मानवीय सभ्यता का सर्वाधिक प्राचीन व्यवसाय कृषि (agriculture in hindi) ही है ।
कृषि (एग्रीकल्चर) के माध्यम से मानव की सर्वाधिक बुनियादी आवश्यकताओं जैसे भोजन, वस्त्र, इंधन एवं पशुओं के लिए चारे आदि की पूर्ति की जाती है ।
एक व्यवसाय के रूप में कृषि (agriculture in hindi) का बहुमुखी विकास हुआ है तथा इसके अनेक व्यवहारिक आयाम स्पष्ट हुए हैं जैसे -
- खेती किसानी
- बागवानी
- वानिकी
- पशुपालन आदि ।
इनमें सामान्यत: खेती किसानी को कृषि (agriculture in hindi) का विशुद्ध रूप माना जाता है जबकि अन्य इसके सहायक अथवा उप व्यवसाय है ।
ऐतिहासिक रूप से खेती किसानी का विकास आदि काल से आधुनिक काल तक निरंतर होता रहा है एवं इस विकास को खेती (kheti) की विभिन्न विधियों के रूप में रेखाकृत किया जा सकता है ।
कृषि का क्या अर्थ है? | meaning of agriculture in hindi
प्रो० चैम्बर विश्वकोष में एस० जे० वाटसन ने कृषि का अर्थ (agriculture hindi meaning) "मृदा संस्कृति" से लगाया है ।
जबकि प्रो० ई० डब्लू० जिम्मरमैन (E.W. Zimmermann) ने कृषि शब्द का अर्थ (agriculture in hindi meaning) भूमि से जुड़े हुए सभी मानवीय कार्य, जैसे - खेत का निर्माण, जुताई, बुआई, फसल उगाना, सिंचाई करना, पशुपालन, मत्स्य पालन, वृक्षारोपण एवं उनका संवर्धन आदि सम्मिलित है ।
कृषि शब्द का अर्थ (meaning of agriculture in hindi) -
हिन्दी के 'कृषि' शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की 'कृष्' धातु से हुई है, जिसका अर्थ होता है 'जोतना' अथवा 'खींचना' है ।
इसके अंग्रेजी पर्याय 'Agriculture' की रचना लैटिन भाषा के दो शब्दों 'Agre' अर्थात् Land या Field तथा 'Cultura' अर्थात् The care of या Cultivation से हुई है जिसका अर्थ है 'भूमि को परिष्कृत करके फसलोत्पादन करना' ।
'Agriculture' एक लैटिन भाषा का शब्द है अर्थात् वे सभी शब्द जिनमें 'Culture' का प्रयोग होता है वह सभी लैटिन भाषा के शब्द ही कहे जाते हैं ।
कृषि की परिभाषा लिखिए? | definition of agriculture in hindi
खाद्य एवं कृषि संगठन (F.A.O.) के प्रतिवेदन के अनुसार कृषि (definition of agriculture in hindi) अन्तर्गत फसल क्षेत्र, वृक्ष क्षेत्र, स्थायी घास के मैदान तथा रेंच के अतिरिक्त अन्य चरागाह भी सम्मिलित किये जाते हैं ।
कृषि की परिभाषा (krishi ki paribhasha) प्रमुख विद्वानों ने निम्न प्रकार दी है -
1. प्रो० डी० ह्विटलसी के कथनानुसार -
“पादप एवं पशु मूल के उत्पादों की प्राप्ति के उद्देश्य से किये गये मानवीय प्रयास कृषि कहलाते हैं ।"
2. हेरोल्ड एच० मैकार्टी के कथनानुसार -
“फसलों एवं पशुओं की सोद्देश्य देख - रेख को कृषि की संज्ञा प्रदान की जाती है ।"
3. लेसली सायमन्स के कथनानुसार -
“यह पशुपालन की भाँति भूमि पालन की मानवीय प्रक्रिया है ।"
कृषि क्या है यह कितने प्रकार की होती है इसके लाभ व विशेषताएं लिखिए?
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि कृषि (agriculture in hindi) का व्यापक अर्थ में प्रयोग किया जाता है तथा इसके अंतर्गत उन समस्त क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जिनकी सहायता से भोजन और कच्चे माल की प्राप्ति के लिए मिट्टी का उपयोग होता है ।
कृषि (krishi) क्या है अर्थ, परिभाषा एवं इसके प्रकार व लाभ | agriculture in hindi |
भूमि के इस उद्देश्यपूर्ण उपयोग में प्रमुख रूप से भूमि की जुताई, सिंचाई, उर्वरकों की आपूर्ति, मृदा संरक्षण, हानिकारक तत्वों से फसलों की रक्षा आदि के उपाय सम्मिलित किये जाते हैं ।
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कृषि क्या है? | krishi kya hai?
