स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती क्या है अर्थ, परिभाषा एवं सिद्धांत व विशेषताएं लिखिए

स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती कृषि विज्ञान का एक उप-क्षेत्र है इसकी परिकल्पना एवं व्यवहारिकता खेती की नियंत्रण पर आधारित है ।

सेधांतिक दृष्टि से स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) कृषि का एक प्रकार एवं विधि दोनों है ।

स्थाई/टिकाऊ कृषि खेती की वह विधि जो संश्लेषित उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अनुप्रयोग अथवा न्यूनतम प्रयोग पर आधारित है तथा जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाए रखने के लिए फसल चक्र, हरी खाद, कंपोस्ट आदि का प्रयोग करती है स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) कहलाती है ।

स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) को पोषणीय कृषि, संपोषित कृषि एवं सतत कृषि, के अलावा स्थाई कृषि विकास को टिकाऊ कृषि, पारिस्थितिकीय कृषि, जीवाश्मीय कृषि, प्राकृतिक कृषि या परमाकल्चर आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है ‌।

इसे अनेक नामों की कृषि (agriculture in hindi) कहे जाने का कारण यह है इस कृषि पद्धति में पारिस्थितिकीय सन्तुलन बनाए रखने पर विशेष बल दिया जाता है । इसी प्रकार जीवांश कृषि कहे जाने का मुख्य कारण यह है कि इस कृषि पद्धति में पोषक तत्त्व प्रदान करने के लिए जीवांश पदार्थ ही मुख्य स्रोत होता है ।

कुछ वैज्ञानिक, रासायनिक उपादान विहीन टिकाऊ कृषि की अवधारणा को स्वीकार नही करते हैं । उनकी राय में स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) कम लागत एवं अधिक उत्पादकता की एक समन्वित पद्धति है ।


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती का क्या अर्थ है? | sustainable agriculture meaning in hindi


स्थाई/टिकाऊ कृषि भूमि वन्यप्राणी, फसल, मत्स्य पालन, पशुपालन, वन - संरक्षण पौध - आनुवंशिक तथा पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलित प्रबन्ध द्वारा पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाकर वर्तमान एवं भावी पीढ़ी के लिए भोजन एवं जीविकोपार्जन की व्यवस्था के साथ - साथ उत्पादकता एवं प्राकृवास को बनाए रखने की पद्धति है ।

स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi)‌ की पद्धति अल्पकालिक ही नहीं प्रत्युत दीर्घकालीन आर्थिक सम्भावनाओं के दृष्टिकोण से भी उपयोगी एवं अनुकरणीय है ।

प्राकृतिक संसाधनों से मुनष्य को अन्न, वस्त्र, ईंधन, चारा एवं काष्ठोपकरण प्राप्त होने के साथ ही हानिकारक रसायनों द्वारा उत्पन्न मृदा एवं जल विषाक्तता को कम करने, अनुकूल मौसम वाह - क्षेत्र में जल - चक्र नियंत्रण आदि के संवर्धन में भी सहायता मिलती है ।

स्थाई कृषि से मृदा अपघटन तथा मृदाक्षरण की रोकथाम के साथ ही पोषक तत्त्वों की परिपूर्ति, खरपतवार, कीट एवं रोग व्याधियों का जैविक तथा कृषिगत विधियों से नियंत्रण किया जाता है ।


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती की परिभाषा | defination of sustainable agriculture in hindi


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती को अनेक प्रकार से परिभाषित किया गया है मोटे तौर पर इसकी परिभाषा - "स्थाई कृषि प्रणाली एक ऐसी खेती की पद्धति है, जो मानव के लिए असीमित काल तक उपयोगी हो, जिसमें संसाधनों का उपयोग अधिक सक्षम या प्रभावकारी ढंग से किया जाए और पर्यावरण संतुलन बनाए रखें एवं मनुष्य तथा अन्य प्रजातियों के लिए अनुकूल हों ‌।"


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) कौन निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है -


डॉ० एम० एस० स्वामीनाथन के कथन अनुसार -

"परिवर्तित पर्यावरण अर्थात धरती के तापमान में वृद्धि, समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी एवं ओजोन की परत में क्षति आदि नई उत्पन्न विषमताओं को टिकाऊपन देने के साथ - साथ विश्व की बढ़ती आबादी को अन्न की पूर्ति के लिए उत्पादकता के स्तर पर क्रमगत वृद्धि करना ही टिकाऊ खेती कहलाता है ।"

आई० सी० ए० आर० के अनुसार -

“प्राकृतिक संसाधनों की गुणवत्ता को स्थिर बनाये रखने या उनमें सुधार करते हुए मानव की बदलती आवश्यकताओं की संतोषजनक पूर्ति करने हेतु उपलब्ध संसाधनों का सफलतापूर्वक, सदुपयोग करना ही स्थायी कृषि कहलाती है ।"

खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार -

"टिकाऊ खेती से तात्पर्य कृषि संसाधनों का सफलतम प्रबन्ध करना है ताकि निरन्तर फसल उत्पादन में वृद्धि से मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति हो, साथ ही पर्यावरण सुधरे और प्राकृतिक संसाधनों को भविष्य में सुरक्षित रखा जा सके ।"

आई० सी० आर० आई० एस० ए० टी०, हैदराबाद के अनुसार -

“कृषि एवं प्राकृतिक संसाधनो का सफल प्रबन्ध करना, ताकि निरन्तर फसल उत्पादन में वृद्धि से मानव आवश्यकताओं की पूर्ति हो, साथ ही पर्यावरण में सुधार हो और प्राकृतिक संसाधनों को भविष्य के लिए सुरक्षित रख सकें, टिकाऊ कृषि कहलाता है ।"


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स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती किसे कहते है? | sustainable agriculture in hindi


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती से अभिप्राय कृषि के ऐसे स्वरूप से है जिसमें भावी पीढ़ी हेतु प्राकृतिक सम्पदाओं को हानिकारक स्थिति तक बिगाड़े बिना वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति करने से होता है ।

विश्व की नित्यप्रति बढ़ती जनसंख्या हेतु जहाँ एक ओर अधिक मात्रा में भोज्य पदार्थ का उत्पादन आवश्यक है  उसके साथ ही यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि उत्पादन प्रक्रिया के द्वारा प्राकृतिक संसाधनों को सीमान्त दोहन से बचाया जाय ।

