हरी खाद क्या है इसके लाभ, उपयोग व फसलें

हरी खाद क्या है इसके लाभ, उपयोग व फसलें

हरी खाद क्या है इसके लाभ, उपयोग व फसलें
हरी खाद क्या है इसके लाभ, उपयोग व फसलें



हरी खाद क्या है? Green manure in hindi 


हरी खाद (Green Manure in hindi) देश की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सघन कृषि को अपनाना आवश्यक हो गया है, जिसके फलस्वरूप फसलों का उत्पादन बहुत तेजी से बढ़ा है और भूमि से पोषक तत्वों का ह्रास भी भारी मात्रा में हुआ है ।

पोषक तत्वों के ह्रास के कारण भूमि की उत्पादकता में भी कमी आई है ।

भूमि की उत्पादकता को बनाए रखने के लिए और भूमि से निरन्तर अधिक उत्पादन की प्राप्ति के लिए भूमि में आई पोषक तत्वों की कमी की पूर्ति करना आवश्यक हो गया है ।

भूमि की उत्पादकता को बनाए रखने के लिए प्रयोग की जाने वाली कार्बनिक खादों में हरी खाद (Green Manure) का अपना एक विशेष स्थान है ।

हरी खाद की परिभाषा (Definition of green manure in hindi)


"एक ऐसी किया जिसमें भूमि में उगी हुई फसलों को कोमल अवस्था में ही भूमि के वातावरण को सुधारने के लिए तथा भूमि में पोषक तत्वों की मात्रा की वृद्धि के लिए पलट दिया जाता है, उसे हरी खाद (Green Manure) देने की क्रिया कहा जाता है । "

हरी खाद के लिए उगाई जाने वाली फसलों के नाम


हरी खाद (Green Manure) केे लिए उगाई जाने वाली फसलें (Green manure crops) जल भूमि में हरी खाद के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली फसलों को हरी खाद की फसलें ( Green Manure Crops ) कहते हैं ।

हरी खाद (Green Manure) वाली फसलों में दलहनी व अदलहनी दोनों प्रकार की फसलें सम्मिलित होती हैं ।

हरी खाद (Green Manure) वाली फसलों को उगने के लगभग 40 दिनों के पश्चात् खेत में पलट देने पर उनके अपघटन के फलस्वरूप मृदा में विभिन्न पोषक तत्वों विशेषतः नाइट्रोजन की पूर्ति होती है ।

दलहन वर्ग की फसलें वायुमण्डल की नाइट्रोजन को भूमि में एकत्रित करने का कार्य करती हैं ।

खाद्य माँग की पर्ति के लिए दलहनी और अदलहनी दोनों प्रकार की फसलों को फसल चक्र (Crop rotation) में सम्मिलित करना आवश्यक होता है ।

सभी फसलों को उगाकर भूमि में पलटने से मृदा में जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ती है और मृदा के गुणों में सुधार होता है ।

फिर भी दलहन वर्ग की फसलें इसी के साथ वायुमण्डल की नाइट्रोजन को भूमि में स्थिर करने का कार्य भी करती हैं ।

हरी खाद के रूप में प्रयोग की जाने वाली दलहनी तथा अदलहनी फसलें निम्न प्रकार हैं -


1 . दलहनी फसलें ( Pulse Crops )


दलहन वर्ग की फसलें भूमि में उगाने पर फसलें वायुमण्डल की नाइट्रोजन को स्थिर करने का कार्य करती हैं जिससे उगाई गई फसल की नाइट्रोजन की आवश्यकता की पूर्ति होती है ।

ये फसलें भूमि की नमी को क्षमतापूर्वक प्रयोग करती हैं । अन्न वाली फसलों के पश्चात इन फसलों को उगाने से अधिक लाभ होता है ।

ये फसलें प्रोटीनयुक्त होने के साथ - साथ भूमि की उर्वरता तथा भूमि के वातावरण में भी सुधार करती हैं ।

ये कम अवधि की फसलें होने के कारण मिश्रित फसलों ( Mixed Crops ) के रूप में, मध्यवर्ती फसलों ( Inter Croping ) में, फसल चक्रों ( Crop rotations ) में और शुष्क क्षेत्रों में सफलतापूर्वक आई जा सकती है ।

उदाहरण - उड़द , चना , मटर , अरहर , मसूर , लोबिया , मूंग , मोठ , ग्वार , सनई व लैंचा आदि ।

2 . अदलहनी फसलें ( Nonpulse Crops )


इस वर्ग की फसलें भूमि में दबाने के पश्चात् ये भूमि के भौतिक वातावरण में सुधार करती हैं ।

भूमि में जीवांश पदार्थ बढ़ता है तथा भूमि में उपलब्ध जल का भरपूर प्रयोग होता है ।

उदाहरण - भाँग , राई , जई , शलजम , तोरिया तथा सरसो आदि ।

फसल अनुसंधान केन्द्र पंतनगर में की विभिन्न प्रजातियों की तुलना एवं मूल्यांकन किया गया ।

इन प्रजातियों में देंचा पन्त - 1 , लैंचा राजेन्द्रा 1 , जी . आर . - 1 , चा - 52 तथा जी० आर . 3 प्रमुख हैं ।