ऑक्सफोर्ड अंग्रेजी शब्दकोष के अनुसार - 'एग्रीकल्चर' मृदा कर्षण एवं खेती बाड़ी का विज्ञान है, जिसमें विभिन्न क्रियायें जैसे - संगग्रहण, पशुपालन, जुताई आदि सम्मिलित की जाती हैं ।
कृषिविदों ने कृषि के अंतर्गत फसल उत्पादन तथा पशुपालन (animal husbandry in hindi) दोनों को ही सम्मिलित किया है ।
डी० ग्रिग के कथनानुसार -
“फसलें उत्पन्न करने के लिए मिट्टी - की जोताई - बुआई का कार्य कृषि कहलाता है ।"
कृषि कितने प्रकार की होती है? | types of agriculture in hindi
कृषि प्रणालियाँ या अर्थव्यवस्थाएँ जलवायु, मृदा, उच्चावच, भू स्वामित्व जोत का आकार एवं अन्य तत्त्वों से नियन्त्रित होती हैं ।
अतः विश्व की कृषि अर्थव्यवस्था विभाजन में डी० ह्वीटलसी ने कृषि अधिभोग के आधार पर कृषि के प्रकार (type of agriculture in hindi) बतलाये हैं ।
कृषि के प्रमुख प्रकार (krishi ke prkar) निम्नलिखित है -
- स्थानान्तरणशील कृषि
- प्रारम्भिक स्थायी कृषि
- व्यापारिक पशुपालन
- चलवासी पशुचारण
- चावल प्रधान गहन निर्वाहन कृषि
- चावल विहीन गहन निर्वाहन कृषि
- व्यापारिक बागाती कृषि
- भूमध्य सागरीय कृषि
- व्यवस्थाव्यापारिक खाद्यान्न उत्पादन कृषि
- व्यापारिक शस्य व पशु उत्पादक कृषि
- जीविकोपार्जन फसल व पशु उत्पादक कृषि
- व्यापारिक दुग्ध पशुपालन कृषि
- विशिष्टीकृत उद्यान कृषि
इन सभी कारकों के सम्मिलित स्वरूप से उत्पन्न प्रणाली या अर्थव्यवस्था का अध्ययन अत्यन्त जटिल कार्य है किन्तु इससे विश्व में प्रचलित अनेक प्रकार की कृषि (agriculture in hindi) को पहचानने में सर्वाधिक सहयोग मिलता है ।
वास्तव में, एक ही क्षेत्र में एक से अधिक कृषि प्रकारों के समावेश से क्षेत्रीय जटिलता का स्वरूप उभरता है । कृषि के प्रकारों (krishi ke parkar) के इसी सम्मिलित रूप को वृहद क्षेत्र पर विस्तृत होने से प्रणाली का जन्म होता है ।
अत: कृषि की प्रणालियाँ अनेक कृषि पद्धतियों या प्रकारों के कारण विकसित होती हैं । इस प्रकार एक ही प्रणाली के अन्तर्गत अनेक कृषि के प्रकार हो सकते हैं और साथ ही वृहद कृषि प्रकार में बहुत सी प्रणालियाँ भी मिल सकती हैं ।
वैश्विक धरातल पर विघमान प्रमुख कृषि के प्रकारों का वर्णन
स्थानान्तरणशील कृषि ( Shifting Cultivation )
इस प्रकार की कृषि (agriculture in hindi) दक्षिणी अमेरिका के अमेजन बेसिन अफ्रीका के काँगो बेसिन, द० पू० एशिया एवं पूर्वी द्वीप समूह के विषम उच्च भू - भागों में विशेष रूप से प्रचलित है ।
इस प्रकार की कृषि (krishi) को भिन्न - भिन्न नामों से जाना जाता है जैसे मलाया एवं हिन्देशिया में लंदांग, फिलीपीन्स में कैनजीन, श्रीलंका में चेना, अमेरिका एवं अफ्रीका में मिलपा, सूडान में नगासू । यह कृषि व्यवस्था उष्णार्द्र कटिबन्धीय प्रदेशों में , जहाँ वर्ष भर ऊँचा तापमान एवं अत्यधिक वर्षा के कारण सघन वन पाये जाते हैं , मिलती है ।
सर्वप्रथम इस प्रकार की कृषि के लिए वन (forest in hindi) के सीमान्तीय भागों में क्षेत्र का चयन करके, आग द्वारा जलाकर खेत तैयार किया जाता है । खेत का औसत क्षेत्रफल 2 हेक्टेयर तक होता है । खेती में मानव श्रम का उपयोग होता है । खाद (manure in hindi) एवं पूँजी का निवेश मिलता है । खेत व्यक्तिगत नहीं होते बल्कि सार्वजनिक होते हैं ।
दो वर्ष तक ही कृषि की जाती है, तदुपरांत उसे छोड़कर दूसरा खेत बनाते हैं क्योंकि अत्यधिक वर्षा के कारण मृदा अपक्षरण की गति तीव्र होती है जिससे मृदा की उर्वरता (soil fertility in hindi) शीघ्र ही क्षीण हो जाती है । उत्पादन कम होता है, परिश्रम अधिक करना पड़ता है और उत्पादित फसलों का उपयोग स्थानीय होता है । केवल खाद्यान्न फसलों का ही उत्पादन होता है जिसमें मक्का, ज्वार - बाजरा, धान मुख्य हैं ।
प्रारम्भिक स्थायी कृषि ( Rudimental Sedentary Tillage )
यह व्यवस्था अनुकूल स्थलों पर चलवासी या स्थानान्तरणीय समुदाय के लोगों के बस जाने से प्रारम्भ होती है या इसे स्थानान्तरणीय या चल वासी कृषि व्यवस्थाओं का विकसित रूप कहा जा सकता है ।
विश्व में इस प्रकार की अर्थव्यवस्था मध्य अमेरिका के पठारी एवं पहाड़ी भागों में, पश्चिमी द्वीप समूह के कुछ द्वीपों पर, एण्डीज श्रेणी के उष्ण कटिबन्धीय भागों, घाना, नाइजीरिया, कीन्या तथा पूर्वी अफ्रीका के पठारों तथा हिन्दचीन एवं पूर्वी द्वीप समूह के बिखरे हुये द्वीपीय भागों मे जनजातियाँ स्थायी रूप से बस गयी हैं । कृषि आदिम प्रकार की है । उर्वरकों की कमी के कारण भूमि को परती छोड़ना पड़ता है ।
उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र, उष्ण कटिबन्धीय ऊँचे पठार तथा पहाड़ी भागों, उष्ण कटिबन्धीय मौसमी जलवायु वाले मैदानों जहाँ जनसंख्या का घनत्व अपेक्षाकृत अधिक है , वहाँ यह कृषि (agriculture in hindi) पायी जाती है । उन भागों में, जहाँ वर्षा कम तथा शुष्कता अधिक होती है, प्रारम्भिक स्थायी कृषि होती है ।
चलवासी पशुचारण ( Nomadic Herding )
इसे घुमक्कड़ या खानाबदोश अर्थव्यवस्था भी कहते हैं । यह अर्थव्यवस्था उन क्षेत्रों में पायी जाती है जहाँ भौगोलिक दशायें फसलों के लिए उपयुक्त नहीं हैं । इसके अंतर्गत पशुओं के चारे के लिए प्राकृतिक घास उपलब्ध हो जाती है । मुख्यतया इसके क्षेत्र शुष्क प्रदेशों में मिलते हैं ।
सहारा से अरब तक के शुष्क प्रदेश, मध्य - एशियाई देश, तिब्बत, मंगोलिया एवं टुण्ड्रा हैं जहाँ इस प्रकार की अर्थव्यवस्था पाई जाती है । पशु ही जीवन - निर्वाहन के स्रोत हैं । पशुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर चराना मुख्य व्यवसाय है ।
स्थानान्तरणशीलता, इस अर्थ व्यवस्था का मुख्य अंग है । चारे की प्राप्ति के लिए पशुओं के साथ यह आवश्यक प्रक्रिया है । एक स्थल पर ठहरने की अवधि प्राकृतिक चारे एवं जल द्वारा निर्धारित होती है ।
इस अर्थव्यवस्था में कबीले, कज्जाक, खिरगीज, खैप, कालमैक्स तथा मंगोल आदि खानाबदोश जातियाँ मिली हैं । इनका निवास तम्बू, गुफा या हिम - झोपड़ी होती है जिसे सुगमतापूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है या हटाया जा सकता है । वर्तमान समय में इस प्रकार की आर्थिक व्यवस्था में क्रमशः ह्रास हो रहा है ।
व्यापारिक पशुपालन ( Livestock Ranching )
विश्व के अर्द्धशुष्क प्रदेश में, जहाँ फसलों की अपेक्षा प्राकृतिक घास पशुओं के लिए विशेष उपयुक्त है, वहाँ व्यापारिक दृष्टि से पशुपालन (animal husbandry in hindi) प्रारम्भ किया गया है ।
व्यापारिक पशुपालन का श्रेय यूरोप आप्रवासियों की है । ये नयी दुनियाँ के प्राकृतिक घास प्रदेशों में भू - स्वामित्व प्राप्त करके स्थायी रूप से बस गये । इन निजी चरागाहों को जो चारों ओर से घिरे रहते हैं - रेंच कहते हैं ।
इस प्रकार का व्यापारिक पशुपालन न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी भाग में विकसित हुआ है, बल्कि अर्जेन्टाइना, यूरुग्वे, ब्राजील, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड तथा दक्षिणी अफ्रीका में भी कृषि (krishi) का महत्त्वपूर्ण अंग है ।
इस प्रकार भौगोलिक दृष्टि से व्यापारिक पशुपालन प्रदेशों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- समशीतोष्ण घास क्षेत्र एवं
- उष्ण सवाना विस्तृत क्षेत्र ।
समशीतोष्ण घास क्षेत्र के अन्तर्गत उत्तरी अमेरिका का मध्य उत्तरी मैदान एवं पठार, दक्षिणी अमेरिका का दक्षिणी पूर्वी भाग, दक्षिणी मध्य आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड का दक्षिणी पूर्वी भाग तथा दक्षिणी अफ्रीका के पठारी भाग को सम्मिलित करते हैं । दूसरा घास क्षेत्र उष्ण सवाना का है जो अफ्रीका के 10 से 20° दक्षिणी गोलार्द्ध में विस्तृत हैं ।
चावल प्रधान गहन निर्वाहन कृषि ( Intensive Subsistence Tillage with Rice )
विश्व के गहन चावल उत्पादक भागों में वर्ष पर्यन्त ऊँचा तापमान तथा वार्षिक वर्षा 200 सेमी० से अधिक मिलती है । भौगोलिक दशाओं की उपयुक्तता के कारण ही वर्ष में तीन बार तक चावल की कृषि होती है । चावल की इस कृषि व्यवस्था को 'सावाह' कृषि के नाम से जाना जाता है । मानसून एशियाई देश विश्व का लगभग 90% चावल उत्पन्न करते हैं ।
मुख्य चावल उत्पादक देश चीन (30%), भारत (21%), इण्डोनेशिया (8.5%), बांग्लादेश (5.6%), थाईलैण्ड (3.8%), वियतनाम (3.7%), म्यामांर (2.5%) एवं जापान (2.3%) है ।
इन उपर्युक्त सभी देशों में चावल की कृषि (agriculture in hindi) डेल्टाई भागों, बाढ़ के मैदानों, सीढ़ीदार तथा निम्नवर्ती भागों में की जाती है । मुख्य चावल उत्पादित भागों में - गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावदी मीमांग, सीक्यांग, यांगटिसिक्याँग के निचले मैदानी एवं डेल्टाई भाग है ।
