सिंचाई की प्रमुख विधियां कौन सी है वर्णन कीजिए? | Agriculture Studyy

पेड़ पौधों एवं फसलों में प्राकृतिक रूप से जल की आवश्यक पूर्ति नहीं हो पाती है जिससे उनमें कृत्रिम रुप से सिंचाई‌ करनी होती है ।

कृत्रिम रूप से पेड़ पौधों एवं फसलों पानी देने के तरीकों या प्रणालियों को ही सिंचाई की विधियां (methods of irrigation in hindi) कहां जाता है ।


सिंचाई की प्रमुख विधियां कौन - कौन सी है? | methods of irrigation in hindi


पौधों की उचित वृद्धि एवं विकास के लिए सिंचाई करना अत्यन्त आवश्यक है ।

पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक नमी, सूखा सहन करने, भू - परिष्करण क्रियाओं, पौधों के लिए स्वस्थ एवं ठण्डा वातावरण तैयार करना, भूमि में उपस्थित लवणों को घोलना व भूमि की दृढ़ता आदि उद्देश्यों को ध्यान में रखकर सिंचाई (irrigation in hindi) की जाती है ।

मौसम तथा फसल सम्बन्धी विभिन्न कारकों के कारण वर्षा जल पर सिंचाई की निर्भरता से फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । अतः कृत्रिम स्रोतों से सिंचाई जल की आपूर्ति की जाती है ।

सिंचाई के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सतही सिंचाई में नदियों, नहरों व झीलों का जल प्रयोग किया जाता है ।


सिंचाई की विधियों का विस्तृत वर्गीकरण निम्न चार्ट द्वारा दर्शाया गया है -

सिंचाई की विधियां, methods of irrigation in hindi, सिंचाई की प्रमुख विधियां कौन-कौन सी है, सिंचाई के प्रकार, सिंचाई की उपयुक्त विधि का चुनाव कैसे करें
सिंचाई की प्रमुख विधियां कौन सी है वर्णन कीजिए? | Agriculture Studyy

भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 328 मिलियन हेक्टेयर है जिसमें 142 मिलीयन हेक्टेयर पर खेती (kheti) की जाती है जो कुल का लगभग 43% है । भारत का कुल संचित क्षेत्रफल 113 मिलियन हेक्टेयर है ।

भारत में प्रथम सिंचाई आयोग की स्थापना सन् 1901 में की गई थी ।

भारत की विशाल जनसंख्या को कृषि (agriculture in hindi) के क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में रोजगार मिलता है ।

अतः यहाँ की अर्थव्यवस्था के कुशल संचालन में कृषि उत्पादन की एक महती भूमिका है । कृषि उत्पादन जल, वायु, तापमान व भूमि सम्बन्धी आवश्यकताओं पर निर्भर करता है ।

इन आवश्यकताओं में वर्षा एक महत्वपूर्ण कारक है । यहाँ पर वर्षा असमान व अनिश्चित होने के कारण पौधा अपनी जल सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति वर्षा जल से नहीं कर पाता ।

अतः पौधों से अधिकतम उत्पादन के लिए कृत्रिम रूप से जल की आपूर्ति आवश्यक है ।


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सिंचाई की आधुनिक विधियां/प्रणालियां एवं उनके ‌प्रकार लिखिए? | methods of irrigation in hindi


सिंचाई की प्रमुख विधियां -

1. खुली/सतही सिंचाई विधि ( Surface Irrigation )

  • बाढ़/फ्लड विधि या जल प्लावन या तोड सिंचाई विधि ( Flooding Irrigation )
  • गहरी/कुंड या नाली सिंचाई विधि ( Furrowing Irrigation )
  • सीमांत/नकवार या पट्टियों में सिंचाई विधि ( Strip Irrigation )
  • सर्पाकार विधि ( Serpentine Method )
  • वलय/थाला विधि ( Basin Method )
  • समोच्च विधि ( Contour Method )
  • सर्ज/झटकेदार सिंचाई ( Surge Irrigation )
2. अधोसतही सिंचाई विधि ( Subsruface Irrigation )
3. बौछारी/फव्वारा सिंचाई विधि ( Sprinker Irrigation )
4. टपकेदार/बूंद बूंद या ड्रिप सिंचाई विधि ( Dripor Trickle Irrigation )
5. संरक्षण सिंचाई ( Conservation Irrigation In Hindi )


फसल उगाने के लिए सिंचाई की विभिन्न प्रणालियाँ एवं विधियाँ विकसित की गई हैं -

इनमें सतही (surface), अधोसतही (subsurface), बौछारी (sprinkler) तथा टपकेदार (drip or trickle) सिंचाई महत्वपूर्ण हैं ।


सिंचाई की आधुनिक विधियों के नाम एवं उनका वर्णन कीजिए?


