सिंचाई किसे कहते है, सिंचाई की विधियां एवं उनके उद्देश्य, लाभ व सिद्धांत
सिंचाई किसे कहते है? ( What is irrigation in hindi )
फल वाले पौधों की वानस्पतिक वृद्धि एवं फलत दोनों के लिये पानी की आवश्यकता होती है । केवल वर्षा ऋतु को छोड़कर शेष दिनों में पौधों को सींचा जाता है ।
वर्षा ऋतु में भी जब वर्षा काफी अन्तर से होती है तो पौधों को आवश्यकतानुसार सिंचाई (Irrigation in hindi) देना लाभप्रद होता है, जैसे कि यदि फल - वृक्षों से फल गिर रहे हों तो पानी देने से उनका गिरना बन्द हो जाता है ।
सिंचाई की परिभाषा? ( Defination Of Irrigation in hindi )
सिंचाई की परिभाषा - "फसलोंत्पादन में प्राकृतिक रुप से जल की आवश्यकता पूर्ति नहीं हो पाती अतः पौधे की वृद्धि एवं विकास के लिए कृत्रिम रुप से पानी की व्यवस्था करनी पड़ती है, जिसे सिंचाई (Irrigation) कहते हैं, और जिन तरीकों से खेतों में पानी की पूर्ति की जाती है, उन पानी देने के तरीकों को सिंचाई की विधियां (Irrigation of methods) कहा जाता है।
जैसे :- कि आम के पौधों को यदि एक बार पानी न भी दिया जाये तो विशेष हानि नहीं होती है, लेकिन नींबू प्रजाति के पोध पानी के अभाव में सूखने लगते हैं ।
सिंचाई के उद्देश्य ? (Purposes of irrigation)
फसलों में सिंचाई निम्नलिखित उद्देश्य से की जाती है -
- मृदा में आवश्यक नमी की व्यवस्था हेतु
- उत्पादन को सुनिश्चित एवं फसलों को असामयिक सूखे के प्रकोप से बचाने हेतु
- वातावरण को पौधों की वृद्धि के अनुकूल बनाने हेतु
- मृदा के अंदर उपस्थित लवणों को घोलने एवं उन्हें मर्दा से बाहर निकालने हेतु
- भूमि की कठोर परतों को नम करने हेतु
- भूमि में बीज अंकुरण हेतु उपयुक्त नमी की व्यवस्था के लिए
सिंचाई के मूल सिद्धान्त( Principles of Irrigation )
सिंचाई के कुछ प्रमुख मूल सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं -
( i ) फसलों में नमी का स्तर बनाये रखना चाहिए, मृदा में जल का 60 प्रतिशत भाग नष्ट हो जाने पर पुनः सिंचाई कर देनी चाहिए ।
( ii ) धान के अलावा अन्य फसलों में एक घण्टे से अधिक पानी नहीं रुकना चाहिए इससे फसलों पर विपरीत हानिकारक प्रभाव पड़ता है ।
( iii ) सिंचाई करने से पहले खेत को समतल करके इसमें उचित प्रकार से क्यारी, मेड़, नाली बना लेनी चाहिए जिससे कम से कम पानी अधिक क्षेत्रफल की सिंचाई के लिए उपयोग हो सके ।
( iv ) सिंचाई के उपरान्त पानी की क्षति को रोकने के लिए नमी संरक्षण प्रविधि, पलवार या खरपतवार नियन्त्रण द्वारा कम करने के प्रयास होने चाहिए ।
( v ) सिंचाई प्रक्रिया इस प्रकार की होनी चाहिए जिसमें जल सम्पूर्ण नमी क्षेत्र में फैले इससे मृदा में वायु संचार, पोषक तत्त्व आपूर्ति, जीवाणु प्रजजन, पौधों में ऊतक, वृद्धि सम्बन्धी सहायता मिलती है ।
( vi ) सिंचाई के साथ कीटनाशकों का प्रयोग मितव्ययी होता है ।
( vii ) सिंचाई का कार्यक्रम जलवायु, मृदा नमी, को दृष्टिगत रखकर बनाना चाहिए ।
सिंचाई करने के सिद्धान्त ? ( Principles of Irrigation )