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चावल विहीन गहन निर्वाहन कृषि ( Intensive Subsistence Tillage without Rice )
मानसून एशिया के ऐसे भाग जहाँ 100 सेमी० से कम वर्षा एवं निम्न तापक्रम होता है, वहाँ चावल के अतिरिक्त अन्य फसलें भी उत्पन्न की जाती हैं । ऐसे भागों में शुष्क कृषि (dry farming in hindi) की प्रधानता होती है जिसमें ज्वार, बाजरा, मक्का अरहर आदि फसलें उगायी जाती हैं । जहाँ सिंचाई की सुविधा है, जहाँ गेहूँ, एवं कपास का भी उत्पादन होता है ।
इस प्रकार तापमान एवं वर्षा की मात्रा के अनुसार गेहूँ, ज्वार, बाजरा आदि फसलों में से किसी एक ही फसल की प्रधानता रहती है ।
दक्षिणी पूर्वी एशिया विश्व का लगभग 60% पीनट, 57% ज्वार - बाजरा, 40% सोयाबीन, 20% गेहूँ तथा 16% जौ उत्पन्न करता है ।
मौसमी परिवर्तन के फलस्वरूप जीविकोपार्जन कृषि को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है -
- ग्रीष्म कालीन मौसम की फसलें
- वर्षा कालीन मौसम की फसलें
- शीत या शुष्क मौसम की फसलें ।
व्यापारिक बागाती कृषि ( Commercial Plantation Tillage )
यह विदेशी प्रणाली है जिसका इतिहास लगभग 100 वर्ष पुराना है । इस व्यवस्था में अनेक उपजें (चाय, कहवा, नारियल, गन्ना, केला, मसालें, कोको, रबर आदि) बागानों में व्यापारिक दृष्टि से उत्पन्न की जाती हैं ।
इस कृषि का विकास एवं प्रोत्साहन समशीतोष्ण कटिबन्धीय देशों को निर्यात करने के उद्देश्य से अनेक उष्ण कटिबन्धीय देशों में उपनिवेशवाद के दौरान किया गया था । चाय, कपास एवं तम्बाकू जैसी कुछ फसलें उपोष्ण कटिबन्धीय देशों में भी उपजायी जाती हैं । विश्व में बागाती कृषि के प्रमुख तीन क्षेत्र लैटिन अमेरिका, अफ्रीका एवं दक्षिणी - पूर्वी एशिया है ।
भूमध्य सागरीय कृषि व्यवस्था ( Mediterranean Agriculture )
इस व्यवस्था का नामकरण किसी फसल विशेष पर आधारित न होकर प्राकृतिक एवं भौगोलिक विशेषताओं पर आधारित है । यह कृषि व्यवस्था 30 से 45° उत्तरी दक्षिणी अक्षांशों के मध्य, महाद्वीपों के पश्चिमी किनारे पर पाई जाती है ।
इसका सर्वाधिक विस्तार भूमध्य सागर के तट पर है जिसमें स्पेन, दक्षिणी फ्रांस, इटली, ग्रीक, टर्की, सीरिया, लेबनान, इजराइल मोरक्को, अल्जीरिया तथा टयूनिशिया के तटीय क्षेत्र सम्मिलित हैं । इस कृषि - व्यवस्था के अन्तर्गत निर्वाहन, व्यापारिक, पशुपालन, गर्मी में सिंचाई पर आधारित फसलों का उत्पादन, जाड़े की वर्षा पर आधारित फसलोत्पादन, फल , सब्जी खाद्यान्न का उत्पादन आदि अनेक पद्धतियाँ अपनाई जाती है ।
कृषि में अनेक पद्धतियाँ भौगोलिक कारकों की देन हैं क्योंकि विश्व का यही एक ऐसा प्रदेश है जहाँ उच्च पर्वतीय भू - भाग, सागर तटीय मैदान, सँकरी घाटियों तथा छोटे - छोटे मैदानी क्षेत्र एक ही साथ मिलते हैं । क्षेत्रीय भिन्नता के कारण कृषि (agriculture in hindi) से सम्बन्धित अनेक प्रकार के उद्यम - खाद्यान्न, फसलोत्पादन तथा भेड़ - बकरी पालन आदि इन क्षेत्रों में अपनाये जाते हैं ।
व्यापारिक खाद्यान्न उत्पादन कृषि ( Commercial Grain Farming )
यह कृषि व्यवस्था तकनीकी विकास की देन है । इस प्रकार की कृषि मध्य अक्षांशीय आर्द्र एवं शुष्क प्रदेशों के मध्य विस्तृत घास मैदानों में मिलती हैं जहाँ की मिट्टी वनस्पति तथा हिमयुग के निक्षेपण से अधिक उर्वर है । अन्य कृषि (krishi) व्यवस्थाओं की तुलना में इस कृषि में सीमित क्षेत्र सम्मिलित हैं । संसार में इस प्रकार के कृषि क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाड़ा के प्रयेरी प्रदेश, अर्जेन्टाइना के पम्पास, आस्ट्रेलिया एवं रूस के स्टैपी भागों में पाये जाते हैं ।
इस कृषि व्यवस्था में निम्न विशेषताएँ पाई जाती हैं -
- विस्तृत क्षेत्र में कृषि
- कृषि में यन्त्रीकरण का सर्वाधिक उपयोग
- अत्यधिक बड़े - बड़े कृषि फार्मों पर खेती
- एक फसल का विशिष्टीकरण
- पूँजी का अधिकतम निवेश ।
इस कृषि प्रणाली (krishi pranali) की एक मात्र फसल गेहूँ है । इसकी खेती विस्तृत कृषि पद्धति के अन्तर्गत बड़े आकार के फार्मों पर की जाती हैं ।
व्यापारिक शस्य व पशु उत्पादक कृषि ( Commercial Crops and Livestock Faming )
इस व्यवस्था में शस्योत्पादन तथा पशुपालन कार्य साथ - साथ व्यापारिक दृष्टि से किया जाता है । इसे मिश्रित कृषि (mixed farming in hindi) भी कहते हैं । इस कृषि का जन्म यूरोप में ही हुआ है । यह व्यवस्था पश्चिमी यूरोप से एक लम्बी पेटी के रूप में साइबेरिया तक फैली है ।
