चारागाह प्रबंधन किसे कहते है पशुपालन व्यवसाय में इसका महत्व एवं इसके प्रकार लिखिए

किसी खाली मैदान या भूमि के टुकड़े पर हरा चारा या हरी घास उगाकर उस स्थान को पशुओं के चराने योग्य बनाना ही चारागाह प्रबंधन (pasture management in hindi) कहलाता है ।


चारागाह का क्या अर्थ है? | meaning of pasture in hindi

चारागाह से तात्पर्य (pasture in hindi) उस स्थान या भूमि के टुकड़े से है जहां पर हरी घास पशुओं के चराने के लिए उगाई जाती है ।

अर्थात् ऐसी भूमि या मैदान जहां पर हरी घास उगाकर मुख्यत: पशुओं के चरने के लिए ही खाली छोड़ दी जाती है ।


चारागाह किसे कहते है? | pasture in hindi


चारागाह की परिभाषा - "उस खाली भूमि या खेत में जहां प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से उगाए गए पौष्टिक और स्वादिष्ट हरे चारे को पशुओं को चराया जाता है उस स्थान को ही चारागाह (pasture in hindi) कहा जाता है।"

"On that vacant land or field where animals are grazed by natural or artificially grown nutritious and tasty green fodder, that place is called pasture."


चारागाह प्रबंधन क्या है इसका महत्व लिखिए? | pasture management in hindi


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किसी भी खाली पड़े मैदान या भूमि के टुकड़े पर हरा चारा उगाकर उसे पशुओं के चराने के योग्य बनाना जिससे पशुओं को अच्छा पौष्टिक एवं स्वादिष्ट हरा चारा प्राप्त हो वह चारागाह प्रबंधन (pasture management in hindi) कहलाता है ।


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भारतीय कृषि एवं पशुपालन में चारागाहों का बड़ा महत्व है ।

हमारे देश में भौगालिक क्षेत्रफल का लगभग 4 प्रतिशत भाग चारागाहों के रूप में पाया जाता है । इसके अलावा और भी ऐसे मैदान हैं, जो कृषि के योग्य नहीं हैं और चारागाहों के रूप में काम में लाये जाते हैं ।

भारत में विश्व के सबसे अधिक मवेशी है, दुनिया की कुल भैंसों का 57% व गाय - बैलों का 16% भारत में है (18 वीं पशुधन गणना - 2008) वर्ष 2008 की मवेशी गणना के अनुसार, देश में करीब 19.90 करोड़ गाय - बैल तथा 10-53 करोड़ भैंसे हैं ।

इनके अतिरिक्त भेड़, बकरी, घोड़ा, खच्चर, गधा, ऊँट भी पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं । हमारे देश में पशुओं की संख्या लगभग 470 मिलियन है । इनमें से 90 प्रतिशत पशु चारागाहों पर आश्रित हैं ।

लेकिन फिर भी भारत में चारागाहों की स्थिति अच्छी नहीं है ।


पशुपालन व्यवसाय में चारागाहों का क्या महत्व है?


सामान्यत: चारागाहों में पौष्टिक चारे की मात्रा कम है । कहीं - कहीं धूप पड़ने लगती है, जिससे अक्टूबर के महीने से ही घासों का सूखना प्रारम्भ हो जाता है ।

इसके अतिरिक्त अधिकांश चारागाह असिंचित क्षेत्रों में है और उनका धरातल ऊँचा - नीचा होता है । इस कारण उनमें न तो सिंचाई हो पाती है और न वर्षा का जल समुचित रूप से मिल पाता हैं नालों या नदियों के किनारे स्थित चारागाहों के बहुत बड़े भाग असमान हैं और ये भाग भू - क्षरण के कारण बेकार होते जा रहे हैं ।

कुछ चारागाह पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ ऐसी घासें होती हैं, जो बहुत हल्की होती हैं और उनका वानस्पतिक वर्धन भी कमजोर होता है । इसको पशु ठीक से खाते भी नहीं है । कड़ी धूप पड़ने पर ये घासें शीघ्र सूख जाती हैं । कुछ चारागाहों में ऐसी - ऐसी काँटेदार झाड़िया भी होती हैं, जिनका पर्याप्त भाग बेकार हो जाता है ।

चारागाह की भूमि पर प्रति एकड़ पशु अधिक संख्या में चरते हैं इससे पशुओं को भरपेट चारा नहीं मिलता है और अनियमित रूप से चरने के कारण चारा एवं चारागाह नष्ट हो जाते हैं ।

