी जीवाणुओं द्वारा भी इनका अपघटन होता है ।

एमाइलोबेक्टर ( Amylobacter ) नामक जीवाणु अवायुजीवी दशाओं में सेलुलोज को कार्बन डाइऑक्साइड , मेथेन , हाइड्रोजनब्यूटिरिक अम्ल में अपघटित कर देता है ।

स्टार्च , शर्करा ( Sugars ) आदि अन्य कार्बोहाइड्रेट भी CO2 , जल , ब्यूटिरिक अम्ल , लैक्टिक अम्ल तथा कभी - कभी हाइड्रोजन देते हैं 

फार्मयार्ड मेन्योर तैयार करते समय रासायनिक परिवर्तन -


फार्मयार्ड खाद के संग्रह करते समय होने वाली नत्रजन हानियों की रोकथाम इसके लिये निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिये -


( i ) पशुशाला में मूत्र को नष्ट होने से बचाने के लिये पक्के फर्श बनाने चाहियें या द्रव भाग को सोखने के लिये उपयुक्त बिछावन का प्रयोग करना चाहिये । इसके अतिरिक्त प्रतिदिन हर पश के नीचे जहाँ उसका पेशाब पड़ता है , लगभग आधा किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट बिछावन के साथ या जिप्सम डाला जा सकता है । मूत्र में उपस्थित यूरिया के अपघटन से अमोनियम कार्बोनेट बनता है जो जिप्सम के साथ अमोनियम सल्फेट नामक स्थायी लवण बनाता है ।

( NH ) , CO3 + Caso4 → ( NH 4 ) 2SO4 + CaCo3

( ii ) गोबर को उपलों के रूप में नहीं जलाना चाहिये ।

( iii ) निक्षालन ( Leaching ) द्वारा पोषकों को नष्ट होने से बचाने के लिये पक्के खाद के गड्ढ़े प्रयोग करने चाहिये ।

( iv ) खाद के ढेर ऊंचे स्थानों पर रखने चाहिये ताकि वर्षा ऋतु में जल निकास द्वारा पोषक नष्ट न हों ।

( v ) खाद को धूप एवं वर्षा से बचाने के लिये गड्ढों पर छाया का प्रबन्ध करना चाहिये ।

( vi ) खाद में नमी की उच्च मात्रा होनी चाहिये ।

( vii ) खाद को आरम्भ के 3 - 4 मास तक उलटना - पलटना नहीं चाहिये ।

( viii ) खाद को खेत में छोटे - छोटे ढेरों के रूप में डालने पर अधिक समय तक खुला नहीं छोड़ना चाहिये बल्कि जुताई करके मिट्टी में मिला देना चाहिये ।

खाद के सड़ाते समय नाइट्रोजन की अमोनिया गैस के रूप में क्षति का नियन्त्रण –


( i ) खाद में 5 % की दर से सुपर फॉस्फेट या 1 % की दर से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल मिलाकर नाइट्रोजन की क्षति का नियन्त्रण किया जा सकता है ।

( ii ) अमोनिया गैस को सोखने के लिये खाद में 5 % की दर से लकड़ी का बुरादा , मिट्टी , कोयला - चूर्ण या जिप्सम मिलाना लाभकारी होता है ।

फार्मयार्ड खाद Farmyard manure (F.Y.M.) का महत्व ( Importance of Farmyard Manure )


गोबर की खाद ( FYM ) अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं सर्वोत्तम खाद है ।

इसका प्रयोग संसार में प्राचीन काल से ही अत्यधिक होता आ रहा है ।

मृदा में गोबर की खाद ( FYM ) का प्रभाव कई वर्षों तक रहता है क्योंकि इसमें विद्यमान कार्बनिक पदार्थ धीरे - धीरे प्राप्त होते हैं जबकि इसके द्रव भाग अर्थात् मूत्र में उपस्थित पोषक तत्व पौधों को प्रथम वर्ष में ही उपलब्ध हो जाते हैं ।