ये सभी बातें स्पष्ट रूप से नीचे दी गई हैं पानी देने की मात्रा तथा समय मिट्टी की किस्म के ऊपर निर्भर करता है ।
जैसे कि अगर भूमि चिकनी है तो एक बार में अधिक पानी चाहिये लेकिन बलुई मिट्टी में पानी की थोड़ी मात्रा कम अन्तर के साथ आवश्यक होती है, क्योंकि इसमें जल धारण करने की शक्ति कम होती है ।
प्रत्येक फल - वृक्ष को, उसकी वृद्धि के अनुसार अलग - अलग पानी की आवश्यकता होती है ।
उत्तर प्रदेश के मैदानी भाग में आम को लगाने के पाँच वर्ष पश्चात् अगर पानी न भी दिया जाये तो कोई विशेष हानि नहीं होती, लेकिन नींबू प्रजाति के फलों में पानी समय पर न देने से हानि होती है ।
ऐसे उद्यान जिनमें अन्तराशस्य ली जाती है, उनमें पानी की अधिक आवश्यकता होती है ।
अतः कम पानी की आवश्यकता महसूस होती है, अपेक्षाकृत ऐसे उद्यान के जो कि चारों तरफ से खुले हुए रहते हैं ।
ऐसे स्थान जहाँ वर्षा का परिमाण तथा वितरण ठीक होता है, आर्द्रता ( Humidity ) अधिक रहने से पानी की कम आवश्यकता होती है, अपेक्षाकृत ऐ न में जहाँ वर्षा अनियमित होती है ।
उदाहरण के लिये ;
पीलीभीत पहले वर्ग में आयेगा तथा इलाहाबाद दूसरे में । तापक्रम का प्रभाव भी सिंचाई की मात्रा एवं संख्या पर पड़ता है ।
अधिक तापक्रम वाले स्थान: जैसे - बनारस इत्यादि जहाँ गर्मियों में अधिक तापक्रम ( 1080 फै० ) ( 42 : 2°C ) हो जान से गर्मी अधिक पड़ती है, उद्यान में सिंचाई कम अन्तर से आवश्यक होती है तथा प्रति सिंचाई पानी की अधिक मात्रा भी खर्च होती है, अपेक्षाकत कम तापक्रम वाले स्थान,
जैसे देहरादून, जहाँ गर्मियों में तापक्रम 102° से . 104° फै० ( 39 से 40°C ) से कभी ऊपर नहीं जाता ।
उदाहरण के लिये ,
नींबू प्रजाति के उद्यान में मटर को आवरणशस्य के रूप में लेने से पानी की कम आवश्यकता होगी अपेक्षाकृत ऐसे उद्यान के जिसमें बरसीम की आवरणशस्य ली जाती है ।
जैसा कि उपर्युक्त स्पष्टीकरण दिया जा चुका है कि फल - वृक्षों की सिंचाई बहुत - सी बातों पर निर्भर करती है।
अतः इसके लिये कोई विशेष नियम नहीं बनाया जा सकता ।
सभी बातो को ध्यान में रखते हुए उद्यान कर्ता को स्वयं ही उद्यान में दी जाने वाली सिंचाई की मात्रा एवं उसके बीच के अन्तर के बारे में निर्णय लेना पड़ता है ।
पूर्ण विकसित पौधे को जब भूमि की सतह से नीचे लगभग 30 सेमी भूमि सूख जाये तो पानी देना चाहिये ।
सिंचाई में पानी की उतनी ही मात्रा देनी चाहिये जो मिट्टी को भिगोने के बाद अधिक समय तक पौधों के चारों तरफ न ठहरे ।
इन्हे भी देखें
सिंचाई की विधियां ( Methods of Irrigation in hindi )
सिंचाई की विधियां चार प्रकार की होती है -
2 . भूमिगत सिंचाई ( Sub - surface Irrigation )
3 . छिड़काव विधि ( Spriking Irrigation or Over Head Irrigation )
4 . ड्रिप अथवा ट्रिकिल सिंचाई विधि ( Drip or Tricle System of Irrigation )
1 . सतही सिंचाई ( Surface Irrigation )
( अ ) पानी को फैलाकर देना ( Flooding )
( ब ) क्षेत्र को सीमित रूप से क्यारी बनाकर सींचना ( Check Bed System )
( स ) बेसिन विधि ( Basin System ) (
द ) वलय विधि ( Ring System )
( य ) सीता विधि ( Furrow System )