सामान्यतः पशुओं को चरने का कोई उत्तम प्रबन्ध नहीं है कि कब, कितने समय और किस तरीके से पशुओं को चराया जाए । इससे चारागाहों की हालत खराब है ।

इस प्रकार से भारतीय कृषि एवं पशुपालन में चारागाहों का महत्वपूर्ण स्थान हैं ।


चारागाह कितने प्रकार के होते है?  kinds of pasture in hindi


चारागाह प्रमुख दो प्रकार के होते है -

1. कृत्रिम चारागाह ( Artificial Pasture )

  • स्थाई चारागाह
  • अस्थाई चारागाह
  • आवर्तनात्मक चारागाह
  • संपूरक एवं पूरक चारागाह
2. प्राकृतिक चारागाह या पशु चारण क्षेत्र ( Range )


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चारागाह के प्रकारों का वर्णन कीजिए? | types of pasture in hindi

सामान्यतया चारागाह के दो प्रकार हो सकते हैं —कृत्रिम चारागाह एवं प्राकृतिक चारागाह या पशु चारण क्षेत्र ।


1. कृत्रिम चारागाह ( Artificial Pasture )


कृत्रिम चारागाह निम्न प्रकार के होते हैं -

  • स्थायी चारागाह
  • अस्थायी चारागाह
  • आवर्तनात्मक चारागाह
  • संपूरक एवं पूरक चारागाह ।


( i ) स्थायी चारागाह -

इसमें मुख्यत: बहुवर्षी घासें तथा फलीदार पौधे उगाए जाते हैं, जिन्हें कई वर्ष तक पशुओं द्वारा चराया जा सकता है । ये चारे आर्द्र एवं उपआई सभी भागों में उगाये जाते हैं । यह एक कृत्रिम प्रकार का चारागाह होता है । इनमें कुछ एकवर्षी जातियाँ भी उगाई जाती हैं जिनके बीज अपने आप उसी स्थान पर पक कर गिरते हैं और फिर उगते रहते हैं ।


( ii ) अस्थायी चारागाह -

इसमें प्राय: एकवर्षी घासें एवं फलीदार चारे उगायें जाते हैं इन्हें चारे की फसलों की वृद्धि अवस्था में पशुओं को चराया जाता है । इनमें प्राय: दाने की कुछ फसलें भी सम्मिलित की जा सकती हैं ।


( iii ) आवर्तनात्मक चारागाह -

आवर्तनात्मक चारागाह ऐसे चारागाह को कहते हैं, जहाँ किसी भी क्षेत्र में घास एवं फलीदार पौधे 2 से 5 वर्ष तक उगायें एवं चराये जाएँ और फिर उसी क्षेत्र में 1-2 वर्ष तक दाने की फसलों जैसे - मक्का या गेहूं को उगाया जाये । इनमें उगायें जाने वाले चारे, घासें या फलीदार पौधे बहुवर्षी होते हैं ।


( iv ) संपूरक एवं पूरक चारागाह -

थोड़े समय की चराई में काम में लाये जाने वाले चारागाह को संपूरक या पूरक चारागाह कहा आता है । यह समय 1 से 3 माह तक हो सकता है, जिससे स्थायी चारागाह या पशु चारण क्षेत्र में जब चारा आवश्यकता के अनुसार पूरा नहीं पड़ता है या जब स्थायी चारागाह में पशुओं को चराने के लिये घासें और चारे सुलभ नहीं होते, तो संपूरक और पूरक चारागाहों में 3-4 महीनों के के लिये पशुओं को चराया जाता है या इनसे चारा प्राप्त किया जाता हैं ।

सामान्यतया: संपूरक (supplemental) चारागाह से चारा काट कर पूरक रूप में प्रयुक्त किया जाता है और पूरक चारागाह (complemental pasture) में पशुओं को थोड़ी अवधि के लिये चराया जाता है ।


2. प्राकृतिक चारागाह अथवा पशु चारण क्षेत्र ( Range )


चारागाह सामान्य रूप से लगभग समतल स्थानों पर कृत्रिम रूप से बनाये जाते हैं, जबकि पशु चारण क्षेत्र जंगली क्षेत्र में समतल - असमतल भागों में प्राकृतिक रूप में पाये जाते हैं । इनके उत्पादन तथा वानस्पतिक संघटन में अन्तर पाया जाता है ।