कृषि में FYM के महत्व का स्पष्टीकरण इसके मृदा पर निम्न प्रभावों से सहज ही हो जोयगा -

1. भौतिक प्रभाव ( Physical Effects ) -


फार्मयार्ड खाद  Farmyard manure (F.Y.M.) के प्रयोग से


( i ) भारी मृदा ( Heavy Soil ) की रचना ( Texture ) सुधर जाती है । इस प्रकार जड़ों का विकास अधिक होकर पौधों की वृद्धि अधिक होती है ।

( ii ) मृदा में वायु की मात्रा बढ़ जाती है ।

( iii ) मृदा का कटाव ( Soil Erosion ) कम होता है ।

( iv ) रेतीली मृदा की जल - ग्रहण क्षमता बढ़ जाती है ।

( v ) भूमि में धरण ( Humus ) की मात्रा में वृद्धि हो जाती है जिससे मृदा का रंग काला पड़ जाता है और मृदा की ताप शोषण क्षमता बढ़ जाती है ।

( vi ) मृदा की प्रत्यारोधन क्षमता ( Buffering Capacity ) बढ़ जाती है ।

( vii ) मृदा का ड्रेनेज सुधर जाता है ।

2 . रासायनिक प्रभाव ( Chemical Effects ) -


फार्मयार्ड खाद Farmyard manure (F.Y.M.) के प्रयोग से


( i ) पौधों को पोषक खनिज तत्व अधिक मात्रा में मिल जाते हैं ।

( ii ) मृदा में अप्राप्य रूप में उपस्थित पोषक जैसे — फॉस्फोरस तथा पोटाश की बहुत सी मात्रायें प्राप्त हो जाती हैं ।

( iii ) मृदा को कार्बनिक पदार्थ अधिक मात्रा में मिलता है जिसके अपघटन से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड पानी में घुलकर कार्बोनिक अम्ल ( H . CO3 ) बनाती है ।

साथ ही सल्फ्यूरिक अम्ल तथा नाइट्रिक अम्ल बन जाते हैं । ये अम्ल फॉस्फोरस तथा पोटेशियम आदि के यौगिकों का सरल यौगिकों में परिवर्तन कर देते हैं जिन्हें पौधे सरलतापूर्वक शोषित कर लेते हैं ।

( iv ) K . Ca , Mg तथा Mn आदि की प्राप्ति सरलता से हो जाती है ।

( v ) मृदा की भस्म विनिमय क्षमता में वृद्धि हो जाती है ।

( vi ) क्षारीय मृदाओं की पी एच कम हो जाती है ।

3 . जैविक प्रभाव ( Biological Effects ) -


Farmyard manure (F.Y.M.) के प्रयोग से


( i ) जीवाणुओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है ।

( ii ) जीवाणुओं की क्रियाशीलता बढ़ जाती है ।

( iii ) जीवाणु खाद या ह्यूमस के जटिल नाइट्रोजनीय पदार्थों को अमोनियम तथा नाइट्रेट आयनों में परिवर्तित कर देते हैं जिन्हें पौधे सुगमतापूर्वक ले लेते हैं ।

( iv ) जीवाणु वायुमण्डलीय N , का स्थिरीकरण ( Fixation ) करते हैं ।

( v ) जीवाणु मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्धि करते हैं ।

ताजा गोबर सीधे खाद के रूप में प्रयोग नहीं किया जाता -


क्योंकि ताजी गोबर की खाद ( Fresh cowdung ) में निम्न कमियाँ होती हैं -


( i ) पोषक तत्व कम मात्रा में होते हैं ।

( ii ) इसमें उपस्थित जटिल पदार्थों जैसे फॉस्फोरस के यौगिकों का अपघटन सरल एवं घुलनशील पदार्थों में नहीं होता है ।

( iii ) ह्युमस लगभग नहीं बनता जिसके कारण मृदा की उर्वरता में वृद्धि नहीं होती है ।

