फसल किसे कहते है इसकी परिभाषा एवं यह कितने प्रकार की होती है

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फसल किसे कहते है इसकी परिभाषा एवं यह कितने प्रकार की होती है


फसल किसे कहते है - मनुष्यों द्वारा अपने उपभोग के लिये कृषि क्षेत्र में एक निश्चित कार्यक्रम एवं योजनाबद्ध उपायों द्वारा उगाये गये अन्न, चारा, फल अथवा फूल आदि के पौधों के समूह को फसल कहा जाता है ।

प्राचीन काल से ही मनुष्य अपने भोजन के लिए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से फसल उत्पादन पर ही निर्भर रहा है ।

फसल की परिभाषा | definition of crop in hindi

फसल की परिभाषा (fasal ki paribhasha)  - "पौधों का वह समूह जिसे मनुष्य अपनी आर्थिक उपयोगिताओ के लिए एक निश्चित समय एवं क्षेत्र में उगा कर कटत हैं ।"

"The group of plants that humans grow and cut in a certain time and area for their economic benefits."

फसल किसे कहते है? | fasal kise kahte hain?

प्राचीनकाल से ही मनुष्य जिन पेड़ पौधों को अपनी खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उगाता है अथवा भोजन प्राप्ति के लिये प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से फसलों पर निर्भर रहा है । अत: पौधों का वह समूह एक बड़े क्षेत्रफल पर आर्थिक लाभ की दृष्टि से उगाया जाता है फसल (crop in hindi) कहलाता है ।

मनुष्य अपने फायदे के लिए जिन पेड़ पौधों के समूह का उत्पादन एक योजना के अनुसार करता है और उनसे अपनी खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति करता है उन्हें ही फसल कहते है ।

प्रारम्भ में वह अपने अनुभव के आधार पर स्वयं उगी हुई वनस्पतियों एवं पेड़ - पौधों से भोजन प्राप्त करता था । कलान्तर में उसने अपने भोजन के लिये फसलों को उगाकर कृषि (agriculture in hindi) कार्य प्रारम्भ किया ।

इसके अतिरिक्त समय के साथ - साथ जनसंख्या में वृद्धि के कारण मनुष्य की भोजन सम्बन्धी आवश्यकताओं में वृद्धि होती चली गई और भोजन की पूर्ति हेतु उसने निश्चित समयबद्ध कार्यक्रम के आधार पर फसलों के उत्पादन पर ध्यान केन्द्रित किया । 

फसल कितने प्रकार की होती है?

भारत में मुख्यत: फसलों के वर्गीकरण के आधार पर फसल के प्रकार (fasal ke prkar) में विभाजित किया जाता है ।

फसल के प्रमुख प्रकार (fasal ke prkar) -

  • खरीफ की फसल
  • रबी की फसल
  • जायद की फसल
  • नगदी फसलें

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फसलों का वर्गीकरण | classification of crop in hindi

फसल उत्पादन की दृष्टि से उगाई जाने वाली फसलों को मौसम, उपयोग व आर्थिक महत्व, जीवन चक्र, वानस्पतिक समानताओं तथा इनमें अपनाई जाने वाली सस्य क्रियाओं के आधार पर वर्गीकृत किया गया है ।

फसलों का वर्गीकरण -

  • मौसम या ऋतुओं के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
  • उपयोग एवं आर्थिक महत्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
  • जीवन चक्र के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
  • फसलों का वनस्पतिक वर्गीकरण
  • विशेष उपयोग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण
  • फसलों का सस्य वैज्ञानिक वर्गीकरण
  • औद्योगिक महत्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण


1. मौसम के आधार पर फसलों का वर्गीकरण

जलवायु का पौधों की बुवाई से कटाई तक की विभिन्न अवस्थाओं पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है । हमारे देश में जलवायु के विभिन्न घटकों जैसे - तापमान‌, आद्रता, वर्षा, वायु और प्रकाश आदि में बहुत अधिक भिन्नता पाई जाती है ।

मौसम के आधार पर हमारे देश में उगाई जाने वाली फसलों को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है -

  • खरीफ की फसलें ( Kharif Crops )
  • रबी की फसलें ( Rabi Crops )
  • जायद की फसलें ( Zaid Crops )


खरीफ फसल किसे हैं?

इस ऋतु में लम्बी अवधि की फसलों जिनके लिये अधिक तापमान तथा आर्द्रता वाला मौसम अनुकूल होता है, उगाई जाती हैं । खरीफ की फसलों की बुवाई जून से जौलाई तक की जाती है और ये फसलें सिम्बर - अक्टूबर माह में पककर कटाई के लिये तैयार हो जाती हैं । इस अवधि में लम्बे दिनों वाली अवस्था बनी रहती हैं ।

खरीफ की प्रमुख फसलें - 

  • धान्य फसलें - धान, मक्का, ज्वार, बाजरा
  • दलहनी फसलें - अरहर, मूंग, उड़द
  • तिलहनी फसलें - मूंगफली, सोयाबीन 
  • रेशे वाली फसलें - कपास, जूट
  • चारे वाली फसलें - लोबिया, ग्वार
  • सब्जी वाली फसलें - लौकी, भिण्डी, करेला, तोरई स्टार्च फसलें - अरबी, शकरकन्द


रबी फसल किसे कहते है?

