कृषि विपणन (krishi vipran) - अर्थ, परिभाषाएं, महत्व, प्रकृति एवं कार्य - क्षेत्र

सामान्यत: कृषि विपणन (krishi vipran) एक व्यापक शब्द है, जिसके अन्तर्गत विभिन्न क्रियायें आती है ।

जैसे - कृषि पदार्थों का एकत्रीकरण, श्रेणी विभाजन, विधायन, संग्रहण, परिवहन, वित्तीय व्यवस्था, अन्तिम उपभोक्ता तक वस्तु पहुँचाना, जोखिम उठाना आदि । 

इस प्रकार से कृषि विपणन (agriculture marketing in hindi) के अन्तर्गत उन समस्त क्रियाओं का समावेश होता है, जिनका सम्बन्ध कृषि उत्पादन को कृषक से अन्तिम उपभोक्ता तक पहुँचाने तक होता है ।


कृषि विपणन बोर्ड | Krishi Vipran Board


नाफेड (NAFED) का पूरा नाम - "नेशनल एग्रीकल्चर कॉपरेटिव माक्रेटिंग फैडरेशन ऑफ इण्डिया लिमिटेड ।"

"National Agricultural Co - operative Marketing Federation of India Ltd."


कृषि विपणन का अर्थ | meaning of krishi vipran


सामान्यतया कृषि विपणन शब्द का अर्थ (meaing of agriculture marketing in hindi) उन समस्त विपणन कार्यों तथा सेवाओं से है, जिनके द्वारा कृषि वस्तुयें उत्पादक से अन्तिम उपभोक्ता तक पहुँचती हैं ।

चूँकि उत्पादन का अन्तिम उद्देश्य उपभोग है, अत: यह कृषि विपणन (krishi vipran) उत्पादन का एक अभिन्न अंग या अनिवार्य प्रक्रिया है ।

इसमें एकत्रीकरण, परिवहन, भंडारण, श्रेणीकरण, विधायन, जोखिम व वित्त व्यवस्था, विज्ञापन - प्रचार, क्रय तथा विक्रय आदि विभिन्न कार्य किये जाते हैं ।


कृषि विपणन क्या है? | krishi vipran kya hai?


खाद्यान्न पोषण के अन्तर्गत वे सभी व्यापारिक क्रिया सम्मिलित होती है ।

जो खाद्यान्नों को उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिये समय, स्थान, रूप एवं स्वामित्व परिवर्तन माध्यमों के द्वारा कृषि विपणन (krishi vipran) प्रक्रिया में विभिन्न समय की जाती है ।

स्वतन्त्र व्यावसायिक पद्धति में विपणन की क्रियायें मूल्यों द्वारा निर्देशित होती हैं ।


कृषि विपणन का क्या अभिप्राय है?


कृषि विपणन (krishi vipran) में वे सभी कार्य सम्मिलित होते हैं, जिनके द्वारा खाद्य वस्तुएं तथा कच्चा माल पर प्रक्षेत्र से उपभोक्ता तक पहुंचाते हैं ।

अतः सामान्य शब्दों में यह कहा जा सकता है, कि कृषि विपणन (krishi vipran) कृषि सम्बन्धी व्यावसायिक क्रियाओं के निष्पादन से है, जो उत्पादक से उपभोक्ता या प्रयोगकर्ता तक कृषि उत्पादों और सेवाओं के संचालन को सृजित तथा नियन्त्रित करती हैं ।


कृषि विपणन किसे कहते है एवं इसकी परिभाषाएं? | Defination of krishi vipran


कृषि विपणन (agriculture marketing in hindi) के अध्ययन में वे सभी कार्य एवं संस्थाएं सम्मिलित होती है जिनके द्वारा किसानों के पर प्रक्षेत्र पर उत्पादित खाद्यान्न, कच्चे माल एवं उससे निर्मित माल का फार्म से अंतिम उपभोक्ता तक संचालन होता है ।

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कृषि विपनान (krishi vipran) - अर्थ, परिभाषाएं, महत्व, प्रकृति एवं कार्य - क्षेत्र