भारत में मुख्यत: कृत्रिम रूप से फसलों एवं पेड़ पौधों में के लिए‌ सतही, अधोसतही, बौछारी एवं टपकेदार सिंचाई की विधियां उपयोग में लाई जाती है ।


सिंचाई की प्रमुख विधियों का वर्णन निम्न प्रकार है -


1. खुली/सतही सिंचाई विधि ( Surface Irrigation In Hindi )

सतही सिंचाई विधि में मुख्य सिंचाई नाली से खेत में पानी खोल दिया जाता है जो सिंचाई की विभिन्न विधियों (method of irrigation in hindi) द्वारा पौधों तक पहुँचता है ।

इस विधि की यह विशेषता यह है कि इसमें पानी भूमि की सतह पर प्रयोग किया जाता है ।

यह एक सामान्य विधि है और फसलें उगाने के लिए अधिकतर इसी विधि का प्रयोग किया जाता है । जिन भूमियों में अन्तःसरण (Infiltration in hindi) की दर कम या मध्यम होती है, उनमें सतही सिंचाई विधि का प्रयोग किया जाता है ।

ऐसे क्षेत्रों में जिनमें भूमि में 2-3% तक ढाल होता है , सतही सिंचाई विधियों का प्रयोग उत्तम रहता है ।

यदि जल वितरण प्रणाली भली - भाँति कार्य कर रही हो तो सतही सिंचाई विधि का प्रयोग कर अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है ।


सतही सिंचाई विधि की विभिन्न विधियों को चित्र में दर्शाया गया है -

खुली/सतही सिंचाई विधि ( Surface Irrigation In Hindi )
खुली/सतही सिंचाई विधि ( Surface Irrigation In Hindi )


सतही सिंचाई विधि के प्रमुख प्रकार -

  • बाढ़/फ्लड विधि या जल प्लावन या तोड सिंचाई विधि ( Flooding Irrigation )
  • गहरी/कुंड या नाली सिंचाई विधि ( Furrowing Irrigation )
  • सीमांत/नकवार या पट्टियों में सिंचाई विधि ( Strip Irrigation )
  • सर्पाकार विधि ( Serpentine Method )
  • वलय/थाला विधि ( Basin Method )
  • समोच्च विधि ( Contour Method )
  • सर्ज/झटकेदार सिंचाई ( Surge Irrigation )


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सतही सिंचाई में उपयोग की जाने वाली प्रमुख विधियों का वर्णन कीजिए?


( i ) बाढ़/फ्लड विधि या जल प्लावन या तोड सिंचाई विधि ( Flooding Irrigation In Hindi )

इस विधि में बहुत अधिक पानी लगता है । अत: पानी का स्रोत बड़ा व अच्छा होने पर ही यह विधि अपनाई जाती है । खेत में पानी लगाने के लिए इस विधि में किसी अतिरिक्त श्रम की आवश्यकता नहीं पड़ती है । इस विधि में सिंचाई करनेपर ऊँचे - नीचे खेत में नीचे स्थानों में पानी भर जाता है । इस विधि को अपनाने में खेत के चारों ओर कोई मेंड अथवा बरहे बनाने की आवश्यकता नहीं होती ।


( ii ) गहरी/कुंड या नाली सिंचाई विधि ( Furrowing Irrigation In Hindi )

यह विधि मेंडों या कुंडों पर उगाई जाने वाली फसलों में अपनाई जाती है । जैसे - ज्वार, मक्का, आलू, गला, कपास व तम्बाकू आदि । कुंड की चौड़ाई और उसका आकार उगाई जाने वाली फसल पर निर्भर करता है । मुख्य सिंचाई नाली से पानी कुंडों में खोल दिया जाता है । एक कूड से दूसरी कुंड में होता हुआ पानी सम्पूर्ण खेत में फैल जाता है ।


( iii ) सीमांत/नकवार या पट्टियों में सिंचाई विधि ( Strip Irrigation In Hindi )

इस विधि में खेत को लम्बी व चौड़ी पट्टीयों में विभाजित कर लिया जाता है । पट्टीयों की लम्बाई 250 मीटर तक व चौड़ाई कम से कम 10-12 मीटर तक उपयुक्त रहती है । मुख्य सिंचाई नाली से पानी को प्रत्येक पट्टी में बहने दिया जाता है । अधिक सघन व बलुई मिट्टी में उगाई जाने वाली फसलों के लिए यह विधि उपयुक्त है । इस विधि को अपनाने में अधिक श्रम की आवश्यकता पड़ती है और इसकी सिंचाई दक्षता (irrigation efficiency) कम होती है ।


