कृषि नियोजन (agriculture planning in hindi) एवं ‌कृषि विकास योजनाएं

पूर्व विचारित एवं सुनियोजित तरीके से कोई कार्य करना ही कृषि नियोजन (agriculture planning in hindi) है ।

कृषि नियोजन का अर्थ व्यवस्थित ढंग से कार्य करना है ।

इस प्रकार आर्थिक कृषि नियोजन (agriculture planning in hindi) आर्थिक क्षेत्र में पूर्व विचारित एवं सुनियोजित तरीके से आर्थिक लक्ष्य प्राप्त करना है ।


कृषि नियोजन क्या है - अर्थ एवं परिभाषा (defination and meaning agriculture planning in hindi)


कृषि नियोजन का सरल शब्दों में अर्थ है ।

विस्तार से अर्थ जानने के लिये कुछ परिभाषाओं को देखना होगा ।

अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक कृषि नियोजन (agriculture planning in hindi) की विभिन्न दृष्टिकोणों से परिभाषायें दी हैं -

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कृषि नियोजन (agriculture planning in hindi) एवं ‌कृषि विकास योजनाएं


( 1 ) डॉ० डाल्टन के अनुसार,

आर्थिक नियोजन अपने विस्तृत अर्थ में, विशाल साधनों के संरक्षक व्यक्तियों द्वारा निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु आर्थिक क्रियाओं का इच्छित निर्देशन करना ।

“Economic Planning, in its widest sense, is deliberate direction by persons incharge of large resources of economic activity towards chosen ends."


प्रो० वाटरसन के शब्दों में, 

नियोजन विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये श्रेष्ठतम उपलब्ध विकल्प का संगठित, सुविचारित और निरन्तर प्रयास है ।

 “Planning is an organised conscious and continual attempt to select the best available alternatives to achieve specified goals." - Prof. Waterson


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भारत में कृषि नियोजन क्यों जरूरी है?


भारतीय योजना आयोग के अनुसार - आर्थिक कृषि नियोजन निश्चित रूप से सामाजिक उद्देश्यों के हितार्थ उपलब्ध साधनों का संगठन तथा लाभ जनक रूप से उपयोग करने का एकमात्र ढंग है ।


नियोजन के इस विचार के दो प्रमुख तत्व हैं -

( अ ) वांछित उद्देश्यों का क्रम जिनकी पूर्ति का प्रयास करना है ।

( ब ) उपलब्ध साधनों और उनके सर्वोत्तम वितरण के सम्बन्ध में ज्ञान । 


परिभाषाओं के अध्ययन से यह कह सकते हैं, कि कृषि नियोजन (agriculture planning in hindi) से अर्थव्यवस्था के सभी अंगों को एकीकृत और समन्वित करते हये राष्ट के संसाधनों साथ में विवेकपूर्ण कार्यक्रम बनाने तथा आवश्यक नियन्त्रण एवं निर्देशन से है।

जिससे पर्व निर्धारित सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों को एक निश्चित समय में प्राप्त किया जा सके ।


कृषि नियोजन की विशेषतायें या लक्षण? Characteristics or characteristics of agricultural planning in hindi


उपर्युकत परिभाषाओं के आधार पर नियोजन के प्रमुख लक्षण निम्न हो सकते हैं  -

( 1 ) नियोजन आर्थिक संगठन और विकास की एक समन्वित प्रणाली है । 

( 2 ) नियोजन की समस्त प्रक्रियाओं पर केन्द्रीय नियोजन सत्ता का नियन्त्रण रहता है । 

( 3 ) नियोजन में आर्थिक लक्ष्यों एवं प्राथमिकताओं को निर्धारित किया जाता है । 

( 4 ) लक्ष्यों की प्राप्ति एक निश्चित अवधि में प्राप्त करने का प्रयास होता है । 

( 5 ) नियोजन एक दीर्घकालीन प्रक्रिया ( Long - term Process ) है । 

( 6 ) अर्थव्यवस्था में नियन्त्रण प्रायः अनिवार्य होता है । 

( 7 ) नियोजन की सफलता हेतु जन सहयोग जरूरी है ।

 

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कृषि विकास योजनाएं एवं भारत में कृषि नियोजन उपलब्धियां 


पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि विकास विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि विकास का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है -