कृषि विपणन प्रणाली (krishi vipran pranali) का किसानों, मध्यस्थों एवं उपभोक्ताओं पर होने वाले प्रभावों का अध्ययन भी कृषि विपणन (agriculture marketing in hindi) के अंतर्गत ही किया जाता है ।


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कृषि विपणन की परिभाषाएं? | defination of agriculture marketing in hindi

विभिन्न अर्थविदों के द्वारा कृषि  विपणन (krishi vipran) की जो व्याख्या की गई है ।


कृषि विपणन (krishi vipran) की निम्नलिखित प्रमुख परिभाषाएं -

प्रो० पाइले के शब्दों में -“विपणन में क्रय एवं विक्रय दोनों ही क्रियायें सम्मिलित होती हैं ।"

प्रो० मेल्कम मेकनयर के अनुसार - “विपणन का आशय जीवन स्तर का सृजन एवं उसे उलब्ध करने में है ।"

एडवर्ड एवं डेविस के विचारानुसार - “विपणन एक आर्थिक रीति है, जिसके द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं को बदला जाता है तथा उनके मूल्य मुद्रा में तय (व्यक्त) किये जाते हैं ।"

कन्वर्ज, ह्यगे तथा मिचेल के अनुसार - “विपणन में वे सभी क्रियायें सम्मिलित हैं जिनके द्वारा वस्तु में स्थान, समय व स्वामित्व उपयोगितायें उत्पन्न होती हैं ।"

कोल्स एवं डाउन्यू के शब्दों में - "विपणन से तात्पर्य उन सभी व्यापारिक क्रियाओं को करने से है, जिनके द्वारा वस्तुओं और सेवाओं का प्रारम्भिक कृषि उत्पादन स्थान (कृषक के प्रक्षेत्र) से अन्तिम उपभोक्ता तक संचालन होता है ।"


कृषि विपणन का महत्व | Impotance of agriculture marketing in hindi


उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कृषि विपणन (agriculture marketing in hindi) के सम्बन्ध में निम्नलिखित निष्कर्ष के महत्व को निकाला जा सकता हैं -

  • विपणन में मात्र क्रय एवं विक्रय की क्रियायें नहीं आती अपितु वस्तु के उत्पादन या निर्माण से लेकर उसे उपभोक्ता तक पहुँचाने की क्रियायें भी इसमें सम्मिलतित होती हैं । ये क्रियायें भौतिक (शारीरिक), मानसिक एवं सेवा सम्बन्धी हो सकती हैं ।
  • विपणन क्रियायें परस्पर जुड़ी होती हैं । एक क्रिया करने के बाद उससे जुड़ी दूसरी तथा अन्य क्रियायें भी स्वाभाविक तौर पर करनी पड़ती हैं ।
  • विपणन कोई एक क्रिया नहीं बल्कि अनेक व्यापारिक क्रियाओं का संयोग है, अर्थात् विपणन व्यापारिक क्रियाओं रूपी कड़ियों की एक लड़ी (श्रृंखला) है ।
  • विपणन मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये किया जाता है । 
  • विपणन उत्पादक क्रिया है ।
  • विपणन से स्थान, समय तथा स्वामित्व उपयोगितायें उत्पन्न होती हैं ।
  • विपणन एक सुसंगठित व्यावसायिक क्रिया है ।
  • उत्पादन उपभोक्ताओं की इच्छाओं और आवश्यकताओं के अनुसार किया जाता है । 
  • जब किसी उत्पादन का विचार उत्पन्न होता है विपणन प्रकिया उसी समय प्रारम्भ हो जाती है और विक्रय कुछ समय के अन्तराल (बाद) तक (विपणन प्रक्रिया) चलता रहता है ।


कृषि विपणन के कार्य | krishi vipran ke kary


कृषि विपणन (krishi vipran) के उत्पादन कार्यों के दो पहलू हैं -

  • कृषि करण ( Cultivation )
  • विपणन ( Marketing )


कृषि विपणन के कार्यों का वर्णन


कृषि विपणन के कार्य वितरण कार्यों को पूरा करना अर्थात् उपजाई गयी वस्तु को उत्पादक से अन्तिम उपभोक्ता तक पहुँचाना है ।