चराागाह (pasture in hindi) प्राय: कृषि फसलों की ही भाँति लगाये जाते हैं इनमें विभिन्न कृषि क्रियायें दूसरी फसलों के समान की जाती हैं इनमें घास तथा फलीदार चारे उत्पादकता तथा पौष्टिक मान के अनुसार चयन करके उगाए जाते हैं ऐसी भूमि, जहाँ चारागाह उगाए जाते हैं, प्राय: समतल, लगभग उपजाऊ, सिंचित या पर्याप्त वर्षा वाली तथा अच्छे जल - निकास वाली होती है ।

इसके विपरीत पशु चारण क्षेत्र एक प्रकार का प्राकृतिक चारागाह है । जिनमें घास की विभिन्न जातियाँ, तरह - तरह के फलीदार पौधे, लताएँ, झाड़ीदार पौधे एवं झाड़ियाँ आदि प्राकृतिक रूप से उगती हुई पाई जाती हैं ।

इसमें भूमि के प्राकृतिक ढाल, नाले तथा असमतल स्थल (जहाँ खेती करना अनुपयुक्त होता है) पाये जाते हैं पशु चारण क्षेत्र को अधिक उत्पादक बनाने हेतु कभी - कभी खाद डालना या अन्य उन्नत कृषि क्रियायें करना अच्छा सिद्ध हुआ है । इनकी उत्पादन क्षमता चराागाह (pasture in hindi) की अपेक्षा काफी कम पाई जाती है ।


प्राकृतिक चारागाहों के प्रबन्धन हेतु किन - किन कारको को ध्यान में रखना आवश्यक है?


प्राकृतिक चारागाह प्रबंधन (pasture management in hindi) प्राकृतिक चारागाह के प्रबंध की समस्या काफी जटिल होती है जो प्राय: उसके स्थान एवं जलवायु के ऊपर निर्भर करती है ।

सामान्यतया पशु चारण क्षेत्र अलग - अलग जलवायु वाले भागों और स्थलाकृति के आधार पर वर्गीकृत किये जा सकते हैं इसलिये प्राकृतिक चारागाह प्रबंधन (pasture management in hindi) के लिये निम्न कारकों पर ध्यान देना चाहिये -


1. भूमि - 

विभिन्न मृदाओं पर उगने वाली वनस्पतियों का ज्ञान प्राकृतिक चारागाह के प्रबंध में काफी सहायक होता हैं इसके लिये मृदा संरचना से संबंधित चट्टानों, जल - निकास, ढाल, भूमि तल एवं पी - एच. मान का ज्ञान आवश्यक है । इसके साथ जलवायु एवं ऊँचाई (समुद्र तल से) को भी जानना आवश्यक है । भूमि संबंधी इस ज्ञान के आधार पर भूमि का कटाव रोक कर उपयोगी वनस्पति का संरक्षण किया जा सकता है ।


2. नमी एवं खाद - 

प्रायः प्राकृतिक चारागाह में उगने वाली घासों में नमी की आवश्यकता पड़ती है । अतः उपयोगी वनस्पतियों के उत्पादन में नमी एक सीमाकारी कारक माना जाता है । प्राकृतिक जातियों में खाद का कोई विशेष महत्व नहीं माना जाता है, परन्तु जब पशु चारण क्षेत्र में नमी हो, तो आवश्यकतानुसार नाइट्रोजन का प्रयोग किया जा सकता है ।

खाद का प्रयोग करने के पहले निम्न चीजें देखनी चाहिये —

( क ) भूमि की प्रारभिक उर्वरता कम होनी चाहिये;
( ख ) जलवायु पादप वृद्धि के अनुरूप होनी चाहिये;
( ग ) पशु चारण क्षेत्र में ऐसी घासें और फलीदार पौधे होने चाहिये, को खाद से प्रभावित होते हों;
( घ ) खाद उपयुक्त विधि से डालनी चाहिये ।


3. पौधों की विभिन्न जातियाँ - 

प्राकृतिक चारागाहों में पौधों की कई प्रकार की जातियाँ एवं अन्य चारे के पौधे साथ - साथ उगते हैं इसकी पौष्टिकता काफी कम होती है । इनमें प्रायः रोधी किस्म के अवांछनीय पौधे भी होते हैं इनमें से कठोर तथा अवांछनीय पौधों की सफाई करते रहना आवश्यक होता है । इसके अतिरिक्त इनके स्थान पर यदि संभव हो, तो उपयोगी पौधों की अच्छी जातियाँ उगानी चाहिये ।


