वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) क्या है इसके प्रकार एवं महत्व व कारक लिखिए

पोधें के वायवीय जीवित भाग से वाष्प के रूप में होने वाली जल की हानि वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) कहलाती है ।

वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) का मुख्य अंग पौधों की पत्तियां होती है ।


वाष्पोत्सर्जन क्या है अर्थ एवं परिभाषा लिखिए? | meaning and definitions of transpiration in hindi


वाष्पोत्सर्जन का अर्थ (meaning of transpiration in hindi) -

पौधे भूमि से जो जल की मात्रा ग्रहण करते हैं उससे कुछ अंश का ही अपने शरीर में अवशोषण करते हैं बाकी शेष जल की मात्रा को वाष्प के रूप में बाहर निकाल देते है जिसे वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) कहा जाता है ।


वाष्पोत्सर्जन की परिभाषा (defination of transpiration in hindi) - 

"पौधों के हवाई भागों से जल की वाष्प-रूप में हानि को वाष्पोत्सर्जन कहते है ।"

"The loss of water in the form of vapours, from the aerial parts of plant is known as transpiration."


वाष्पोत्सर्जन किसे कहते है? | what is transpiration in hindi

पौधों के विकास एवं अस्तित्व के लिये जल आवश्यक है तथापि पौधे के द्वारा शोषित जल में से बहुत थोड़ी मात्रा उसके जीवन कार्यों में लगती है, अधिकतर मात्रा जीवन कार्यों में भाग लिये बिना ही वायुमण्डल में चली जाती है । प्रकृति में पौधों की जल उपापचय व्यवस्था की यह एक भयानक अ-दक्षता है ।

हालाँकि पौधों के जीवन के लिये काफी जल की आवश्यकता होती है, इसके बावजूद भी पत्तियों की शारीरीय (anatomical) संरचना ऐसी होती है कि निरन्तर बड़ी मात्रा में जल की हानि होती रहती है ।


वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) का प्रदर्शन निम्नलिखित प्रयोग द्वारा किया जा सकता है -

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एक गमले में लगे पौधे को जल देकर (सींचकर) गमले को पोलीथीन से इस प्रकार ढ़क देते हैं जिससे कि उसकी सतह से वाष्पीकरण (evaporation in hindi) न हो । गमले को प्रकाश में रखकर बैल जार से ढ़क देते हैं ।

कुछ समय पश्चात् बैलजार की अन्दर की सतह पर जल की बूँदें जम जाती हैं । ये बूंदे पौधे के हवाई भागों से वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) द्वारा निकलती है ।


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वाष्पोत्सर्जन कितने प्रकार का होता है? | types of transpiration in hindi


वाष्पोत्सर्जन मुख्यत: तीन प्रकार का होता है -

  • रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन ( Stomatal transpiration )
  • उपचर्मी वाष्पोत्सर्जन ( Cuticular transpiration )
  • वात रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन ( Lenticular transpiration )


1. रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन ( Stomatal transpiration ) -

जड़ों के द्वारा भूमि से शोषित जल दारु वाहिनियों द्वारा पत्तियों के पर्णमध्योतक (mesophyll) कोशिकाओं में पहुँच जाता है इन कोशिकाओं की व्यवस्था बहुत ढीली होती है तथा इनके मध्य बड़े अन्तराकोशिकीय अवकाश होती है । जिससे इनकी सतह जल के वाष्पीकरण के लिये बिल्कुल आदर्श होती है । से अधिस्तरीय सतह में बहुत से सूक्ष्म छिद्र होते हैं इन्हें रन्ध्र कहते हैं । रन्ध्री छिद्र पत्ती के अन्तराकोशिकीय स्थानों में खुलते हैं जिससे पत्ती के अन्तराल का बाहरी वातावरण से सीधा सम्बन्ध हो जाता है जिससे वाष्प के रूप में जल बाहर निकलता है । सरन्यों से होने वाले वाष्पोत्सर्जन को रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन कहते हैं । अधिकतर वाष्पोत्सर्जन सरन्ध्रों के द्वारा ही होता है ।


