सिंचाई जल उपयोग दक्षता एवं सिंचाई जल मांग क्या है?

सिंचाई जल की होने वाली विभिन्न प्रकार की क्षति को रोका जाना चाहिये ।

इसी भावना को लेकर सिंचाई जल उपयोग दक्षता की संकल्पना का जन्म हआ ।

सिंचाई जल मांग से हमें ज्ञात होता है, कि विभिन्न प्रकार की सिंचाई प्रविधियों द्वारा उपलब्ध जल संसाधनों का कितनी कुशलतापूर्वक उपयोग किया जा सकता है ।


जल एक महत्वपूर्ण, दुर्लभ एवं बहुमूल्य राष्ट्रीय सम्पदा है ।

मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकता है ।

दुर्भाग्य से यह जल वाष्पीकरण, अपवाह, उत्स्वेदन एवं जल स्रोतों जैसे - सिंचाई नालियों, नहरों, जल बहाव मार्गों से अपसरण एवं निक्षालन के माध्यम से नष्ट होता रहता है ।

सिंचाई जल की हानियों को दक्षता के सन्दर्भ में कई प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है ।


सिंचाई जल उपयोग दक्षता एवं सिंचाई जल मांग (Irrigation Water Efficiency and Water Demand In Hindi)

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सिंचाई जल उपयोग दक्षता एवं सिंचाई जल मांग

( अ ) सिंचाई जल दक्षता (Irrigation Efficiency in hindi)


खेत में सिंचाई हेतु दी गई जल की मात्रा एवं फसल द्वारा वास्तविक रूप में उपयोग की गई मात्रा के अनुपात को सिंचाई जल दक्षता कहते हैं । 


सिंचाई दक्षता की गणना निम्न सूत्र से की जाती है -

c . Wet + Wsc - Eroo यहाँ पर Ei = सिंचाई दक्षता Wet = प्रति इकाई क्षेत्र से वाष्पोत्सर्जन द्वारा पानी की क्षति Wsc = हानिकारक लवणों को दबाने हेतु प्रति इकाई क्षेत्र पानी की मात्रा Er = प्रभावकारी वर्षा की मात्रा Wsr = प्रति इकाई क्षेत्र के लिये निकाले गये सिंचाई जल की मात्रा या संचित जल की मात्रा


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( ब ) जल वहन दक्षता (Water Conveyance Efficiency in hindi) -


जल से उपयोग स्थल के बीच में जल बहाव के समय होने वाली जल क्षति को जल वहन दक्षता द्वारा प्रकट किया जाता है ।


इसे निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त करते है  = _ Wpx 100 Ec = wr यहाँ पर Ec = जल वहन क्षमता Wp = खेत के निर्गत पानी का आयतन Wr = खेत में पहुँचने वाले जले का आयतन


( स ) जल प्रयोग दक्षता ( Water application efficiency ) -


खेत में दिये गये पानी के आयतन एवं फसल के जड़ क्षेत्र में एकत्रित जल के आयतन के अनुपात को जल प्रयोग दक्षता कहते हैं ।

इसमें किसी सिंचाई युक्त स्थान पर पौर्षों द्वारा वाष्पीकरण, उत्स्वेदन एवं हानिकारक लवणों की उचित मात्रा बनाये रखने हेतु आवश्यक पानी की मात्रा तथा खेत में ।

दिये गये पानी की मात्रा को आधार मानते हैं ।


इसका गणना सूत्र निम्न प्रकार है Ea = ६४ 100 Ea = जल प्रयोग दक्षता । Ws = पौधों के जड़ क्षेत्र में एकत्रित जल का आयतन Wp = खेत में दिये गये पानी का आयतन


( द ) जल वितरण दक्षता ( Water Distribution Efficiency ) -


जल वितरण दक्षता के द्वारा खेत में समान जल वितरण की माप की जाती है ।

अधिक उत्पादन हेतु पूरे खेत में पानी का समान वितरण आवश्यक है ।


इसे निम्न सूत्र द्वारा व्यक्त करते हैं Ed = ( 1 - 2 ) x 100 यहाँ पर Ed = जल वितरण दक्षता 4 = प्रवाह स्थल में सिंचाई के समय संतृप्त भूमि की औसत गहराई _ y = सिंचाई के समय संतृप्त भूमि की गहराई का आंकिक विचलन


( य ) जल संग्रहण - क्षमता ( Water Storage Efficiency ) -


सामान्यत: ऐसी धारणा है, के कम मात्रा में सिंचाई जल का प्रयोग करना अधिक लाभदायक होता है ।

कम मात्रा में संचाई करने से सिंचाई दक्षता में वृद्धि होती है ।

जल संग्रहण दक्षता के द्वारा इस धारणा का म किया जाता है ।


इसको निम्न प्रकार व्यक्त करते है -

 W५ 100 Es = wn यहाँ पर ES = जल संग्रहण क्षमता 5 = पौधे के जड़ क्षेत्र में पानी का संचित आयतन 1 = सिंचाई से पहले पौधे के लिये आवश्यक पानी का आयतन