सामान्यतय: कृषि विपणन (agriculture marketing in hindi) अध्ययन के अनेक उद्देश्य हैं, जितने वर्ग समाज में है, उनके निमित्त विपणन - अध्ययन के पीछे अलग - अलग निहित उद्देश्य होते हैं ।

चाहे वह उत्पादक हों या उपभोक्त, विपणन मध्यस्थ हों या सरकार सभी अपने - अपने दृष्टिकोण से कृषि विपणन का अध्ययन - प्रबन्ध करते हैं । एक वर्ग का उद्देश्य दूसरे से सर्वथा भिन्न होता है ।


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कृषि विपणन की उपयोगिताएं | utilities in marketing in hindi


कृषि विपणन (krishi vipran) एक उत्पादक क्रिया है ।

उत्पादन से अभिप्राय किसी उत्पाद के रूप में परिवर्तन करके उसे उपभोग योग्य बनाने, उपभोग के लिये सही समय और उचित स्थान पर उपलब्ध कराने अथवा उन जरूरतमन्द व्यक्तियों के स्वामित्व में स्थानान्तरित करने से है, जो उसका उपभोग कर सकते हैं ।

अर्थशास्त्रियों ने तो वस्तुओं में उपयोगिता उत्पन्न करने की विधि को उत्पादन बताया है ।


कृषि उत्पादों में विपणन-विधि में नामांकित चार प्रकार के उपयोग बताएं उत्पन्न होती है -

  • स्थान उपयोगिता ( Place Utility )
  • समय उपयोगिता ( Time Utility )
  • रूप उपयोगिता ( Structure of From Utility )
  • स्वामित्व या अधिकार उपयोगिता ( Ownership Utility )


कृषि में विपणन-विधि की उपयोगिताओं का वर्णन


( 1 ) स्थान उपयोगिता ( Place Utility ) -

कृषि उत्पादों की पूर्ति - बहुल (Surplus) स्थानों से अभावग्रस्त (deficit) स्थानों पर स्थानान्तरित करने पर उत्पादों में स्थान उपयोगिता उत्पन्न होती है ।

अभावग्रस्त क्षेत्र में पूर्ति की गई वस्तु की उपयोगिता बढ़ जाती है । विभिन्न परिवहन के साधन वस्तुओं में स्थान उपयोगिता उत्पन्न करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं ।

परिवहन साधन वस्तुओं को देश में प्रत्येक स्थान पर पहुँचाकर स्थान उपयोगिता उत्पन्न करते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी कृषि उत्पाद पहुँचाये जाते हैं ।

इस प्रकार उत्पादन केन्द्र से अन्तिम उपभोक्ता के बीच अनेक बार परिवहन साधनों के द्वारा स्थान परिवर्तन होता रहता है, उसी क्रम में स्थान - उपयोगितायें उत्पन्न होती हैं और बढ़ती जाती हैं ।


( 2 ) समय उपयोगिता ( Time Utility ) -

फसल कटने के बाद वस्तु के विक्रय में जितना ही अधिक समय लगता है उत्पन्न समय - उपयोगिता तदनसार बढती जाती है ।

उत्पादन मौसम में पर्ति का बाहल्य (Glut) होने से उपयोगिता कम रहती है, लेकिन बाद में आगे चलकर दूसरे मौसम में उपयोगिता बढ़ जाती हैं ।

उपयोगिता उत्पन्न करने की प्रमुख विधि है - वस्तुओं का संग्रहण और भण्डारण, जो कृषि विपणन प्रणाली (krishi vipran pranali) का एक आवश्यक कार्य है ।

जैसे - आलू का मौसम बीत जाने पर संग्रहालयों में सुरक्षित रखकर आलू में समय उपयोगिता उत्पन्न की जाती है ।


( 3 ) रूप उपयोगिता ( Structure of From Utility ) -

वस्तुओं के रूप उपयोगिता उत्पन्न करती हैं विभिन्न एजेन्सियाँ या संस्थायें । संसाधन क्रिया द्वारा रूप में उपयोगिता उत्पन्न होने से उपभोक्ता वस्तुयें अधिक उपयोग्य बन जाती हैं ।

फलस्वरूप उनका शीघ्रता में उपयोग किया जा सकता है । विधायनकर्ता या संसाधनकर्ता जिन उत्पादों में रूप उपयोगितायें उत्पन्न करते हैं ।