इस पेटी में जैसे - जैसे पूरब जाते हैं, यह पेटी क्रमश: पतली होती जाती है । सर्वाधिक चौड़ाई 1200 किमी ० यूक्रेन एवं फिनलैण्ड के मध्य पायी जाती है । संयुक्त राज्य मे ओहियो, इण्डियाना, इलिनायस, इयीवा, नेब्रास्का, वर्जीनिया, टैनसी, जार्जिया तथा आल्कोहामा का कुछ भाग इस प्रकार की कृषि (agriculture in hindi) के अन्तर्गत आता है ।
इस कृषि व्यवस्था में निम्नलिखित विशेषतायें मिलती हैं -
( अ ) सफल उत्पादन पशुपालन दोनों ही साथ - साथ होता है । फसलें पशुओं को खिलाने के लिए उत्पन्न की जाती हैं ।फसलों का उत्पादन तीन दृष्टियों से किया जाता है -
- पशुओं को हरे चारे के रूप में
- अन्न खिलाने की दृष्टि से और
- व्यापार के लिए ।
( ब ) मिश्रित कृषि में फार्म अपेक्षाकृत बड़े - बड़े होते हैं । औसत फार्मों का क्षेत्रफल 60 हेक्टेयर है ।
( स ) कृषि भूमि उपयोग में फसल चक्र की पद्धति यहाँ की कृषि की प्रमुख विशेषता है । यह परिवर्तन मिट्टी की उर्वर शक्ति को बनाये रखने में मदद करती है ।
( द ) मिश्रित कृषि व्यवस्था में पूँजी का अधिकाधिक विनियोग होता है । इस कृषि में पूँजी एवं श्रम दोनों की आवश्यकता पड़ती है ।
जीविकोपार्जन फसल व पशु उत्पादक कृषि ( Subsistence Livestock Crop Faming )
इस कृषि का जन्म उत्तरी यूरोप में हुआ था । यह व्यवस्था कुछ हद तक उपर्युक्त कृषि (krishi) व्यवस्था से मिलती - जुलती है, क्योंकि इसमें कुछ ही फसलें फार्मों पर उत्पन्न की जाती है । अन्तर केवल इतना है कि उत्पादन बहुत अल्प विक्रय के लिए बचता है जबकि उपर्युक्त व्यवस्था में विक्रय मुख्य उपागम है । इसमें कुछ फार्मों पर तो बिल्कुल ही उत्पादन का विक्रय सम्भव नहीं हो पाता है । विश्व में इस प्रकार की कृषि के अन्तर्गत बहुत ही अल्प क्षेत्र पाया जाता है ।
आज इस तीव्र विकास के युग में इतनी प्रगति हो गयी है विश्व में इस प्रकार की कृषि व्यवस्था व्यापारिक शस्य एवं पशु उत्पादन कृषि के रूप में बदल गयी है । इस प्रकार की कृषि पश्चिमी एशियाई अर्थात् टर्की, उत्तरी ईरान, मध्यवर्ती एशिया तथा उत्तरी साइबेरिया में जहाँ भौगोलिक दशायें विशेष अनुकूल नहीं है, विकसित हुई हैं । इन कृषि व्यवस्था में वर्ष में एक फसल के कारण बाध्य होकर पशुपालन (animal husbandry in hindi) को अपनाना पड़ता है ।
व्यापारिक दुग्ध पशुपालन कृषि ( Commercial Dairy Farming )
व्यापारिक पशुपालन कृषि का प्रधान उद्देश्य दूध एवं दूध से बने पदार्थों के व्यापारिक उत्पादन हेतु खेती करना है । यह सर्वोच्च कृषि व्यवस्था है । फसलोत्पादन की अपेक्षा इस व्यवस्था में अधिक श्रम, पूँजी, कृषि एवं मशीनों तथा सामयिक सक्रियता और सजगता की आवश्यकता पड़ती है ।
यह उद्यम उन्हीं भागों में सफल है जहाँ शहरी बाजारों की निकटता, दूध, क्रीम, मक्खन, पनीर तथा माँस बेचने की सुविधाएँ सुलभ हैं । साथ ही परिवहन के साधन विशेष रूप से सुलभ हों । इस ढंग की कृषि का प्रसार विशेषकर बड़े पैमाने पर समशीतोष्ण जलवायु प्रदेश में हुआ है । उष्ण प्रदेशों, विशेषकर शहरी केन्द्रों के समीपवर्ती क्षेत्रों, में भी दुग्ध पशुपालन कार्य सम्पन्न किया जाता है ।
विश्व में यह व्यवस्था निम्न तीन प्रदेशों में विशेष रूप से विकसित हुई है -
- पश्चिमी यूरोप के उत्तरी भाग में अंध महासागर तट से लेकर मास्को तक
- उत्तरी अमेरिका में बड़ी झीलों के पश्चिमी प्रेयरी प्रदेश से अंध महासागर तट तक
- आस्ट्रेलिया के दक्षिणी - पूर्वी भाग, तस्मानिया एवं न्यूजीलैण्ड में ।
विशिष्टीकृत उद्यान कृषि ( Specialized Horticulture )
इस कृषि के अन्तर्गत सब्जी, फल एवं फल का उत्पादन सम्मिलित है जो लगभग सभी देशों के औद्योगिक एवं शहरी विकास की देन है । प्राय: शहरी मकानों के पीछे एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गाँव के चारों तरफ साग - सब्जी, फूल - फल का उगाया जाना सामान्य बात है । बड़े - बड़े नगरों के सीमान्तीय क्षेत्रों पर फूल - फल, साग - सब्जी की कृषि सघन रूप से की जाती है ।
