पौधशाला क्या है इसके लाभ, उद्देश्य एवं उत्तम पौधशाला तैयार करने की विधियां

उस स्थान अथवा क्षेत्र को पौधशाला (plant nursery in hindi) कहते है, जहाँ स्थाई अन्तिम रोपण से पूर्व नर्सरी तैयार की जाती है ।

पौधशाला में क्यारियाँ (बीज बोने व प्रतिरोपण के लिये), रास्ते, नालियाँ आदि होती हैं ।

पौधशाला प्रबन्धन के लिए व्यक्ति में कृषि एवं बागवानी के तकनीकी गुणों के साथ - साथ पौधों एवं प्रकृति के प्रति प्रेम एवं धैर्य का गुण भी होना चाहिए ।

व्यवहारिक रूप से पौधशाला (plant nursery in hindi) के अंतर्गत बीजों, कलमों एवं अन्य विधियों से पौधों को अंकुरित किया जाता है, उगाया जाता है एवं तदुपरांत अन्यत्र रोपण तक विकसित किया जाता है । 


पौधशाला क्या है अर्थ एवं परिभाषा (defination and meaning plant nursery in hindi)

पौधशाला (plant nursery in hindi) क्या है इसके लाभ, उद्देश्य एवं उत्तम पौधशाला तैयार करने की विधियां, नर्सरी क्या है, नर्सरी को पौधशाला में कैसे तैयार
पौधशाला (plant nursery in hindi)

सामान्यतया कृषि वानिकी के लिये पौध, पौधशाला (plant nursery in hindi) में तैयार की जाती है ।

इसलिए कृषि वानिकी के लिये पौधशाला अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ।

अगर आप के पास थोड़ी सी जमीन है, और आप ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते है तो पौधों की नर्सरी बेहतर विकल्प हो सकती है।

पौधशाला बनाने में लागत कम लेकिन देखभाल काफी करनी पड़ती हैं ।


पौधशाला की परिभाषा? definition of plant nursery in hindi


पारिभाषिक रूप से विकीपीडिया - द फ्री इनसाइकोपीडिया (Wikipedia - The Free Encyclopedia) के अनुसार,

“पौधशाला वह स्थान है, जहाँ पौधों को उगाया एवं काम में आने लायक आकार तक बढ़ाया जाता है ।"

"A nursery is a place where plants are propagated and grown to usable size."


पौधशाला के क्या उद्देश्य है? (purpose of plant nursery in hindi)


पौधशाला (plant nursery in hindi) के निम्नलिखित उद्देश्य है -

( i ) स्वस्थ व ओजस्वी पौधे तैयार करना । 

( ii ) पौध उगाने की जानकारी न रखने वाले व्यक्तियों की आवश्यकता की पूर्ति हेतु पौध तैयार करना ।

( iii ) सड़कों व रास्तों आदि के किनारे वृक्षारोपण सफलतापूर्वक तभी सम्भव है जबकि बड़े तथा कठोर पौधे, पौधशाला से प्राप्त कर लगाये जायें ।

( iv ) कुछ प्रजातियाँ बहुत धीरे - धीरे उगती हैं । यदि ऐसी प्रजातियों के बीज सीधे स्थाई रोपण के स्थान पर बो दिये जायें तो पौधो को खरपतवार दबा लेंगे तथा पौधों के मरने की सम्भावना अधिक रहेगी ।

( v ) विदेशी प्रजातियों जैसे - चीड़, युकेलिपटस, पोपलर आदि के प्रवेश के लिये, उनकी प्रारम्भिक वृद्धि की पौधशाला में ही देखभाल की जा सकती है

( vi ) बहुत सी प्रजातियों को यदि सीधे स्थाई स्थान पर बोया या लगाया जाता है तो वे अपेक्षाकृत अच्छी प्रकार से वृद्धि नहीं करती हैं ।

( vii ) खराब या कमजोर भूमि में स्थाई रोपण के लिये पौधशाला में ही पौध तैयार करके स्थाई स्थान पर लगाना सफल रहता है ।

( viii ) जिन प्रजातियों में प्रतिवर्ष बीज नहीं बनत । या जिनके बीजों को भण्डारण करना कठिन है या जिन बीजों की जीवन क्षमता बहुत शाघ्र समाप्त हो जाती है । पौधशाला में उगाई गई पौध से ही प्रत्येक वर्ष प्राप्ति सम्भव है।