( र ) कण्ट्रर विधि ( Contour System )
2 . भूमिगत सिंचाई ( Sub - surface Irrigation )
भूमिगत सिंचाई विधि से मुुख्यत: दो प्रकार से सिंचाई की जाती है, ये अति सरल एवं सुविधा जनक विधियां है।
( अ ) प्राकृतिक ( Natural )
( ब ) कृत्रिम ( Artificial )
3 . छिड़काव विधि ( Spriking Irrigation or Over Head Irrigation )
4 . ड्रिप अथवा ट्रिकिल सिंचाई विधि ( Drip or Tricle System of Irrigation )
सिंचाई की विधियाँ एवं उनके लाभ ( Methods of irrigation and their benefits )
1. सतही सिंचाई ( Surface Irrigation )
( अ ) फैलाकर पानी देना ( Flooding ) -
भूमि समतल नहीं होती है । इस विधि के दूसरे तरीके में भूमि को बड़े - बड़े टुकड़ों में बाँटकर पानी दिया जाता है । एक टुकड़ा भर जाने के बाद ही पानी दूसरे टुकड़े में खोला जाता है ।
फैलाकर पानी देना सिंचाई के लाभ
2 . पानी देने में कार्य - दक्ष मजदूर की आवश्यकता नहीं होती
फैलाकर पानी देना सिंचाई से हानियाँ
2 . किसी स्थान पर पानी अधिक व किसी स्थान पर कम पहुँचता है ।
3 . भूमि के प्रांगारिक पदार्थ ( Organic matter ) बहकर नीचे चले जाते हैं ।
4 . अधिक पानी भरने से पौधों को हानि होती है ।
5 . खरपतवारों की अधिक वृद्धि होती है ।
6 . पानी तने के सम्पर्क में रहने से छाल को हानि पहुँचती है ।
( ब ) क्यारी सिंचाई विधि ( Check - bed System ) -
प्रत्येक क्यारी का आकार समान होता है तथा प्रत्येक क्यारी में एक या दो फल वाले पौधे रखे जाते हैं ।
दो क्यारियों की पंक्ति के बीच में सिंचाई की एक नाली देकर मुख्य नाली से जोड़ दिया जाता है । सभी क्यारियों को एक - एक करके सींच देते हैं ।
![]() |
क्यारी सिंचाई विधि |
यह तरीका उन उद्यानों में अधिकतर अपनाया जाता है जहाँ पर उद्यान के अन्दर कोई आवरणशस्य ली जाती है जैसे माल्टा के उद्यान में बरसीम की आवरणशस्य लेना ।
इसमें पानी की अधिक मात्रा खर्च होती है तथा मिट्टी की बनावट को हानि पहुँचने की सम्भावना रहती है ।
क्यारी सिंचाई विधि के लाभ
2 . उद्यान में पानी समान रूप से दिया जाता है ।
3 . भूमि का प्रांगारिक पदार्थ ( Organic matter ) बहकर नष्ट नहीं हो पाता ।
4 . आवरणशस्य उत्पन्न किये जाने वाले उद्यान में हितकर सिद्ध होता है ।
क्यारी सिंचाई विधि से हानियां
2 . मेड़ों में अधिक भूमि घेर ली जाती है ।
3 . मिट्टी की बनावट को हानि पहुँचने की सम्भावना रहती है
( स ) बेसिन सिंचाई विधि ( Basin System ) -
पंक्ति की नाली का सम्बन्ध सिंचाई की मुख्य नाली से कर दिया जाता है ।
एक पंक्ति के पौधे सींचने के बाद पानी दूसरी पंक्ति की नाली में छोड़ दिया जाता है । इस प्रकार से पूरे बाग की सिंचाई कर दी जाती है ।
बेसिन सिंचाई विधि के लाभ
2 . पौधों की छोटी अवस्था में , जब उनकी जड़ें सीमित क्षेत्र में ही रहती हैं . यह तरीका लाभकारी सिद्ध होता है ।
3 . यह विधि ऐसी जगह अपनायी जा सकती है जहाँ की मिट्टी रेतीली ( Sandy ) होती है तथा पानी कम मात्रा में उपलब्ध रहता है ।
बेसिन सिंचाई विधि से हानियां
2 . पानी तने के सीधे सम्पर्क में रहता है जिससे उनकी छाल खराब हो जाती है ।