2. उपचर्मी वाष्पोत्सर्जन ( Cuticular transpiration ) -

थोड़ी मात्रा जलवाष्प की हानि पत्तियों के अधिस्तरीय कोशिकाओं के उपचर्म (cuticle) से प्रत्यक्ष वाष्पीकरण द्वारा हो जाती हैं । इसे उपचर्मी वाष्पोत्सर्जन कहते हैं । उपचर्मी सतह से बहुत कम जल की हानि होती है क्योंकि यह जल के लिये अप्रवेश्य (impervious) होती है ।


3. वात रन्ध्री वाष्पोत्सर्जन ( Lenticular transpiration ) -

फलों तथा काष्टीय तनों में वातरन्ध्रों से कुछ जल वाष्पों की हानि होती है । इसे वातरन्ध्री वाष्पोत्सर्जन कहते हैं ।


वाष्पोत्सर्जन का क्या महत्व है? | Impotance of transpiration in hindi


वाष्पोत्सर्जन के पौधों में निम्नलिखित लाभ होते है -

  • वाष्पोत्सर्जन क्रिया से पौधों द्धारा अधिक मात्रा में अवशोषित जल पुन: वातावरण में चला जाता है ।
  • वाष्पोत्सर्जन क्रिया से पौधों का तापमान एक समान रहता है ।
  • वाष्पोत्सर्जन क्रिया पौधों की सतह ठंडी रखने में सहायक होती है ।
  • वाष्पोत्सर्जन क्रिया पौधों में पोषक तत्वों के परिसंचरण में सहत्यक होती है ।


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वाष्पोत्सर्जन की माप की विधियों का वर्णन कीजिये? | methods of measuring transpiration in hindi 

वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) मापने के लिये कई विधियों का प्रयोग किया जाता है ।


सामान्यतः ये विधियाँ दो सिद्धान्तों पर आधारित होती है -

1. अवशोषण किये जल की माप - ये विधियाँ इस सिद्धान्त पर आधारित हैं कि सामान्य दशाओं में वाष्पोत्सर्जन की दर, अवशोषण की दर के समान होती है । हालाँकि इस नियम के बहुत से अपवाद पाये जाते हैं ।

2. पौधे से वाष्पोत्सर्जित जल वाष्प की माप - ये प्रत्यक्ष रूप से वाष्पोत्सर्जित जल वाष्प की माप होती है ।


वाष्पोत्सर्जन की माप की प्रमुख विधियां निम्नलिखित है -

  • तोल विधियाँ ( Weighing Methods )
  • पोटोमीटर विधि ( Potometer Method )
  • कोबाल्ट क्लोराइड विधि ( Cobalt Chloride Method )
  • वाष्पोत्सर्जित जल-वाष्प को एकत्रित कर तोलने की विधि ( Method of collecting transpirated water and weighing )


1. तोल विधियाँ ( Weighing Methods ) –

यह सबसे सरल विधि है । किसी गमले वाले पौधों को प्रारम्भ में तोल लिया जाता है तथा फिर उसे निश्चित समय के उपरान्त तोल लिया जाता है । गमले तथा मिट्टी वाली सतह से जल वाष्पीकरण रोकने के लिये गमले की सम्पूर्ण सतह को किसी प्लास्टिक, रबड़ अथवा एल्युमीनियम पर्त से लपेट दिया जाता है । प्रथम तथा द्वितीय तोल में अन्तर पौधे द्वारा वाष्पोत्सर्जित जल के बराबर होगा । प्रकाश संश्लेषण द्वारा भार में वृद्धि या श्वसन से भार में कमी विशेष महत्व नहीं रखती है । इस विधि का उपयोग केवल उन पौधों के लिये ही किया जा सकता है जिन्हें आसानी से, गमलों में उगाना सम्भव होता है ।