पौधशाला का वर्गीकरण (classification of plant nursary in hindi)


पौधशाला (plant nursery in hindi) को समय की अवधि के अनुसार दो वर्गों में विभाजित की जा सकती है -


( अ ) अस्थाई पौधशाला 

इस प्रकार की पौधशाला, अल्प अवधि के लिये पौध की पर्ति हेतु स्थापित की जाती हैं और इसके पश्चात् बन्द कर दी जाती हैं ।

इन्हें खेत पौधशाला भी कह सकते रोपण क्षेत्र के निकट बनाई जाती हैं ।

चूंकि ये सीमित क्षेत्र की आवश्यकता की पूर्ति के लिय बनाई जाती हैं, इसीलिये सामान्यतया छोटी होती है ।


अस्थाई पौधशाला से लाभ

पौधशाला ये अवरोध रहित स्थानपर, जिसमें पर्याप्त हयूमस होती है, बनाई जाती है । 

अत: खाद देने की आवश्यकता नहीं होती है ।

नर्सरी सामग्री बिना किसी विशेष क्षति के सुगमतापूर्वक कम खर्चे तथा समय में रोपण स्थान पर पहुंच जाती है ।


अस्थाई पौधशाला से हानियाँ 

यदि यह अनपयक्त भूमि पर बनाई जाती है तो समुचित देखभाल सम्भव नहीं है । 

स्थाई पौधशाला की अपेक्षा इसके रखरखाव पर अधिक खर्चा आता है ।


( ब ) स्थाई पौधशाला 

इस प्रकार की पौधशाला, लम्बी अवधि के लिये, रोपण सामग्री की पूर्ति हेतु होती है ।

यह सामान्यता ऐसे स्थानों पर स्थापित की जाती हैं, जहाँ से सभी सम्भावित रोपण स्थानों को सुगमतापूर्वक पौध भेजी जा सके ।

इसका क्षेत्र बड़ा होता है और इसमें अधिकांश प्रजातियों की पौध तैयार की जानी चाहिये ।

शुष्क क्षेत्रों में उपयुक्त जल की उपलब्धता विशेष महत्त्व रखती है ।


सिंचाई की सुविधानुसार भी पौधशाला (plany nursery in hindi) को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है -

( i ) शुष्क अथवा असिंचित पौधशाला एवं
( ii ) तर अथवा सिंचित पौधशाला ।


पौधशाला के लाभ (advantages of plant nursary in hindi)


पौधशाला (plant nursery in hindi) के निम्न प्रमुख लाभ हैं - 

( 1 ) पौधशाला एक छोटे किन्तु सघन क्षेत्र में नई कोमल पौधों की देख - रेख करने में सुगमता रहती है ।

( 2 ) नवांकुरित पौधे अधिक नाजुक होते हैं, जो कीड़ो एवं बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं । इनकी रक्षा का पौधशाला में उचित समय पर उपचार किया जा सकता है ।

( 3 ) बीजांकुरण एवं कलम लगाने के लिए पौधशाला में अनेक प्रकार से अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण किया जा सकता है ।


जैसे - ताप नियंत्रण के लिए कांच - घर ( Glasshouse ) का निर्माण एवं सिंचाई के लिए फौव्वारा सिंचाई विधि (Irrigation Method in hindi) का प्रयोग आदि ।

( 4 ) पौध घर मे तैयार की गई पौध को खेतों में प्रतिरोपित करने से पूर्व उनकी कुछ समय तक प्रतिकूल परिस्थितियों से सुरक्षा करके उनकी जीवन प्रत्याशा को बढ़ाया जा सकता है । साथ हा अगेती फसलों का अंकुरण एवं विकास कर बाजार से अधिक अच्छे दाम प्राप्त किये जा सकते हैं । 

( 5 ) पौधशाला में कम भूमि में अधिक मात्रा में पौधे तैयार किये जाते है । इससे पौध के तैयार होने तक का समय खेत में अन्य फसलों को मिल जाता है । जिससे खेतों में अधिक फसल उगाना एवं खेत को आगामी फसल हेतु भली - भाँति तैयार करना सरलतापूर्वक हो जाता है ।