3 किसी विशेष पौधे को सींचने के लिये उसके पहले के सभी पौधों को अनावश्यक सींचना पड़ता है ।
4 . श्रम व पैसा अधिक लगता है ।
पौधों की दो पंक्तियों के बीच में एक सिंचाई की नाली देकर दोनों तरफ के पौधों को इस नाली से जोड़ दिया जाता है ।
पंक्तियों के बीच की नालियों का सम्बन्ध सिंचाई की मुख्य नाली से कर दिया जाता है ।
प्रत्येक पौधे के चारों तरफ थांवला बनाकर पौधे के तने के चारों तरफ कुछ मिट्टी चढ़ा दी जाती है , जिससे वे पानी द्वारा खराब न हो सकें ।
थाँवलों का आकार पौधे के फैलाव के अनुसार बढ़ाते जाते हैं ।
वलय सिंचाई विधि के लाभ
2 . पानी तने के सम्पर्क में नहीं रहता , जिससे वह खराब नहीं होता ।
3 . किसी विशेष पौधे को किसी भी समय सींच सकते हैं ।
4 . सभी पौधों को पानी पृथक् रूप से आवश्यकतानुसार दिया जा सकता है ।
वलय सिंचाई विधि से हानियां
2 . सिंचाई की नालियों एवं थांवलों में अधिक भूमि घेर दी जाती है ।
3 . श्रम व पूँजी अधिक व्यय होती है ।
( य ) सीता सिंचाई विधि ( Furrow System )
नालियों का आकार छिछला व चौड़ा होना चाहिये क्योंकि ऐसी नालियों द्वारा पानी का वितरण ठीक प्रकार से होता है तथा मिट्टी भी नहीं कट पाती है ।
नालियों में पानी को मंद गति से बहाया जाता है जिससे पौधों द्वारा पानी का शोषण सुचारु रूप से हो सके ।
अधिक लम्बी नालियाँ बनाने से सिरे पर पानी खराब पहुँचता है तथा खाद्य - पदार्थ बहकर नीचे चला जाता है ।
फल वाले छोटे पौधों की पंक्ति के दोनों ओर एक - एक फॅड बनाकर पानी बहाया जाता है ।
पौधों की पंक्ति के बीच फंडों की संख्या बढ़ाते जाते हैं । पौधे की जड़ें जिस कँड के पास होती हैं वहीं से पानी का शोषण कर लेती हैं ।
![]() |
सीता सिंचाई विधि |
सीता सिंचाई विधि के लाभ
सीता सिंचाई विधि से हानियां
2 . श्रम व पैसा अधिक खर्च होता है ।
( र ) कण्ट्रर सिंचाई विधि ( Contour System ) —
जब ऊपर का क्षेत्र भर जाता है तो पानी स्वतः ही नीचे उतरने लगता है । इस प्रकार पूरे क्षेत्र को सींच दिया जाता है ।
( 2 ) भूमिगत सिंचाई ( Sub - surface Irrigation )
( अ ) प्राकृतिक विधि से सिंचाई ( Natural ) -
( ब ) कृत्रिम विधि से सिंचाई ( Artificial ) -
इस प्रकार के पाइपों से जाने वाला पानी छिद्रों से निकल कर बाहर आता रहता है जिसका शोषण पौधों की जड़ों द्वारा होता रहता है ।
यह विधि अधिक खर्चीली होने के कारण केवल वहीं पर अपनाई जाती है जहाँ पर पानी बहुत ही कम मात्रा में उपलब्ध होता है ।
( 3 ) छिड़काव विधि ( Sprinking Irrigation or Over Head Irrigation )
इसमें पानी को छोटी - छोटी बूंदों के रूप में हजारे द्वारा छिड़क दिया जाता है ।
( 4 ) ड्रिप या ट्रिकिल विधि ( Drip or Tricle Irrigation )
इसमें पानी प्लास्टिक की नलिकाओं एवं वाल्व की सहायता से दिया जाता है जो पौधों के पास जुड़े होते हैं । पानी के साथ उर्वरक का घोल भी मिश्रित होकर पौधों को प्राप्त होता है ।
जिससे पौधों की वृद्धि अच्छी होती है तथा पानी की भी बचत होती है ।
Post a Comment
Please do not enter any spam link in the comment box.