इस वर्ग की फसलें कम तापमान पर छोटे दिनों वाली अवस्था तथा कम प्रकाश चाहने वाली होती हैं । रबी की फसलों की बवाई अक्टूबर - नवम्बर में की जाती है  ये फसलें मार्च - अप्रैल माह में पककर तैयार हो जाती है । इनकी कटाई के समय तापमान में वृद्धि होती है और तेज गर्म हवाएं चलती है ।

रबी की प्रमुख फसलें -

  • धान्य फसलें - गेहूँ, जौ, ट्रिटिकेल
  • दलहनी फसलें - चना, मटर, मसूर
  • तिलहनी फसलें - तोरिया व सरसों, सूरजमुखी, कुसुम
  • शर्करा फसलें - गन्ना, चुकन्दर 
  • विशेष फसलें - आलू, तम्बाकू
  • चारे वाली फसलें - बरसीम, लुसर्न, जई
  • सब्जी वाली फसलें - गाजर, मूली, शलजम, टमाटर


जायद फसल किसे कहते है?

यदि सिचाई जल की पक्की व्यवस्था है तो इन फसलों की बवाई फरवरी - मार्च में की जा सकती है और ये फसलें अप्रैल - मई में पककर कटाई के लिये तैयार हो जाती हैं । इस अवधि में भीष्ण गर्मी, तेज गर्म हवाएँ तथा लू चलती हैं । इन प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करके उगने की क्षमता इन फसलों में पाई जाती हैं ।

जायद की प्रमुख फसलें -

इस वर्ग में ककड़ी, खरबूजा, खीरा, तरबूज, टिण्डा तथा तोरई आदि आते हैं ।


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2. उपयोग एवं आर्थिक महत्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण


आर्थिक लाभ की दृष्टि से भूमि पर उगने वाले सभी पौधों को निम्न वर्गों में विभाजित किया जाता है -

  • अनाज की फसलें ( Cereal Crops )
  • दलहनी फसलें ( Pulse Crops )
  • तिलहनी फसलें ( Oilseed Crops )
  • रेशे की फसलें ( Fibre Crops )
  • औषधीय फसलें ( Medicinal Crops )
  • शाकथाजी की फसलें ( Vegetable Crops )
  • स्टार्च वाली फसलें ( Starch Crops )
  • मिर्च एवं मसाले वाली फसलें ( Spices and Condiments )
  • चारे की फसलें ( Forage Crops )
  • शर्करा की फसलें ( Sugar Crops )
  • फलदार फसलें ( Fruit Crops )
  • उत्तेजक फसलें ( Stimulant Crops )
  • छोटे दाने वाली फसलें ( Millet Crops )
  • जड़ तथा कन्द वाली फसलें ( Root and Tuber Crops )
  • पेय पदार्थ प्रदान करने वाली फसलें ( Beverage Crops )

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि भूमि की सतह पर उगने वाले सभी पौधे अपना आर्थिक महत्व रखते है एवं कुछ पौधे आर्थिक दष्टि से अधिक उपयोगी होते हैं । 

जैसे - गेहूँ, मक्का व धान आदि धान्य फसलों का महत्व बहुत अधिक है ।


( i ) अनाज की फसलें | Cereal crop in hindi

इस वर्ग की फसलों के दाने अनाज के रूप में एवं वनस्पतिक भाग पशुओं के खाने के काम आता है ये ग्रेमिनी परिवार से संबधित है ।

अनाज वाली फसलों के उदाहरण - 

मक्का, धान, ज्वार, बाजरा तथा गेहूँ आदि ।


( ii ) दलहनी फसलें  Pulse crop in hindi

इन फसलों के दानों में भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाई जाती है और प्रायः इनका प्रयोग दाल के रूप में किया जाता है । इन वर्ग की फसलें लैम्युमिनेसी कुल के अंतर्गत आती है ।

इनके पौधों की जडो में गांठे पाई जाती है इन गांठों में पाये जाने वाले जीवाणु पौधों की जडो में वायुमण्डल की नाइट्रोजन को स्थिर करने का कार्य करते है इसे राइजोबियम कल्चर कहा जाता है ।