4. पौधों की अवांछनीय एवं कठोर जातियों का नियंत्रण - 

प्राकृतिक चारागाह में झाड़ीदार, काँटेदार कठोर पौधे तथा अन्य हानिकारक पौधे पाये जाते हैं इनको काटकर, जलाकर, उखाड़कर या विभिन्न प्रकार के खरपतवार नियंत्रक रसायनों से नियंत्रित किया जा सकता है । इनकों कभी - कभी कीटों द्वारा भी समाप्त किया जा सकता है । जलाने का कार्य प्रायः गर्मी में किया जाता है । इसी प्रकार बुलडोजर द्वारा पौधों को उखाड़ा जा सकता है । खरपतवर नियंत्रण के लिये 2,4 - डी आदि मुख्य रसायन हैं, जिनका प्रयोग विशेषज्ञों की राय लेकर करना चाहिये ।


5. चराई प्रबंध - 

प्राकृतिक चारागाह में पशुओं को प्राय: पौष्टिक तथा अच्छी जाति के चारे भी मिलते रहते हैं, जिसके फलस्वरूप ऐसे पौधे धीरे - धीरे समाप्त हो जाते हैं और अवांछनीय पौधे इनका स्थान ग्रहण कर लेते हैं अत: चारागाहों की ही तरह पशु चारण क्षेत्र में भी नियमित चराई की विधियाँ अपनाना आवश्यक है । यदि इसका खर्च अधिक हो, अस्थिगित चराई की विधि सबसे अच्छी मानी जाती है । इसमें पशुओं को कुछ समय तक एक स्थान पर चराया जाता है ।

जब उस स्थान की कोमल एवं पौष्टिक वनस्पतियों को पशु चारे में डालें, तो पशुओं को दूसरे स्थान पर ले जाना चाहिये जिससे पहले स्थान पर चराए गए उपयोगी पौधे पुनवृद्धि कर सके और समयानुसार फिर वहाँ पशुओं को चराया जा सके ।


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चारागाह प्रबन्ध के कारक लिखिए? | factors of pasture management in hindi


चारागाह प्रबन्ध के प्रमुख कारक निम्नलिखित है -

  • उन्नत पशुपालन और चारागाह
  • चारागाह के लिये चारे की उन्नत किस्में
  • अच्छे चारागाहों के लिये अनुकूल स्थलाकृति एवं जलवायु
  • पशुओं द्वारा चराई


चारागाह प्रबन्ध के लिये निम्नलिखित कारकों को ध्यान में रखना आवश्यक है -


1. उन्नत पशुपालन और चारागाह -

उन्नत नस्ल के पशुओं को अधिक चारे की आवश्यकता होती है । इसके साथ ही चारे की पौष्टिकता भी अच्छी होनी चाहिये । इस आवश्यकता की पूर्ति के लिये चारे की ऐसी उन्नत किस्में उगाई जानी चाहिये जिनकी उपज एवं पौष्टिकता, दोनों ही अच्छी हों । विभिन्न प्रकार के पशुओं के लिये चारे की अलग - अलग आवश्यकता पड़ती है ।

उदाहरण के लिये भेड़ और बकरियाँ प्रायः चारागाह (pasture in hindi) में चर करके ही अपना भरण - पोषण कर लेती है । इनके लिये शुष्क स्थानों में उगाई जाने वाली घासें, जैसे अंजन घास, मारवेल घास इत्यादि उपयुक्त मानी जाती हैं अन्य मवेशियों जैसे गाय या भैंसों के लिये उन्नत किस्म की सिंचित घासों या फलीदार पौधों की आवश्यकता पड़ती है ।

इसी प्रकार ऊँट के लिये प्राय : शुष्क स्थानों पर पाये जाने वाले बबूल जैसे पेड़ों की पत्तियाँ ही पर्याप्त मानी जाती हैं इसके अलावा पशु रेवड़ की संख्या भी महत्वपूर्ण है । अधिक पशुओं के लिये उनकी संख्या और नस्ल के अनुसार चारे की पूर्ति करनी होती है । पशुओं की उत्पादन क्षमता और उनकी शरीर क्रियात्मक दृष्टि से चारागाहों का प्रबंध करना होता है । पशुओं की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिये अच्छी किस्म की घासों या फलीदार पौधों की आवश्यकता पड़ती है ।

