पादप प्रजनन क्या है इसकी प्रमुख विधियां एवं उद्देश्य व महत्व लिखिए

आर्थिक उपयोग के लिए पोधों की आनुवांशिकी में उत्थान तथा परिवर्तन करने की कला एवं विज्ञान को पादप प्रजनन (plant breeding in hindi) कहते हैं ।

पादप प्रजनन के क्षेत्र में कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए मक्का संकर किस्मों का विकास, गेहूं तथा चावल की बोनी किस्म का विकास दो प्रमुख घटनाएं हैं ।

पादप प्रजनन का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए? | meaning of plant breeding in hindi

पादप प्रजनन का अर्थ (meaning of plant breeding in hindi) - पादप प्रजनन कला एवं विज्ञान दोनों है जिसमें पौधों को अधिक आर्थिक महत्व की दृष्टि से उनमें आनुवंशिक सुधार किया जाता है ।


वैलीलोव (1887-1942) ने पादप प्रजनन की इस प्रकार से परिभाषा दी है —

“पादप प्रजनन एक विज्ञान, एक कला तथा कृषि कार्य की एक शाखा है ।"

"Plant breeding is the science, an art and a branch of agricultural practices."

पादप प्रजनन की परिभाषा फ्रैन्कल (1958) के अनुसार -

“पादप प्रजनन मानव उपयोग के लिए पौधों का आनुवंशिक समायोजन है ।”

"Plant breeding is the genetic adjustment of plants to the service of man."


पादप प्रजनन क्या है? | padap parjanan | plant breeding in hindi

पादप प्रजनन पौधों की प्रजातियों का एक अनुवांशिक उद्देश्यपूर्ण परिचालन है जिसमें पौधों की नई किस्मों का विकास किया जाता है ताकि उन किस्मों की उत्पादन क्षमता, रोग प्रतिरोधी क्षमता एवं उपज के गुणों में सुधार किया जा सकें ।

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पादप प्रजनन की विधियाँ लिखिए? methods of plant breeding in hindi

जनन विधियों का ज्ञान पादप प्रजनन (plant breeding in hindi) के लिए एक मौलिक महत्व रखता है किसी भी प्रजनन कार्य में जनन की विधियों का ज्ञान आवश्यक है जनन प्रणालियों के आधार पर प्रजनन की विधियां निम्न प्रकार की होती है ।


पादप प्रजनन की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित है -

1. स्व - परागित फसलों में प्रजनन की विधियाँ ( Methods of Breeding for Self - pollinated Crops )

( i ) प्रवेशन ( Introduction )
( ii ) वरण ( Selection )
( a ) पुंज चयन ( Mass Selection )
( b ) विशुद्ध वंशाक्रम वरण ( Pure Line Selection )

( iii ) प्रसंकरण ( Hybridization )
( a ) वंशावली विधि ( Pedigree Method )
( b ) प्रपुंज विधि ( Bulk Method )
( c ) पुंज वंशावली विधि ( Mass Pedigree Method )
( d ) संकर पूर्वज संकरण ( Back cross Method )
( c ) बहुसंकरण ( Multiple Crosses )


2. पर - परागित फसलों में प्रजनन की विधियाँ ( Method of Plant Bredding for Cross Pollinated Crops )

( i ) प्रवेशन ( Introduction )
( ii ) वरण ( Selection )
( a ) पुंज चयन ( Mass Selection )
( b ) संतति वरण एवं वंशक्रम प्रजनन ( Progeny Selection and Line Breeding )
( c ) प्रत्यावर्ती वरण ( Recurrent Selection )

( iii ) प्रसंकरण ( Hybridization )
( a ) संकर किस्में ( Hybrid varities )
( b ) संश्लिष्ट किस्में ( Synthetic varicties )


3. वनस्पति प्रवर्धित फसलों में प्रजनन की विधियाँ ( Method of Plant Breeding for Vagetatively Propogated Crops )

( i ) प्रवेशन ( Introduction )
( ii ) वरण ( Selection )
( a ) कृतन वरण ( Clonal selection )

( iii ) प्रसंकरण ( Hybridization )

प्रजनन की नयी तकनीक ( New Breeding Techniques )

( i ) उत्परिवर्तन ( Mutation )
( ii ) बहुगुणिता ( Polyploidy )


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पादप प्रजनन का कृषि में क्या महत्व है? Impotance of plant breeding in hindi