दलहनी फसलों के उदहारण - 

चना, मटर, लोबिया, मूंग, मसूर, सोयाबीन तथा मूंगफली आदि ।


( iii ) तिलहनी फसलें | Oilseed crop in hindi

इस वर्ग की फसलों के बीजों से तेल निकाला जाता है यह तेल नाना प्रकार के खाद्य पदार्थों को बनाने में प्रयोग किया जाता है ।

तेल निकालने के पश्चात बचा हुआ पदार्थ खल कहलाता है जो पशुओं को खिलाने के लिए उपयोग में लाई जाती है ।

तिलहनी फसलों के उदाहरण - 

सरसों, तोरिया, लाही, मूंगफली, अरण्डी, तिल, कुसुम एवं सुरजमुखी आदि ।


( iv ) रेशे की फसलें | Fibre crop in hindi

इस वर्ग के अंतर्गत आने वाली फसलों को रेशे प्राप्ति के लिए उगाया जाता है रेशे का उपयोग विभिन्न प्रकार के वस्त्र, काली नो तथा रस्सी आदि के बनाने में किया जाता है ।

रेशे वाली फसलों के उदाहरण -

इस वर्ग में कपास, पटसन, जूट, अलसी तथा सनई आदि आते हैं ।


( v ) औषधीय फसलें | Medicinal crops in hindi

इस वर्ग की फसलों को उनके विशेष औषधिय गुण के कारण उगाया जाता है ।

औषधीय फसलों के उदाहरण - 

नीम, तुलसी, मैन्था, पुदीना, अदरक तथा हल्दी आदि ।


( vi ) शाक-भाजी वाली फसलें |  Vegetable Crop in hindi

स्वर्ग की फसलों के पौधों के फल, फूल, कंद, पत्तियां व तना आदि सब्जी बनाने में प्रयोग होते हैं ।

शाक-भाजी वाली फसलें के उदाहरण - 

आलू, गोभी, मूली, टमाटर, बैंगन, भिण्डी, तौरई , करेला आदि ।


( vii ) मिर्च एवं मसाले वाली फसलें | Spices and Condiments in hindi

इस वर्ग की फसलों का चटनी तथा अचार में स्वाद एवं सुगन्ध आदि के लिये उगाई जाती है ।

मिर्च एवं मसाले वाली फसलें के उदाहरण -

मिर्च, जीरा, धनिया, अजवाइन इलायची दालचीनी, तेजपात इत्यादि ।


( viii ) चारे वाली फसलें | Forage crop in hindi

घरेलू स्तर पर पालतू पशु जैसे गाय, भैंस, बेल, ऊँट आदि के चारे की आपूर्ति के लिये इन फसलों को उगाया जाता है ।

चारे वाली फसलों के उदाहरण - 

मक्का, ज्वार, बाजरा, लोबिया, बरसीम, लुसर्न तथा नैपियर घास आदि ।


( ix ) शर्करा वाली फसलें | Sugar crop in hindi

इस वर्ग की फसलों को चीनी प्राप्ति के उद्देश्य से उगाया जाता है । सम्पूर्ण विश्व में चीनी बनाने के लिये दो प्रमुख फसलों के रस का प्रयोग होता है तथा सम्पूर्ण विश्व की लगभग 65 - 70% चीनी गन्ने के रस से बनाई जाती है ।

शर्करा वाली फसलों के उदाहरण -

गन्ना तथा चुकन्दर ।


( x ) फल‌ वाली फसलें | Fruit Crop in hindi

वृक्षों को छोड़कर फलों की प्राप्ति हेतु कुछ अन्य फसलें भी उगाई जाती है ।

फल‌ वाली फसलों के उदाहरण -

केला, आम, सेब, पपीता, अमरूद, नारंगी, मौसमी तथा चीकू आदि ।


( xi ) जड़ तथा कन्द वाली फसलें | Root and Tuber crop in hindi

इन फसलों का तना कंद के रूप में बदल जाता है यह कंद खाने के काम आता है ।

जड़ तथा कन्द वाली फसलों के उदाहरण - 

चुकन्दर, मूली, गाजर व शलजम आदि ।


( xii ) उत्तेजक फसलें | Stimulant crop in hindi

इस वर्ग में ऐसी फसलें सम्मिलित होती हैं जिनके प्रयोग से मनुष्य के शरीर में उत्तेजना पैदा होने लगती है ।

उत्तेजक फसलों के उदाहरण - 

भांग, गांजा, तम्बाकू, काफी तथा चाय आदि ।


( xiii ) पेय पदार्थ वाली फसलें | Beverage Crop in hindi

इन फसलों के उत्पाद से पेय पदार्थ बनाया जाता है जिसका बहुतायत से समाज के सभी लोगों द्वारा प्रयोग होता है ।

पेय पदार्थ वाली फसलों के उदाहरण - 

चाय, कॉफी, कहवा तथा कोको आदि ।


( xiv ) छोटे दाने वाली फसलें | Millet Crop in hindi

इन फसलों का दाना छोटा होता है कुछ क्षेत्रों में इनका प्रयोग मुख्य खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है ।

