धान, गेहूं, मक्का आदि प्रमुख फसलों में क्रांतिक अवस्था के समय सिंचाई करना

फसलों में क्रांतिक अवस्था वे अवस्थायें होती है, जब फसलों में सिंचाई करने या नहीं करने से  फसल की पैदावार प्रभावित होती है।

फसलों से अच्छी एवं आधिक उपज प्राप्त करने के लिए उन फसलों में क्रांतिक अवस्था पर विशेष ध्यान दिया जाता है ।

फसलों में क्रांतिक अवस्था पर सिंचाई करने से पैदावार में बढ़ोतरी होती है, परंतु ऐसा ना करने से पैदावार में कमी आ जाती है ।


फसलों में क्रांतिक अवस्था क्या है?

धान, गेहूं, मक्का आदि प्रमुख फसलों में क्रांतिक अवस्था के समय सिंचाई करना
धान, गेहूं, मक्का आदि प्रमुख फसलों में क्रांतिक अवस्था के समय सिंचाई करना

फसलों की क्रांतिक अवस्था किसे कहते है?


जब फसल एक निश्चित अवस्था में पहुंच जाती है, जहां उसे एक निश्चित मात्रा में जल की आवश्कता होती है, तो उसे उस फसल का क्रांतिक बिंदु या क्रांतिक अवस्था कहा जाता सकता है ।

फसलों में क्रांतिक अवस्था के समय सिंचाई करने से पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।

क्रांतिक अवस्था के समय सिंचाई न करने से फसल की उपज में गिरावट देखने को मिलती है, जब की सही क्रांतिक अवस्था के समय सिंचाई करने से पैदावार में बढ़ोतरी होती है ।


प्रमुख फसलों में क्रांतिक अवस्था के समय सिंचाई करना


1. धान की क्रांन्तिक अवस्थायें

धान की खेती के लिये अत्यधिक पानी की आवश्यकता होती है ।

यह अर्द्धजलीय पौधा है ।


धान की फसल में मुख्यतः चार क्रांतिक अवस्थायें (Critical Stages) होती है -

( i ) पौध अवस्था

( ii ) किल्ले निकलने की अवस्था

( ii ) बाली बनना

( iv ) पुष्पावस्था से दाना पुष्ट होने की अवस्था ।


धान की फसल में सिंचाई के लिए चार क्रांतिक अवस्थाएं होती है -

इन अवस्थाओं पर धान में सिंचाई की आवश्यकता होती है ।

धान के खेत में आवश्यक निश्चित गहराई तक पानी रुकना आवश्यक होता है ।

धान के खेत में 5 सेमी० खड़ा पानी लगाना चाहिये । जब पानी सूख जाये तो पुनः भर देना चाहिये ।


2. गेहूं की क्रांन्तिक अवस्थायें (Wheat critical Stages in hindi)


गेहूँ की जल माँग का अनुमान 180 से 120 मि० मीटर के मध्य लगाया गया है ।

पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिये गेहूं की फसल में 4 से 6 सिंचाईयाँ आवश्यक हैं ।

गेहूं की फसल में सिंचाई को जाड़ों की वर्षा काफी प्रभावित करती है ।

गेहूँ की फसल में सिंचाई क्रांतिक / संवेदनशील अवस्था (Critical / sensitive stage) पर करनी चाहिये ।


धान की फसल में सिंचाई के लिए छ: क्रांतिक अवस्थाएं होती है -

( i ) जड़ निकलने की अवस्था पर अथवा बोने के 20 - 25 दिन के बाद

( ii ) किल्ले फूटने की अवस्था बोने के 40 - 45 दिन बाद

( iii ) तने एवं गाँठ बनने की अवस्था पर 50 से 60 दिन के बाद

( iv ) पुष्पावस्था — 85 से 90 दिन बाद

( v ) दूधियावस्था - 100 से 105 दिन बाद

( vi ) दाने पुष्ट होने की अवस्था - 115 से 120 दिन बाद ।

इन सभी अवस्थाओं पर आवश्यकतानुसार सिंचाई आवश्यक है ।


3. मक्का की क्रांन्तिक अवस्थायें (Maize critical Stages in hindi)