( 6 ) पौधशाला में क्योंकि बीजांकरण दर अधिक होती है एवं पौधों की मृत्युदर कम हो जाता है इसलिए कम बीज से अधिक पौधों को उगाना सरल हो जाता है । इससे बीज की बचत है । इसलिए विशेष रूप से ऐसी स्थिति में कि जब पौधों के बीज महंगे होते हैं पौधशाला से अत्यधिक लाभ होता है ।

( 7 ) पौधशाला में पौधों की देखभाल के लिए कम खाद की आवश्यकता होती तथा कम उत्तम सिंचाई हो जाती है । इसलिए यह एक उपयोगी, सुघड़ एवं संसाधनों की दृष्टि से कम खर्चीली विधि है ।


एक अच्छी पौधशाला तैयार करने की विधि (method of preparing a good nursary in hindi)


पौधशाला को ऐसे स्थान पर बनाया जाना चाहिए जहाँ रोपण क्षेत्र के मध्य मजदूरों के आने - जाने एवं सिंचाई की समुचित सुविधा हो ।

पौधशाला की मृदा बलुई दोमट हो एवं अच्छा जल निकास हो साथ ही उष्ण - शुष्क स्थानों को छोड़कर पौधशाला पर बड़े वृक्षों की छाया नहीं होनी चाहिये ।

पौधशाला का क्षेत्र, उगायी जाने वाली प्रजातियों की संख्या पौधशाला में पौधे रखने की आयु तथा कितनी बार पौधों को बदला जायेगा, पर निर्भर करता है ।

इसके अतिरिक्त क्षेत्र में 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी, रास्तों, सड़क, नालियों, कुआँ व भवन आदि के लिये कर लेनी चाहिये । 

एक हैक्टेअर क्षेत्र वाली यूकेलिपटस की पौधशाला में सुगमतापूर्वक 3.5 से 4 लाख पौधे तैयार किये जा सकते हैं, जबकि 5 हैक्टेअर क्षेत्र वाली सागौन ( टीक ) की पौधशाला (plany nursery in hindi) में एक लाख पौधे ही तैयार किये जा सकते हैं ।


साधारणत: उत्तम पौधशाला का क्षेत्र, रोपण क्षेत्र का 0 . 25 से 2.5 प्रतिशत तक हो सकता है । पौधशाला का समुचित रेखांकन किया जाना आवश्यक है ।

क्षेत्र की फेन्सिंग के पश्चात् क्षेत्र को आयताकार खण्डों में, बीच में स्थाई रास्ते लेते हुये, विभक्त किया जाना चाहिए ।

इन खण्डों को संकरे रास्तों से उपखण्डों में और इसके पश्चात् बीच के रास्ते छोड़ते हुये सिंचाई की सुविधा के अनुसार नालियों युक्त आयताकार क्यारियाँ में विभक्त किया जाना चाहिए ।

क्यारियाँ सामान्यतया 1.2 मीटर से 1.8 मीटर चौड़ी तथा 1.8 मी० ( पहाड़ों पर ) से 12.2 मी० ( मैदानी क्षेत्रों में ) लम्बी बनाई जाती हैं । आजकल 10x1 मीटर आकार की क्यारियों का भी प्रचलन है । 

पौधशाला की भूमि को तैयार करने के लिए भूमि को 30 से 40 से भी गहरा, कई बार, कुछ दिनों का अन्तर देते हुये, खोदकर, भुरभुरा किया जाता है ।

आखरी खुदाई के समय सड़ी - गली गोबर या पत्ती की खाद तथा दीमक व चीटियों आदि की रोकथाम के लिये, प्रति हैक्टेअर 75 किलो० ऐल्ड्रेक्स ( 5 % ) मिट्टी में मिला देनी चाहिये । क्यारियाँ 10 - 15 से०मी० ऊँची बनानी चाहिये ।


पौधशाला में बीजारोपण की तैयारी


पौधशाला में बीजारोपण करने में रखी जाने वाली कुछ प्रमुख सावधानियाँ हैं - 

सामान्यत: पौधशाला में बीजारोपण के लिए कठोर आवरण वाले बीजों को बोने से पूर्व उनकी कठोरता के अनुसार, कुछ घन्टों के लिये ताजे या गर्म पानी में भिगो कर रखना चाहिए, इससे बीजों का अंकुरण अच्छा होता है ।