( र ) परियोजना सिंचाई दक्षता ( Project Irrigation Efficiency ) -


किसी जल साधन द्वारा छोड़े गये पानी के आयतन एवं पौधों के जड़ क्षेत्र की गहराई में फसल के उपभोग लिये उपलब्ध पानी के अनुपात
को परियोजना सिंचाई क्षमता कहते हैं । 

जल प्रयोग क्षमता ( Water Use Efficienty ) उपभौगिक उपयोग क्षमता ( Consumptive use efficiency ) यह किसी फसल द्वारा सिंचाई जल के वास्तविक उपयोग एवं पौधों के जड़ क्षेत्र में हुई जल हानि का माप है ।

इसमें वाष्पोत्सर्जन वाष्प एवं चपापचय क्रिया के लिये प्रयोग में लाया जाने वाला जल भी सम्मिलित करते हैं ।

wUE = wd X _ wCU x 100 WUE = उपभौगिक उपयोग क्षमता CU = फसल का उपभौगिक उपयोग 1 = फसल के जड़ क्षेत्र से जल की हानि जल उपयोग दक्षता ( Water use efficiency ) वाष्प वाष्पोत्सर्जन के लिये प्रति इकाई जल के प्रयोग द्वारा उत्पन्न विक्रय योग्य फसल की उपज को जल उपयोग दक्षता कहते हैं ।


इसकी गणना करने के लिये निम्न सूत्र प्रयोग करते है -

WUE = ET TE _ Y यहाँ पर WUE = जल उपयोग क्षमता ( कि० ग्रा० / है० मी० ) Y = फसल की विक्रय उपज किग्रा6 / है० ) ET = वाष्प - वाष्पोत्सर्जन क्षेत्र जल उपयोग दक्षता ( Field water use , efficiency ) क्षेत्र पर प्रयोग की गई जल की मात्रा ( WR ) तथा फसल की उपज के अनुपात को क्षेत्र जल उपयोग दक्षता कहते हैं ।

इसमें चपापचय क्रिया के लिये प्रयुक्त जल ( G ), वाष्प - वाष्पोत्सर्जन ( ET ) गहरा अन्त : सरण ( D ) को सम्मिलित किया जाता है ।


 इसकी गणना निम्न सूत्र से करते है EU = Y Y G + ET = D WR 


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जल उपयोग क्षमता को प्रभावित करने वाले तत्व  (Factors Effecting Water Use Efficiency in hindi)


किसी फसल की जल उपयोग क्षमता पर विभिन्न तत्वों का प्रभाव पड़ता है ।

जैसे - जलवायु सिंचाई, सस्य क्रियायें, उर्वरक प्रयोग , पौध घनत्व, खरपतवार आदि ।

कुछ प्रमुख प्रभावित करता वाले तत्व निम्न प्रकार हैं -


( i ) फसल एवं फसल प्रजाति ( Crop and Crop Varieties ) -

फसलों की विभिन्न प्रजातियों की जल उपयोग क्षमता अलग - अलग होती है ।

इनकी प्रकाश संश्लेषण दर, आनुवांशिक लक्षण, वृद्धि विकास अवस्थाओं को दृष्टिगत रखकर जल उपयोग क्षमता का पता लगाते है ।


( ii ) जलवायु ( Climate ) —

जलवायु सम्बन्धी कारकों के अन्तर्गत, तापक्रम, वायुमण्डल की नमी, प्रकाश, वायु महत्वपूर्ण कारक है, जिनका जल उपयोग क्षमता पर प्रभाव पड़ता है ।


( iii ) सस्य क्रियायें ( Agronomic Practices ) –

विभिन्न सस्य वैज्ञानिक क्रियायें भी जल उपयोग क्षमता को प्रभावित करती हैं ।

जैसे — फसल को बोने की गहराई, नमी शोषण क्षमता, अंकुरण अवस्था, कल्ले निकलने की अवस्था, आदि अवस्थाओं का प्रभाव जल उपयोग क्षमता ( WLE ) पर पड़ता है ।


( iv ) वाष्प - वाष्पोत्सर्जन ( Evapo-transperation ) -

जल उपयोग क्षमता पर वाष्प - वाष्पोत्सर्जन का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, जिसे निम्न क्रियाओं द्वारा नियन्त्रित कर सकते हैं -

( अ ) पलवार लगाना 

( ब ) कैंड एवं नाली विधि के उपयोग द्वारा

( स ) रक्षक पट्टिका 

( द ) खरपतवार नियन्त्रण द्वारा 

( य ) उत्स्वेदन अवरोधकों के द्वारा 


( v ) सिंचाई ( Irrigation ) -

कम सिंचाई एवं अधिक सिंचाई दोनों अवस्थाओं का फसल उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।

दोनों अवस्थाओं में जल उपयोग क्षमता घटती है । इस प्रकार से सिंचाई से भी जल उपयोग क्षमता ( WUE ) प्रभावित होती है ।