गेहूं से आटा और मैदा, धान से चावल, दलहन से दाल, तिलहन से तेल, पटसन से रस्सी और बोरियाँ, कपास से धागे या सूत और वस्त्र, दूध से चाय, मक्खन, मिठाई, घी और दही तथा गन्ने से रस, खांडारी और चीनी आदि का निर्माण करना । 


( 4 ) स्वामित्व या अधिकार उपयोगिता ( Ownership Utility ) -

कृषक - उत्पादक के उत्पाद का अन्तिम स्वामी होता है अन्तिम उपभोक्ता । किन्तु इन दोनों के बीच में अनेक विपणन - मध्यस्थ एवं कार्यकारी भी वस्तुओं में उत्पन्न होने वाली स्वामित्व उपयोगिता प्राप्त करते हैं ।

जिस व्यक्ति के पास उपलब्ध वस्तु अधिक मात्रा में है उस व्यकति से (अधिक) जरूरतमन्द व्यक्ति के पास वस्तु के स्वामित्व के स्थानान्तरित हो जाने पर स्वामित्व उपयोगिता बढ़ जाती है ।

उपयोगिता कृषि उत्पादों की क्रिय - विक्रय द्वारा उत्पन्न होती है । माटों की स्वामित्व - उपयोगिता अलग - अलग व्यक्तियों के लिये अलग - अलग होती है ।

इन तथ्यों के महत्व को स्वीकार करते हुये, मूर जोहल एवं खुसरो, मैकलीन तथा कनवर्ज, ह्यगे एवं मिचेल ने कृषि विपणन (agriculture marketing in hindi)  को उत्पादक क्रिया बताया है ।

विपणन विधि इन चार प्रकार की उपयोगिताओं के कारण उत्पाद का विपणनत्व (marketability in hindi) बढ़ जाता है और बाजार का विकास होता है ।


कृषि विपणन की समस्या बताइए?


भारत में कृषि विपणन प्रणाली (krishi vipran pranali) से होने वाले समस्याएं निम्नलिखित है -

  • किसानों में संगठन का अभाव होता है, जबकि क्रेता संगठित होते हैं ।
  • असंगठित होने के कारण किसानों को उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता ।
  • कृषि विपणन में मध्यस्थों की अधिकता होती है, जो अपनी अपनी सेवाओं के बदले कृषक से कुछ ना कुछ वसूली करते ।


भारत में कृषि विपणन व्यवस्था को सुधारने के उपाय


भारत में कृषि उपज विपणन व्यवस्था को सुधारने के निम्नलिखित दो उपाय हैं -

  • किसानों को साहूकारों से मुक्त कराने के लिए सस्ती ब्याज दरों पर वित्तीय सुविधा उपलब्ध कराई जाएं ।
  • परिवहन के पर्याप्त साधनों की व्यवस्था हो, ताकि किसान अपनी उपज को मंडी तक ले जाकर उचित कीमत पर बेच सकें ।


कृषि विपणन की प्रकृति एवं क्षेत्र | nature and scope of agriculture marketing


विपणन की प्रकृति उत्पादों की प्रकृति और विपणन कार्यकर्ताओं मिकता से नियन्त्रित होती है तथा कृषि विपणन का क्षेत्र साहसी - उत्पादकों कृषि विपणन (krishi vipran) कर्जाओं और उपभोक्ताओं की मानसिकता से ये सभी प्रक्रियायें व कारक मिलकर संयुक्त रूप से कृषि विपणन की प्रकृति एवं क्षेत्र का निर्धारण करते हैं ।

कृषि विपणन (agriculture marketing in hindi) जहाँ एक ओर वास्तविक विज्ञान है, वहाँ दूसरी ओर व्यावहारिक विज्ञान । 

कृषि विपणन का अर्थ (meaning of agriculture marketing in hindi) प्रायः संकुचित अर्थ में लगाया जाता है ।

उत्पादक से उपभोक्ता तक वस्तुओं के संचलन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को विपणन की संज्ञा देते हैं ।

वस्तुतः कृषि विपणन (krishi vipran) क्रियायें तो कृषि करण के बहुत पहले ही प्रारम्भ हो जाती हैं ।