कृषि कार्यों के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र के किसी गौण, घटक में विकृति आने के परिणामस्वरूप भी पर्यावरण असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है ।

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स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती क्या है अर्थ, परिभाषा एवं सिद्धांत व विशेषताएं लिखिए

कुछ विद्वानों की राय में स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) विकास का अभिप्राय कृत्रिम उर्वरकों एवं अन्य कृषि रसायनों पर न्यूनतम सीमा तक आश्रित रहकर कृषि के ऐसे स्वरूप से है, जिसमें जीवांशमय खादों, न्यूनतम भूपरिष्करण, शस्यचक्र, जैव उर्वरक एवं जैविक पौध - संरक्षण विधियाँ उपयोग में लाई जाय ।


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती के क्या लाभ है? | benefits of sustainable agriculture in hindi


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती पर्यावरण के अनुकूल सुदीर्घ काल तक निरन्तर उत्तम परिणाम देने वाली खेती है । इसके स्थायित्व स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) कहे जाने के प्रमुख बिन्दु होते हैं ।


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती के प्रमुख लाभ -

  • मृदा की उर्वरा शक्ति में टिकाऊपन ।
  • जैविक खेती प्रदूषण रहित है ।
  • जैविक खेती में जल संभरण क्षमता अधिक होती है। तक इसे कम पानी की आवश्यकता होती है ।
  • इसमें पशुओं का अधिक महत्त्व होता है ।
  • फसल अवशेषों के उपयोग की समस्या नहीं है ।
  • अधिक गुणवत्तापूर्ण पैदावार प्राप्त होती है ।
  • कृषि मित्रजीव सुरक्षित रहते हैं तथा उनकी संख्या में बढ़ोतरी होती है ।
  • कम लागत ।
  • स्वास्थ्य में सुधार एवं
  • अधिक लाभपूर्णता ।


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती का क्या महत्व है एवं इसकी विशेषताएं लिखिए?


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती की प्रमुख विशेषताएं -

  • कम लागत ( Less Investment )
  • स्थानीय उपलब्धता ( Local Availability )
  • पर्यावरण हितैषी ( Eco - Friendly )
  • अधिक गुणवत्तापूर्ण एवं पोषणीय उत्पाद ( More Qualitative and Nutritious Products )
  • विविधिकरण ( Diversity )
  • आय में वृद्धि एवं समृद्धि मूलक ( Increase in Earning and Prosperity Head )
  • अधिक भण्डारण क्षमता ( Increase Storage )
  • किसान एवं किसानी मित्र ( Farmer and Farming Friend )


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स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती का महत्व लिखिए? | Impotance of sustainable agriculture in hindi


1. कम लागत ( Less Investment ) -

टिकाऊ खेती की लागत आधुनिक खेती की तुलना में कम आती है क्योंकि इसमें प्रयुक्त की जाने वाली जैविक खाद एवं जैविक कीट व खरपतवार नियंत्रक रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों एवं खरपतवारनाशकों आदि की तुलना में कम खर्च लगभग 75-85 प्रतिशत में ही आसानी से तैयार किये जा सकते हैं ।


2. स्थानीय उपलब्धता ( Local Availability ) -

टिकाऊ खेती उत्पादों की उपलब्धता ग्राम स्तर पर ही हो सकती है, स्थानीय संसाधनों के विवेकपूर्ण प्रयोग से जैविक खादें एवं कीटनाशक आदि सरलता से तैयार की जा सकती हैं ।


3. पर्यावरण हितैषी ( Eco - Friendly ) -

टिकाऊ खेती अत्यन्त पर्यावरण हितैषी खेती है । इसमें प्रयुक्त की जाने वाली कृषि निविष्टियाँ जैसे - जैविक खाद, जैविक कीटनाशक आदि प्राकृतिक संसाधनों से ही तैयार की जाती हैं जोकि विषहीन एवं प्रदूषण रहित होती है तथा पर्यावरण को अधिक जीवन ग्राह्य बनाती हैं । इससे न तो खाद्य श्रृंखला प्रदूषित होती है और न ही मित्र कीटों को ही कोई हानि पहुँचती है । यह मूलत: जैन धर्म के 'जीयो और जीने दो' के सिद्धान्त पर आधारित है ।


4. अधिक गुणवत्तापूर्ण एवं पोषणीय उत्पाद ( More Qualitative and Nutritious Products ) -

टिकाऊ खेती के अंतर्गत उत्पन्न हुए उत्पाद विशेष रूप से सब्जियाँ एवं फल आदि की गुणवत्ता एवं पौष्टिकता अधिक होती है, जो अधिक स्वास्थ्यवर्द्धक होते हैं । साथ ही इससे मिट्टी की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक संरचना में भी निरन्तर गुणोत्तर वृद्धि होती है ।


5. विविधिकरण ( Diversity ) -

टिकाऊ खेती के अंतर्गत जैविक तकनीक एवं स्थानीय कृषि तकनीकों पर आधारित जिन समन्वित कृषि तकनीकों का विकास होता है उनसे विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पाद एक साथ प्राप्त होते हैं । इससे वृहत्तर स्तर पर जैव विविधता (bio - diversity), जैव संतुलन (bio - equilibrium) एवं पर्यावरणी संतुलन (ecological - balance) की स्थापना होती है ।


6. आय में वृद्धि एवं समृद्धि मूलक ( Increase in Earning and Prosperity Head ) -

टिकाऊ खेती में कम लागत में अधिक गुणवत्ता के उत्पाद प्राप्त होने से किसान की सकल आय में वृद्धि होती है । इसके अंतर्गत उत्पादिक फल - सब्जियों की राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी मांग है, जिनका बाजार में सामान्य से 30-40 प्रतिशत अधिक मूल्य प्राप्त होता है । इससे कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र की दशाओं में सुधार व समृद्धि की आशा बलवती होती है ।


7. अधिक भण्डारण क्षमता ( Increase Storage ) -

टिकाऊ खेती के अंतर्गत जैविक कृषि निविष्टियों का प्रयोग किये जाने से कृषि उत्पादों की भण्डारण क्षमता में भी 30-40 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो जाती है जिससे उत्पाद अधिक लम्बे समय तक तरोताजा बने रहते हैं ।