बीज छिटकवाँ या चोबकर ( डिबलिंग ) बोया जा सकत है ।

बहुत छोटे बीजों में बालू या राख मिलाकर बोने से बीज भूमि पर एक समान डलता है । 

पंक्तियों में बुआई करने से खरपतवार (weed in hindi) निकालने तथा सिंचाई (Irrigation in hindi) करने में सुविधा रहती है ।

बड़े आकार वाले बीजों को अलग - अलग चोबकर या फॅड में बोना चाहिये ।

सामान्यतया जितना बीज बड़ा होता है उसे उतनी ही गहराई पर बोया जाता है ।


बीजारोपण के पश्चात् अच्छे अंकुरण के लिए सूर्य, पाला तथा कुतरने वाले जीवों ( रोडेन्टस् ) से बीजों का बचाव किया जाना चाहिए । 

तेज धूप, पाला, बर्फ आदि से, अंकुरण के समय, पौधों को बचाने के लिये क्यारियों पर आवश्यकतानुसार घास व पत्तियों से छाया कर देनी चाहिय ।

कुछ बीज जैसे - सागौन छाया में अधिक भली - भाँति अंकुरित होते हैं ।

अंकुरण के पश्चात् पौधों की बढवार के लिए खरपतवार नियन्त्रण (weed control) किया जाना जरूरी है ।

पौध की प्रारिम्भक अवस्था से ही नम मिट्टी से खरपतवारों को हाथ से खींचकर उखाड़ते रहना चाहिये ।

जब पौध थोड़ी बड़ी हो जाये तो खुपी से निकाई की जा सकती है । साथ ही

करके पौध का आपसी अन्तर उचित कर देना चाहिये ।

बीज की बुआई, अंकुरण के समय एवं कुछ समय पश्चात् तक सिंचाई फुआरे (Irrigation Method in hindi) से की जाये तो उचित रहता है ।

इसके पश्चात् शाम के समय, आवश्यकतानुसार नियमित सिंचाई करते रहना चाहिये । 

पाले व डेम्पिंग - ऑफ की सम्भावना हो तो सिंचाई केवल प्रात: काल ही करनी लाभदायक रहती है ।

कुछ दशाओं में पौध एक वर्ष में इस योग्य नहीं हो पाती है कि उसका स्थाई स्थानों पर रोपण किया जा सके ।


ऐसी दशा में उसे पौधशाला (plant nursery in hindi) में एक से अधिक वर्ष रखना पड़ता है, जिससे पौधों की मुख्य जड़ें लम्बी हो जाती हैं ।

फलस्वरूप उन्हें रोपण के लिये उठाने में कठिनाई होती है ।

इस कठिनाई से बचने अर्थात् लम्बी जड़ का झकड़ा बनाने के लिये पौध को एक क्यारी से दूसरी क्यारी में प्रतिरोपित करना पड़ता है ।

एक वर्ष पश्चात् ही पौधशाला की उर्वरता कम होने लगती है । इसका कुप्रभाव पौध पर पड़ता है ।


अत: पौधशाला की उर्वरता को, कुछ क्षेत्र खाली रखकर तथा उसमें गली - सड़ी गोबर, पत्ती का कम्पोस्ट खाद (compost in hindi) मिलाकर अथवा हरी खाद (green manure in hindi) का उर्वरकों द्वारा, बनाये रखनी चाहिये ।

पौधशाला में पौलीथीन थैलियों के प्रयोग का प्रचलन बढने लगा है ।

आजकल अधिकतर सदा हरित पौधे पौलीथीन की थैलियों में उगाये जाते हैं ।

जिन्हें सुगमतापूर्वक रोपण क्षेत्रों तक ले जाया जा सकता है ।


थैलियों का आकार तथा प्रकार-

( अ ) सामान्यतया 150 गेज, 15 से ० मी ० व्यास तथा 30 से ० मी ० लम्बी थैलियाँ, फल वृक्ष तैयार करने के लिये उपयोग में लायी जाती है ।

( ब ) 100 गेज, 10 से ० मी ० व्यास तथा 20 से ० मी ० लम्बी थैलियाँ अन्य प्रकार के वृक्षों को तैयार करने के लिये उपयोग में लायी जाती है ।