विपणन के लिये वस्तु के उपजाने की सम्भावना, गुणवत्ता, संवेष्टन तथा विज्ञापन आदि के सम्बन्ध में पूर्ववर्ती निर्णय ले लेना । 


विलयम जे० स्टोन्टन ने इस तथ्य को उजागर करते हुये कहा है -

"विपणन की क्रिया जिस प्रकार वस्तु के उत्पादन के पूर्व ही प्रारम्भ हो जाती है उसी प्रकार वस्तु की बिक्री के साथ विपणन क्रियायें समाप्त नहीं हो जाती ।"

इसके लिये पदार्थ गारण्टी और बिक्री के पश्चात् भी विपणन सेवा देने की व्यवस्था आवश्यक होती है । इन समस्त क्रियाओं से विपणन के स्वभाव व व्यापक क्षेत्र का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है ।

वर्तमान काल में कुशल विपणन (marketing in hindi) के द्वारा उत्पादन वृद्धि की ठोस पृष्ठभूमि बनाई जाती है । उपभोक्ता पदार्थों के व्यवस्थित वितरण और व्यापारी, मध्यस्थ वर्ग को सन्तुष्ट करने की चेष्टा की जाती है ।

इन तीन बिन्दुओं पर सन्तुलन या सन्तुष्टि की स्थापना बड़ा ही जटिल कार्य बन चुका है । कृषि विपणन (krishi vipran) जाँचने - परखने योग्य तथ्यों का अध्ययन करता है ।

इसमें कारण तथा परिणाम के मध्य केवल सम्बन्ध की स्थापना होती है और क्या होनी चाहिये कि संगत समस्याओं का पृथक् - पृथक् समाधान होता है ।

कृषि विपणन (krishi vipran) केवल ज्ञानदायक ही नहीं वरन एक फलदायक विज्ञान भी है । एक मार्गप्रदर्शक का कार्य करते हये हमें व्यावहारिक दष्टिकोण से कार्य करने की सलाह देता है ।

यह उन उपायों की भी खोज करता है, जिनके प्रयोग से हमारा उत्पादन व वितरण लक्ष्य या आदर्श पूरा हो सकता है ।

इस प्रकार कृषि विपणन विज्ञान और कला दोनों का एक समन्वित स्वरूप है ।

कृषि विपणन, कृषि अर्थशास्त्र का अत्यन्त महत्वपूर्ण विभाग है, क्योंकि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के विकास तथा सम्पूर्ण राष्ट्र की खुशहाली कृषि  विपणन (krishi vipran) की सफलता पर ही निर्भर होती है ।

कुल मिलाकर हम कह सकते हैं, कि कृषि विपणन (krishi vipran), कृषि उत्पाद नियोजन (agriculture production planning) का केन्द्र - बिन्दु है ।


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कृषि विपणन के उद्देश्य | objects of agriculture marketing in hindi


कृषि विपणन (krishi vipran) के उद्देश्य निम्नलिखित प्रकार से है -

  • उत्पादक - कृषकों के लिये विपणन उद्देश्य
  • उपभोक्ताओं के लिये विपणन उद्देश्य
  • विपणन मध्यस्थों के लिए विपणन उद्देश्य
  • सरकार के लिये विपणन


कृषि विपणन के उद्देश्यों का वर्णन

प्रमुख विपणन उद्देश्यों की विवेचना निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है -


1. उत्पादक - कृषकों के लिये विपणन उद्देश्य -

साहसोघमी उत्पादक - कृषकों के लिये विपणन अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य होता है - प्रक्षेत्र के उत्पादों का विक्रय करके अधिकतम मूल्य/लाभ प्राप्त करना ।

यदि लाभ की राशि समुचित है तो समझा जाता है, कि उत्पादन विधि और उत्पादन कुशलता बेहतर है या अच्छी है । ऐसी दशा में अधिक लाभप्रद उत्पाद के अधिकाधिक उत्पादन के लिये प्रोत्साहित होता है ।

कहने का स्पष्ट रूप से आशय यह है, कि सुव्यवस्थित कृषि विपणन (krishi vipran) विधि के प्रचलन से कृषक कृषि उत्पादन में पूरे मनोयोग से वृद्धि करते हैं । इसके फलस्वरूप कृषक तथा राष्ट्र की अर्थव्यवस्था समुन्नत होती हैं ।