8. किसान एवं किसानी मित्र ( Farmer and Farming Friend ) -

कम लागत, स्थानीय निर्माण व उपयोगिता, आय वृद्धि, उत्पादों की मूल्यवृद्धि , मृदा की गुणवत्ता वृद्धि आदि विभिन्न गुणों के आधार पर टिकाऊ खेती किसान एवं किसानी के लिए एक वरदान के रूप में उभर कर सामने आ रही है ।


उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) जिसे पर्यावरण हितैषी एवं गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उत्पन्न करने की एक ऐसी मिश्रित खेती प्रणाली है जिसमें पशुपालन एवं बागवानी के साथ खाद्यान्न उत्पादन किया जाता है ।

साथ ही इसके अंतर्गत रासायनिक खादों, कीटनाशकों आदि के स्थान पर जैविक खाद एवं जैविक कीट मुक्ति की विधियों को अपना कर पर्यावरण अनुकूल वातावरण में खेत उत्पादन किया जाता है ।


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती कितने प्रकार की होती है? | types of sustainable agriculture in hindi


पोषणीय कृषि के अनेक प्रकार वर्तमान युग में प्रचलन में हैं ।

जिनमें से कुछ तो वैकल्पिक शब्दावलियाँ मात्र हैं - 

  • टिकाऊ ‌कृषि
  • सतत कृषि
  • समगतिशील कृषि
  • अक्षय कृषि
  • प्रतिपालनीय कृषि आदि ।

जबकि कुछ स्थानीय स्तर पर विकसित है - 

  • लीमर - बाउचर
  • पर्मा कल्चर आदि ।

शेष कृषि की प्रणालिगत विभिन्नता के संदर्भ में पोषणीय कृषि के जो रूप प्रचलित हैं ।


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती के प्रमुख प्रकार ‌-

  • पारिस्थितिक कृषि
  • जैविक कृषि
  • कार्बनिक कृषि ।


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1. पारिस्थितिक कृषि ( Ecological Agriculture In Hindi )


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) के इस प्रकार को पारिस्थितिक कृषि के रूप में पारिभाषित करते हुए एक ऐसे पारिस्थितिक एवं आर्थिक तन्त्र के रूप में माना जाता है जो बहुउद्देशीय (multipurpose), बहुकर्मी (multifunctional), बहुसंघटक (multi component), बहुस्तरीय (multi level) हो और जो सर्वोत्तम संरचना (compositon), विवेकपूर्ण रचना (rational structure), समन्वित सम्बन्ध (coordinated relationship), और सन्तुलित विकास (balanced development) की प्रेरक हो (Xan Ji, 1985, pp. 3-15 ) ।

शी शान (Shi Shan, 1986, pp. 1-16 ) ने पारिस्थितिक कृषि की निम्न विशेषताओं को इंगित किया है -

पारिस्थितिक कृषि में ऐसी उत्पादक विधियाँ हैं जो पारिस्थितिक तन्त्र के मूल सिद्धान्तों का पालन करती हैं तथा इसमें कृषि उत्पादन पर्यावरण एवं संसाधन के अनुकूल ढला होता है ।
इसका सुनिश्चित सामाजिक एवं पारिस्थितिक प्रभाव पड़ता है ।
यह पारिस्थितिक तन्त्र को प्रदूषित न करने वाले ज्ञान को लेकर आगे बढ़ती है तथा इसमें फसलोत्पादन के साथ ही दुग्ध - पशुपालन, अन्य पशुपालन, वानिकी, मत्स्य पालन एवं अन्य कृषि अनुषगी धन्धे एवं वाणिज्य सम्मिलित हैं । ( Lua, Shining, et al. 1987 ) ।


इस कृषि प्रणाली का मूल सिद्धान्त है -

प्रकृति से उसकी सामर्थ्य तक उत्पादन लेना तथा प्रकृति की स्वाभाविक गतिविधि में न्यूनतम हस्तक्षेप करना ।

माना जाता है कि स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) के इस प्रकार का प्रारम्भिक विकास चीन में हुआ किन्तु बाद में यह सम्पूर्ण पूर्वी देशों में विस्तृत हो गई ।

जापान में संत वैज्ञानिक मंसा फुकुओका, जिन्हें 1988 का मैगसेसे पुरस्कार मिला है, ने इस का अत्यधिक प्रचार किया है । ऋषि कृषि के रूप में भारत में भी इसका विस्तार होने लगा है ।


2. जैविक कृषि ( Biological Agriculture In Hindi )


कृषि को टिकाऊ बनाने विश्व के अलग - अलग क्षेत्रों में भिन्न - भिन्न प्रकार की जो गैर परम्परागत कृषि विधियाँ प्रचलन में हैं उनमें जैविक कृषि को अधिकांश स्थानों पर प्रश्रय दिया जा रहा है ( UNDP, 1992 ) ।

सेन्द्रिय कृषि हेतु थैम्पन, पी० के० (1992) के अनुसार जैविक कृषि प्रणाली रासायनिक निवेश विहोन प्रणाली है जो एक ओर सभी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों से परहेज करती है तथा दूसरी ओर कृषि में इनकी प्रतिपूर्ति के लिए जैविक पदार्थों, जैसे - जैविक खाद, जैविक खरपतवार नाशियों आदि का प्रयोग करती है ।

इसके लिए इसके अंतर्गत पशुपालन के जरूरी प्रयोग, कृषि में सहयोगी केंचुए, साँप आदि के संरक्षण एवं वर्धन तथा ऐसी फसलों को उगाने पर बल दिया जाता है जो प्राकृतिक रूप से कीटनाशकों का कार्य करते हैं जैसे - नींबू घास, अकरकरा आदि ।

जैविक कृषि प्रणाली से कुछ पारिस्थितिक कृषि विद्वान इस संदर्भ में भिन्नता रखते हैं कि उनके अनुसार इस में भी पर्यावरण का अवनयन होता है, जैसे नाइट्रोजन का खेतों से रिसाव दलहनी फसलों द्वारा हो जाता है, जानवरों के गोबर की खाद के अमोनिया से पर्यावरण संतुलन बिगड़ता है आदि ।


3. कार्बनिक कृषि ( Organic Agriculture In Hindi )


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती या पोषणीय कृषि की एक अन्य प्रमुख पद्धति कार्बनिक कृषि विधि है ।

इसका परम्परागत खेती पद्धतियों को संवर्धित एवं संशोधित करने के लिए सर्वाधिक प्रयोग किया गया है ।