पादप प्रजनन में अधिक बल कृषि की पैदावार बढ़ाने में दिया गया है । संसार की सीमित भूमि में निरन्तर बढ़ती हुई आबादी को पूरा भोजन देने के लिये पैदावार को बढ़ाना अत्यन्त आवश्यक है । अधिक तथा पूर्ण भोजन प्राप्ति के थोड़े समय को छोड़कर, मानव, दूसरे प्राणियों की जनसंख्या की तरह भूख से पीड़ित रहा है ।

पादप प्रजनन का प्राथमिक उद्देश्य, ऐसी किस्मों तथा संकर किस्मों से है जो सर्वोत्तम पाटप भोज्य पदार्थ प्रदान करें तथा जो प्रति इकाई क्षेत्र अधिकतम मूल्य दें और जो कृषकों तथा उपभोक्ताओं की अधिकतम पूर्ति करें ।

ऐसी किस्मों को उत्पन्न करना भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है जो कि तुषार प्रतिरोधक, सूखा प्रतिरोधक, रोग प्रतिरोधक तथा कीट प्रतिरोधक हो जिससे अधिकतम उपज प्राप्त की जा सके ।

मूलर (1935) ने जीन्स के ज्ञान तथा उन्हें नियन्त्रण करने के महत्व का वर्णन करते हुए कुछ निम्लिखित विचार व्यक्त किये थे । जीवों में अत्यधिक विभिन्नतायें होती हैं तथा हम भविष्य को इस दृढ़ विश्वास से देखते हैं यदि संश्लेषित रसायन विज्ञान ने कृषि का स्थान नहीं ले लिया तो पृथ्वी की पूरी सतह अच्छी बढ़वार वाली फसलों से ढ़क जायेगी जो कि पैदा करने में सरल तथा इसके साथ प्राकृतिक शत्रुओं तथा वातावरण से प्रतिरोधी (resistant) और सब भागों को तुरन्त उपयोग करने योग्य होगी ।

यह कार्य साधारण मनुष्य की सोच से कहीं अधिक बड़ा है क्योंकि यहाँ पर पौधों की कई हजार जंगली जातियाँ हैं जिनकी विभिन्न क्षमतायें परीक्षण करनी हैं तथा बहुत - सी कृषिगत तथा जंगली जातियों की कई सौ जातियाँ और उनकी हजारों व्यक्तिगत भिन्नतायें पायी जाती हैं ।

परिश्रम से क्रास विधि द्वारा, ये भिन्न - भिन्न प्रकार इच्छित संयोजनों तथा पुनः संयोजनों में प्राप्त करके विशेष रुप व गुण वाली हाइब्रिड तथा किस्में पैदा की जा सकती हैं जो कि विभिन्न भौगोलिक जलवायु, स्थान तथा वहाँ की जरुरतों के अनुरुप हो तथा प्रसंकरण (hybridization) सामर्थ्य में नयी आनुवंशिक प्रकार म्यूटेशन के द्वारा पैदा हुई जोड़ ली जाय ।

इस प्रकार से परिवर्तन तथा अनुकूलता का पथ वास्तव में असीमित है ।


पादप प्रजनन के उद्देश्य लिखिए? purpose of plant breeding in hindi


पादप प्रजनन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित है -

  • अधिक उत्पादकता ( High Productivity )
  • उत्पादन क्षेत्र का प्रसार ( Extension in Productive Area )
  • रोग प्रतिरोधता ( Disease Resistance )
  • कीट प्रतिरोधता ( Insect Resistance )
  • सूखा प्रतिरोधता ( Drought Resistance )
  • शीत प्रतिरोधता ( Cold Resistance )
  • झुकाव प्रतिरोधता ( Lodging Resistance )
  • गुणवत्ता ( Quality )
  • यान्त्रिक अनुकूलनशीलता ( Mechanical Adptability )
  • पैट्रोलियम पादपरोपण ( Petroleum Plantation )
  • औषधियों के स्त्रोत पौधे ( Plants as a Source of Medicine )


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पादप प्रजनन के प्रमुख उद्देश्य का वर्णन कीजिए?