विश्व में इस प्रकार की कृषि (krishi) विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका, उत्तरी - पश्चिमी यूरोप, ग्रेट ब्रिटेन, डेनमार्क, बेल्जियम, हालैण्ड, फ्रांस, जर्मनी आदि देशों की घनी बस्ती वाले भागों में सम्पन्न होती है । इस व्यवस्था का प्रसार तीव्र वाहन तथा रेफ्रीजरेटर के विकास के बाद व्यापक रूप से हुआ । रेफ्रीजरेटर की व्यवस्था से जलयानों, रेल के डिब्बों, ट्रकों में भर कर ताजी साग - सब्जी, फूल - फल दूर तक पहुँच जाते हैं ।
भारत में भी इस व्यवस्था के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ (पर्याप्त तापमान, सौर प्रकाश, उचित वर्धन काल, नम जलवायु एवं मिट्टी की उपयुक्तता आदि) मिलती है । इसी उपयुक्तता के फलस्वरूप साग - सब्जियों , फूल - फल छोटे - छोटे खेतों तथा बाग - बगीचों में उत्पन्न किये जाते हैं । दिल्ली, चेन्नई, मुम्बई, कलकत्ता आदि बड़े नगरों के समीपस्थ क्षेत्रों में इस प्रकार की कृषि (एग्रीकल्चर इन हिंदी) देखी जा सकती है । साथ ही इससे हुई उत्पादन वृद्धि के फलस्वरूप भारत से आलू , प्याज आदि सब्जियों का निर्यात पश्चिमी एशियाई देशों को होने लगा है ।
उपर्युक्त विवेचना के आधार पर यह स्पष्ट है कि वैश्विक धरातल पर विभिन्न प्रकार की कृषि प्रणालियाँ परिस्थितियों, आवश्यकताओं, मांग एवं प्रौद्योगिकी के स्तर के आधार पर प्रचलित हैं ।
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कृषि के क्या लाभ है? | benefits of agriculture in hindi
भारतीय कृषि के लाभ (krishi ke labh) को देश की अर्थव्यवस्था से स्पष्ट किया जा सकता है ।
कृषि के प्रमुख लाभ (krishi ke labh) निम्नलिखित है -
- भारतीय कृषि राष्ट्रीय आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है ।
- सम्पूर्ण जनसंख्या का लगभग 67% भाग अपनी आजीविका कृषि से ही प्राप्त करता है ।
- देश के कुल भू - क्षेत्र में लगभग 49.8% भाग में खेती की जाती है ।
- कृषि देश का लगभग 103 करोड़ जनसंख्या को भोजन तथा 36 करोड़ पशुओं को चारा प्रदान करती है ।
- देश के महत्त्वपूर्ण उद्योग कच्चे माल के लिए कृषि पर ही आश्रित हैं ।
- चाय, जूट, लाख, शक्कर, ऊन, रुई, मसाले, तिलहन आदि के निर्यात से देश को पर्याप्त विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है ।
- कृषि देश के आन्तरिक व्यापार का प्रमुख आधार है । कृषि एवं कृषि वस्तुएँ केन्द्र एवं राज्य सरकारों को राजस्व उपलब्ध कराती है ।
- कृषि उत्पादन यातायात को पर्याप्त मात्रा में प्रभावित करता है ।
- विश्व कृषि अर्थव्यवस्था में भारतीय कृषि का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।
भारतीय कृषि की क्या विशेषताएं हैं? | characteristics of Indian agriculture in hindi
भारत एक प्राचीन एवं कृषि - प्रधान देश है, जहाँ हजारों वर्षों से निरन्तर कृषि - कार्य होता चला आ रहा है । फलत: कृषि भारतीयों के जीवन का एक मुख्य अंग बन गई है ।
भारतीय कृषि की प्रमुख विशेषताएँ -
- प्रकृति पर निर्भरता
- कृषि की निम्न उत्पादकता
- जीविका का प्रमुख साधन
- भूमि का असमान वितरण
- जोत की अनार्थिक इकाइयाँ
- मिश्रित खेती
- जीवन - निर्वाह के लिए कृषि
- कृषि की अल्पविकसित अवस्था
- उत्पादन की परम्परागत तकनीक
- वर्ष भर रोजगार का अभाव
- श्रम - प्रधान
- खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता
देश की अपनी मौलिक परिस्थितियों एवं विशेषताओं के सन्दर्भ में भारतीय कृषि की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं ।
जिनका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार किया जा सकता है -
( 1 ) प्रकृति पर निर्भरता -
भारतीय कृषि (agriculture in hindi) को प्रायः भाग्य का खेल कहा जाता है, क्योंकि कृषि मुख्यत: वर्षा की स्थिति पर निर्भर करती है । यही कारण है कि वर्षा की अनियमितता एवं अनिश्चितता भारतीय अर्थव्यवस्था को सर्वाधिक मात्रा में प्रभावित करती है । अर्थव्यवस्था का प्रत्येक क्षेत्र, चाहे वह उद्योग धन्धे हो अथवा व्यापार, प्राकृतिक प्रभावों से कभी अछूता नहीं बचता ।
( 2 ) कृषि की निम्न उत्पादकता -
भारत में कृषि (krishi) पदार्थों का प्रति एकड़ उत्पादन अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है । 2005-06 के अनुमानों के अनुसार भारत में एक हेक्टेयर भूमि में केवल 2,607 किग्रा गेहूँ, 2,093 किग्रा चावल, 375 किग्रा कपास तथा 1,176 किग्रा मूंगफली पैदा होती है । प्रति श्रमिक की दृष्टि से भारत में कृषि (agriculture in hindi) श्रमिक की औसत वार्षिक उत्पादकता केवल 450 डॉलर है ।
