एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्ध क्या है इनके उद्देश्य एवं महत्व लिखिए

कृषि उत्पादकता, मृदा उत्पादकता तथा पर्यावरण संरक्षण को एक साथ समायोजित करने को एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन (intergrated nutrient management in hindi) कहते हैं ।

वर्तमान में बढ़ती हुई जनसंख्या की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उन्नत खेती करना परमावश्यक है ।

कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि करने हेतु कार्बनिक खादों, अकार्बनिक उर्वरकों तथा जैव उर्वरकों का उचित प्रबन्ध करना अनिवार्य है ।

अत: कृषि उत्पादकता में वृद्धि के साथ - साथ मृदा को भी सन्तुलित रखना जरूरी है ।


एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्ध क्या है? | integrated nutrient management in hindi

कृषि उत्पादन, मृदा उत्पादकता तथा पर्यावरण संरक्षण का एक साथ समावेशन करने हेतु मृदा को खाद एवं उर्वरक की सन्तुलित मात्रा प्रदान करना एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन (integrated nutrient management in hindi) कहलाता है ।

एकीकृत पादप पोषक तत्व प्रबन्धन की मूल विचारधारा -

जैव खादों, उर्वरकों तथा जैव उर्वरकों को विवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग करके मृदा उत्पादकता में बढ़ोत्तरी तथा पर्यावरण को संरक्षित रखने के साथ - साथ अधिक फसलोत्पादन करना एवं कृषकों को अधिक लाभ देना है ।


एकीकृत पादप पोषक तत्व प्रबन्ध किसे कहते है? | integrated plant nutrient management in hindi

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एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्ध क्या है इनके उद्देश्य एवं महत्व लिखिए

एकीकृत पोषक प्रबन्धन (integrated plant nutrient management in hindi) -


कार्बनिक खादें जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट तथा हरी खाद का प्रयोग संसार में प्राचीन काल से होता आ रहा है ।

मृदा में गोबर की खाद का प्रभाव कई वर्षों तक रहता है क्योंकि इसमें विद्यमान कार्बनिक पदार्थ धीरे — धीरे प्राप्य होता है ।

तत्पश्चात् रासायनिक उर्वरक अत्याधिक प्रयोग किये जाने लगे । उर्वरकों के अधिक प्रयोग से फसल की वृद्धि कुछ वर्षों तक अस्थायी रूप से उत्तेजत होती है । फिर फसल की उपज घटने लगती है ।

रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग से मृदा में जीवाणुओं की सक्रियता कम होकर नाइट्रोजन बन्धन पर भी कुप्राव पड़ता है ।


एकीकृत पादप पोषक तत्व प्रबन्धन के उद्देश्य लिखिए? objectives of integrated plant nutrient management in hindi


एकीकृत पोषक प्रबन्धन के मुख्य उद्देश्य –

  • पादप पोषकों के सभी प्रदूषण रहित स्रोतों जैसे- गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद, जैव उर्वरक तथा भूमि सुधारकों का उचित प्रयोग करना ।
  • मृदा के भौतिक एवं रासायनिक गुण तथा उर्वरता का संधारण (maintenance) करना ।
  • कृषि की उच्च उत्पादकता हेतु कार्बनिक खाद, हरी खाद, अकार्बनिक उर्वरक तथा जैव उर्वरकों के उचित प्रयोग को प्रोत्साहित करना ।
  • भूसा तथा कड़बी आदि फसल अवशेषों के रूप में कार्बनिक निरर्थक पदार्थों का प्रयोग करना । इन पदार्थों का उपयोग कम्पोस्ट बनाने, मल्च के रूप में या सीधे मृदा में मिलाकर किया जाता है ।
  • पर्यावरण एवं इकॉलोजी मैत्री (environment and ecology friendly) टिकाऊ कृषि करना ।
  • प्राकृतिक स्रोतों का सही ढंग से प्रयोग करना ।
  • पोषक उपयोग क्षमता (nutrient use efficiency) में वृद्धि करना ।
  • मृदा में धनात्मक पोषक सन्तुलन का निर्माण करना ।


एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन के मुख्य घटकों का महत्व लिखिए?

एकीकृत पोषक प्रबन्धन के मुख्य घटक कक खांद, रासायनिक उर्वरक, जैव उर्वरक तथा वर्मीकल्चर हैं ।


एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन के मुख्य घटकों के लक्षण एवं महत्व -

  1. कार्बनिक खाद
  2. रासायनिक उर्वरक
  3. जैविक खाद
  • जैविक नाइट्रोजन स्थिरक सूक्ष्म जीव
  • फॉस्फेट घोलक सूक्ष्म जीव
  • माइकोराइजा कवक
  • वर्मीकल्चर


इन घटकों के मुख्य लक्षण तथा महत्व का संक्षिप्त विववरण निम्न प्रकार कर सकते हैं -

1. कार्बनिक खाद -

गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद तथा खलियाँ आदि कार्बनिक खादों में मृदा को लगभग सभी पोषक तत्व उपलब्ध हो जाते हैं । इनसे कार्बनिक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है जिससे मृदा की भौतिक तथा रासायनिक अवस्था ठीक बनी रहती है ।


2. रासायनिक उर्वरक -

उर्वरक मृदा एवं फसलों के लिये पोषक तत्वों के मुख्य स्रोत के रूप में उपयोग में लाये जाते हैं । रासायनिक उर्वरकों की उचित मात्रा का प्रयोग सही समय पर उपयुक्त विध द्वारा करने से अधिकतम लाभकारी प्रभाव होता है । पोषकों की आवश्यक मात्रा का निर्धारण मृदा परीक्षण अथवा ऊतक विश्लेषण के उपरान्त किया जाता है ।