छोटे दाने वाली फसलों के उदाहरण -

सांवा, कोदों, रागी, बाजरा एवं काकुन आदि ।


( xv ) स्टार्च वाली फसलें | Starch crop in hindi

इन फसलों को स्टार्च का प्रमुख स्रोत माना जाता है ।

स्टार्च वाली फसलों के उदाहरण -

आलू, शकरकन्द आदि ।


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3. जीवन चक्र के आधार पर फसलों का वर्गीकरण


पौधों द्वारा अपना जीवन काल पूरा करने के आधार पर फसलों को तीन वर्गों में रखा गया है -

  • एकवर्षीय फसलें ( Annual crops )
  • द्विवर्षीय फसलें ( Biennial crops )
  • बहुवर्षीय फसलें ( Perennial crops )

पौधे के जीवनकाल का अर्थ है कि यह बुवाई से कटाई तक वह कितने दिनों में अपना जीवन चक्र पूरा करता है । कुछ पौधे अपना जीवन काल अल्प अवधि में ही समाप्त कर देते है इन्हें कम अवधि वाले पौधे कहते हैं ।

जबकि कुछ पौधे अपना जीवन काल पूर्ण करने के लिये लम्बी अवधि लेते हैं इसीलिये इन्हें लम्बी अवधि की फसलें कहा जाता है । वर्तमान समय में विभिन्न फसलों की छोटी अवधि वाली तथा लम्बी अवधि वाली अनेक जातियाँ विकसित हो चुकी हैं ।

पौधों के जीवन काल में लगने वाली इस अवधि के आधार पर ही फसलों को विभिन्न वर्गों में रखा गया है जिनका विवरण निम्न प्रकार है ।


( i ) एकवर्षीय फसलें | Annual crop in hindi

इस वर्ग की फसलें बुनाई से कटाई तक एक वर्ष में इससे कम समय में अपना जीवन चक्र पूर्ण कर लेती हैं । इस अवधि में ये फसलें पककर पीली जड़ जाती है जो इनकी कटाई का उपयुक्त समय होता है ।

एकवर्षीय फसलों के उदहारण - 

गेहूँ, जो, मक्का तथा धान आदि ।


( ii ) द्विवर्षीय फसलें | Biennial crop in hindi

इस वर्ग की फसलें अपना जीवन काल दो वर्ष या इससे कम समय में पूरा कर लेती है । इस अवधि के अन्तर्गत प्रथम वर्ष में ये फसलें वानस्पतिक वृद्धि करती है और अंतिम वर्ष में बीज बनाती हैं ।

द्विवर्षीय फसलों के उदाहरण -

चुकन्दर आदि ।


( iii ) बहुवर्षीय फसलें | Perennial crop in hindi

इस वर्ग की फसलें अपना जीवकाल अनेकों वर्षों तक चलाती रहती है । ये अपनी वानस्पतिक वृद्धि अनिश्चित समय तक करती रहती है और इनके बीज भी साथ - साथ बनते रहते हैं ।

इन फसलों का जीवन क्षमता इनती अधिक होती है कि कटाई के बाद भी फसलें अपनी वानस्पतिक वृद्धि कर लेती है और इनमें बीज बन जाता है ।

बहुवर्षीय फसलों के उदाहरण -

लुसर्न आदि ।


4. फसलों का वानस्पतिक वर्गीकरण


सामान्यतः फसलों को निम्नलिखित परिवारों के अन्तर्गत विभाजित किया जाता है -

  1. घास परिवार ( Gramincae Family ) - धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, गेहूँ, जौ, जई व गन्ना आदि ।
  2. मटर परिवार ( Leguminaceae Family ) - अरहर, उड़द, मूंग, सोयाबीन, सनई, लैंचा, ग्वार, मूंगफली, मटर, चना व मसूर आदि ।
  3. सरसों परिवार ( Cruciferae Family ) - सरसों, तोरिया, तारामिरा, बन्दगोभी, फूलगोभी, गाँठगोभी, मूली व शलजम आदि ।
  4. कपास परिवार ( Malvaceae Family ) - कपास, पटसन व भिण्डी आदि ।
  5. आलू परिवार ( Solanaceae Family ) - आलू, टमाटर, हरी मिर्च व तम्बाकू आदि ।
  6. अलसी परिवार ( Linaceae Family ) - अलसी ।
  7. कद्दू परिवार ( Cucurbitaceae Family ) - पेठा, खीरा, करेला, खरबूजा व तरबूज आदि ।
  8. जूट परिवार ( Tilaceae Family ) - जूट ।
  9. अण्डी परिवार ( Euphorbiaceae Family ) - अण्डी ।