2. उपभोक्ताओं के लिये विपणन उद्देश्य -

उपभोक्ताओं के लिये हितकर वह विपणन व्यवस्था है, जो उन्हें अच्छे किस्म के कृषिजन्य उपभोग पदार्थ (अनाज, दलहन व तिलहन आदि) आवश्यक मात्रा में क्रय शक्ति के अन्तर्गत कीमत पर सुलभ करा सके ।

उपभोक्ताओं की आवश्यकतायें असंख्य होती हैं और उसकी तुष्टि के लिये संसाधन अति सीमित होते हैं ।

यह अकाट्य है, कि जितनी वेग से आवश्यकताओं में वृद्धि होगी उतनी ही वेग से विपणन क्रियाओं में भी वृद्धि होगी । 

अतः सुव्यवस्थित अथवा कुशल विपणन व्यवस्था के लिये आवश्यक है, कि उपभोक्ता के आवश्यकता की वस्तुयें उसकी आकांक्षाओं और क्रय क्षमता के अनुकूल कीमत पर उपलब्ध होती है ।


3. विपणन मध्यस्थों के लिए विपणन उद्देश्य -

विपणन मध्यस्थ अपनी सेवाओं तथा कार्यों के द्वारा अधिकतम लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य रखते हैं ।

विपणन प्रक्रिया में कई मध्यस्थों की सेवायें आवश्यक तथा महत्वपूर्ण बनी हुई हैं ।


इसके निम्नलिखित कारण होते हैं - 

कृषि उत्पादन की विधि व उत्पादों के प्रकार में भारी विविधता का होना तथा असंख्य कार्यकारी जोतों पर विपणन अतिरेक का बिखरा होना ।

मध्यस्थ कृषि विपणन (agriculture marketing in hindi) की पहली प्रक्रिया एकत्रीकरण से उपभोक्ता तक उत्पाद के संचलन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं ।

प्रत्येक दशा में अपनी सेवाओं का उचित मूल्य या लाभप्रद मूल्य मिलता रहे, यही विपणन अध्ययन के पीछे, वर्तमान अथवा भविष्य के लिये उनका निहित दृष्टिकोण और उद्देश्य होता है ।

यद्यपि उन्हें लाभ मिलने पर उपभोक्ता मूल्य में उत्पादक का अंश घट जाता है, परन्तु विपणन कार्य निर्बाध रूप से चलते रहते हैं ।

यदि किसी कारण से उनका लाभ दुष्प्रभावित होता है तो वे दूसरे व्यवसायों की ओर प्रगतिशील हो जाते हैं और कृषि विपणन (krishi vipran) व्यवस्था छिन्न - भिन्न (बाधित) होने लगती है ।

एक ऐसा गतिरोध आ जाता है, जो उत्पादक तथा उपभोक्ताओं दोनों के लिये अहितकर होता है ।


4. सरकार के लिये विपणन

उद्देश्य सरकार का दायित्व है, समाज के सभी वर्गों के विपणन हितों की रक्षा और वृद्धि करना ।

सरकार जहाँ उत्पादकों को उनके उत्पाद की उचित कीमत उपलब्ध कराती है, वहाँ उपभोक्ताओं में उचित कीमत पर उपभोग्य पदार्थ का वितरण भी करती है ।

ये सभी वर्ग भली - भाँति जीवन - यापन कर सकें क्योंकि इसके लिये विकसित विपणन व्यवस्था नितान्त आवश्यक है ।


इस प्रकार सरकार के लिये विपणन उद्देश्य -

कृषि विपणन (krishi vipran) का तात्पर्य समाज के सभी वर्गों को उनकी आकांक्षाओं के अनुकूल उपभोग्य पदार्थ तथा न्यायोचित लाभ प्राप्त कराना और उत्पादन वृद्धि के लिये पर्याप्त प्रेरणा देना है । 


विलियम जे० स्टोन्टन का यह कथन प्रासंगिक और उल्लेखनीय है - 

विपणन का उद्देश्य, समस्त उत्पादन क्रियाओं के समान, मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करना है ।"