प्रथम पंचवर्षीय योजना ( 1951 - 56 ) -

प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि नियोजन (agriculture planning in hindi) को सर्वोच प्राथमिकता प्रदान की गई थी ।

इस योजना पर कुल 1960 करोड़ रुपये व्यय किये गये, जिसमें से कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्रों के विकास पर 289.9 करोड़ रुपये तथा सिंचाई, बाढ़ नियन्त्रण तथा शक्ति के साधनों पर 582.9 करोड़ रुपये व्यय किये ।

अनुकूल परिस्थितियों और समुचित प्रयासों के फलस्वरूप कृषि के उत्पादन में उत्साहजनक वृद्धि हुई ।

कुल मिलाकर कृषि पदार्थों के उत्पादन में 17 % की वृद्धि हुई ।

कृषि उत्पादन का सूचकांक ( 1950 - 51 = 100 ) 122 • 2 पर तथा उत्पादकता का सूचकांक ( 1905 - 51 को आधार वर्ष मानकर ) 107.3 पर पहुँच गया ।

परिमाणात्मक मूल्यों में खाद्यान्न का उत्पादन 1955 - 56 में 638 लाख टन हुआ, जबकि 540 लाख टन का था ।

इसके अतिरिक्त, सिंचित क्षेत्र 155 लाख एकड़ से बढ़कर 592 लाख एकत्र हो गया और विद्युत उत्पादन क्षमता 23 लाख किलोवाट से बढ़कर 34 लाख किलोवाट हो गई । 

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है, कि प्रथम योजनावधि में कृषि की प्रगति पर्याप्त उत्साहवर्द्धक थी ।

प्रथम पंचवर्षीय योजना कृषि के सुनियोजित विकास की दिशा में पहली कड़ी थी ।


अतः इसमें कुछ दोष अवश्य रह गये -

( 1 ) विभिन्न फसलों के विकास के लिये कोई निश्चित व्यापक योजना नहीं बनाई गई । 

( 2 ) कृषि के विकास हेतु आवश्यक संस्थागत परिवर्तनों ( Institutional Changes ) पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया । 

( 3 ) कृषि जोतों के लघु आकार, उपविभाजन एवं अपखण्डन से सम्बन्धित पहलू पर भी गम्भीरता से विचार नहीं हुआ । 

( 4 ) सहकारी कृषि के क्षेत्र में आशानुकूल सफलता प्राप्त नहीं हुई ।


द्वितीय पंचवर्षीय योजना ( 1956 - 61 ) -

द्वितीय पंचवर्षीय योजना मूलत: उद्योग - प्रधान थी ।

कृषि को इसमें द्वितीय प्राथमिकता दी गई । इस योजना पर कुल 4,672 करोड़ रुपये व्यय हुये, जिसमें से 549 करोड़ रु. कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों तथा 882 करोड़ रुपये सिंचाई, बाढ़ - नियन्त्रण एवं शक्ति के साधनों पर व्यय किये गये । 

द्वितीय पंचवर्षीय योजना के उपरान्त यद्यपि उत्पादन का सूचकांक 142 - 4 पर तथा उत्पादकता का सूचकांक 117.5 पर पहुँच गया तथा खाद्यान्न तथा गन्ना उत्पादन के अतिरिक्त कृषि उत्पादन के किसी भी लक्ष्य की पूर्ति नहीं हुई ।

इस योजना में सिंचित क्षेत्र का लक्ष्य भी पूरा न हो सका । सिंचित क्षेत्र का लक्ष्य 880 लाख एकड़ निर्धारित किया गया था, जबकि उपलब्धि केवल 700 लाख एकड़ की ही हो सकी ।

सामुदायिक विकास खण्डों का विस्तार भी पूर्व निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप न हो सका, लेकिन कृषि साख व सहकारिता के क्षेत्र में सराहनीय प्रगति हुई ।

इस अवधि में संस्थागत परिवर्तनो पर भी विशेष जोर दिया गया ।

इस योजना के अधिकांश लक्ष्यों को पूर्ति न होने के लिये प्रतिकूल प्राकृतिक परिस्थितियों के साथ - साथ सुनियोजित कार्यक्रम तथा कृषि पड़त ( Agricultural Inputs ) के अभाव को दोषी माना जा सकता है ।