( 3 ) जीविका का प्रमुख साधन -
सन् 2001 ई० की जनगणना के अनुसार कार्यशील जनसंख्या का लगभग 67% भाग कृषि (agriculture in hindi) से आजीविका प्राप्त करता है ।
( 4 ) भूमि का असमान वितरण -
भारत में केवल 10% व्यक्तियों के पास कुल कृषि योग्य भूमि का 51.7% स्वामित्व है, जबकि दूसरी ओर 10% कृषक ऐसे हैं, जिनके पास कृषि योग्य भूमि का केवल 0.18% भाग उपलब्ध है । इतना ही नहीं, ग्रामीण क्षेत्र के लगभग 14% लोग भूमिहीन हैं । देश में औसत प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि की उपलब्धि मात्र 0.91% एकड़ है ।
( 5 ) जोत की अनार्थिक इकाइयाँ -
भारतीय कृषि की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यहाँ कृषि बहुत छोटे - छोटे क्षेत्रों (खेतों) पर की जाती है । सरैया सहकारी समिति के मतानुसार, भारतीय कृषि के उत्पादन में सबसे बड़ी बाधा अनुत्पादक व अलाभकारी जोते हैं । राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, यद्यपि सम्पूर्ण भारत में कृषि जोतों का औसत आकार 5-34 एकड़ है; तथापि लगभग 70% कृषक परिवार ऐसे हैं, जिन्हें कृषि भूमि का केवल 16% भाग ही प्राप्त है । भारत में कृषि जोतों का आकार केवल छोटा ही नहीं है अपितु व्यक्तिगत जोतें बहुत बिखरी हुई है ।
( 6 ) मिश्रित खेती -
मिश्रित कृषि (mixed farming in hindi) भारतीय कृषि की एक प्रमुख विशेषता है । इसका अभिप्राय यह है कि एक खेत में भारतीय कृषक एक से अधिक फसलें बोता है । पंजाब तथा उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में एक ही में जौ आदि उगाया जाता है । इस प्रकार की कृषि के स्थान पर विशिष्ट कृषि को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ।
( 7 ) जीवन - निर्वाह के लिए कृषि -
हमारे सामाजिक जीवन में कृषि जीवन की एक पद्धति है । व्यक्ति इसलिए खेती (kheti) नहीं करता कि उसके पास जीवन - यापन का कोई अन्य साधन नहीं है । कृषि उपज का अधिकांश भाग वह प्रयोग में ले लेता है । वस्तुत: वह कृषि (krishi) इसी अभिप्राय से करता है कि उसके परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए । वाणिज्यीकरण की ओर वह विशेष ध्यान नहीं देता । यही कारण है कि अभी तक केवल कुछ ही व्यापारिक फसलों का वाणिज्यीकरण सम्भव हो सका है ।
( 8 ) कृषि की अल्पविकसित अवस्था -
निरन्त प्रयासों के बावजूद भारतीय कृषि आज भी पिछड़ी हुई अवस्था में है । दुर्भाग्य से डॉ० क्लाउस्टन के कथन, "भारत में पिछड़ी हुई जातियाँ हैं, पिछड़े वर्ग हैं, पिछड़े उद्योग हैं और दुर्भाग्यवश कृषि उनमें से एक है" में आज भी सत्यता का कुछ अंश विद्यमान है ।
( 9 ) उत्पादन की परम्परागत तकनीक -
कृषि में उत्पादन के लिए अभी भी पुरातन तकनीकों का प्रयोग किया जाता है । यद्यपि आधुनिक युग में आधुनिक एवं नवीन तकनीकों का काफी विकास हुआ है तथापि भारतीय कृषक आज भी हल और खुरपी का प्रयोग करता है ।
( 10 ) वर्ष भर रोजगार का अभाव -
भारतीय कृषि कृषकों को वर्ष भर रोजगार प्रदान नहीं करती, भारतीय कृषक वर्ष में 140 से लेकर 270 दिन तक बेकार रहते हैं । इसी कारण कृषि में अर्द्ध - बेरोजगारी तथा अदृश्य बेरोजगारी की समस्या रहती है ।
( 11 ) श्रम - प्रधान -
भारतीय कृषि श्रम - प्रधान है अर्थात् भारत में पूँजी के अनुपात में श्रम की प्रधानता है ।
( 12 ) खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता -
भारतीय कृषि में खाद्यान्न फसलों की प्रमुखता रहती है । देश के कुल कृषि के 75% भाग में खाद्यान्न तथा 25% भाग में व्यापारिक फसलों का उत्पादन होता है ।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारतीय कृषि (indian agriculture in hindi) की अपनी कुछ निजी विशेषताएँ हैं, जिनके कारण भारतीय कृषि ने एक विशिष्ट स्थिति प्राप्त कर ली है ।
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भारतीय कृषि का महत्व एवं कार्य क्षेत्र | impotance & scope of agriculture in hindi
भारत गांवों का देश है । जनगणना 2011 के अनुसार भारत के कुल 6,40,867 गाँवों में देश की कुल जनसंख्या 1,21,01,93,422 का 68.8 प्रतिशत अर्थात् 83,30,87,662 लोग निवास करते हैं ।
इन गाँववासियों का प्रमुख व्यवसाय खेती - किसानी अर्थात् कृषि है । आर्थिक समीक्षा 2011-12 के अनुसार देश की श्रम - शक्ति का 59.70 प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र से ही आजीविका प्राप्त करता है ।