कार्बनिक कृषि का अर्थ है - जैविक सम्बन्ध - सूत्रता की क्षमता में कृषि करना । भारत के संदर्भ में कार्बनिक खेती कोई वाह्य कृषि पद्धति नहीं है ।

हमारे यहाँ सदियों से कार्बनिक खेती होती रही है, अत: इस पद्धति को अपनाने के इच्छुक कृपक को पहले उन प्राचीन भारतीय व चानो खेती पद्धतियों पर दृष्टिपात करना होगा जिन्हें आज भी देश के कुछ भूभागों में अपनाया जा रहा है ।

वास्तव में, विकासशील देशों के कृषकों के लिए कार्बनिक कृषि की अवधारणा स्पष्ट नहीं है । भारत में इसका अर्थ कार्बनिक खाद का उपयोग करना और कृत्रिम उर्वरकों एवं रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग न करना माना जाता है ।

लैम्पकिन (1990) ने कार्बनिक कृषि की परिभाषा एक ऐसी उत्पादन प्रणाली के रूप में की है जिसमें उर्वरकों, कीटनाशकों, विकास नियामकों और अतिरिक्त मवेशी - आहार का उपयोग न किया जाय अथवा उनके प्रयोग से बचा जाय ।

कार्बनिक खेती प्रणाली में फसल - चक्र, फसल अवशेषों, मवेशियों के मलमूत्र आदि से तैयार खाद, फलीदार पौधों, हरी खाद, खेत में इतर कार्बनिक कचरा और भूमि की उत्पादकता तथा जुताई बनाये रखने, पौधों को पोषक तत्त्वों की आपूर्ति करने और कीटों, खरपतवारों व अन्य कीड़ों पर नियंत्रण के लिए जैव कीटनाशक प्रणालियों के विभिन्न पहलुओं पर अधिकतम निर्भर रहा जाता है ।

इस अवधारणा में भूमि को एक जीवन्त प्रणाली समझा जाता है जिसमें लाभदायक जीव समूहों की गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है ।


कार्बनिक खेती के निम्न तीन प्रमुख पहलू हैं -

  • अकार्बनिक रासायनिक कारकों के स्थान पर कार्बनिक खाद और अन्य जैविक पदार्थों का उपयोग करना ।
  • रासायनिक कीटनाशकों के बजाय जैविक पद्धतियों से कीटों पर नियंत्रण करना ।
  • भूमि के स्वास्थ्य और कृषि उत्पादकता में सुधार हेतु व्यापक प्रबन्ध तकनीक अपनाना ।


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती के उद्देश्य लिखिए? | objectives of sustainable agriculture in hindi


वृहद रूप में टिकाऊ कृषि के प्रमुख उद्देश्य हैं -

  • संश्लेषित (synthetic) रसायनों का न्यूनतम प्रयोग ।
  • समेकित/एकीकृत कीट, रोग व खरपतवार प्रबन्धन पर बल ।
  • जीवांश/कार्बनिक खादों का अधिकाधिक उपयोग । भूमि एवं जल - संरक्षण क्रियाओं का अनुपालन करना ।
  • फसल - चक्र का समुचित प्रयोग करना ।


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स्थायी कृषि की प्रमुख विधियाँ लिखिए? | major mathods of permanent agriculture in hindi


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) की प्रमुख विधियाँ -

  • एक फसली कृषि ( Monoculture )
  • द्विफसली खेती ( Dual Culture )
  • बहु फसली खेती ( Polyculture )
  • एकाकी शस्यन ( Mono Cropping )
  • द्विफसली शरयन ( Double Cropping )
  • सतत् शस्यन ( Continuous Cropping )
  • शस्यालय ( Crop Cafetaria )
  • मिश्रित शस्यन ( Mixed Cropping )


स्थायी कृषि में फसलोत्पादन की निम्न प्रमुख विधियाँ प्रयोग की जाती है -


1. एक फसली कृषि ( Monoculture ) -

इस विधि में एक वर्ष में एक ही फसल उगाई जाती है । इसमें किसान या तो खरीफ के मौसम में खेत में फसल उगाकर रबी में परती छोड़ता है अथवा रबी में फसल उगाने के लिए खरीफ में खेत परती रखता है ।


2. द्विफसली खेती ( Dual Culture ) -

इस विधि में दो प्रकार की फसलों को एक साथ अथवा दो प्रकार के कृषि उद्योग एक साथ एक ही भूमि में लगाए जाते हैं । जैसे गहरे पानी के धान के साथ मछली पालन या धान के साथ अजोला की खेती ।


3. बहु फसली खेती ( Polyculture ) -

इस विधि में एक कृषि वर्ष में एक ही भूमि पर दो से अधिक फसलों को एक साथ उगाते हैं । उदाहरणस्वरूप आम के बाग + अनन्नास हल्दी, पपीता + मूंग + सरसों + भिन्डी , अमरूद + हल्दी + बरसीम । इस विधि को मुख्य रूप से कृषि वानिकी (agro - forestry) कृषि उद्यानकी (agro horticulture) या वानिकी चरागाह (silvi - pastoral) पद्धति के रूप में प्रयोग करते हैं ।


4. एकाकी शस्यन ( Mono Cropping ) -

लगातार कई कृषि वर्षा तक किसी खेत में एक ही फसल के ठगाने को एकाकी शस्यन कहते हैं ।


5. द्विफसली शरयन ( Double Cropping ) -

किसी कृषि वर्ष में किसी खेत में फसलोत्पादन के मौसमी क्रम के अनुसार दो फसलों के उत्पादन को द्विफसली शयन (double cropping) कहते हैं । इस प्रकार की फसलों की शस्य गहनता 200 प्रतिशत होती है ।


6. सतत् शस्यन ( Continuous Cropping ) -

इस विधि में एक ही फसल को एक खेत में लगातार उगाया जाता है । किन्हीं - किन्ही स्थानों पर एक ही फसल चक्र को (एक वर्षीय होता है) कई वर्षों तक एक ही स्थान पर प्रयोग किया जाता है । इस प्रकार की फसलोत्पादन पद्धति को सतत शस्यन कहते हैं ।
उदाहरणस्वरूप - दक्षिणी भारत के कुछ क्षेत्रों में एक वर्ष में धान की तीन फसलें एक ही खेत में उगाई जाती हैं । उत्तर भारत के तराई वाले इलाके में गन्ना उगाकर कई वर्षों तक पेड़ी की फसल ली जाती है ।