मक्का की फसल के लिये पानी की कमी एवं पानी की अधिकता दोनों स्थिति नुकसानदायक होती हैं ।

मक्का की सिंचाई भूमि की किस्म एवं उगने के मौसम के अनुसार अन्तर आता है ।


मक्का की फसल में सिंचाई के लिए पांच क्रांतिक अवस्थाएं होती है -

( i ) वानस्पतिक वृद्धिकाल — यह फसल बोने के 20 से 40 दिन बाद तक होता है ।

( ii ) नर पुष्प निकलने की अवस्था

( iii ) रेशमी बाल निकलने की अवस्था

( iv ) तीव्र वानस्पतिक वृद्धि अवस्था

( v ) दूधियावस्था क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई की आवश्यकता होती है ।

सिंचाई के अभाव में उत्पादन में कमी आ जाती है ।

मक्के की फसल में 0.8 से 1.8 सिंचाई जल संचयी पैन वाष्पमाफी अनुपात पर सिंचाई करनी चाहिए ।


4. ज्वार की क्रांन्तिक अवस्थायें


यह सूखा अवरोधी फसल है ।

इसकी संकर किस्मों में सिंचाई लाभदायक है ।

इसकी फसल जल माँग 450 से 500 मी . मी . होती है ।

जलवायु एवं भूमि की किस्म के अनुसार इसमें अन्तर देखने में आता है ।


ज्वार की फसल में सिंचाई के लिए क्रांतिक अवस्थाएं -

पुष्पावस्था से पहले एवं दाना बनने की अवस्था पर होता है ।


5. दलहनी फसलों की क्रांन्तिक अवस्थायें


दलहनी फसलों की जड़ें सामान्यत: गहरी एवं विकसित होती हैं ।

अत: इन्हें धान्य फसलों की अपेक्षा कम सिंचाई की आवश्यकता होती है ।

खरीफ के मौसम में रबी की अपेक्षा अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है ।

इन फसलों में पुष्पावस्था और दाना बनते समय हल्की सिंचाई लाभदायक होती है ।


( i ) चना की क्रांन्तिक अवस्थायें

यह रबी मौसम की फसल है ।

इसमें जाड़े के मौसम में वर्षा न होने पर सिंचाई करना लाभदायक होता है ।

इसमें पुष्पावस्था से पूर्व ( लगभग 45 दिन बाद ) या पुष्पावस्था पर ( 70 दिन के बाद ) सिंचाई करना अच्छी उपज के लिये लाभदायक है ।


( ii ) अरहर की क्रांन्तिक अवस्थायें

लगातार लम्बे समय तक सूखे की स्थिति बने रहने की अवस्था में सिंचाई की आवश्यकता होती है ।

जाड़ों में वर्षा होने पर इसे सिंचाई की आवश्यकता नहीं रहती ।

इसमें पुष्पावस्था एवं दाना बनते समय सिंचाई करनी चाहिये ।

 

6. तिलहनी फसलों की क्रांन्तिक अवस्थायें


( i ) मूंगफली की क्रांन्तिक अवस्थायें

यह खरीफ मौसम में उगाई जाती है ।

इसकी जल सम्बन्धी आवश्यकता वर्षा जल से पूरी होती रहती है ।

शुष्क क्षेत्रों और हल्की भूमियों में दस दिन के अन्तर पर सिंचाई आवश्यक होती है ।

इसमें अधिकीलन अवस्था ( Pegging down stage ) नमी के लिये संवेदनशील होती है ।

इसकी जल माँग 500 से 700 मिमी . होती है ।


( ii ) सरसों एवं तोरिया की क्रांन्तिक अवस्थायें

सरसों में प्रारम्भिक वृद्धि काल में सिंचाई करने पर भूमि के अन्तर्गत जड़ों का फैलाव एवं संचित मृदा नमी का उपयोग होता है ।