( iv ) सर्पाकार विधि ( Surpentine Method In Hindi )

इस विधि में सिंचाई हेट गनाए गये कूड चित्र के अनुसार लम्बाई में सर्प के चलने की दिशा के आकार के होते हैं । इस विधि में कुंड के आसपास के रास्तों को काटकर पानी बहने के लिए रास्ता बना दिया जाता है जिससे एक नाली दूसरी लाली से सर्पाकार रूप में जुड़ जाती है । कुंडों की लम्बाई जितनी अधिक होगी उतना ही जल का आयतन अधिक लगेगा । चिकनी भूमियों में इस विधि के प्रयोग से अन्तःसरण दर में वृद्धि होती है । मृदा अपरदन (soil erosion) व अपधावन (run - off) में कमी आती है ।


( v ) वलय/थाला विधि ( Basin Method In Hindi )

यह विधि बाग बगीचों में आने वाले फलदार वृक्षों एवं चरागाहों की सिंचाई में अपनाने के लिए उपयुक्त है । यह विधि अधिक पारगम्य भूमियों जैसे रेतीली तथा कार्बनिक भूमियों के अनुकूल नहीं है ।


( vi ) समोच्च विधि ( Contour Method In Hindi )

पर्वतीय क्षेत्रों में समोच्च रेखाओं पर ढाल के विपरीत सिंचाई की नालियाँ बनाकर खेत को छोटी - छोटी क्यारियों में विभाजित कर सिंचाई की जाती है ।


( vii ) सर्ज/झटकेदार सिंचाई ( Surge Irrigation In Hindi )

स्रोत द्वारा कम जल की आपूर्ति होने पर झटकेदार सिंचाई प्रयोग में लाई जाती है । इसमें सिंचाई जल की थोड़ी - थोड़ी मात्रा लगातार देकर कुछ निश्चित समय के अन्तराल के पश्चात.जल का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है । इस विधि से सिंचाई करने में सिंचाई दक्षता अधिक होती है । भूमिगत जल बहाव में कमी आती है । इस विधि को अपनाने के लिए स्वचालित प्रणाली (automated system) प्रयोग में लाई जाती है ।


2. अधोसतही सिंचाई विधि ( Subsruface Irrigation In Hindi )


यह एक ऐसी विधि है जिसमें सिंचाई जल भूमि की ऊपरी सतह के नीचे की सतह में छिद्रयुक्त पाइपों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाया जाता है ।

अधोसतही सिंचाई विधि (subsruface irrigation in hindi) में प्रयोग किए गए जल से जड़ क्षेत्र गीला हो जाता है, परन्तु भूमि की ऊपरी सतह सूखी रहती है जिससे सिंचाई जल का वाष्पीकरण द्वारा हास नगण्य होता है परन्तु इस विधि में भूमिगत पारच्यवन (deep percolation) द्वारा जल की हानि होती है ।

अधोसतही सिंचाई विधि के प्रयोग करने के लिए भूमि का समतल होना आवश्यक है । इस विधि के प्रयोग के लिए दोमट अथवा पारगम्य दोमट भूमि उपयुक्त रहती है । इसमें भूमि ढालदार नहीं होनी चाहिए ।

इस विधि पर प्रारम्भिक खर्च बहुत अधिक होता है परन्तु बाद में सिंचाई करने में क्षम पर बहुत कम खर्च आता है । इसके साथ - साथ प्रणाली में कोई खराबी आ जाने पर उसे ठीक कराने में बहुत अधिक धन व्यय होता है ।

इस विधि में भूमि की ऊपरी सतह सूखी रहने के कारण खरपतवारों की समस्या से नहीं जूझना पड़ता ।

अधोसतही सिंचाई विधि का प्रयोग नकदी फसलों, छोटे दाने वाली फसलों व जड़ वाली फसलों में बहुत ही कम क्षेत्रों में किया जाता है ।


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3. बौछारी/फव्वारा सिंचाई विधि ( Sprinker Irrigation In Hindi )


इस विधि में वर्षा की भाँति जल का प्रयोग पौधों तथा भूमि की ऊपरी सतह पर सिंचाई जल को छिड़काव के रूप में प्रयुक्त किया जाता है ।