तृतीय पंचवर्षीय योजना ( 1956 - 66 ) –

तृतीय पंचवर्षीय योजना में कृषि को पुनः प्राथमिकता प्रदान की गई ।

योजना आयोग ने कृषि के सर्वोत्तम महत्व को स्वीकार करते हुये यह कहा था कि  "तृतीय पंचवर्षीय योजना की सफलता मुख्य: कृषि की सफलता पर निर्भर है ।"

तृतीय पंचवर्षीय योजना पर कुल 8,577 करोड़ रु० व्यय हुये, जिसमें से 6,581 करोड़ रुपये कृषि व सम्बद्ध क्षेत्र पर तथा 1,916 करोड़ रुपये सिंचाई, बाढ़ - नियन्त्रण व शक्ति पर खर्च किये गये ।

कृषि उत्पादन सम्बन्धी कार्यक्रमों में सिंचाई, भूमि - संरक्षण, उर्वरकों के प्रयोग, बीज बहुगुणन व वितरण, पौधे संरक्षण व उन्नत कृषि उपकरणों एवं वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग पर विशेष बल दिया गया ।

परन्तु लक्ष्यों की प्राप्ति न हो सकी । 

वस्तुतः तृतीय पंचवर्षीय योजना के परिणाम अत्यन्त निराशाजनक रहे 1956 - 66 मे कृषि उत्पादन का सूचकांक 144.7 तथा उत्पादकता का सूचकांक 117.9 था ।

तृतीय पंचवर्षीय योजना की असफलता में प्रकृति का महत्वपूर्ण हाथ तो था ह , परन्तु साथ ही कृषि - कार्यक्रमों की अव्यावहारिक योजना - निर्माताओं के दृष्टिकोण तथा सरकार की कृषि के प्रति उदासीनता का भी भुलाया नहीं जा सकता ।

चीन तथा पाकिस्तान के आक्रमणों ने भी कृषि विकास के माग में रोड़ा अटकाया ।

परिमाणतः देश की खाद्य स्थिति गम्भीर हो गई और करोड़ों रुपये का अन्न विदेशों से आयात करना पड़ा ।


वार्षिक योजनायें ( 1966 - 69 ) -

तृतीय पंचवर्षीय योजना की असफलताओं के कारण कृषि पर पुन: ध्यान केन्द्रित हुआ । कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई ।

वार्षिक योजनाओं में व्यय की स्थिति इस प्रकार रही तालिका - कृषि पर व्यय ( करोड़ रुपये में ) कृषि व सम्बद्ध क्षेत्र सिंचाई बाढ़ नियन्त्रण वार्षिक योजना कुल व्यय पर व्यय व शक्ति पर व्यय 1966 - 67 2, 164.5334, 2553.1 1967 - 68 2, 089.7 317.9 536 - 4 1968 - 69 2,421 - 8 515.8 462 . 9 वार्षिक योजनाओ के फलस्वरूप 1968 - 69 में उत्पादन सूचकांक ने 167.7 तथा उत्पादकता सूचकांक ने 131.2 की सीमा को छू लिया ।

विभिन्न वर्षों में खाद्यान्न उत्पादन की वास्तविक स्थिति इस प्रकार रही 1966 - 67 1967 - 68 1968 - 69 742 टन 742 टन 742 टन कृषि क्षेत्र की इस महत्वपूर्ण उपलब्धि, जिसे 'हरित क्रान्ति' के नाम से भी पुकारा जाता है के लिये सघन कृषि कार्यक्रम, अधिक उपज वाले बीजों का प्रयोग, बहुफसल कार्यक्रमों ( Multiple Cropping Programme ) का विस्तार नई कृषि नीति आदि अनेक तत्व सामूहिक रूप से उत्तरदायी हैं ।

वार्षिक योजनाओं की इस उपलब्धि ने चतुर्थ योजना के लिये ठोस आधार प्रस्तुत किया ।


चतुर्थ पंचवर्षीय योजना ( 1969 - 74 ) -

खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्म - निर्भरता प्राप्त करने के दृष्टिकोण से चतुर्थ पंचवर्षीय योजना में कृषि को पुन: उच्च प्राथमिकता प्रदान की गई ।

इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्र पर व्यय की जाने वाली राशि का 17.1 % भाग ( अर्थात् 2,728 करोड़ रुपये ) कृषि जिसमें कृषि अनुसन्धान, भूमि - क्षरण, पशुपालन, हल्क सिंचाई योजना, दुग्ध मछली - पालन, वन, पशु - पालन, विकास शामिल हैं, के विकास के लिये निर्धारित किया गया था ।