( i ) उर्वरक प्रयोग अथवा उर्वरता ( Fertilization ) -

पौधों के पोषण के लिये उर्वरक आवश्यक होते हैं ।
उर्वर भूमिर्यो की जल उपयोग क्षमता ( WUE ) अपेक्षाकृत अधिक होती है ।


( vii ) पौध घनत्व ( Plant Population ) –

एक निश्चित सीमा से अधिक अथवा कम पौधे होने से उत्पादन में कमी होती है, जिससे जल उपयोग क्षमता में भी कमी आ जाती है ।


जल उपयोग क्षक्रियाओं का उल्लेखमता को बढ़ाने वाली सस्य वैज्ञानिक तकनीकें


सिंचाई जल उपयोग क्षमता में वृद्धि के लिये वे सभी प्रकार की सस्य वैज्ञानिक क्रियायें आवश्यक होती है, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है तथा वाष्प वाष्पोत्सर्जन ( Evapo - transperation ) में कमी आती है ।

इस प्रकार से सस्य वैज्ञानिक क्रियाओं के माध्यम से जल उपयोग दक्षता को प्रभावित करने वाले घटकों को उत्पादन वृद्धि के अनुकूल बनाने का प्रयास किया जाता है ।


कुछ मुख्य सस्य वैज्ञानिक क्रियायें निम्नलिखित हो सकती हैं -

( i) फसलों की प्रजातियों के उपयुक्त चुनाव द्वारा

( ii ) पलवार लगाना ( Mulching )

( iii ) कूड एवं नाली विधि का प्रयोग

( iv ) खरपतवार नियन्त्रण

( v ) फसल क्रांतिक अवस्थाओं का पता लगाकर

( vi ) उचित सिंचाई विधियों का चयन करके

( vii ) उचित उर्वरकों के उपयोग द्वारा 


फसलों में सिंचाई जल माँग या जल की आवश्यकता  (Water demand or water requirement of Crop in hindi) -


जल की वह मात्रा, जो किसी फसल को एक निर्धारित समय अवधि में उगाने के लिये आवश्यक होती है, फसल की जल माँग कहलाती है ।

वाष्पोत्स्वेदन ( Evapotranspiration ) एवं गहरे रिसाव ( Deep seepage ) द्वारा भूमि जल को हानियाँ होती हैं । 

सिंचाई जल दक्षता एवं जल मांग
सिंचाई जल दक्षता एवं जल मांग


अतः जब हम जल माँग का अध्ययन करते हैं तो इसमें हम उन हानियों को भी सम्मिलित करते हैं ।

इसके साथ ही जडों द्वारा ग्रहण किये गये उस जल को भी सम्मिलित करते है, जो पौधे की शरीर रचना में उपयोग होता है ।


इस प्रकार से फसल की जल माँग को निम्न प्रकार व्यक्त कर सकते है -

WR = IR + ER + S यहाँ पर WR = फसलों की जल माँग ( Water requirement of Crops ) [ R = सिंचाई के लिये आवश्यक जल ER = प्रभावी वर्षा S = मृदा में विद्यमान जल


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फसलों की जल माँग को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors affecting water requirement of Crops in hindi)


फसलों की जा माँग को मुख्यतः निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं -

( i ) वायुमण्डल की नमी -

वायुमण्डल में नमी अधिक हो जाने से फसलों की जल माँग कम हो जाती है ।

इसके विपरीत कम नमी होने पर जल माँग बढ़ जाती है ।

अधिक नमी होने से वाष्प - वाष्पोत्सर्जन कम होता है और पर्णरन्ध्र बन्द हो जाते हैं ।


( ii ) वायु की गति – 

वायु का वेग बढ़ने पर वाष्पोत्सर्जन की गति बढ़ जाती है, जिससे फसलों की जल माँग बढ़ जाती है ।


( iii ) फसल की किस्म -

कुछ फसलों को अधिक पानी की आवश्यकता होती है ।

जैसे — धान, गन्ना आदि । इनकी जल माँग अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक होती है 


( iv ) सौर विकीरण ( Solar radiation ) -

सूर्य - ताप में तीव्रता आने से फसलों की जल माँग में वृद्धि होती है ।

इसी कारण खरीफ की फसलों को अधिक जल की आवश्यकता होती है ।


( v ) अन्तराकर्षण क्रियायें -

विभिन्न सस्य क्रियाओं जैसे निराई, गुड़ाई, खरपतवार नियन्त्रण आदि करने से फसलों की जल माँग कम हो जाती है ।


( vi ) भूमि की उर्वरता - 

उर्वर भूमियों को जल माँग अपेक्षाकृत अधिक होती है । तांशयक्त खादों के प्रयोग से जल माँग कम हो जाती है 


( vi ) भूमि की किस्म -

भूमि का जल स्तर, मृदा गहराई, कठोर, फसलों की जल माँग को प्रभावित करते हैं ।