5. विशेष उपयोग के आधार पर फसलों का वर्गीकरण


फसलों के विशेष उपयोग के आधार पर प्रमुख वर्गीकरण -

  • नकदी फसलें ( Cash Crops )
  • अन्तर्वर्ती फसलें ( Catch Crops )
  • सहयोगी फसलें ( Companion Crops )
  • वीथी फसलें ( Alley Crops )
  • शिकारी फसलें ( Prey or Smother Crops )
  • बम्पर क्राप तथा क्राप फेलयोर ( Bumper Crop And Crop Failure )
  • रिले क्रापिंग ( Relay Cropping )

इसके अतिरिक्त हरी खाद, मृदा आरक्षित, अन्तर्वर्ती, नकदी, कीटाकर्षक, सहयोगी, बीथी, पेड़ी, रक्षक, पूरक, पोषक, शिकारी, मल्च वाली, मृदा सुधारने वाली तथा साइलेज वाली फसलें आदि प्रमुख फसलें है ।


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( i ) नकदी फसलें किसे कहते है? | Cash Crop in hindi

ये फसलें कृषक अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पूरा लाभ न उठाते हुये तुरन्त बेच सकता है ।

नगदी फसलों के उदाहरण -

आलू, तम्बाकू, गन्ना व सोयाबीन आदि ।


( ii ) अन्तर्वर्ती फसलें किसे कहते है? Catch Crop in hindi

यदि मुख्य फसल अपनी वृद्धि एवं विकास के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ न होने पर नष्ट हो जाती हैं तब इसकी पूर्ति हेतु उस स्थान पर उगाई गई फसल अन्तर्वर्ती फसल कहलाती हैं । ये फसलें कम समय में तैयार होती है ।

अन्तर्वर्ती फसलों के उदाहरण —

चीना, लाही, सावां व मूंग आदि ।


( iii ) सहयोगी फसलें किसे कहते है? | Companion Crop in hindi

जव दो फसलें एक ही खेत में अलग - अलग पंक्तियों में उगाई जाती हैं, तब इनमें एक मुख्य फसल व दूसरी कम अवधि की फसल होती है इन्हें सहयोगी फसलें कहते हैं ।

सहयोगी फसलों के उदाहरण -

मक्का + उड़द और आलू + मूंग आदि । 


( iv ) तीथी फसलें किसे कहते है? | Alley Crop in hindi

ये फसलें कम चौड़ाई वाले रास्तों के किनारों पर वृक्षों या झाड़ियों के बीच भूमि की उर्वरा शक्ति को सुधारने व मृदा क्षरण को कम करने के लिये उगाई जाती हैं

तीथी फसलों के उदाहरण -

यूकेलिप्टस के बीच शकरकन्द या उड़द ।


( v ) शिकारी फसलें किसे कहते है? | Prey or Smother Crop in hindi

ये ऐसी फसलें हैं जो अपनी तीव्र वृद्धि के कारण अवांछित पौधों को दवा देती हैं ।

शिकारी फसलों के उदाहरण -

सरसों, लोबिया, सनई व बरसीम आदि ।


( vi ) बम्पर क्राप तथा क्राप फेलयोर किसे कहते है? | bumper crop and crop failure in hindi

किसी फसल के पौधों द्वारा प्रचुर मात्रा में वृद्धि एवं विकास करने पर उसे 'bumper crop' कहा जाता है, जबकि किसी फसल के पौधों की किसी कारणवश कम वृद्धि एवं विकास को 'crop failure' कहा जाता है ।


( vii ) रिले क्रापिंग किसे कहते है? relay cropping in hindi

जब एक खेत से एक वर्ष में एक के बाद एक करके चार फसलें अधिकतम उत्पादन एवं आर्थिक लाभ के लिये उगाई जाती है, तब यह रिले क्रापिंग कहलाता है ।


6. फसलों का सस्य वैज्ञानिक वर्गीकरण

किसी फसल की बुवाई से कटाई तक खेत में विभिन्न सस्य क्रियाएं की जाती है इन सस्य क्रियाएं में भूमि का चुनाव व इसकी तैयारी, भूमि का समय व विधि, बीज दर, खाद एवं उर्वरक, जल प्रबंध और पादप सुरक्षा आदि सम्मिलित होते हैं ।

इन क्रियाओं को निर्धारित करने वाले प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं -

  • फसल का चुनाव ( Selection of Crop )
  • भूमि का चुनाव ( Selection of land )
  • मौसम विज्ञान ( Weather Science )
  • उपयुक्त फसल चक्र ( Suitablle crop rotation )
  • मिलवा खेती ( Mixed Cropping )
  • सिंचाई प्रबंध ( Irrigation Management )
  • कृषि श्रमिकों की उपलब्धता ( Availability of farm labourers )
  • कृषि संसाधनों का प्रबंध ( Management of agri resources )

