स्व-अनिषेच्यता (self incompatibility in hindi) क्या है यह कितने प्रकार की होती है

पराग नाल के वृत्तिका की पूरी लम्बाई में प्रवेश करने में असफल होने तथा परिणामतः निषेचन न होने को स्व-अनिषेच्यता (self incompatibility in hindi) कहते हैं ।

"The failure of pollen tubes to penetrate the full length of the style and to effect fertilization is known as incompatibility."


स्व-अनिषेच्यता क्या है? | self incompatibility in hindi

अनिषेच्यता प्रतिक्रिया, आनुवंशिक नियन्त्रण में एक जैव रासायनिक प्रक्रिया प्रतीत होती है । अनिषेच्यता प्रक्रम, परागण तथा निषेचन के मध्य किसी भी अवस्था में क्रियान्वित हो सकता है । राई, पातगोभी तथा मूली में अनिषेच्य परागकण अंकुरित नहीं होते हैं तथा कुछ जातियों में पराग नलिका वृत्तिका में प्रवेश नहीं कर पाती हैं ।

कुछ जातियों में यदि वृत्तिका अग्र को काट कर अलग कर दिया जाता है तो स्व-अनिषेच्यता (self incompatibility in hindi) समाप्त हो जाती है ।

इसका अर्थ यह हुआ कि इनमें अनिषेच्यता प्रक्रिया है वृत्तिकाग्र में सन्निहित होती है । कुछ स्व-अनिषेच्य जातियों में पराग नलिका की वृत्तिका में वृद्धि इतनी धीमी होती है कि निषेचन नहीं हो पाता है ।

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स्व-अनिषेच्यता (self incompatibility in hindi) क्या है यह कितने प्रकार की होती है 

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स्व-अनिषेच्यता की परिभाषा | definition of self incompatibility in hindi

स्व-अनिषेच्यता की परिभाषा - "यदि एक पौधे के उर्वर परागकणों का अंकुरण उस पौधे के व्रतिकाग्र पर नही होता है तब इस प्रक्रिया को स्व-अनिषेच्यता (self incompatibility in hindi) कहा जाता है ।"


स्व-अनिषेच्यता कितने प्रकार की होती है? | types of self incompatibility in hindi


स्वअनिषेच्यता (self incompatibility in hindi) तीन प्रकार की होती है —

  • युग्मकोद्भिद अनिषेच्यता ( Gametophytic Incompatibility )
  • बीजाणु उद्भिद अनिषेच्यता ( Sporophytic Incompatibility )
  • विषमरूपी अनिषेच्यता ( Heteromorphic Incompatibility )


1. युग्मकोद्भिद अनिषेच्यता ( Gametophytic Incompatibility ) 

ईस्ट तथा मैंगल्सडोरफ ( 1925 ) ने तम्बाकू की जाति निकोटिआना सैन्डिरी (nicotiona sanderae) में अनिषेच्यता का आनुवंशिक विवरण दिया कुछ पौधों में, उनसे ही उत्पन्न पराग कण जब उसी पौधे के वृत्तिकाग्र (stigma) पर पड़ जाते हैं तो परागकण अंकुरित नहीं होते हैं या परागनाल की वृद्धि बहुत ही कम होती है जिससे निषेचन नहीं होता है पहले इसे विरोधक कारक परिकल्पना (oppositional factor hypothesis) कहा गया है ।

परन्तु अब बहुत से संकरणों के परिणामों से पता चला है कि परागनाल की शिथिलता, बहु विकल्पी की एक श्रेणी के द्वारा नियन्त्रित होती है तथा अनिषेच्यता युग्मकों के आनुवंशिकी कारक द्वारा निर्धारित होती है । इसके लिये S शब्द को आधार चिन्ह माना गया है ।

इस प्रकार से एक पौधा S1S2 तथा दूसरा S3S4 होता है । कोई भी पर - परागति पौधा समयुग्मजी उदाहरणतयः S1S1, S2S2, S3S3 या S4S4 नहीं होता है । जब S1 S2 भिन्न - भिन्न पौधों में क्रास किया जाता है तो यह पाया गया कि परागनाल में सामान्य वृद्धि नहीं होती है, परन्तु जब S1S2 पौधों का क्रास S3S4 से कराया जाता है तो पराग कणों की सामान्य वृद्धि तथा व्यवहार होता है ।