मूल्यांकन व चुनाव के पश्चात् पंत चा - 1 उन्नत प्रजाति विकसित की गई ।

हरी खाद की फसलें उगाने की सम्भावनाएं ( Possibilities of growing Green Manure Crops ) -


पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हरी खाद की फसलों को उगाने की प्रबल सम्भावनाएँ हैं ।

मुख्य अन्न वाली फसलों के पश्चात इन फसलों को खाली समय में उगाकर कृषक अपनी भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाकर भूमि के वातावरण को कृषि के अनुकूल बनाता है ।

किसान को नाइट्रोजन युक्त खर्चीले उर्वरकों पर व्यय को कम करने के लिए ऐसी फसलों को उगाना चाहिए ।

कृषक हरी खाद को उगाकर प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप में विभिन्न प्रकार से लाभ उठा सकता है ।

हरी खाद वाली फसलों का महत्व कृषि उत्पादन की दृष्टि से भी किसी से छुपा हुआ नहीं है ।

हरी खाद के लाभ ( benefits of green manure in hindi )


मृदा में हरी खाद के प्रयोग से होने वाले लाभ -


1 . वायुमण्डल की नाइट्रोजन ( Atmospheric Nitromy ) -


दलहन वर्ग की हरी खाद वाला फसल वायुमण्डल का नाइटोजन को मदा में एकत्रित करने का काय करता है , जिस नाइट्रोजन स्थिरीकरण ( Nitrogen Fixation ) कहा जाता है ।

2 . नक्षालन ( Leaching ) में कमी -


हरी खाद की फसलें उगाने से पोषक तत्वों का निक्षालन की क्रिया द्वारा ह्रास नहीं हो पाता है ।

3 . पोषक तत्वों की उपलब्धता ( Availability of plant nutrients ) -


भूमि सतह में यम आदि तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है । जिससे फसल के उत्पादन में वृद्धि होती है ।

4 . भूमि सरक्षण में सहायक ( Helpful in soil conservation ) -


हरी खाद वाला फसलों के उगान स भूमि की ऊपरी सतह वर्षा की बंदों के प्रत्यक्ष प्रहारसे बच जाता है ।

साखने की क्षमता बढ़ती है , अपधावन की मात्रा घट जाती है और दिन में भी कमी आती है ।

हरी खाद की फसलें भूमि पर भूमि अपरदन में भी कमी ।

5 . वायु सचार में वृद्धि ( Increase in aeration ) -


हरी अवस्था में ही पलटकर दबा दी जाती हैं जो अपघटन के पश्चात् भूमि के वायु संचार में वृद्धि करती है ।

6 . जीवांश पदार्थ की मात्रा ( Armount of organic matter ) -


भूमि में जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ती है और जीवाणुओं की क्रियाशीलता में वृद्धि होती है

मृदा की भौतिक अवस्था में सुधार ( Improvement in the physical properties of soil ) -


भूमि की रचना ( Texture ) ,  संरचना ( Structure ) ,  जल को धारण करने की क्षमता , अवशोषण करने की क्षमता बढ़ जाती है तथा भूमि से जल रिसाव भी कम हो जाता है ।

खरपतवारों का नष्ट करना ( Weed Control in hindi )


हरी खाद वाली फसलों को भूमि पर पलटने से ठगे हुए खरपतवार इनके नीचे दबकर नष्ट हो जाते हैं , जिससे पोषक तत्वों में खरपतवार भी योगदान करते हैं ।

दलहनी फसलें लगभग 80 किग्रा . नाइट्रोजन है की दर से वायुमण्डल की नाइट्रोजन को भूमि में स्थिर करती हैं जबकि फसल अनुसंधान केन्द्र पंतनगर द्वारा विकसित पंत छैचा - 1 प्रजाति को उगाने से भूमि में लगभग 180 किग्रा . नाइट्रोजन / है . तक की वृद्धि हो जाती है और इस प्रजाति को दाने के रूप में उगाने पर 20 क्विटल / है . तक उपज हो जाता है ।

किसानों में हरी खाद वाली फसलों के प्रचलन का अभाव


किसी भी हरी खाद की फसल को भूमि में पलटने के पश्चात उसको सड़ाने के लिए पर्याप्त मात्रा में जल की आवश्यकता होती है । 

अतः यह कार्य ऐसे समय पर करना चाहिए जब वर्षा होने की सम्भावना हो अन्यथा लाभ की अपेक्षा हानि का सामना करना पड़ सकता है ।

इसीलिए हरी खाद की प्रक्रिया शुष्क क्षेत्रों में नहीं अपनाई जा सकती क्योंकि वहाँ पानी का अभाव होता है ।

हरी खाद की फसल खरीफ के मौसम में उगाए जाने के कारण उस समय में अन्य फसलों का उगाना सम्भव नहीं हो जाता है।

जिससे किसान को दूसरी फसल से होने वाली आय से वंचित रहना पड़ता है ।

इन फसलों को उगाने से भूमि सतह पर विभिन्न प्रकार के कीट एवं बीमारियाँ पनप जाती हैं जो साथ में उगी हुई फसलों को हानि करते हैं ।

उपरोक्त सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए हरी खाद वाली फसलें किसानों में लोकप्रिय हो पाई हैं ।