बौछारी/फव्वारा सिंचाई विधि (sprinker irrigation in hindi) को अपनाने में प्रारम्भिक खर्च अधिक करना पड़ता है क्योंकि इसमें बौछार करने वाले अमीटर्स (emitters) के द्वारा सिंचाई जल को बौछार के रूप में प्रयोग करने के लिए पाइपों में उच्च दाब पर सिंचाई जल को प्रभावित किया जाता है । जिसके लिए एक बूस्टर पम्प की भी आवश्यकता पड़ती है ।

प्रारम्भिक स्थापन के पश्चात् बौछारी/फव्वारा सिंचाई विधि के प्रयोग में बिजली के खर्च के अतिरिक्त किसी अन्य श्रम या खर्च की आवश्यकता नहीं होती है ।

बौछारी/फव्वारा सिंचाई विधि ( Sprinker Irrigation In Hindi )
बौछारी/फव्वारा सिंचाई विधि ( Sprinker Irrigation In Hindi )


बौछारी/फव्वारा सिंचाई विधि से सिंचाई जल का प्रयोग सम्पूर्ण खेत में समान रूप से होता है । ऊँचे - नीचे असमतल खेतों में भी इस विधि को सरलतापूर्वक अपनाया जा सकता है ।

इस विधि का प्रयोग करने में खेत में मेंड या खाईयाँ बनाने की आवश्यकता नहीं होती है । जल का थोड़ी मात्रा में प्रयोग करके ही अधिक लाभ उठाया जा सकता है । सिंचाई दक्षता भी सतही सिंचाई प्रणाली की तुलना में अधिक होती है ।

बौछारी सिंचाई विधि में मूलतः पाइपों की एक वितरण प्रणाली होती है जिसमें पौधों के पास कुछ ऊँचाई पर पाइपों में छिद्रयुक्त नोजल लगे रहते हैं ।

पाइपों में एक बूस्टर पम्प की सहायता से अधिक दाब पर सिंचाई जल प्रवाहित किया जाता है, जो छिद्रयुकत नोजल से होकर फव्वारे के रूप में वर्षा की भाँति पौधों पर गिरता है ।

वर्षा न होने पर या पर्याप्त मात्रा में सिंचाई जल उपलब्ध न होने पर बौछारी विधि द्वारा पूरक सिंचाई के रूप में फसलों में जल प्रयोग किया जाता है ।

बौछारी/फव्वारा सिंचाई विधि को प्रयोग करने से जल की महीन बौछारों के कारण बीजों के अंकुरण में सहायता मिलती है और बीजांकुर (seedling) तेजी से वृद्धि करता है ।

यह स्थिति ऐसे क्षेत्रों में विशेष महत्व रखती है जहां पर लवणीयता या उच्च तापक्रम की समस्या होती है यह विधि अपनाने से जल व भूमि संरक्षण में सहायता मिलती है ।


4. टपकेदार/बूंद बूंद या ड्रिप सिंचाई विधि ( Dripor Trickle Irrigation In Hindi )


यह विधि सिंचाई की नयी विकसित विधि है । यह कम जल उपलब्धता वाले स्थानों में प्रयोग की जाती है ।

सन् 1940 में इजराइल के इंजीनियर सिमका ब्लास (symca blase) ने देखा कि पानी की टोंटी से रिसाव होने वाले स्थान के वृक्षों की वृद्धि उसके आस पास के वृक्षों से अधिक थी ।

इसके आधार पर उन्होंने वर्ष 1964 में टपकदार सिंचाई पद्धति विकसित की साथ ही उसको पेटेन्ट भी कराया ।

साठवें दशक के अन्त में, आस्ट्रेलिया संयुक्त राष्ट्र अमेरिका एवं विश्व के अनेक देशों में इसका प्रयोग हुआ ।


टपकेदार/बूंद बूंद या ड्रिप सिंचाई विधि की कार्य प्रणाली -


आज इस विधि का सभी देशों में व्यापक प्रचार - प्रसार हुआ है । इस विधि में भूमि के भीतर प्लास्टिक का जालीयुक्त पाइप हल स्तर से नीचे पौधों के जड़ क्षेत्र में स्थापित किया जाता है ।

टपकेदार/बूंद बूंद या ड्रिप सिंचाई विधि ( Dripor Trickle Irrigation In Hindi )
टपकेदार/बूंद बूंद या ड्रिप सिंचाई विधि ( Dripor Trickle Irrigation In Hindi )

यांत्रिक विधि द्वारा उत्सर्जक की सहायता से जल को सिंचाई क्षेत्र में प्रदान किया जाता है । विभिन्न अध्ययनों के आधार पर सिद्ध हो चुका है ।