3. जैव खाद —

जैव खादों में उपस्थित सूक्ष्म जीव अनुपलब्ध पोषक तत्वों को जैविक क्रियाओं के द्वारा पौधों को उपलब्ध कराने में सहायक होते हैं ।


इनके अन्तर्गत निम्नलिखित प्रमुख जैव खाद आते हैं -

  • जैविक नाइट्रोजन स्थिरक सूक्ष्म जीव – एजोटोबैक्टर, राइजोबियम, बेसिलस तथा एजोस्परीलियम आदि सूक्ष्म जीव मृदा में नत्रजन स्थिरीकरण कर उत्पादन में वृद्धि करते हैं ।
  • फॉस्फेट घोलक सूक्ष्म जीव - इसके अन्तर्गत आने वाले बैसिलस स्यूडोमोनास तथा एस्परजिलस आदि सूक्ष्म जीव फॉस्फोरस की प्राप्यता में वृद्धि करते हैं ।
  • माइकोराइजा कवक - वैसकुलर आरवेन्सस माइकाराइजा (VAM) कवक द्वारा फलों के पौधों को पौधालयों में उपचारित किया जाता है । इसके लिए 50 ग्राम बी० ए० एम० इनाकुलम को गोबर की खाद, मिट्टी तथा बालू के 500 ग्राम के मिश्रण (1:1:1) के साथ मिलाकर पॉलीथीन के थैलों में प्रयोग किया जाता है । इसके प्रयोग से मृदा संरचना में सुधार होता है । इससे पोषकों की उपलब्धता, जलधारण क्षमता तथा रोगरोधी क्षमता में वृद्धि होती है और जड़ों से सम्बन्धित रोगाणुओं के जैविक नियन्त्रण में लाभकारी प्रभाव होता है ।
  • वर्मीकल्चर - पशुओं तथा मनुष्यों द्वारा निर्मित कचरे एवं कूड़ा - करकट का केंचुओं की सहायता से वर्मीकम्पोस्ट खाद उत्पादित होता है । वर्मीकल्चर में N, P, Ca तथा Na अधिक मात्रा में होते हैं । वर्मीकम्पोस्ट से मृदा की जलधारण क्षमता तथा उपयोगी जीवाणुओं की संख्या एवं उनकी क्रियाशीलता में वृद्धि होती है । वास्तव में केंचुओं की खाद साधारण खाद की तुलना में अधिक उपयोगी होती है ।


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एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन की आवश्यकता लिखिए?

उर्वरकों के उपयोग में वृद्धि के कारण मृदा में कार्बनिक पदार्थ, गौण एवं सूक्ष्म तत्वों की कमी होती है ।

इससे मृदा के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों पर कुप्रभाव पड़कर फसलोत्पादन में कमी आती है ।


अतः उन्नत कृषि करने हेतु एकीकृत पोषक प्रबन्धन की आवश्यकता के निम्न कारण हैं -

  • निम्न उत्पादकता के फलस्वरूप बढ़ती हुई जनसंख्या को खिलाने हेतु पर्याप्त मात्रा में अन्न प्राप्त न होना ।
  • कृषि करने के लिये अधिक भूमि का उपलब्ध न होना ।
  • अकार्बनिक उर्वरकों के मूल्य में नियमित रूप से वृद्धि होना ।
  • आवश्यकता के अनुसार उर्वरक उपलब्ध न होना ।
  • अकार्बनिक उर्वरक के निरन्तर एवं अधिक मात्रा में प्रयोग से मृदा, मनुष्य, पशुओं तथा पर्यावरण प्रदूषण पर हानिकारक प्रभाव पड़ना ।
  • बार - बार कृषि करने से मृदा में पोषक तत्वों का निरन्तर दोहन होकर मृदा में पोषकों की कमी होना एकीकृत पोषक प्रबन्धन के मुख्य घटक कार्बनिक खाद, रासायनिक उर्वरक, जैव उर्वरक तथा वर्मीकल्चर होते हैं ।


एकीकृत पोषक प्रबन्धन में होने वाली कठिनाइयों का वर्णन कीजिये?


एकीकृत पोषक प्रबन्धन में होने वाली कठिनाइयाँ -

  • गाँवों में गोबर से अधिकतर उपले बनाये जाते हैं जिससे गोबर अल्प मात्रा में ही कम्पोस्ट बनाने हेतु मिल पाता हैं ।
  • भूसा तथा फसल अवशेषों का उपयोग मवेशियों के चारे के रूप में हो जाने से ये पदार्थ कम्पोस्ट बनाने या सीधे खेतों में डालने के लिये उपलब्ध नही हो पाते ।
  • हरी खाद तैयार करने के लिये अतिरिक्त व्यय करना पड़ता है और समय भी देना पड़ता है ।
  • हरी खाद तथा फसल अवशेषों के प्रयोग के पश्चात् खेत को जोतने एवं तैयार करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है ।
  • जैविक खादों की अत्यधिक मात्रा में आवश्यकता होती है जिससे इनकी ढुलाई आदि की समस्या रहती है ।
  • जैव उर्वरकों से इनकी गुणवत्ता में अन्तर के कारण सदैव एक सा लाभ नहीं हो पाता ।

अत: इनके प्रचार एवं प्रसार में कठिनाई होती है ।