( iv ) नाइट्रोजन की हानि इसमें वाष्पशील यौगिक बनकर हो जाती है और नाइट्रेट आयन ( NO2 ) कम बनते हैं 

( v ) इसके प्रयोग से मृदा में कार्बन / नाइट्रोजन अनुपात में वृद्धि हो जाती है ।

गोबर की खाद की प्रयोग विधि -


गोबर की खाद सभी प्रकार की मृदाओं एवं फसलों के लिये लाभप्रद होती है ।

इस खाद का पूरा लाभ लेने के लिये इसे नम मृदा में बुवाई से दो - चार सप्ताह पूर्व मिला देना चाहिये ।

गोबर की खाद को खेत में फैलाकर जुताई करके शीघ्र मिला देना चाहिये । गोबर की खाद में सुपरफॉस्फेट या रॉक फॉस्फेट प्रयोग करने से इसका प्रभाव अधिक हो जाता है ।

इससे फसल की उपज पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है । 40 से 50 किलो सुपर फॉस्फेट प्रति 10 टन गोबर की खाद में मिलाने पर इसमें फॉस्फोरस की कमी नहीं रहती है ।

इस खाद को एक बार न देकर थोड़ी - थोड़ी मात्रा में कई बार देना अधिक उपयुक्त होता है ।

मृदा तथा फसल के अनुसार 40 से 60 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर प्रयोग की जानी चाहिये ।

सब्जियों की फसलों में 50 से 100 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर डाली जानी चाहिये ।

गोबर की खाद को उर्वरकों के साथ प्रयोग करने से अधिकतम आर्थिक लाभ प्राप्त होता है ।

गोबर गैस संयन्त्र ( Gobar Gas Plant ) -


गोबर गैस संयन्त्र द्वारा गोबर की खाद तैयार करना एक उन्नत विधि है ।

इसके लिये गोबर गैस संयन्त्र में गोबर की पानी के साथ बनाई हुई लुग्दा डाली जाती है ।

इस संयन्त्र में गोबर के अपघटन से गोबर गैस बनती है जो घरों में ईंधन तथा प्रकाश स्रोत के रूप में उपयोग में लायी जाती है और जो गोबर की गारा शेष बचती है , उसे खाद के रूप में प्रयोग कर लिया जाता है ।

इस प्रकार प्राप्त गोबर की खाद में पोषक तत्वों को मात्रा सामान्य गोबर की खाद से कई गुना अधिक होती है ।

जैव-गैस स्लरी (Bio-Gas Slurry in hindi) -


जैव - गैस गारा -


गोबर गैस संयन्त्र में गोबर को वायु की अनुपस्थिति में सड़ाया जाता है ।

इससे उत्पन्न मेथेन गैस घरों में ईधन के रूप में उपयोग में लायी जाती है जबकि प्राप्त गारा खाद के रूप में कृषि में प्रयोग की जाती है 

जैव - गैस गारा में साधारण विधि से तैयार गोबर की खाद की अपेक्षा नाइटोजन की मात्रा लगभग तीन गुना अधिक होती गोबर गैस संयन्त्र से प्राप्त गारा में शुष्क अवस्था में नाइट्रोजन 2 से 2 . 4 % होती है ।

इसमें से 10 - 15 % नाइट्रोजन मुक्त अमोनिया के रूप में होती है । गोबर गैस संयन्त्र में गोबर 15 - 20 दिन में पूर्णतया सड़कर खेत में प्रयोग करने योग्य हो जाता है ।

इस प्रकार गारा के रूप में उपलब्ध खाद में खरपतवार के बीज पूर्णतया नष्ट हो जाते हैं ।

फलतः खरपतवार नियन्त्रण में आर्थिक बचत होती है । पाचित गोबर की गारा में नाइट्रोजन ही नहीं अपितु फॉस्फोरस की मात्रा भी गोबर की अपेक्षा अधिक होती है ।