कि वातावरण में होने वाली क्षति से पानी को बचाते हुए उचित, वृद्धि एवं अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए टपकदार सिंचाई (drip irrigation in hindi) एक उत्तम विधि है ।


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5. संरक्षण सिंचाई ( Conservation Irrigation In Hindi )


स्थाई कृषि विकास के अन्तर्गत भूमि से निरन्तर अधिक उत्पादन प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है । अधिक कृषि उत्पादन के लिए संरक्षण सिंचाई भी महत्वपूर्ण है ।

संरक्षण सिंचाई का अर्थ है - सिंचित भूमियों में उपयुक्त मात्रा में सिंचाई जल का प्रयोग करते हुए तथा भूमि की ऊपरी सतह का सदुपयोग करते हुए फसलों से अधिक उपज प्राप्त की जाए ।

यह स्थाई कृषि विकास (sustainable agriculture development) का एक महत्वपूर्ण घटक है ।

संरक्षण सिंचाई करने से बल प्रयोग दक्षता बढ़ती है । इससे भूमि व जल का संरक्षण अधिक होता है और विभिन्न प्रकार की समस्याग्रस्त भूमियों का सुधार भी सम्भव है जिसके परिणामस्वरूप भूमि की उत्पादकता बढ़ जाती हे और उपज में भी वृद्धि होती है ।

संरक्षण सिचाई करने से सिंचित भूमियों में फसल उगाने के लिए फसलों की आवश्यकता के अनुसार आवश्यक जल की मात्रा का ही प्रयोग होता है जिससे जल प्रयोग दक्षता में सुधार होता है जबकि आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से भूमि में विभिन्न प्रकार की समस्याएँ पनपने लगती हैं और जल प्रयोग दक्षता भी घट जाती है ।

संरक्षण सिंचाई करते हमें सिंचाई की विधियों (metohds of irrigation in hindi) का चुनाव करना चाहिए जिसको अपनाने से सिंचाई में प्रयोग किया गया जल पौषों के जड़ क्षेत्र में पहुंचे और पौधों द्वारा शीघ्रता से ग्रहण किया जा सके ।


सिंचाई की उपयुक्त विधि का चुनाव कैसे करते है?


वर्तमान समय में सिंचाई जल के मूल्यवान होने के कारण जल का क्षमताशाली प्रयोग अत्यन्त आवश्यक है । पानी की एक - एक बूंद का प्रयोग करके अधिकतम लाभ उठाया जाना चाहिए ।

भविष्य में सफल फसलोत्पादन के लिए जल की प्राप्ति एवं वितरण आदि पर विशेष ध्यान देना होगा । खेतों में जल के वितरण के लिए विभिन्न विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं ।

हमें एक ऐसी विधि का चुनाव करना चाहिए, जिसमें कम से कम खर्च पर सिंचाई जल का पूर्ण उपयोग सम्भव हो ।

अत: सिंचाई (irrigation in hindi) के लिए एक उपयुक्त विधि का चुनाव करना अत्यन्त महत्वपूर्ण बिन्दु है ।


सिंचाई की विभिन्न विधियों में से उपयुक्त विधि का चुनाव निम्न कारकों द्वारा प्रभावित होता है -

  1. भूमि का धरातल समान होने पर सतही सिंचाई विधियों तथा धरातल असमान होने पर बौछारी अथवा टपकेदार विधि का प्रयोग किया जाता है ।
  2. धान, गन्ना जैसी फसलों की जल माँग अधिक होने के कारण इनमें सतही सिंचाई का प्रयोग होता है ।
  3. जिन क्षेत्रों में सतही सिंचाई का प्रयोग होता है वहाँ पर कोई उपकरण प्रयोग में नहीं लाये जाते हैं तथा शुष्क क्षेत्रों में बौछारी विधि व टपकेदार सिंचाई के लिए सम्पूर्ण सिंचाई प्रणाली की आवश्यकता होती है ।
  4. घास वाली फसलों जैसे बरसीम, ज्वार, मक्का आदि में तोड़ विधि में सिंचाई करते हैं ।
  5. सिंचाई का स्रोत यदि नहर या ट्यूबवैल है तो सिंचाई की तोड़ विधि का प्रयोग करते हैं । यदि सिंचाई के स्रोत की जल आपूर्ति क्षमता कम है तो टपकेदार या बौछार विधि अपनाई जाती है ।
  6. इसके अतिरिक्त सिंचाई जल का आकार, सिंचाई जल की गुणवत्ता, मौसमीय अवस्थाएँ तथा फसल आदि भी सिंचाई की विधि के चुनाव को प्रभावित करते हैं ।