यदि चारागाह (pasture in hindi) में उन्नत किस्म के पौधे हों ओर उनका प्रबंध भी ठीक हो, तो पशुओं के स्वास्थ्य के ऊपर इसका काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है । इसके विपरीत कुछ चारागाहों पर केवल अपौष्टिक घासें ही प्राप्त होती हैं जिससे पशुओं का पेट भी भरना कठिन हो जाता है । इस प्रकार अच्छे उत्पादन के लिये चारे तथा चरागाह का उन्नत प्रबन्ध आवश्यक होता है ।


2. चारागाह के लिये चारे की उन्नत किस्में -

घास की वृद्धि कई प्रकार की होती है । इसलिये चारागाहों में कई प्रकार की फसलों की किस्मों की बोआई करनी चाहिये ताकि उत्पादन और चारे की पौष्टिकता बढ़ाई जा सके । सूखे क्षेत्रों में चारे की फसलों की वृद्धि कम हो जाती है । ऐसे क्षेत्रों में सूखारोधी घासें, जैसे गिनी घास, रोड्स घास, बफैलों घास की बोआई करनी चाहिये । इनमें पुनवृद्धि भी अच्छी पाई जाती है ।

शीत कटिबंध या भारतीय पर्वतीय भागों में 2100 मीटर की ऊँचाई पर चारागाह में लेस्पेडेजा जैसे उन्नतिशील एवं उत्पादक फलीदार चारे सम्मिलित हैं । घास वाली फसलों की उन्नत किस्मों के चयन में कोई समस्या नहीं पाई जाती हैं क्योंकि इनकी पर्याप्त किस्में उपलब्ध है । इसके विपरीत फलीदार चारे में उन किस्मों की काफी कमी है । इसलिये इनमें चयन की सीमा काफी कम हो जाती है । यह चयन प्राय: जलवायु, वातावरण एवं स्थलाकृति, चारे की उत्पादन क्षमता, पौष्टिकता एवं अन्य गुणों पर निर्भर करता है । चारे की उत्पादन क्षमता कई बातों पर निर्भर करती है । घास वाली फसलें प्रायः नाइट्रोजन खाद देने पर अधिक उपज देती हैं, फलीदार फसलों को अधिक फॉस्फोरस एवं पोटाश की आवश्यकता पड़ती है । इसी प्रकार एक ही कुल की फसलें तथा उनकी विभिन्न किस्मों की उत्पादन क्षमता में काफी अन्तर पाया जाता है ।

उदाहरण लिये स्थानीय दूब घास और कोस्टल दूब घास को लीजिए , इनमें कोस्टल दूब घास की उपज स्थानीय दूब घास से बहुत अधिक होती है । इसके अतिरिक्त कोस्टल दूब घास के चारे की पौष्टिकता भी अच्छी पाई जाती है । इस पर मिट्टी की उर्वरता, पानी , कटाई इत्यादि का भी काफी प्रभाव पड़ता है । उपयुक्त समय पर चारा कटाई से पैरा घास, गिनी घास और नेपियर घास की उपज बढ़ती जाती है । कम उर्वरता वाली भूमि में ग्वाटेमाला घास की उपज नेपियर से कहीं अधिक पाई जाती है । जहाँ कहीं चारागाह (pasture in hindi) में बाहिया घास खरपतवार के रूप में या अधिक प्रतिशत में पाई जाती है, वहाँ पर गिनी घास की उपज घीरे - धीरे कम होती जाती है ।

बहुवर्षीय किस्मों कही दीर्घ आयु चारागाह की उन्नत प्रबंध क्रियाओं पर निर्भर करती है । ग्वाले माला घास 15 वर्ष, नेपियार 4 वर्ष तथा पैराघास और रोड्स घास 3 वर्ष तक चारागाह में रहकर अच्छा चारा दे सकती है । कुछ घासें बीज पैदा कर सकती है । और बीज द्वारा उगाई जाती है । कुछ केवल वानस्पतिक भागों द्वारा तथा कुछ दोनों विधियों से उगाई जा सकती है । गिनी घास में बीज तैयार तो होता है, परन्तु बहुत कम होता है ।

अत: यह घास टुकड़ों द्वारा उगाई जाती है । इस प्रकार दूब, नेपियर ता, पेरा घास वानस्पतिक भागों द्वारा उगाई जाती है ।