2. पोटोमीटर विधि ( Potometer Method ) –

पोटोमीटर विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि अवशोषण किये गये जल की दर वाष्पोत्सर्जन की दर के लगभग समान होती है । पोटोमीटर के द्वारा वाष्पोत्सर्जन की दर (ठीक रूप से, अवशोषण की दर) मापी जा सकती है । पोटोमीटर विधि वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले वातावरणीय कारकों (जैसे - तापक्रम, प्रकाश, वायु गति इत्यादि) के प्रभाव का निरीक्षण करने की आदर्श विधि है । हालाँकि इसकी विश्वसनीयता सीमित है, क्योंकि इस विधि से वास्तव में, वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) की अपेक्षा अवशोषित जल की माप होती है । कुछ दशाओं में इन दोनों में काफी अन्तर हो सकता है । कई प्रकार के पोटोमीटर प्रयोग में लाये जाते हैं । हालाँकि इनकी कार्यविधि एक सिद्धान्त पर आधारित है ।


( i ) गैनांग का पोटोमीटर ( Genong's Potometer ) -

यह एक संयुक्त उपकरण होता है । इसकी रचना में, एक क्षैतिज कैपीलरी नली (horizontal capillary tube), जिसके एक सिरे पर चौड़े मुँह वाली ऊपर से खुली ऊर्ध्वाधर (vertical) नली तथा दूसरे पर मुड़ी नली तथा रोधनी लगा जल - आशय (water reservoir), भाग लेते हैं ।

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गैनांग का पोटोमीटर विधि द्वारा वाष्पोत्सर्जन की माप

पूरे उपकरण को जल से भर लिया जाता है । ऊर्ध्वाधर नली (vertical tube) में छिद्र वाली कार्क के द्वारा ताजी काटी हुई शाखा लगा दी जाती है । उपकरण को सूर्य के प्रकाश में रख देते हैं । वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) होने से क्षैतिज नली में जल ऊपर खिंचने लगता है । जिससे मुड़ी नली के सिरे के छिद्र से हवा का बुलबुला नली में प्रवेश कर जाता 1 इसके तुरन्त बाद इसे जल से भरे बीकर में डुबा दिया जाता है । जैसे - जैसे शाखा पानी का अवशोषण करती है, वैसे ही हवा का बुलबुला क्षैतिज (horizontal) कैपीलरी नली में गति करता है ।

यह वाष्पोत्सर्जन की दर (वाष्पोत्सर्जन अवशोषण) का प्रतीक है । अंकित (graduated) क्षैतिज (horizontal) कैपीलर नाल पर बुलबुले की गति से वाष्पोत्सर्ज की दर ज्ञात कर ली जाती है । प्रथम निरीक्षण के बाद जल - आशय (water reservoir) की रोधनी (stopcock) को खोलकर हवा के बुलबुले को वापिस पीछे कर देते हैं तथा फिर से निरीक्षण कर लेते हैं । इस प्रकार इस प्रयोग को लगातार कई बार दोहराया जा सकता है । यह सबसे उन्नत (improved) पोटोमीटर है ।


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3. कोबाल्ट क्लोराइड विधि ( Cobalt Chloride Method ) –

इस विधि में वाष्पोत्सर्जन का प्रतीक “रंग में परिवर्तन” (change in colour) होता है । फिल्टर-पत्र (filter paper) के चक्रिकाओं (discs) को कोबाल्ट क्लोराइड के 3% के हल्के अम्लीय घोल में भरपूर तर करके (impregnated) पूर्णतः सुखा लिया जाता है । सूखने पर इनका रंग नीला हो जाता है परन्तु जब इन सूखे कोबाल्ट क्लोराइड से तर पत्रों नम हवा में रखा जाता है तो इनका रंग धीरे - धीरे गुलाबी (pink ) होने लगता है । इस प्रकार से, जब इन कोबाल्ट क्लोराइड से तर सूखे पत्रों को वाष्पोत्सर्जित पत्ती के सम्पर्क में लाया जाता है तो यह धीरे - धीरे नीले से गुलाबी रंग में परिवर्तित होने लगती है । रंग परिवर्तन की दर, वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) की दर का प्रतीक होती है ।