इसके अतिरिक्त मृदा की प्रकृति एवं धरातल के आधार पर, पौधों के स्वभाव एवं आकार के आधार पर, फसल की अवधि के आधार पर, फसलों में की जाने वाली सस्य क्रियाओं के आधार पर तथा उपलब्ध सस्य संसाधनों के आधार पर वर्गीकरण आदि ।

इन क्रियाओं को उचित प्रकार से अपनाने पर उत्पादन में अधिक वृद्धि होती है ।


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फसल का चुनाव | selection of crop in hindi

किसी फसल का उत्पादन उसके चयन का मुख्य आधार होता है । अतः अधिक उन देने वाली फसलों का चुनाव करना चाहिये ।
उदाहरण - गन्ना, आलू, गेहूँ व धान आदि ।


भूमि का चुनाव

यद्यपि उन्नत कृषि - क्रियाओं को अपनाने से लगभग सभी प्रकार की भूमियों से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, फिर भी अधिकम उत्पादन की दृष्टि से दोमट भूमि (loamy soil) सबसे अधिक उपयुक्त मानी जाती है । कुछ फसलों की उपज जलोढ़ भूमि (alluvial soil) में भी बहुत अधिक हो जाती है ।


मौसम विज्ञान (उचित जलवायु)

प्रत्येक फसल की उपयुक्त वृद्धि एवं उत्पादन के लिये इसे अनुकूल मौसम की आवश्यकता होती है । फसल के पौधों पर इनके सम्पूर्ण जीवन काल में बुवाई से अंकुरण, वृद्धि एवं कटाई तक तापमान व वर्षा का विशेष प्रभाव पड़ता है जिससे फसल की उपज घट या बढ़ सकती है ।


उपयुक्त फसल चक्र | suitable crop rotation in hindi

हमारे देश में फसलोत्पादन को बढ़ाने के लिये विभिन्न प्रकार के फसल चक्र प्रचलित हैं । किसी क्षेत्र की भूमि, जलवायु एवं अन्य वातावरणीय कारकों के आधार पर भिन्न - भिन्न फसल चक्र अपनाये जाते हैं । एक उत्तम फसल चक्र को अपनाकर भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाये रखा जा सकता है । प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिकतम उत्पादन एवं लाभ प्राप्त किया जा सकता है ।


मिलवां खेती किसे कहते है? Mixed Cropping in hindi

फसलों की मिलवां खेती करने से कम क्षेत्रफल में एकसाथ दो फसलें उग जाती हैं और प्रति इकाई क्षेत्रफल में उपज में वृद्धि होती है । इस प्रकार की खेती में फसलों के पौधे भूमि की विभिन्न सतहों से पोषक तत्वों का समुचित उपयोग करते हैं जिससे फसल उत्पादन में वृद्धि होती है । मिलवां खेती को क्षेत्र की जलवायु, भूमि की किस्म, सिंचाई जल की उपलब्धता, आर्थिक लाभ, प्रतिस्पर्धात्मकता पोषक तत्वों की उपलब्धता व फसलों के पौधों की वृद्धि का स्वभाव आदि कारक प्रभावित करते हैं ।


सिंचाई प्रबन्धन

हमारे देश में वर्षा असमान व अनिश्चित होने के कारण उगाई जाने वाली फसलों की सम्पूर्ण जलमांग की पूर्ति नहीं हो पाती है और अन्य विकल्प के रूप में कृत्रिम रूप से फसल में जल देने का कार्य अधिकतम उत्पादन के लिये आवश्यक हो जाता है अर्थात् सिंचाई आवश्यक हो जाती है । अतः सिंचाई के साधनों का प्रबन्ध अधिकतम उत्पादन के लिये अति आवश्यक है ।


कृषि श्रमिकों की उपलब्धता

फसलों की बुवाई हेतु खेत की तैयारी से कटाई तक कृषि क्षेत्र में विभिन्न कार्यों के लिये कृषि श्रमिकों की आवश्यकता बनी रहती है । कृषि श्रमिकों के समय पर आवश्यकतानुसार उपलब्ध होने से कृषि कार्यों को समयबद्ध पूर्ण किया जा सकता है । श्रमिक उपलब्ध न होने पर कृषि - क्रियाओं को करने में विलम्ब होता है जिससे फसल की उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।


कृषि संसाधनों का प्रबन्धन

किसी फसल से अधिकतम उत्पादन एवं लाभ प्राप्त करने के लिये उन्नत कृषि यन्त्रों, सिंचाई जल की व्यवस्था, उन्नत प्रजाति का बीज, खाद वह उर्वरकों की व्यवस्था तथा पूंजी की उपलब्धता आदि कृषि संसाधनों का होना आवश्यक है ।


7. औद्योगिक महत्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण

सम्पूर्ण विश्व में कृषि आधारित उद्योगों की एक लम्बी श्रृंखला है । भारत एक कृषि प्रधान देश है ।