जब S1S2 पौधों का S2S3 से क्रास कराया जाता है तो परागनाल भिन्न - भिन्न दो प्रकार की होती हैं । जिन परागनालों में S2 होता है, वे प्रभावकारी नहीं होती हैं तथा जिनमें S3 होता है, वे निषेचन योग्य होती है । इस प्रकार से S1S2 x S2S3 के क्रास से S1S2 तथा S1S3 सन्तान ही उत्पन्न होती है । S1S2 X S354 क्रास से सब पराग प्रभावकारी होते हैं जिनसे सब चार प्रकार की सम्भव सन्तान S1S3, S1S4, S2S3, S2S4 उत्पन्न होती है तम्बाकू में इस जीन के दूसरे और भी ऐलील्स कई संयोजनों में पाये जाते हैं ।

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बीजाणु उद्भिद अनिषेच्यता ( Sporophytic incompatibillity )

बीजाणु - उद्भिद अनिषेच्यता का निर्धारण बीजाणु - उद्भिद के द्विगुण न्यूक्लियस के द्वारा होता है ।

दूसरे शब्दों में, परागकणों या परागनाल का व्यवहार द्विगुण जीनोटाइप के द्वारा निर्धारित किया जाता है ।

परिणामतः अंतरा युग्मविकल्पी प्रतिक्रिया के विस्तार का ढंग स्वतन्त्र से लेकर पूर्ण प्रभावी तक, दोनों पराग तथा वृत्तिका में हो सकता है । जब पूर्ण प्रभाविता होती है तो पराग तथा वृत्तिका की प्रतिक्रिया केवल एक प्रकार की होती है ।

उदाहरणतः यदि पराग में S1, S2 पर प्रभावी है तो S1S2 पौधे के सभी परागकण प्रतिक्रिया में S1 प्रकार के होंगे तथा वे S2 वाली वृत्तिका में प्रवेश योग्य होंगे चाहे पराग नाल का आनुवंशिक संगठन S1 है या S2 है यदि S2 वृत्तिका के सभी युग्मविकल्पी पर प्रभावी है तो S1S2 पौधे के सभी पराग S1 वाले वृत्तिका पर अनिषेच्य होंगे चाहे मात्रक जनन में S2 ऐलील जनक में के समान हों ।

बीजाणु - उद्भिद अनिषेच्यता तन्त्र बहुत जटिल होता है । लेविस ( 1954 ) के अनुसार बीजाणु - उद्भिद अनिषेच्यता की मुख्य विशेषतायें, जिनमें यह युग्मकोद्भिद से भिन्नता प्रकट करती है, अग्रलिखित हैं -
इनमें पारस्परिक संकरण काफी बहुलता से होता है ।
अनिषेच्यता मादा जनक में भी हो सकती है ।
एक कुल में तीन अनिषेच्यता समूह भी हो सकते हैं ।
इस तन्त्र में सामान्यतः समयुग्मज भी होते हैं ।
एक अनिषेच्यता समूह में दो जीनोटाइप हो सकती हैं ।


विषमरूप अनिषेच्यता ( Heteromorphic incompatibility )

कुछ जातियों में अनिषेच्यता प्रतिक्रिया पुष्पीय बहुरूपता (floral polymorphism) के कारण होती है । पुष्प आकारिकी में विभिन्नता द्विवृत्तिकता (distyly) के रूप में हो सकती है जैसे कि प्राइमुला वलगेरिस (prinmula vulgaris) में जहाँ परागकोश तथा वृत्तिकाग्र दो पूरक स्थिति पिन


स्व अनिषेच्यता का नियन्त्रण किन कारकों द्वारा होता है?

स्व-अनिषेच्यता (self incompatibility in hindi) बहु विकल्पी की एक श्रेणी के द्वार नियन्त्रित होती है ।