विगत तीन दशकों से भी अधिक अवधि में भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में हुए संगठित प्रयास के बावजूद भारतीय सामाजिक - आर्थिक व्यवस्था में कृषि (agriculture in hindi) का प्राथमिक एवं महत्त्वपूर्ण स्थान बना हुआ है ।
देश के उद्योग - धन्धे, विदेशी व्यापार संतुलन, विदेशी मुद्रा अर्जन, विभिन्न योजनाओं की सफलता यहाँ तक की देश का राजनीतिक - सामाजिक स्थायित्व भी कृषि (krishi) पर निर्भर है ।
इसके बावजूद भारतीय कृषि की दशा अधिक अच्छी नहीं है तथा यह अनेक समस्याओं से ग्रस्त है ।
यहाँ तक कि देश के अनेक भागों में किसान आत्महत्या करने तक को मजबूर हैं तथा अपने बच्चों को यथासंभव कृषि (agriculture in hindi) से दूर रखना चाहते हैं ।
भारत में कृषि का क्या महत्व है? | Importance of agriculture in india in hindi
प्राचीन काल से ही कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख क्षेत्र रहा है ।
प्रधान व्यवसाय होने के कारण कृषि भारत जैसे विकासशील देश की राष्ट्रीय आय का सबसे बड़ा स्रोत, रोजगार एवं "जीवन - यापन का प्रमुख साधन, औद्योगिक विकास, वाणिज्य एवं विदेशी व्यापार का आधार है ।
वस्तुत: कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ तथा विकास की कुंजी है । इसी आधार पर महात्मा गाँधी कृषि को 'भारत की आत्मा' मानते थे तथा भारत के पहले प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से अपने पहले संबोधन में कहा था, “कृषि को सर्वाधिक प्राथमिकता देने की आवश्यकता है ।"
कृषि विकास का क्या महत्त्व है? | importence of agricultural development in hindi
कृषि विकास के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कोल एवं हूवर का कथन है,
“सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए कृषि का विकास पहले होना चाहिए और यदि किसी क्षेत्र के अविकसित होने से दूसरे क्षेत्र के विकास में बाधा पड़ती है तो वह अविकसित क्षेत्र कृषि (agriculture in hindi) ही होगा जो अन्य क्षेत्रों के विकास को बाधित करेगा ।"
जबकि प्रो० शुल्ट्ज का मत है, "कोई भी अल्पविकसित राष्ट्र कृषि में आत्म - निर्भरता प्राप्त किए बिना आर्थिक विकास की कल्पना नहीं कर सकता ।"
भारत में कृषि की आवश्यकता क्यों है? need of agriculture in india in hindi
भारत जैसे विकासशील राष्ट्र, जिनका प्रमुख व्यवसाय कृषि है अपने सीमित साधनों द्वारा आर्थिक विकास की ऊँची दर तब तक प्राप्त नहीं कर सकते जब तक कि वे आधारभूत कृषि उद्योग का विकास न कर लें ।
प्राकृतिक संसाधनों (natural resources in hindi) की पर्याप्तता के बावजूद पूँजीगत एवं अन्य विशिष्टता प्राप्त संसाधनों की अपर्याप्तता के फलस्वरूप भारत जैसे विकासशील देश में औद्योगिकरण की धीमी प्रगति एवं तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण उत्पन्न श्रमशक्ति को रोजगार मात्र औद्योगिक क्षेत्र के बलबूते उपलब्ध नहीं कराया जा सकता वरन इसके लिए कृषि (krishi) एवं सम्बद्ध क्षेत्र को विकसित करके ही रोगजार के अवसर सृजित करने होंगे ।
दूसरे शब्दों में देश की आर्थिक प्रगति एवं बेरोजगारी दूर करने के लिए कृषि के विकास का अत्यधिक महत्त्व है ।
भारत में आर्थिक विकास के लिए कृषि (agriculture in hindi) विकास पर इसलिए भी विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है क्योंकि कृषि क्षेत्र में पूँजी- -उत्पाद अनुपात अधिक ऊँचा नहीं है ।
फलस्वरूप कम पूँजी लगाकर कृषि क्षेत्र में अधिक मात्रा में उत्पादन किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त कृषि (krishi) विकास के लिए विदेशी मुद्रा की उतनी आवश्यकता नहीं होती जितनी कि औद्योगिक विकास के लिए होती है ।
यही कारण है कि हमारे देश के योजनाकारों ने देश की प्रगति के लिए जो रूपरेखा तैयार की उसमें औद्योगिकरण के साथ ही कृषि के विकास पर विशेष बल दिया गया ।
डॉ० वी० के० आर० वी० राव ने भारत में कृषि की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा था, “यदि पंचवर्षीय योजनाओं के अंतर्गत विकास के विशाल पहाड़ को लांघना है तो कृषि (agriculture in hindi) के लिए निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करना आवश्यक है ।"