7. शस्यालय ( Crop Cafetaria ) -

किसान की घरेलू आवश्यकता की पूर्ति हेतु एक ही खेत में विभिन्न प्रकार की फसलों को एक साथ उगाया जाता है । इन फसलों को उगाये जाने का कोई निश्चित क्रम नहीं होता है इस विधि में एक मौसम अथवा एक कृषि वर्ष में उगाई जाने वाली फसलों को सुविधानुसार एक ही साथ उगाया जा सकता है ।


8. मिश्रित शस्यन ( Mixed Cropping ) -

दो या दो से अधिक फसलों को एक ही मौसम में, एक खेत में साथ - साथ उगाने को मिश्रित शस्यन कहते हैं ।

स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती की आवश्यकता क्यों है? | need of sustainable agro development in hindi


वर्तमान में परम्परागत आधारों पर विकसित एक ऐसी वैकल्पिक कृषि विधा की आवश्यकता है जो राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी जनसंख्या की खाद्य आपूर्ति, रोजगार सृजन के माध्यम से जनसामान्य के दरिद्रता निवारण तथा मिट्टी की उर्वरता एवं पारिस्थितिकी सभी स्थिति को टिकाऊ रख सके ।

यह विकल्प है - संपोषित कृषि/टिकाऊ खेती

यह कृषि ‘अधिक लागत अधिक उत्पादन' वाली तथाकथित वैज्ञानिक कृषि एवं कम लागत कम उत्पादन परक परम्परागत कृषि के विकल्प स्वरूप 'कम लागत अधिक उत्पादन' के लक्ष्य का अनुसरण करती है ।


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती के मूलभूत सिद्धान्त |principales of sustainable agriculture


संपोषित कृषि/पोषणीय कृषि जिसे स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) भी कहा जाता है । कृषि की अपेक्षाकृत नवीन विधि है । जिसका मूल विचार है - 'पर्यावरणीय स्वास्थ्य एवं जैविक / मानवीय निरन्तरता के लिए कृषि' ।

इस सूत्र वाक्य से दिशा निर्देशित होकर टिकाऊ कृषि के सिद्धान्तों की रचना की गई तथा इनके व्यावहारिक प्रस्फुटन के लिए इसके उपादान एवं अनुशीलन स्थापित किये गये ।


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स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती विकास के लिए तकनीकी रूप से मुख्य तीन सिद्धान्त बनाये जा सकते हैं -


( 1 ) विविधता - जटिलता -

विविधता का अभिप्राय 'अनेकता' से है अर्थात् एक ही स्थान पर विभिन्न प्रकार के जीवित अथवा अजीवित वस्तुओं का पाया जाना । प्रकृति के मूल स्वरूप में ही विविधता है । जैव विविधता जितनी अधिक होगी, जैव, उत्पादकता उतनी ही अधिक होगी ।

उदाहरण के लिए - यदि हम किसी भूमि को बिल्कुल छोड़ दें और उससे कोई छेड़छाड़ न करें तो कुछ ही समय में उस पर अनेक प्रकार के पौधों व जीवों का वास हो जाता है, जिनकी संख्या और प्रकार बढ़ता जाता है । परन्तु अगर हम किसी भूमि पर कृषि , बागबानी जैसी गतिविधियाँ अपनाते हैं तो पौधे व जीव - जन्तुओं के कुछ ही प्रकार रह जाते है । शेष नष्ट हो जाते हैं या नष्ट कर दिए जाते हैं ।

इस उदाहरण से स्पष्ट है कि प्रकृति में विविधता अधिक होती है परन्तु मनुष्य द्वारा किए गए क्रिया - कलापों से विविधता कम अथवा बिल्कुल ही नहीं होती है । स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) के लिए विविधता का होना आवश्यक है और इसे पौधों व जीव - जन्तुओं की अनेक प्रणालियों को प्रयोग में लाकर प्राप्त किया जा सकता है ।

खेतों के नियोजन, कृषि के साथ वृक्षों का साहचर्य, अनेक फसलों के बोने, फसलों के चक्रीय क्रम को बढ़ाने, केवल हानिकारक खरपतवार को नष्ट करने जैसी अनेक गतिविधियों द्वारा खेत की विविधता को बढ़ाया जा सकता है । खेत अथवा अन्य स्थानों पर पाए जाने वाले विभिन्न पौधों व जीव - जन्तुओं आदि की आवश्यकताएँ (भोजन, तापमान, जल, प्रकाश आदि) भिन्न - भिन्न होती है ।

ये आवश्यकताएँ भिन्न - भिन्न रूपों में खेत में उपलब्ध होती हैं और जब विभिन्न पोधे व जीव - जन्तु उपस्थित होते हैं तो इन उपलब्ध आवश्यकताओं (संसाधनों) का पूरा - पूरा उपयोग हो जाता है । परन्तु केवल चुने हुए पौधे व जीव - जन्तु उपस्थित हों तो अनेक संसाधन बेकार हो जाते हैं, जिनका कोई उपयोग नहीं हो पाता है ।

उदाहरण के लिए - यदि खेत में वृक्षों, कई फसलों, हानिकारक खरपतवारों आदि की उपलब्धता होगी तो जानवरों का भोजन कई स्रोतों द्वारा प्राप्त किया जा सकेगा और इसके लिए खेत के बाहर से चारे के प्रबन्ध में अनावश्यक ऊर्जा व धन की बचत हो सकेगी ।

'जटिलता का अर्थ भी किसी वस्तु का पूरा - पूरा एवं अनेकों प्रकार से उपयोग है । इसे खेत के प्रत्येक अवयव को पूरी तरह से (चक्रीय, पुन: चक्रीय ढंग से) उपयोग में लाकर प्राप्त किया जा सकता है । एक तत्त्व का बेकार भाग दूसरे क्रिया के लिए संसाधन का कार्य कर सकता है । उदाहरण के लिए - धान का प्रयोग संसाधन का कार्य कर सकता है ।


उदाहरण के लिए धान का प्रयोग अनेकों प्रकार से किया जा सकता है -

  • भोजन के रूप में चावल का प्रयोग ।
  • खेत - खलिहान में गिरे हुए दानों का पक्षियों एवं अन्य जीवों मुर्गी, बत्तख आदि द्वारा भोजन के रूप में प्रयोग ।
  • पौधों के बचे भाग का चारे के रूप में प्रयोग ।
  • पौधे के अवशिष्ट का कम्पोस्ट के रूप में प्रयोग ।
  • अनाज को बेचकर धन की प्राप्ति आदि ।