कुल राशि का 6.8 % भाग अर्थात् 1,087 करोड़ रुपये की व्यवस्था सिंचाई व बाढ़ - नियन्त्रण हेतु की गई है ।

अन्न के क्षेत्र में आत्म - निर्भरता प्राप्त करने के लिये उत्पादन व्यय 1,290 लाख टन ( 1975 - 77 के लिये निर्धारित किया गया ) ।

चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के उत्तरार्द्ध में हमारी प्रगति लक्ष्यों से कहीं कम रही । विकास की दर 5.69 वार्षिक के स्थान पर केवल 3.9 % मात्र रही ।


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कृषि विकास कार्यक्रम - 

चतुर्थ पंचवर्षीय योजना में लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कृषि से सम्बन्धित विकास कार्यक्रम इस प्रकार अपनाये गये है -

( i ) सघन कृषि कार्यक्रम पर बल दिया गया । 

( ii ) लघु सिंचाई कार्यक्रमों को अधिक महत्व दिया गया । 

( iii ) खेती की उपज बढ़ाने के लिये अधिक उपजाऊ किस्म के बीजों और बहुफसल कार्यक्रमों का सहारा लिया गया ।

( iv ) छोटे किसानों तथा श्रमिकों के लाभार्भ लघु कृषक विकास एजेन्सी योजना ( SFDA ) तथा सीमान्त कृषक और कृषि श्रमिक योजना ( MFAL ) आदि चलाई गई । 

( v ) व्यापारिक फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिये एकमुश्त कार्यक्रम तय किये गये । 

( vi ) खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये नवीन तकनीक तथा शोध - कार्य किये गये । 

( vii ) रासायनिक खाद, कृषि - यन्त्र तथा ऋण - सुविधाओं का विस्तार किया गया । 

( viii ) भू - सुधार कार्यक्रमों के प्रभावशाली क्रियान्वयन पर जोर दिया गया । 

( ix ) सहकारिता को सुदृढ़ एवं विस्तृत किया गया तथा उन्हें वित्त, संगठन तथा प्रशिक्षण इत्यादि में सरकार द्वारा सहायता प्रदान की गई । 

( x ) सामुदायिक विकास योजना को सुदृढ़ बनाया गया । 

( xi ) कृषि - साख की मात्रा में विस्तार किया गया ।


पाँचवीं पंचवर्षीय योजना ( 1974 - 78 ) -

कृषि क्षेत्र में 4.67 % वार्षिक वृद्धि दर को प्राप्त करने के लिये घटकों पर बल दिया गया । 

( i ) भूमि - सुधार उपायों का क्रियान्वयन । 

( ii ) कृषि मूल्य नीति का संचालन । 

( iii ) जल और भूमि के प्रबन्ध की उचित व्यवस्था ।

( iv ) रासायनिक खाद के प्रयोग में वृद्धि । 

( v ) संस्थागत साख और प्रमाणित बीजों की उपलब्धि का विस्तार आदि ।


कृषि नियोजन या योजनाओ का योजनाकाल


क्षेत्र में कुल 4,643.59 करोड़ रुपये तथा सिंचाई व बाढ़ - नियन्त्रण पर 3,440.1 करोड़ व्यय किये गये ।


पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में कृषि से सम्बन्धित लक्ष्य इस प्रकार निर्धारित किये गये -

( i ) कुल मिलाकर 1.1 करोड़ हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र में खेती प्रारम्भ करना । 

( ii ) कृषि अनुसन्धान के क्षेत्र में इस प्रकार लक्ष्य निर्धारित किये गये - पैदावार काफी बढ़ाकर खाद्यान्नों उपज बढ़ाया जाना  भूमि और जल का वैज्ञानिक ढंग से उपयोग करना, उर्वर भूमि की देखभाल और इसे उपजाऊ बनाये रखना, निर्यात की जाने वाली फसलों की किस्म और उपज में सुधार करना । 

( iii ) 25,500 कृषि, 4,200 पशु - चिकित्सा तथा 1,400 कृषि इन्जीनियरिंग स्नातक बनाना और कृषि - शिक्षा संस्थायें खोलना । 