अत: यहाँ के मुख्य उद्योगों के लिये कच्चे माल की आपूर्ति फसलोत्पादन से होती है ।


फसलों पर आधारित उद्योग -

इन उद्योग - धन्धों को फसल उत्पादन एवं उपभोग की दृष्टि से निम्न प्रकार सूचीबद्ध किया जाता है -

  • आटा मिल
  • शीतल पेय उद्योग
  • कागज एवं गत्ता उद्योग
  • दाल मिल
  • एल्कोहल उद्योग
  • रसायन उद्योग तेल उद्योग
  • सौन्दर्य प्रसाधन उद्योग
  • चीनी उद्योग
  • हथकरघा उद्योग
  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग
  • सब्जी उद्योग
  • औषधि उद्योग
  • फल एवं फूल उद्योग
  • रंग व सुगन्ध उद्योग
  • जूट व पैकिंग उद्योग
  • अन्य लघु उद्योग - धन्धे रबर एवं गोंद उद्योग
  • काफी एवं कहवा उद्योग
  • फर्नीचर एवं लकड़ी उद्योग
  • वस्त्र उद्योग
  • दुग्ध उद्योग
  • चाय उद्योग


औद्योगिक महत्व के आधार पर फसलों का वर्गीकरण

उपरोक्त उद्योगों में फसलों के अपार महत्व को दृष्टिगत रखते हुये फसलों का उनके औद्योगिक महत्व के आधार पर वर्गीकरण अति महत्वपूर्ण है ।


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यह संक्षेप में निम्न प्रकार है -

  1. भोज्य पदार्थ वाली फसलें ( Food Crops ) - गेहूँ, जौ, धान व मक्का आदि ।
  2. दलहनी फसलें ( Pulse Crops ) - अरहर, उर्द, मूंग, मसूर, चना व मटर आदि ।
  3. तिलहनी फसलें ( Oilseed Crops ) - सरसों, तोरिया, सूरजमुखी, कुसुम, मूंगफली, तिल व सोयाबीन आदि ।
  4. चीनी वाली फसलें ( Sugar Crops ) - गन्ना व चुकन्दर आदि ।
  5. पेय पदार्थ फसलें ( Beverage Crops ) - चाय, कहवा, काफी आदि ।
  6. एल्कोहल उद्योग की फसलें ( Alcohalic Crops ) - गन्ना, आलू व जौ आदि ।
  7. टेक्सटाइल फसलें ( Textile Crops ) - कपास, जूट व पटसन आदि ।
  8. औषधीय फसलें ( Medicinal Crops ) - तुलसी, अश्वगन्धा, अदरक, हल्दी, स्पर्गन्धा, पोदीना, इसबगोल, लहसुन व सिट्रोनेला आदि ।
  9. सुगन्धित फसलें ( Aromatic Crops ) - गुलाब, पोदीना व मैन्था आदि ।
  10. रबर की फसलें ( Rubber Crops ) - रबर का पेड़ ।
  11. काष्ठीय फसलें ( Wood Crops ) - शीशम, साल, कैल, आम व नीम आदि ।
  12. कागज एवं गत्ता वाली फसलें ( Paper & Cardboard Crops ) - धान व पोपलर आदि ।
  13. सब्जी वाली फसलें ( Vegetable Crops ) - गाजर, मूली, शलजम, मटर व टमाटर आदि ।
  14. स्टार्च वाली फसलें ( Starch Crops ) - आलू व शकरकन्द आदि ।


फसलों का क्या महत्व है? | importance of crop in hindi

कृषि उत्पादन की दृष्टि से विभिन्न फसलों को उगाया जाता है । ये फसलें सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपने भोजन का निर्माण करती हैं ।

इस क्रिया में प्रकाश का होना आवश्यक है जिसे पौधे सूर्य से ग्रहण करते हैं । पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया जितनी अधिक होती है, उतना ही भोजन अधिक बनता है । यह भोजन पौधों की उपज के रूप में हमें प्राप्त होता है जिसे उत्पादन कहा जाता है ।

इसका अर्थ यह है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पौधों में अधिक होने पर उनसे प्राप्त उपज या उत्पादन भी अधिक होता है ।

मनुष्य का भोजन प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से पौधे के विभिन्न भागों से ही प्राप्त होता है ।

फसलों के पौधों से मनुष्य को भोजन व ऑक्सीजन की आपूर्ति के अतिरिक्त अनेक प्रकार से लाभ पहुँचता है जिसे निम्न चित्र द्वारा दर्शाया गया है -

फसल किसे कहते है यह कितने प्रकार की होती है इनका वर्गीकरण एवं महत्व
फसल किसे कहते है यह कितने प्रकार की होती है इनका वर्गीकरण एवं महत्व