दूसरा उदाहरण खेत के तंत्र में उपस्थित मुर्गी अथवा बत्तख के उपयोग द्वारा लिया जा सकता है जिनका कार्य निम्न हो सकता है -

  • खेत व पशु बाड़े की मिट्टी की को ड़ाई ।
  • अवशिष्ट का खाद के रूप में प्रयोग ।
  • खेत - खलिहान में गिरे अनाज का भोजन के रूप में प्रयोग ।
  • माँस व अण्डे की उपलब्धता ।
  • पतंगों व हानिकारक कीटों का नियंत्रण ।

कृषितन्त्र में विविधता व जटिलता की अधिकता अच्छी बात होती है । इससे जहाँ एक ओर उत्पादकता हेतु किसी एक वस्तु पर निर्भरता घटती है तथा ऐसे 'रिस्क' में कमी आती है, वहीं आमदनी में बढ़ोत्तरी भी सुनिश्चित होती है ।


( 2 ) मिट्टी की जीवंतता -

संपोषित कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) के विशेषज्ञों के अनुसार मृदा वह जीवित संसाधन है जो अनेक जीव - जन्तुओं को धारण किये रहती है । ऊपर से निर्जीव दिखने वाली मिट्टी के अन्दर अनेक रासायनिक और जैविक क्रियाएँ सतत होती रहती हैं । मिट्टी में अनेक प्रकार के जीव - जन्तु निवास करते हैं । मिट्टी की तुलना, जन्तुओं के शरीर में स्थित पाचक तन्त्र से की जा सकती है जो जटिल भोजन को अनेक रासायनिक व जैविक क्रियाओं द्वारा सरल व उपयोगी तत्त्वों में परिवर्तित कर देता है ।

ठीक उसी प्रकार मिट्टी में होने वाली क्रियाएँ जटिल तत्त्वों को सरल तत्त्वों में बदलती रहती हैं जिससे पेड़ - पौधों के साथ - साथ उसमें रहने वाले जीव - जन्तुओं को लाभ पहुँचता है । मिट्टी की सुरक्षा तथा उर्वरा शक्ति बढ़ाना अत्यन्त आवश्यक है ।

मृदा सुरक्षा - मृदा को मुख्य रूप से हवा, पानी, गर्मी तथा विषाक्त पदार्थों से खतरा रहता है । मिट्टी को हवा, पानी, गर्मी से बचाने के लिए हमेशा किसी न किसी वनस्पति से ढककर रखना चाहिए । कीटनाशक - खरपतवार नाशक आदि को मिट्टी में डालने से भी मिट्टी के गुण (पी० एच० मूल्य आदि) तथा उसमें रहने वाले लाभदायक कीटों को नष्ट होने का खतरा रहता है । अत: इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए ।

उर्वरा शक्ति  - यह मिट्टी में रहने वाले जीवों तथा उगने वाले पौधों के स्वास्थ्य पर निर्भर रहती है । उर्वरता केवल मिट्टी में रासायनिक खाद डालने से नहीं बढ़ सकती है । मिट्टी की उर्वरक क्षमता उसमें उपस्थित कार्बनिक पदार्थों से बढ़ती है ।


( 3 ) पोषकों व संसाधनों का चक्रीय क्रम -

प्रकृति के प्रत्येक अंग एक चक्रीय क्रम में बंधे होते हैं, जिसके कारण प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं होती । पानी, फसल, मौसम, खनिज पदार्थ जैसे अनेक उदाहरण हैं जो एक चक्रीय क्रम में बंधे होते हैं और इनकी चक्रीयता को तोड़ने का परिणाम आज अनेक समस्याओं के रूप में हमारे समक्ष दिखाई पड़ता है ।

वास्तव में, कृषक का खेत भी एक इकाई है जिसे जहाँ तक सम्भव हो अपने में पूर्ण होना चाहिए और यह व्यवस्था स्थायी होनी चाहिए, यानि खेत की बाह्य निर्भरता कम से कम हो एवं आन्तरिक निर्भरता अधिक से अधिक हो । यह आत्मनिर्भरता तभी होगी, जब खेत के पोषक तत्त्वों, ऊर्जा, जल जैसी वस्तुएँ चक्रीय रूप में चलती रहे और इनकी आवश्यकता बाहर से कम से कम पड़े ।

उदाहरण के लिए - कृषक के अपने वृक्षों तथा फसलों के अवशिष्टों से ईंधन व पशुओं हेतु चारा प्राप्त हो सके, प्राप्त दूध, दही, फल इत्यादि कृषक परिवार को प्राप्त हों, नाइट्रोजन पैदा करने वाली फसलों में कृत्रिम उर्वरकों की आवश्यकता कम ही है और यह क्रम चलता रहे तो बाहर से कम से कम ईंधन, चारे, कीटनाशक, खाद, भोजन आदि की आवश्यकता होगी ।


इस चक्रीय व्यवस्था को संक्षेप में तीन उदाहरणों द्वारा समझा जा सकता है -

  • पहला उदाहरण प्रकृति का स्वयं है जो लाखों वर्षों से चलता चला आया है ।
  • दूसरा उदाहरण आज की आधुनिक खेती का है, जिसमें खेत के विभिन्न आयामो (पशु, वृक्ष, खेत - खलिहान व कृषक) में काई समग्रता नहीं होती है ।
  • तीसरा उदाहरण ऐसी व्यवस्था है जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पोषणीय खेती हेतु वांछित है ।

व्यावहारिक रूप से 'प्राकृतिक पारिस्थितिक तन्त्र' एवं मानव द्वारा अनुदानित कृषि पारिस्थितिक तन्त्र' साथ - साथ विकसित होने वाले तन्त्र हैं । प्राकृतिक तन्त्र में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य होता है, जबकि मानव द्वारा अनुदानित तन्त्र रसायन और यांत्रिक ऊर्जा चालित होते हैं, जिनका पुनर्चक्रण नहीं होता है, जिसके कारण तन्त्र अपक्षरित होने लगता है और उत्पादन की पोषणीयता प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती है । अतः स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) में पोषकों व संसाधनों के चक्रीय क्रम को निर्बाधित या न्यूनतम हस्तक्षेपित रखा जाता है ।