( iv ) रासायनिक खाद की खपत बढ़ाकर 50 लाख टन करना । 

( v ) अच्छी किस्म के बीजों के क्षेत्रफल को 400 लाख हेक्टेयर करना । 

( vi ) कीटनाशक पदार्थों की खपत 45 हजार टन से बढ़ाकर 74 हजार टन करना । 

( vi ) 90 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उर्वरा भूमि और पानी के संरक्षण पर ध्यान दना । 

( viii ) 670 बाजारों को नियमित करना ।

( viiii ) अधिकाधिक संस्थागत साख उपलब्ध कराना ।


छठी पंचवर्षीय योजना ( 1980 - 85 ) -

इसमें कृषि विकास पर विशेष बल दिया गया । सार्वजनिक क्षेत्र के कुल परिव्यय 97,500 करोड़ रु. में से 5,695.07 करोड़ रु. कृषि तथा 12160.03 करोड़ रु. सिंचाई व बाढ़ नियन्त्रण पर व्यय किये जाने का लक्ष्य रखा गया ।


मुख्य उद्देश्य इस प्रकार थे -

( i ) अब तक प्राप्त लक्ष्यों को समन्वित करना ।

( ii ) भू - सुधार कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की गति तेज करना । 

( iii ) अधिकाधिक किसानों व कृषि क्षेत्र में नये तकनीकी लाभों का विस्तार करना तथा कृषि प्रबन्ध की कुशलता को बढ़ाना । 

( iv ) ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि के विकास द्वारा आय व रोजगार में वृद्धि करना । 

( v ) उपलब्ध जल - शक्ति का उचित प्रयोग करना ।

( vi ) उत्पादन, वितरण, संग्रहण एवं विवरण सुविधायें उपलब्ध कराकर उत्पादक व उपभोक्ता दोनों के ही हितों की सुरक्षा करना । 

( vii ) किसानों को सरल व सस्ती दर पर साख सुविधायें उपलब्ध कराना । 

( viii ) विभिन्न प्रकार की कृषिगत आदाओं को उपलब्ध कराना ।


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सातवीं पंचवर्षीय योजना ( 1985 - 90 ) -

इसमें कृषि के विकास पर सार्वजनिक क्षेत्र में कुल 10,573.62 करोड़ रु. तथा सिंचाई एवं बाढ़ नियन्त्रण पर 16,978.65 करोड़ रु० व्यय किये जाने का प्रावधान था ।

उत्पादन के मुख्य लक्ष्य इस प्रकार थे  सातवीं पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र में विकास दर का लक्ष्य 4% वार्षिक निर्धारित किया गया था ।

योजना के प्रथम वर्ष में विकास दर 2.4 % रही, किन्तु प्राकृतिक आपदाओं के कारण यह दर 1986 - 87 में 3.7 % और 1987 - 88 में 0.8% रही ।

1988 - 89 में स्थिति में कुछ सुधार हुआ और कृषि उत्पादन में 20.8 % की वृद्धि हुई । 1989 - 90 में पुनः यह 1 % रह गई ।

कृषिगत विकास की दिशा में नये कार्यक्रम है।

( 1 )  1985 - 86 में असम, बिहार , उड़ीसा  पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश व पूर्वी मध्य प्रदेश के 430 खण्डो में विशिष्ट चावल उत्पादन कार्यक्रम लागू किया गया । 

( 2 ) तिलहन विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत तीन कार्यक्रम शामिल किये गये हैं।

( i ) राष्ट्रीय तिलहन विकास कार्यक्रम । 

( ii ) तिलहन पर टेक्नोलॉजी मिशन । 

( iii ) तिलहन के उत्पादन पर जोर देने के प्रोजेक्ट ।

( iv ) वर्षा पर आश्रित या सूखी कृषि के विकास के लिये 16 राज्यों के 99 जिलों म राष्ट्रीय जलशेड विकास कार्यक्रम आरम्भ किया गया है ।


आठवीं पंचवर्षीय योजना ( 1992 - 97 ) -

इस योजना में कृषि क्षेत्र में विकास दर का 43.1 % वार्षिक निर्धारित किया गया ।

योजना में सार्वजनिक क्षेत्र में कृषि व सम्बद्ध क्रियाओं पर कुल मिलाकर 22,467.1 करोड़ रु. व्यय किये जाने का अनुमान है ।