अधिक उत्पादकता ( High Productivity )

पिछले कुछ वर्षों में अनेक देशों में विभिन्न फसलों की उत्पादकता में असाधारण वृद्धि हुई है जो कि मुख्यतः पादप प्रजननकों की उपलब्धियों की परिणाम है । इसीलिये पादप प्रजनन की विभिन्न फसलों पर व्यवस्थित कार्यक्रम पर बल देने की आवश्यकता है ।

बहुत - सी महत्त्वपूर्ण फसलें जैसे मक्का, मिलेट, कोफी, मूंगफली, लिची, लोकाट, अमरुद पपीता अंगूर तथा बहुत से दूसरे उगाये जाने वाले पौधे हमारे देश में बाहर देशों के मूल हैं । आस्ट्रेलिया की रिडले किस्म उत्तरी भारत के पहाड़ी भागों के लिए लाभदायक साबित हुई हैं । दूसरी किस्में जैसे सोयो टमाटर, अर्ली बदयर तथा बोनविली मटर, बरमूदा येलो तथा टैक्सास ग्रेनों प्याज तथा F. A. 17 शक्करकन्द यहाँ बहुत उपयोगी साबित हुई हैं ।

अभी बाजरे की एक किस्म इमप्रूवड घाना जो कि घांना (अफ्रीका) से मॅगाई गई है द्वितीय वरण के बाद रही है । पाल सिंह ने अपने ही देश में से 'Abulmoscous uberculatits' नामक एबलमोस्कस की जाति की खोज की है जो जैविक भिन्नताओं की उपस्थिति का अच्छा उदाहरण है । यह जाति पीत शिरा मोजेक वाइरस के लिये प्रतिरोधी पायी गई है । पादप प्रवेशन की ब्यौरा ऑकन इन उदाहरण से हो सकता है ।

संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग के आँकड़ों से पता चलता है कि सोयाबीन जो कि एशिया से लगभग 300 वर्ष पहले वहाँ प्रवेशन की गई थी अब इसका प्रतिवर्ष अरबों डालर्स में व्यवसाय होता है । कोरिया से एकत्र किये गये थोड़े से कोरियन लैसपेडजो से 120 अरब डालर की वार्षिक आय होती है ।

कुछ सख्त लाल शीतकालीन गेहूँ की किस्में जैसे ओनास, व्हाइट फेडरेशन, बारद, कुबन्का संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 27 अरब एकड़ में उगायी जाती है । इसकी समानान्तर भारत में प्रवेशन के लिए महेश्वरी तथा टन्डन (1959) ने विस्तृत आँकड़े दिये हैं । इसके महत्व को समझकर I.A.R.I. नई दिल्ली में पादप प्रवेशन का नया विभाग खोला गया है जो कि देश में खोजकर्ताओं को पादप सामग्री उपलब्ध कराने का प्रमुख साधन है ।

वरण के द्वारा तथा संकरण की सहायता से सम्बन्धित प्रजनन कार्य के द्वारा फसलों में काफी सुधार किया है । इस अत्युत्तम कार्य का उदाहरण मक्का में किये गये सुधार से दिया जा सकता है । वुडवर्थ तथा साथियों (1952) की रिपोर्ट के अनुसार भुट्टा - पंक्तिवरण (ear to row selection) के द्वारा तेल की मात्रा 10.92% से 19.45% तथा प्रोटीन की मात्रा 4.70% से 15.36% पिछले 50 वर्णे में बढ़ी हुई प्राप्त कर ली गई है । इसी प्रकार चुकन्दर में वरण के द्वारा निम्नलिखित परिणाम प्राप्त हुये हैं ।

बहुत - सी नई जातियों की अधिक उत्पादकता के लिये, एक अकेला गुण संकर ओजपूर्णता (hybird vigour) उत्तरदायी है ।

जेन्कीन्स (1951) ने पादप प्रजनन के महत्व के बहुत से उदाहरण प्रस्तुत किये हैं उदाहरणतया आयोवा में संकर मक्का आने से पहले मक्का की उपज 1924 से 1935 तक 37.8 बुशलश प्रति एकड़ थी जो संकर मक्का से 1939 से 1946 तक 53.4 बुशलश प्रति एकड़ हो गई जिससे 41.3% बढ़ोत्तरी हुई उसमें उन्नत किस्मों के अलावा दूसरी उन्नत कृषण क्रियायें भी शामिल हैं ।

भारतवर्ष में चावल की उन्नत किस्मों I. R.8, A.D.T. 2, टाइचूना 65, टाइनान -2 एवं से 7000 हजार पौंड उपज प्रति एकड़ 1200 पौंड की अपेक्षा बढ़ी है ।