वायुमण्डल से प्राप्त कार्बन - डाइ - ऑक्साइड (CO) को पौधे ग्रहण करते हैं तथा ऑक्सीजन (O) को मुक्त करते है जिसके परिणामस्वरूप वायुमण्डल में ऑक्सीजन तथा कार्बन - डाइ - ऑक्साइड का सन्तुलन बना रहता है ।


फसल उत्पादन के मूल सिद्धान्त क्या है? |
principle of crop - production in hindi


फसल उत्पादन के मूल सिद्धान्त निम्नलिखित है - 

  • भूमि का चुनाव ( Selection of soil )
  • भूमि की तैयारी ( Preparation of land )
  • भूमि का समतलीकरण ( Levelling of field ) उपयुक्त प्रजाति का चुनाव ( Selection of suitable variety )
  • फसल चक्र ( Crop - rotation )
  • मिश्रित खेती ( Mixed Cropping )
  • बुवाई का समय ( Time of sowing )
  • बुवाई की विधियाँ ( Methods of sowing ) बीजोपचार ( Seed treatment )
  • अन्तरण ( Spacing )
  • बुवाई की गहराई ( Depth of sowing )
  • बीज दर ( Seed rate )
  • खाद एवं उर्वरक ( Manures and Fertilizers )
  • सिंचाई एवं जल प्रबन्ध ( Irrigation and Water management )
  • निराई - गुड़ाई ( Intercultural Operations ) खरपतवार नियन्त्रण ( Weed control )
  • पादप सुरक्षा ( Plant protection )
  • कटाई एवं गहाई ( Harvesting and winnowing )
  • उपज ( Yield )
  • भण्डारण ( Storage ) ।


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फसलों का उत्पादन बढ़ाने किससे वैज्ञानिक तकनीके़ कौन सी है?

इन फसलों में रबी की फसलों की तुलना में उर्वरकों का कम प्रयोग तथा अधिक कीट व बीमारियों के प्रकोप एवं अनियमित वर्षा होने से इनके उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।

अतः फसलों से अधिक उपज प्राप्त करने के लिये नवीनतम सस्य वैज्ञानिक तकनीकों का प्रयोग अत्यन्त आवश्यक है ।


इनका विवरण निम्न प्रकार है -

  1. खरीफ की सभी फसलों की बुवाई से पूर्व उनकी आवश्यकतानुसार खेत को उचित प्रकार से तैयार करना चाहिये ।
  2. खेत में दीमक पर नियन्त्रण करने के लिये इसकी मिट्टी को उपचारित करना आवश्यक है ।
  3. खरीफ की किसी भी फसल की बुवाई करने से पूर्व मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी का परीक्षण कराकर उसकी आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिये ।
  4. फसलों की विभिन्न क्षेत्रों के लिये संस्तुत जातियों के बीजों के प्रयोग से उत्पादन अधिक होता है ।
  5. फसलों की बुवाई निर्धारित समय पर करने से प्रति इकाई क्षेत्रफल में केवल संस्तुत की गई बीज दर पर्याप्त रहती है ।
  6. बुवाई करने से पूर्व बीजोपचार करना चाहिये । खरीफ की फसलों में बुवाई के समय एवं बाद में उर्वरकों की सन्तुलित मात्रा का प्रयोग करना चाहिये । धान की रोपाई के समय पानी भरे हुये खेत में N.P.K का प्रयोग करना लाभप्रद रहता है ।
  7. नाइट्रोजन की पूर्ति के लिये यूरिया का आवश्यकता के अनुसार top dressing विधि द्वारा सायंकाल के समय प्रयोग करना लाभकारी रहता है । यूरिया का प्रयोग पानी भरे खेत में सूखी मिट्टी के साथ मिश्रण बनाकर करना चाहिये ।
  8. वर्षा ऋतु में इन फसलों को सिंचाई जल की आवश्यकता नहीं के बराबर होती है, परन्तु फिर भी सिंचाई की उचित व्यवस्था होनी चाहिये ।
  9. इन फसलों में सामान्यतः खरपतवारों की बहुलता होती है अतः खरपतवारनाशियों का प्रयोग करना तथा खुरपी की सहायता से निराई - गुड़ाई करना अत्यन्त आवश्यक है ।
  10. इन फसलों की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये इनमें लगने वाले कीटों व रोगों पर नियन्त्रण करना चाहिये ।
  11. खरीफ की फसलों की कटाई उचित समय पर करने से खेत अगली फसल के लिये समय से उपलब्ध हो जाता है तथा इन फसलों की उपज किसान को बिना किसी प्रतिकूल प्रभाव के प्राप्त हो जाती है ।
  12. दाल वाली फसलों को अन्तरसयन (intercropping) फसलों के रूप में उगाना लाभकारी रहता है ।
उदाहरणार्थ - अरहर + उड़द और गन्ना + मूंग आदि ।