योजना के कृषि के क्षेत्र में मुख्य उद्देश्य इस प्रकार है -

( i ) बढ़ती हुई माँग के अनुरूप कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करना । 

( ii ) किसानों की आय में अभिवृद्धि करना । 

( iii ) कृषि उत्पादों को निर्यात को बढ़ाना । 

( iv ) उन क्षेत्रों में कृषि उत्पादन की वृद्धि - दर को बढ़ाना, जिनकी वृद्धि - दर अपेक्षाकृत कम रही है ।

( v ) स्थानीय समस्याओं के अनुकूल तकनीक को विकसित करना । 

( vi ) कृषि से सम्बद्ध क्रियाओं के विकास पर बल देना ।

( vii ) ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी व अर्द्ध - बेरोजगारी को कम करना । 

( viii ) कृषि क्षेत्र में शोध एवं अनुसन्धान को प्रोत्साहित करना । 

( ix ) कृषि विपणन व्यवस्था में सुधार करना । 

( x ) भू - सुधार अधिनियम को अधिक प्रभावी ढंग से लागू करना ।


नवी पंचवर्षीय योजना ( 1997 - 2002 ) -


इस योजना में भारत में कृषि विकास की रक्षा नीति के प्रमुख तत्व इस प्रकार थे -

( i ) भूमि की वैज्ञानिक विधि से प्रबन्ध व्यवस्था ।

( ii ) कृषि उत्पादन प्रणालियों में विविधता लाना ।

( iii ) वर्षा सिंचित क्षेत्रों के लिये 'राष्ट्रीय वाटर शेड' विकास कार्यक्रम का पुनर्गठन करना । 

( iv ) रासायनिक उर्वरकों के प्रभावशाली ढंग से उपयोग, अपशिष्ट पदार्थों का पुनः इस्तेमाल और उजैव उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देना । 

( v ) कृषि से सम्बद्ध सहायक कार्यकलापों को प्रोन्नत करना । 

( vi ) शुष्क खेती को बढ़ावा देना । 

( vii ) विपणन सम्बन्धी आधारभूत सुविधाओं का विस्तार करना तथा विद्यमान भण्डार सुविधा में विस्तार करना । 

( viii ) कृषि आधारित उद्योगों को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाना । 

( ix ) निर्यात के लिये फलों, फूलों व सब्जियों का विकास करना । 

( x ) पंचायती राज संस्थानो एवं सहकारिताओं को सुदृढ़ बनाना । 

( xi ) भू - सुधार कार्यक्रमो को तेजी से क्रियान्वित करना । 

( xii ) महत्वपूर्ण कृषि फसलों के लिये वसूली मूल्य और समर्थन कीमतों का युक्तिपूर्ण ढंग से निर्धारण करना । 

( xiii ) कृषि वित्त के लिये समुचित व्यवस्था करना ।


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दसवीं पंचवर्षीय योजना ( 20202 - 07 ) -

इस योजना में 8% प्रतिशत की औसत वृद्धि की परिकल्पना की गई है । दसवीं योजना में समानता एवं सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है ।


समानता एवं सामाजिक न्याय की इस कार्य - 

प्रणाली में कृषि विकास को योजना का केन्द्रीय तत्व बनाना, उन क्षेत्रों की त्वरित वृद्धि को सनिश्चित करना जिनेक द्वारा लाभकारी रोजगार अवसरों का सृजन करने की सर्वाधिक सम्भावना है ।

लक्ष्य समूहों पर लक्षित विशेष कार्यक्रमों से संवृद्धि के प्रभाव को बढ़ाना शामिल है ।

दसवीं योजना के लिये प्रस्तावित कुल परिव्यय वर्ष 2002 - 02 की कीमतों पर 19,68.815 करोड़ रु. है  जिसमें से 58, 933 करोड़ रु. ( 3.9% )


कृषि तथा सम्बन्ध कार्य - 

कलापों पर 1, 2 , 928 करोड़ रु. ( 8.0% ) ग्रामीण विकास कार्यक्रमों पर 20,879 करोड़ रु० ( 1.4 % ) विशेष क्षेत्र कार्यक्रमों पर तथा 1,03.315 करोड़ रु. ( 6.8% ) सिंचाई एवं बाढ़ नियन्त्रण पर व्यय किये जायेंगे ।