गेहूँ की नई प्रवेशन तथा संकरण से प्राप्त किस्मों सोनारा-64, लर्मा रोजो, शरबती सोनारा, L. 22, सफेद लर्मा तथा सोनालिका से काफी अधिक उपज प्राप्त हुई है; बाजरे की H.B. - I, ज्वार की C.S.H. - 1, तथा C.S.H. - 2 अच्छी प्रमाणित हुई है ।

मक्का की संकर जातियाँ गंगा 101, गंगा -3, गंगा सफेद -2 रजनीत दक्खन, हिमालयन 123, हीस्टार्च विभिन्न भागों के लिए मान्य है तथा इसकी संयुक्त किस्में जवाहर, अम्बर, विजय सोना, विक्रम, किसान विभिन्न क्षेत्रों के लिये मान्य (recommended) हैं ।

कोयम्बटूर में समशीतोष्ण गन्ने के सुधार कार्य से उन्नत किस्में Co. 205, Co. 312, Co. 319, Co. 421, Co. 353. Co. 740 , Co. 1148 के द्वारा पुरानी किस्मों से कई गुणा अधिक उपज बढ़ी है । ये जातियाँ निरोधकता तथा अनुकूलता में काफी उत्तम हैं ।


उत्पादन क्षेत्र का प्रसार ( Extension in Productive Area )

किसी समय में उपस्थित जीनोटाइम की अपेक्षा उनका नये वातावरण के अनुरूप अनुवंशिक संगठन उत्पन्न करने से, नई जलवायु के लिए अभ्यस्तता तथा अनुकूलता बढ़ती है इस प्रकार किसी फसल के कुछ लक्षणों को बदलकर उसके उत्पादन क्षेत्रफल को बढ़ाया जा सकता है ।

उदाहरणार्थ अमेरिका के उत्तरी मैदानी क्षेत्र तथा कनाडा के प्रशाद्वलों (prairies) में गेहूँ के क्षेत्र की रेड फाइफ (red fife) तथा उसके बाद मार्किवस (marquis) किस्म से गेहूँ के क्षेत्र में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी हुई । इसके बाद सुधरी हुई शीत सहिष्णुता तथा जल्दी परिपक्व होने वाली किस्मों से क्षेत्र में प्रसार हुआ ।

भारत में शीतोष्ण गन्ने की उन्नत किस्मों में Co. 1148, Co. 740, Co. 453, Co. 205, Co. 421, POJ 2878 , Co. K. 30 , Co. L. 9 , B.O. 24 , Co. 35 , Co. 357 इत्यादि के निकलने से गन्ने के क्षेत्र में प्रसार हुआ ।

गेहूँ की मैक्सीकन किस्मों लर्मा रोज, सोनारा 64, के प्रवेशन (introduction) तथा उसके बाद सोनालिका (S. 308), सफेद लर्मा तथा शरबती सोनारा किस्मों से पैदावार ही नहीं बढ़ी बल्कि क्षेत्रफल में वृद्धि हुई है ।

चावल की Japonica indica प्रसंरण योजना के अन्तर्गत निकली किस्मों जैसे Adt 27 (G.E.B. 24 X Nonin - 8) में अधिक आनुवंशिक विभिन्नता, सहिष्णुता तथा अनुकूलता है ।


रोग प्रतिरोधता ( Disease Resistance )

पादप प्रजनन का सर्वोत्तम योगदान रोग प्रतिरोधक किस्में विकसित करना है । गेहूँ की किट (rust) तथा कंड (smut) प्रतिरोधी किस्मों से संसार भर में गेहूं की पैदावार में क्रान्तिकारी वृद्धि हुई है । यद्यपि गेहूँ प्रजनन को तथा रोगों के बीच संघर्ष जारी है । प्रतिरोधक किस्मों का सर्वाधिक महत्व उपज में है ।

स्थायित्व प्रदान करना है भारत में रोग - प्रतिरोधी किस्मों के कुछ मुख्य उदाहरण निम्नलिखित हैं -

गेहूँ - N.P. 790, N.P. 789 (काली किट्ट प्रतिरोधी); N.P. 783, N.P. 784 (किट्ट - प्रतिरोधी), N.P. 785 (पीली किट्ट - प्रतिरोधी), N.P. 710, N.P. 718 (श्लथ कंट प्रतिरोधी) ।