कोबाल्ट क्लोराइड विधि का प्रयोग केवल विभिन्न पौधों की आपेक्षित वाष्पोत्सर्जन की दर को मापने के लिये किया जा सकता है । वातावरणीय दशाओं में परिवर्तन होने से, इस विधि द्वारा दर्शायी गयी -

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कोबाल्ट क्लोराइड विधि वाष्पोत्सर्जन की माप

वाष्पोत्सर्जन की दर में वास्तविक वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) की दर से काफी भिन्नता हो सकती है । दूसरे पत्ती की ढकी हुई सतह पर हवा की गति नहीं रहती है तथा प्रकाश नहीं मिलता है तथा वाष्प - दाब - प्रवणता (vapour pressure gradient) कम हो जाती है । इसलिये इस विधि से वाष्पोत्सर्जन की मात्रा व दर की ठीक माप नहीं हो सकती है ।


4. वाष्पोत्सर्जित जल-वाष्प को एकत्रित कर तोलने की विधि ( Method of collecting transpirated water and weighing ) -

यह प्रत्यक्ष रूप से, वाष्पोत्सर्जन मापने की विधि है । इसमें पौधे को काँच के बर्तन में बन्द कर, उससे वाष्पोत्सर्जन जल वाष्प को एकत्र कर तोल लिया जाता है । पौधे को काँच के ऐसे उपकरणों में रखा जाता है जिससे दोनों ओर वायु जाने के रास्ते रहते हैं । एक ओर ऐसी काँच की नली लगी रहती है जिसमें भार लिया हुआ जल - शोषक पदार्थ जैसे निर्जल कैल्शियम क्लोराइड (anhydrous calcium chloride) भरा रहता है ।

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वाष्पोत्सर्जित जल-वाष्प को एकत्रित कर तोलने की विधि

अब पौधे पर होकर ज्ञात आर्द्रता (moisture) वाली वायु प्रवाहित की जाती है जो कि पौधे से गुजर निर्जल कैल्शियम क्लोराइड में होकर प्रवाहित होती है । लगातार वायु प्रवाहित करने से उपकरण के अन्दर की वायु की आर्द्रता (moisture) बाहरी वायुमण्डलीय वायु के समान बनी रहती है । वायु प्रवाहित करने के बाद कैल्शियम क्लोराइड को तोल लिया जाता है ।

दोनों तोल का अन्तर वायु की आर्द्रता (moisture) की मात्रा के बराबर होती है । वायु में आर्द्रता की मात्रा पौधे रहित उपकरण में वायु प्रवाहित करके, ज्ञात कर ली जाती है । कैल्शियम क्लोराइड के भार में वायु प्रवाहित करने के बाद का भार- वायु प्रवाहित करने से पहले का भार का अन्तर वायु में आर्द्रता की मात्रा के समान होता है । वाष्पोत्सर्जन की माप, पौधे पर प्रवाहित हवा से कैल्शियम क्लोराइड के भार व पौधे रहित उपकरण में प्रवाहित कैल्शियम क्लोराइड के भार में अन्तर के बराबर होती है ।


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वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक लिखिए? factors affecting transpiration in hindi

रन्ध्र गति को प्रभावित करने वाले कारक, वाष्पोत्सर्जन की दर को भी प्रभावित करते है । हालाँकि, दूसरे कारक भी वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) की दर को प्रभावित करते हैं ।

ये पादप कारक या वातावरणीय कारक हो सकते हैं जिनका कि वाष्पोत्सर्जन पर काफी प्रभाव पड़ता है । इसके अलावा भूमि में उपलब्ध जल की मात्रा भी वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करती है ।


वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित है -

1. पादप कारक ( Plant Factors )

  • मूल - स्तम्भ अनुपात ( Root - shoot ratio )
  • पत्ती क्षेत्र ( Leaf area )
  • पत्तियों की संरचना ( Leaf structure )

2. वातावरणीय कारक ( Environmental Factor )

  • प्रकाश ( Light )
  • वायु की आर्द्रता ( Humidity of the air )
  • तापक्रम ( Temperature )
  • पवन ( Wind )
  • मृदा जल की उपलब्धता ( Availability of soil water )


1. पादप कारक ( Plant Factors )


मूल - स्तम्भ अनुपात ( Root - shoot ratio ) -

ऐसी स्थिति में जहाँ अच्छे वाष्पोत्सर्जन के लिये सब परिस्थितियाँ उपस्थित होती हैं तब अवशोषण करने वाली सतह (मूल सतह) तथा वाष्पीकरण सतह (पत्ती सतह), की दक्षता वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) की दर को प्रभावित करती है । यदि जल का अवशोषण, वाष्पोत्सर्जन से कम हो जाता है तो पौधे में जल की न्यूनता हो जायेगी जिससे वाष्पोत्सर्जन भी कम हो जायेगा । मूल - स्तम्भ अनुपात बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन भी बढ़ जाता है । ज्वार में प्रति इकाई पत्ती सतह, मक्का से अधिक वाष्पीकरण होता है क्योंकि ज्वार का द्वितीयक मूल विकास, मक्का की अपेक्षा अधिक होता है । अर्थात् ज्वार का मूल संस्थान पौधे को, मक्का के मूल संस्थान की अपेक्षा अधिक जल प्रदान करता है ।


पत्ती क्षेत्र ( Leaf area ) -

यह तथ्य पूर्णतः सत्य है कि जितना ही पत्ती का क्षेत्र अधिक होगा उतनी ही अधिक मात्रा में जल - हानि होगी । हालाँकि पत्ती के क्षेत्र तथा जल हानि में अनुपात इस तथ्य के अनुसार मेल नहीं खाता है । प्रति इकाई क्षेत्र के आधार पर, छोटे पौधे बड़े पौधों की अपेक्षा अक्सर अधिक वाष्पोत्सर्जन करते हैं हालाँकि पूर्ण जल - हानि बड़े पौधों में कहीं अधिक होती है ।


पत्तियों की संरचना ( Leaf structure ) -

शुष्क आवासीय पौधों में, विशेषकर पत्तियों में कई प्रकार के रचनात्मक रूपान्तर होते हैं जिनसे जल - हानि कम होती है । इस प्रकार से इन मरुदभिदी पौधों की पत्तियों पर मोटी क्यूटिकिल, मोटी कोशा भित्ति , सुविकसित पैलीसेड पैरेन्काइमा, धसें सरन्ध्र आदि होते हैं । ये गुण वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करते हैं ।


2. वातावरणीय कारक ( Environmental Factor )

वाष्पोत्सर्जन की दर को बहुत से वातावरणीय कारक प्रभावित करते हैं । इनमें सबसे प्रमुख प्रकाश, वायु की आर्द्रता, तापक्रम, वायु तथा भूमि से उपलब्ध पानी की मात्रा है । पौधों में वाष्पोत्सर्जन एक समय में कई कारकों से एक साथ प्रभावित होता है जो कि एक दूसरे के प्रभाव को बढ़ा या घटा सकते हैं ।


प्रकाश ( Light ) –

वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारकों में प्रकाश सबसे प्रमुख स्थान रखता है क्योंकि इसका रन्ध्र - गति में मुख्य प्रभाव होता है । प्रकाश में सरन्ध्र खुले रहते हैं । जिससे वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) होता है । अन्धेरे में सरन्ध्र बन्द हो जाते हैं जिससे वाष्पोत्सर्जन, आवश्यक रूप से, बन्द हो जाता है । इसलिये, दूसरे वातावरणीय कारकों का प्रभाव प्रकाश की उपस्थिति पर निर्भर करता है ।