इसमें पुष्पावस्था एवं फलियों के विकास के समय सिंचाई की आवश्यकता होती है ।

आंकड़ों के आधार पर सरसों की सिंचाई ( 0.8 सिंचाई जल संचयी पैन वाष्पमापी अनुपात पर करनी चाहिये ।


( iii ) सूर्यमुखी की क्रांन्तिक अवस्थायें

सूर्यमुखी एक ऐसी फसल है, जिसे वर्ष भर उगाया जा सकता है ।

यह दीप्तिकाल में असंवेदनशील होती है ।

इसकी फसल जल माँग 400 से 550 मि . मीटर होती है ।

शुष्क मौसम में 10 दिन के अन्तर पर सिंचाई की आवश्यकता होती है ।


सूर्यमुखी की फसल में सिंचाई के लिए क्रांतिक अवस्थाएं -


सूर्यमुखी की नमी संवेदनशील अवस्थायें - पुष्पकली बनने से पूर्व, पुष्पकली विकास के समय, बीज बनते समय होती हैं ।

इन अवस्थाओं पर नमी की कमी होने पर फसलों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।

वाष्पमापी के आधार पर इसकी सिंचाई 0.75 सिंचाई जल / संचयी पैन अनुपात पर करनी चाहिये ।


3. प्रमुख अन्य फसलों की क्रांन्तिक अवस्थायें


( i ) कपास की क्रांन्तिक अवस्थायें (Cotton critical stages)

कपास की फसल नमी संवेदनशील होती है ।

इसकी जल माँग 400 से 700 मी० मी० है ।

वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं में जल माँग में अन्तर आ जाता है ।

जलवायु सम्बन्धित आंकड़ों के आधार पर इसमें 0 - 6 से 0 - 75 सिंचाई जल / संचयी पैन वाष्पमापी अनुपात पर सिंचाई करनी चाहिये ।


( ii ) गन्ना की क्रांन्तिक अवस्थायें ( Sugarcane critical stages )

इस फसल में तना अत्यंत उपयोगी होता है ।

इस फसल को निरन्तर नमी की आवश्यकता होती है ।

गन्ने की कटाई से पहले कम मात्रा में सिंचाई करने  से गन्ने के रस में मिठास ( शर्करा ) बढ़ जाती है ।

गन्ने के पूर्ण वृद्धि काल में मृदा नमी स्तर 65 प्रतिशत बनाये रखना जरुरी होता है ।

इसकी सम्पूर्ण जल माँग 1800 से 2200 मि० मी० होती है ।


( iii ) चारे की फसलो की क्रांन्तिक अवस्थायें ( critical stages of fodder crops )

चारे की फसलों के अन्तर्गत बरसीम, लूसर्न, रिजका, नैपीयर घास, सूडान घास, गिनी घास आदि आती हैं ।

चारे की फसलों का सम्पूर्ण वानस्पतिक भाग उपयोगी होता है ।

इसे पर्याप्त मात्रा में जल आपूर्ति की आवश्यकता होती है ।

विभिन्न फसलों की जल माँग का स्तर अलग - अलग होता है ।

चारे की बहुवार्षिक फसलों से अधिक उपज लेने के लिये 0 - 75 सिंचाई जल / संचयी वाष्पमापी अनुपाते पर सिंचाई करनी चाहिये 


( iv ) तम्बाकू की क्रांन्तिक अवस्थायें ( Tobacco critical stages )

तम्बाकू की जड़े अधिक गहरी एवं फैली हुई होती हैं ।

इसके लिये अधिक मृदा नमी हानिकारक होती है ।

इसकी जल माँग 450 से 500 मि० मी . होती है ।

इसके लिये 8 से 10 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है ।

इसकी सिंचाई करते समय पानी की गुणवत्ता ( Quality ) पर ध्यान देना आवश्यक होता है ।