गन्ना - Co. 419, Co. 421, Co. 356, Co. 508, Co. S. 109, K. 30, B.O. 10, B.O. 11, C.O. 453 (लाल गलन प्रतिरोधी) ।

कपास – सुयोग्य, विजय, वीरनार, कल्याण, जयवन्त, जयघर, H. 420 (म्लानी - प्रतिरोधी) ।

चना - G. 17 तथा G. 24 (म्लानी प्रतिरोधी) ।


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कीट प्रतिरोधता ( Insect Resistance )

कीट प्रतिरोधी किस्में निकालना आधुनिक पादप प्रजनन का महत्वपूर्ण भाग है कीट नाशकों द्वारा फसलों को हानि इतनी अधिक होती है कि इससे मानव को भोजन प्राप्ति का मुख्य खतरा हो गया है ।

रोग तथा कीट नाशकों से पौधों की रक्षा रासायनिक विधियों से करने के अलावा भी प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग अधिक लाभपूर्ण है दूसरी ओर यह फसलों के कीट - नाशियों (Insecticides) के रुप में छिड़के जाने वाले विषैले अवशिष्ट पदार्थों की समस्या का समाधान भी प्रस्तुत करती हैं । अमेरिका तथा कनाडा में गेहूँ के हसियन फलाई प्रतिरोधी किस्में उगाई जा रही हैं ।


सूखा प्रतिरोधता ( Drought Resistance )

भारत में अभी तक बहुत बड़ा क्षेत्र असिंचित है तथा यहाँ सूखे की स्थिति अधिकतर उत्पन्न हो जाती है तथा यहाँ वर्षा का वितरण भी असामान्य है अतः सूखा प्रतिरोधी किस्मों का बहुत महत्व है । ज्वार, बाजरा एवं धान्य की सूखा - प्रतिरोधी किस्मों से उपज तथा क्षेत्र दोनों में वृद्धि हुई है । ट्रीटीकेल शुष्क कृषि की भविष्य की आशा है ।


शीत प्रतिरोधता ( Cold Resistance )

शीत एवं पाले से प्रतिरोधी किस्में ठण्डे क्षेत्रों के लिए लाभदायक प्रमाणित हुई हैं । शीतकालीन सरसों, आलू, टमाटर, गेहूँ आदि पर प्रायः पाले से भारी हानि होती है । आलू की C. 3745, C. 3965 , तथा C. 3804 किस्में पाला प्रतिरोधी है ।


झुकाव प्रतिरोधता ( Lodging Resistance )

अधिक उपज लेने के लिये अधिक खाद एवं उर्वरकों की मात्रा तथा पानी देने से पौधों की वृद्धि अधिक होती है । परन्तु पौधों के लम्बे बढ़ने से फसल गिर जाती है जिससे उपज घटती है । गेहूँ , ज्वार तथा बाजरे में बौनी किस्मों के विकास से क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ है । इस सफलता के आधार पर जब चावल की बौनी किस्में विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है ।


गुणवत्ता ( Quality )

उपज में वृद्धि के साथ - साथ उत्तम गुणो वाली किस्मों को विकसित करना है । मजबूत तथा लम्बे रेशे वाली कपास की जातियों ने निःसन्देह मानव मात्र की सेवा की है । अच्छी सुगन्धित प्रजनन की गयी सेव की जातियां अवर्णनीय हैं । अधिक प्रोटीन युक्त गेहूँ तथा अधिक विटामिन युक्त टमाटर की किस्में स्वास्थ्य के लिए अति लाभदायक हैं ।


यान्त्रिक अनुकूलनशीलता ( Mechanical Adptability )

इस दिशा में पादप प्रजनन के योगदान का अच्छा उदाहरण ज्वार (sorghum) हैं । अमेरिका में पहले 6-10 फीट बढ़ने वाली ज्वार की जातियाँ उगायी जाती थीं परन्तु अब 3-4 से फीट की बौनी किस्में विकसित की गई हैं जो कि कम्बाइन (combine harvester) से काटी जा सकती हैं ।

टमाटर सहित अनेक सब्जी की फसलें मशीन से काटी जाती हैं । ये किस्में अमेरिकन कृषि के लिये क्रान्तिकारी प्रमाणित हुई हैं । इसके फलस्वरुप इन्जीनियरों तथा पादप प्रजनकों में सहयोग बढ़ता जा रहा है ।