( 4 ) बचाव पर बल -

संपोषित कृषि/टिकाऊ खेती में सर्वदा बचाव पर जोर दिया जाता है तथा रोकथाम न होने पर नियंत्रण की बात सोची जाती है ।


इन प्रयासों को मुख्यत: निम्न भागों में बाँट सकते है -

( अ ) जैविक नियंत्रण - इस पद्धति में हानिकारक कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं को कृषि तंत्र में समावेशित किया जाता है । बहुत से पक्षी, कीट तथा छोटे पशु आदि ऐसे होते हैं जो हानिकारक कीट एवं अन्य कारकों को भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं ।


( ब ) यांत्रिक एवं भौतिक नियंत्रण - इसमें कीड़ों को पहचान कर, छाँटकर अलग किया जाता है, बड़े जीवों को शोर मचाकर तथा बाधाएँ पहुँचाकर नियंत्रित किया जाता है ।


( स ) प्राकृतिक कीटनाशक - प्राकृतिक पदार्थों से तैयार किए गए पदार्थों से आकर्षित करके मारने वाले, कुछ दुर्गन्धयुक्त तथा भगाने वाले वानस्पतिक कीटनाशक जैसे पदार्थ, प्राकृतिक कीटनाशकों के रूप में प्रयोग किए जाते हैं ।


( 5 ) अन्य - 

इसके अतिरिक्त मिट्टी के तेल, खट्टा दूध, खट्टा दही का मट्टा, आटा, गाय का मूत्र, राख, नीम की पत्ती, कुछ फसलों के कृषि आदि पदार्थ स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) में सफल कीटनाशक के रूप में प्रयोग किए जा सकते हैं ।


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती की प्रकृति एवं कार्यक्षेत्र | expansion of sustainable agriculture in hindi


विश्व एवं भारतीय कृषक समुदाय का संपोषित कृषि/टिकाऊ खेती की ओर दिन - प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । दोनों ही स्तरों पर यह बात अब कृषकों को समझ में आने लगी है कि यदि जैविक खेती को न अपनाया गया तो भूमि बंजर हो जायेगी एवं भू - जल का स्तर निरन्तर गिरता जायेगा । जैसे - जैसे इस वास्तविकता की समझ बढ़ रही है वैसे - वैसे पोषणीय कृषि का क्षेत्र भी बढ़ता जा रहा है ।


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विश्व में स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती का भौगोलिक विवरण


आइफोम तथा स्वाईल एसोसियेशन के वर्ष 2007 के सर्वेक्षण के अनुसार पूरे विश्व में लिगभग 3.2 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र पोषणीय कृषि प्रबंधन के अन्तर्गत है । यह कुल कृषि क्षेत्र का लगभग 0.75 % है ।

महाद्वीपों में आस्ट्रेलिया तथा प्रशांत महाद्वीप 1.21 करोड, हेक्टेयर क्षेत्र के साथ प्रथम स्थान पर है । इसके बाद यूरोप (78 लाख है०) लेटिन अमेरिका (64 लाख है०), एशिया (29 लाख है०) तथा उत्तरी अमेरिका (22 लाख है०) का स्थान है । परन्तु कुल क्षेत्र के मुकाबले पोषणीय कृषि क्षेत्र के प्रतिशत हिस्से के सम्बन्ध में यूरोप सबसे आगे है । पिछले कुछ वर्षों में यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में जैविक खेती क्षेत्र का तेजी से विस्तार हुआ है । उत्तरी अमेरिका में तो यह वृद्धि दर लगभग 30% तक रही है । देशों के सम्बन्ध में आस्ट्रेलिया (1.21 करोड़ है०), अर्जेन्टाइना (27.7 लाख है०) तथा अमेरिका (16 लाख है०) सबसे अग्रणी देश है ।

यद्यपि गत कुछ वर्षों से अधिकांश देशों में पोषणीय कृषि क्षेत्र का विकास हुआ है परन्तु कुछ देशों में जैसे चीन, चिली तथा आस्ट्रेलिया में इसमें कुछ कमी हुई है ।


फसल के प्रकार (types of crop in hindi) के रूप में, वर्ष 2009 के सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 3.1 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र की विस्तृत सूचना उपलब्ध है । इसमें लगभग 50% हिस्सा स्थायी चारागाहों का 14% विभिन्न फसलों का, 10% स्थायी फसलों का तथा 5% लगभग अन्य फसलों का हिस्सा है ।

वैश्विक स्तर पर लगभग दो तिहाई क्षेत्र स्थायी चारागाहों के अधीन है, जिसका आधे से अधिक भाग आस्ट्रेलिया में है । फसलो में खाद्यान्न फसलें, कपास, हरी खाद फसलें, दलहन, सब्जी वाली फसलें, तिलहन तथा औषधीय फसलें प्रमुख हैं । इसके अलावा पूरे विश्व में लगभग 3.1 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल भी जैविक प्रक्रिया के अन्तर्गत है ।

सबसे बड़े जैविक जंगल क्षेत्र यूरोप तथा अफ्रीका में है जहाँ से बाँस की कलियाँ, फल, फलियाँ व सूखे मेवे प्रमुख रूप से एकत्र किये जाते हैं वर्ष 2005 से 2007 के मध्य वैश्विक जैविक खाद्य बाजार 39% की वृद्धि दर के साथ तेजी से बढ़ा है । कुल बाजार वर्ष 2002 में लगभग 33 बिलियन डालर का था जो वर्ष 2007 में बढ़कर 46.1 बिलियन डालर तक पहुंच गया । वर्ष 2009 में इसके 50 बिलियन डालर के समकक्ष हो जाने की आशा है ।


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) यद्यपि वर्तमान में विश्व के अनेक देशों में अपने पाँव फैला चुकी है परन्तु जैविक उत्पादों की सर्वाधिक माँग यूरोप व उत्तरी अमेरिका तक सीमित है । यह स्थिति काफी जटिल है और इन देशों के जैविक बाजार में थोड़ा भी उतार - चढ़ाव विश्व जैविक बाजार को प्रभावित कर सकता है ।

यदि जैविक बाजार को सुदृढ़ व स्थायी बनाना है तो आवश्यक है कि सभी उत्पादक देश अपने स्थानीय जैविक बाजार को भी बढ़ावा दें ।


भारत में स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती परिदृश्य | sustainable agriculture in india