वायु की आर्द्रता ( Humidity of the air ) -

आमतौर से, पत्तियों का आन्तरिक वायुमण्डल संतृप्त होता है या लगभग इस स्थिति का मान होता है । दूसरी ओर बाह्य वायुमण्डल सामान्यतः असंतृप्त अवस्था में होता है । इसलिये आन्तरिक तथा वायुमण्डल में वाष्प दाब प्रवणता बन जाती है और जल वाष्प सरन्ध्रों से अधिक वाप्प दाब से कम वाष्प दाब की ओर विसरित होने लगती है । वाष्प दाब प्रवणता का ढ़लाव जितना ही अधिक होगा उतना ही तेजी से वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) होगा ।


तापक्रम ( Temperature ) -

यदि दूसरे सब कारक स्थिर रहें तो तापक्रम के बढ़ने वाष्पोत्सर्जन बढ़ता है क्योंकि तापक्रम का प्रभाव रन्ध्र - गति तथा वाष्प - दाब प्रवणता पर पड़ता है । जैसा कि पहले बताया जा चुका है 0°C पर सरन्ध्र बन्द हो जाते हैं 30°C तक तापक्रम बढ़ने से रन्ध्र अधिक खुलता रहता है । इसके साथ ही तापक्रम बढ़ने से आन्तरिक तथा बाह्य वायुमण्डल में वाष्प - दाब प्रवणता का ढलाव बढ़ता है ।


पवन ( Wind ) –

वाष्पोत्सर्जन करने वाली पत्ती के पास वाली वायु में जल वाष्प बढ़ती है जिससे वाप - दाब प्रवणता कम हो जाती है तथा वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है । परन्तु यदि ये एकत्र हुई जल वाष्प पवन से पत्ती वायु से दूर हटा दी जाती है तो वाष्पोत्सर्जन फिर बढ़ जायेगा । पवन के परिणामस्वरूप वाष्पोत्सर्जन में वृद्धि पवन गति के अनुपात में नहीं होती है । पौधे के पवन के एक दम सम्पर्क में आने से वाष्पोत्सर्जन की दर तेजी से बढ़ती है परन्तु पवन की तेज गति से सरन्ध्र बन्द हो जाता है जिनसे अन्ततः वाष्पोत्सर्जन घट जाता है इसलिये पवन का वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) पर वास्तव में धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनों प्रकार का प्रभाव होता है ।


मृदा जल की उपलब्धता ( Availability of soil water ) -

यदि जल का अवशोषण (absorption) कम है तो अल्पकाल तक वाष्पोत्सर्जन पर कोई खास प्रभाव प्रतीत नहीं होता । है परन्तु यदि ऐसी अवस्था देर तक बनी रहती है तो पौधे में जल वाष्प न्यूनता हो जायेगी तथा पौधा मुरझा जायेगा । इससे स्पष्ट है कि मृदा से जल की उपलब्धता तथा जड़ों द्वारा अवशोषण की दक्षता वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) की दर को अत्यधिक प्रभावित करती है ।


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वाष्पोत्सर्जन की सार्थकता क्या है? | significance of transpiration in hindi


वाष्पोत्सर्जन की सार्थकता -

  • शीतलन प्रभाव ( Cooling effect )
  • वृद्धि एवं विकास पर प्रभाव ( Effect on Growth and Development )
  • खनिज लवण अवशोषण पर प्रभाव ( Effect on Mineral Salt Absorption )