पैट्रोलियम पादपरोपण ( Petroleum Plantation )

अब हम लगभग 98% ऊर्जा अवशेषी कार्बन की प्रयोग में लाते हैं । कालवीन (1978) ऊर्जायुक्त पदार्थों वाले पौधों के उगाने की सम्भावना बतायी है । ऊर्जा के इन नये स्रोतों का लाभ यह है कि इनसे वायुमण्डलीय CO, का स्तर नहीं बढ़ता है तथा कारसाइनोजन्स की मात्रा वातावरण में से घटती है ।

गन्ना एल्कोहल उत्पन्न करने का बड़ा साधन है ब्राजील में इन पैट्रोकेमिकल उद्योगों से, ईधन के लिये, 22 मिलयन लीटर एल्कोहल उत्पन्न करने का प्रस्ताव है ।

कालवीन (1978) के अनुसार यूफॉर्बिया की लेटक्स उत्पन्न करने वाली जातियों यूफॉर्बिया तरुकेलाई (euphorbia linicalli), यूफॉर्बिया लैथाइरीस (euphorbia lathiris) तथा यूफॉर्बिया लैकटिया (euphorbia lactea) को उगाया जाना चाहिये ।

कैलाफर्निया के क्षेत्र परीक्षण में तेजी से बढ़ने वाले यूफॉर्बिया लैथाइरीस से 9 माह में 10 बेरल तेल प्रति एकड़ उत्पन्न हुआ इससे गैसोलीन भी उत्पन्न की जा सकती है ।


औषधियों के स्त्रोत पौधे ( Plants as a Source of Medicine )

बहुत से पौधे दवाइयों के स्रोत हैं । इन पौधों को उगाया जाना चाहिये ।


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पादप प्रजनन में नई फसलों की क्या सम्भावनाओं हैं? potentials of new crops in plant breeding


नई फसलें (New Crops In Hindi) -

लगभग 3,00,000 पौधों की जातियों में से 300 से भी कम जातियों की व्यवस्थित कृषि (agriculture in hindi) की जाती है ।

संसार भर की जनसंख्या का मुख्यतः भोज्य पदार्थों का आधारभूत साधन 10 फसलें (चावल, गेहूँ, मक्का, जौं, मोलैट, शककरकन्द, आलू, सोयाबीन, जई तथा कैसाव) हैं ।

ये फसलें सामान्यत : अकेले विस्तृत क्षेत्रों में उगायी जाती है जिससे की जीव - नाशक इन्हें अत्यधिक हानि पहुँचाते हैं ।


उदाहरणतयः आयरलैण्ड में सन् १८४० में आलू पर पश्च अंगमारी (लेट ब्लाइट) महामारी तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में सन् 1970 में सोदरन कार्न लीफ ब्लाइट मक्का की महामारी से अकाल पड़ा अतः फसल चक्र (crop rotation in hindi) में अधिक भिन्नता की आवश्यकता है ।

नई फसलों वाली जातियां विकसित की जानी चाहियें । सम्भावित फसलें जैसे कि नीचे दी गयी है की कृषि की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ।

कीनाफ ( Kenal ) – तेजी से बढ़ने वाला पौधा गुद्दा (पल्प) प्रदान करने के लिए उगाया जा सकता है ।

क्राम्बी ( Crambe ) - इसके बीजों से तेल तथा प्रोटीन उत्पन्न होता है ।

वरनोनिया ( Vernonia ) - इसके बीजों से तेल उत्पन्न होता है ।

स्टोकेशिया ( Stokesia ) - इसके बीजों से तेल निकलता है ।

जोजोबा ( Jojoba ) – से तेले , मोम तथा एल्कोहल बनती है ।

नारनजीला ( Naranjilia ) – फलों से सलाद बनता है ।

पीच पाम ( Peach Palm ) - फल कार्बोहाइट्स , लीपिड्स , प्रोटीन्स , खनिज तथा विटामिन्स के उत्तम स्रोत होते हैं ।

उविला ( Uvilla ) – फल मीठे तथा अंगूर के समान होते हैं ।

मैंगोस्टीन ( Mangosteen ) - इसके फल सर्वोत्तम सुवासित माने जाते हैं । इसका उत्पादन उपयुक्त वृद्धि अवधि तथा 20°C से 30°C तापक्रम के मध्य की अवस्थाओं में किया जा सकता है ।