जनवरी 1994 की सेवाग्राम घोषणा के बाद से भारत में जैविक खेती का तेजी से विस्तार हुआ है । सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर अनेक प्रयासों ने इसे एक नई दिशा दी है । राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम के अन्तर्गत मानक और प्रमाणीकरण कार्यक्रम स्थापित किया गया है ।

राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना के अन्तर्गत मानक और प्रमाणीकरण कार्यक्रम स्थापित किया गया है राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना के अन्तर्गत जैविक प्रबंधन के प्रचार - प्रसार तथा जैविक खेती क्षेत्र के विस्तार हेतु अनेक योजनायें शुरू की गई हैं । नौ से अधिक राज्यों ने जैविक खेती उन्नयन कार्यक्रम को अपनाया और वाँछित नीतियों की घोषणा की है । 4 वर्ष पूर्व उत्तराखंड राज्य ने जैविक राज्य हेतु संकल्प लिया है । मिजोरम तथा सिक्किम राज्यों ने पूर्ण जैविक खेती (organic farming in hindi) राज्य होने की दिशा में कदम बढ़ाने शुरू किये हैं । अभी हाल में नागालैंड राज्य ने भी पूर्ण जैविक का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु प्रयास करने का संकल्प लिया है ।

भारत सरकार के कृषि एवं सहकारिता विभाग के राष्ट्रीय जैविक खेती कार्यक्रम के अन्तर्गत लगभग 468 सेवा प्रदायी संस्थाओं का चयन किया गया है जो जैविक खेती के प्रचार - प्रसार संलग्न हैं इसी कार्यक्रम के अन्तर्गत अनेक राज्य तथा सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं ने भी जैविक खेती के प्रचार - प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है ।

उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) के अनेक प्रकार हैं जो वैश्विक एवं राष्ट्रीय धरातल पर अपने विस्तार में निरंतर बढ़ोतरी करते जा रहे हैं ।


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती की दशाएँ | conditions of sustainable agriculture


कृषि के आधुनिकीकरण के फलस्वरूप तीन विशिष्ट प्रकार की कृषि प्रणालियों का विकास हुआ है -

  • औद्योगीकृत
  • हरित क्रान्ति स्तरीय
  • विविध जटिल
  • संसाधन विहीन ।

प्रथम दो प्रणालियों ने तकनीकी पैकेजों एवं कुछ उत्पादक तन्त्रों के विकास हेतु औद्योगिक राष्ट्रो एवं हरित क्रान्ति वाली भूमि पर अनुक्रिया करने में सफलता पायी है । तीसरी श्रेणी में शेष सभी न्यून उत्पादक, लघु निवेश वाली जटिल एवं विविध तन्त्रों से युक्त कृषि एवं आजीविका प्रणालियाँ सम्मिलित हैं ।


इन सभी क्षेत्रों में स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) की मूलभूत चुनौतियाँ काफी अलग - अलग हैं । यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका की औद्योगीकृत कृषि में, कृषि लाभ बनाये रखने के लिए लागत चरों एवं अत्यधिक निवेशों के प्रयोग को कम करना इसका उद्देश्य एवं चुनौती है ।

वर्तमान अति उत्पादकता के कारण उत्पादन में कुछ गिरावट भी स्वीकार्य होगी । हरित - क्रान्ति क्षेत्रों में चुनौती उत्पादकता को वर्तमान स्तर पर बनाए रखते हुए पर्यावरणीय अवक्रमणों को कम करना है । जटिलताओं एवं विविधता वाली भूमि/क्षेत्रों में चुनौती प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुँचाए बिना प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाना है । फार्मो/खेतों एवं कृषक - समूहों से प्राप्त प्रमाण यह दर्शाते हैं कि तीनों प्रकार के क्षेत्रों में पोषणीय के अभीष्ट की प्राप्ति की जा सकती है ।

तीसरी दुनिया की जटिलता, विविधता एवं संसाधन विहीन क्षेत्रों के पुनरुत्पादक तकनीकों को अपनाने वाले कृषकों ने बाह्य निवेशों के बिना या लघु निवेशों द्वारा अपना फसल उत्पादन दोगुना या तिगुना कर लिया है ।

उच्च निवेशित एवं सिंचित क्षेत्रों में पुनरुत्पादक तकनीकों को अपनाने वाले कृषकों ने निवेशों में काफी कमी करने के बावजूद भी उच्च उत्पादन बनाए रखा है ।


स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) को औद्योगिक कृषि तन्त्रों में अपनाने का मतलब कुछ समय के लिए 10 से 20 प्रतिशत उत्पादन में गिरावट के बावजूद अधिक लाभप्रद स्तर का उत्पादन है । परन्तु कृषक कम निवेशों से अधिक उत्पादन नहीं प्राप्त कर सकते हैं । बाह्य निवेशों की कमी को पूरा करने के लिए कृषकों के ज्ञान, श्रम एवं प्रबन्धन कला आदि का उपयोग करना होगा । इन सभी सफलताओं में तीन तत्त्वों की समानता है ।

अधिकांश ढाँचागत योजनाएँ अभी भी बाह्य निवेशों एवं तकनीकों वाली कृषि को प्रश्रय देती हैं । यही ढाँचागत योजनाएँ पोषणीय कृषि विकास में प्रमुख बाधक हैं । कीट, कीटभक्षी, मृदा पोषक तत्त्व एवं जलप्रबन्धन जैसे क्षेत्रों में अनेक प्रामाणिक एवं उत्साहवर्धक संसाधन - संरक्षक, तकनीकें एवं विधियाँ हैं । इनमें से अधिकांश विधियाँ स्वतन्त्र रूप में भी बहु - फलनक होती है, जिनको क्रिया रूप देने का अर्थ है - एक ही समय में कृषि के अनेक पक्षों पर सकारात्मक प्रभावा एशिया के अनेक भागों में की जाने वाली चावल - मछली - अजोला पद्धति समन्वित कृषि का उत्कृष्ट उदाहरण है ।

'अजोला' धान के खेत के पानी में होने वाली एक प्रकार की घास है जिसके पत्तों पर नाइट्रोजन स्थिर करने वाला शैवाल जीवन चक्र चलता है । द० पूर्वी चीन के फ्यूजियन प्रान्त में लगभग (Liue, C.C.K. Weng, B.Q., (1991) हे० भूमि धान - मछली - अजोला की स्थाई कृषि/टिकाऊ खेती (sustainable agriculture in hindi) पद्धति के अधीन है ।