( 1 ) शीतलन प्रभाव ( Cooling effect ) -

वाष्पोत्सर्जन का पौधे के लिये लाभ या हानि शरीर क्रिया वैज्ञानिकों के लिये एक वाद - विवाद का विषय रहा है । कुछ वैज्ञानिकों का विचार है कि वाष्पोत्सर्जन के शीतलन प्रभाव के कारण पौधा अत्यधिक गर्म होने से बचा रहता है हालाँकि उन अवस्थाओं में उगे पौधे जहाँ वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) नहीं के बराबर होता है पौधे अधिक गर्म नहीं होते हैं । जिससे यह प्रमाणित होता है कि वाष्पोत्सर्जन का शीतलन प्रभाव पौधे के लिये वास्तविक सार्थकता नहीं रखता है ।


( 2 ) वृद्धि एवं विकास पर प्रभाव ( Effect on Growth and Development ) -

कुछ अप्रत्यक्ष प्रमाण यह प्रदर्शित करते हैं कि वाष्पोत्सर्जन पौधे की वृद्धि को प्रभावित करता हैं । वैनब्रगर (1958) ने निरीक्षण किया कि नाशपाती तथा सूर्यमुखी में अत्यधिक आर्द्रता पर कलियों तथा पौधों की वृद्धि अच्छी नहीं होती है । क्योंकि अत्यधिक आर्द्रता होने पर वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) ही नहीं होता है इसलिये वैनबगर ने निर्णय दिया कि वाष्पोत्सर्जन की अनुपस्थिति में पौधों की सामान्य वृद्धि नहीं होती है ।


( 3 ) खनिज लवण अवशोषण पर प्रभाव ( Effect on Mineral Salt Absorption ) -

क्योंकि खनिज लवण तथा पानी भूमि में साथ - साथ उपस्थित रहते हैं तथा दोनों का अवशोषण जड़ों द्वारा होता है इसलिये पहले पादप शरीर क्रिया वैज्ञानिकों ने सोचा कि लवणों का अवशोषण तथा स्थानान्तरण वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) द्वारा होता है । परन्तु 1930 के लगभग किये गये अध्ययन ने यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित कर दिया कि लवणों का अवशोषण एक क्रियाशील प्रक्रम है जिसमें चयापचयी ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है । जल अवशोषण के साथ अति सूक्ष्म मात्रा में लवण अवशोषित होते हैं । अर्थात् निष्क्रिय अवशोषण द्वारा लवणों का अवशोषण बहुत कम होता है । हालाँकि लवणों का एक बार अवशोषण होने पर तथा उनका दारु वाहिनियों में पहुँचने पर उनका स्थानान्तरण तथा वितरण वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) के द्वारा निश्चित रूप से प्रभावित होता है ।


"वाष्पोत्सर्जन एक आवश्यक बुराई है।" इस कथन की पुष्टि कीजिये?


वास्तव में, पौधे को लाभ पहुँचाने के बजाय, वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) अक्सर पौधे के लिये घातक होता है । मृदा में जल न्यूनता (water deficit) होने अथवा वाष्पोत्सर्जन की अधिक दर होने से पौधे में जल की कमी हो जाती है तथा कोशिकाओं की स्फीति कम हो जाती है । जैसे कि लम्बे सूखे की स्थितियों में पौधे सूख जाते हैं तथा कुछ सूखा - अवरोधक जातियों के अलावा पौधे जाते हैं । जब जल की कमी आपेक्षित कम होती है तो कोशिकाओं की स्फीति घट जात बन्द हो जाते हैं ।

प्रकाश संश्लेषण की गति धीमी पड़ जाती है । इन सब की वजह से पौधे की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है । शायद यह सत्य है कि पौधे की वृद्धि में जल सबसे बड़ा सीमाकारक । प्राकृतिक दशाओं में पानी की कमी से सबसे अधिक पौधे मरते हैं । रन्ध्र गति से गैस विनिमय सम्बन्धित होता है इसलिये वाष्पोत्सर्जन (transpiration in hindi) पौधे में जल - न्यूनता की स्थिति में भी होता है । जिससे पानी की अनावश्यक हानि होती है । इसलिये करटीस 1926 ने वाष्पोत्सर्जन को आवश्यक बुराई" कहा ।