चारागाह (pasture in hindi) में प्राय: बीज द्वारा पौधों को उगाना अच्छा समझा जाता है । सूखे या कम वर्षा वाले स्थानों पर बीजों की बोआई करके चारागाह की स्थापना करना उचित समझा जाता है । उष्ण कटिबंधीय भागों में बीज - उत्पादन क्षमता के कम होने के कारण इनका बीज काफी महंगा बिकता है, क्योंकि इनका उत्पादन व्यय अधिक होता है ।

कम बीज उत्पादन के कई कारण हो सकते हैं, जैसे -

( क ) पुष्पगुच्छ के निकलने का समय बहुत अधिक होता है, जिससे बीज बराबर न पक कर अनियमित रूप से पकते हैं ।
( ख ) नाइट्रोजन की कमी ।
( ग ) प्रबंध संबंधी अन्य कारक ।


3. अच्छे चारागाहों के लिये अनुकूल स्थलाकृति एवं जलवायु

चारागाह में उन्नत किस्म के चारे केवल उन्ही स्थानों पर उगाये जा सकते हैं, जहाँ जल - निकास अच्छा हो भूमि में उर्वरा - शाक्ति अच्छी हो, तथा सिंचाई इत्यादि के साधन उपलब्ध हों । ऐसे स्थानों पर चारागाह की उत्पादकता भी अधिक होती है । इसके साथ ही चारे में पौष्टिकता भी अच्छी पाई जाती है । यदि चारागाह (pasture in hindi) उचित स्थान पर नहीं बनाया जाता, तो उसमें पैदा होने वाली घासें कम उत्पादक तथा कम पौष्टिक होती हैं ।


4. पशुओं द्वारा चराई –

चारागाह के प्रति हैकेयर क्षेत्र में चरने वाले पशुओं की संख्या और उनका प्रकार बहुत महत्वपूर्ण है, जिस पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिये । भारत के सभी चारागाहों पर प्रतिवर्ष असंख्य पशु चराये जाते हैं, जिनके कारण उनके ऊपर न तो अच्छी घास पाई जाती है और न ही अच्छी घास पैदा करना सम्भव है ।

यदि चारागाहों को ठीक प्रकार से सुरक्षित रखा जाये और उनमें जलवायु के अनुसार घास या अन्य चारे उगाये जाएँ तो प्रति पशु 2 से 4 एकड़ का चारागाह 4-5 माह के लिये रखना पर्याप्त माना जाता है । साथ ही इसी चारागाह (pasture in hindi) में भेड़ और बकरियाँ अधिक संख्या में पाली जा सकती हैं रेगिस्तानी घासों, जैसे अंजन, मारवेल, ब्लू पैनिक इत्यादि घासों पर किये गये परीक्षणों से पता चलता है कि बोआई करके उगाई गई अंजन घास के चारागाह (pasture in hindi) में एक हैक्टेयर क्षेत्र पर लगभग 8 भेड़ें और ब्लू पेनिक पर लगभग 5 भेड़ें रखी जा सकती हैं ।

इसी प्रकार सामान्य लेस्पेडेजा घास भी शीत कटिबंधी चारे की उत्पादकता बढ़ाती है ।


चारागाहों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने सम्बन्धी उपाय लिखिए?


चारागाह की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के प्रमुख उपाय -

  • चारे और धासों की मिलवाँ खेती
  • चारागाह में बहुवर्षी दलहनी पौधों की आवश्यकता
  • चारागाह में वृक्ष लगाने की आवश्यकता
  • चारागाह के लिये खाद की आवश्यकता
  • चारागाह की सफाई और सुरक्षा
  • उत्तम विधि द्वारा चराई की आवश्यकता


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चारागाहों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के उपाय -

चारागाह (pasture in hindi) की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के उपाय चारे की फसलों की अच्छी स्थापना के लिये जहाँ एक ओर चारे की फसलों और घासों के जीवन चक्र पर पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती है, वहीं दूसरी ओर चारागाह की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के उपाय, जैसे चारे और घासों की मिलवाँ खेती, चारागाह में खाद का प्रयोग, चारागाह की सजाई और सुरक्षा आदि अपनाने चाहिये ।


1. चारे और धासों की मिलवाँ खेती

प्रायः उष्ण कटिबंधी चारागाहों में एक प्रकार की जातियाँ उगाई जाती हैं कभी - कभी इसके साथ फलीदार पौधे भी उगाये जा सकते हैं जिन जगहों के लिये चारे की फलीदार किस्में उपयुक्त नही पाई जाती हैं, ऐसे स्थानों पर केवल घास की ही जातियाँ उगानी चाहिये ।

जहाँ कहीं घासों का अंकुरण अच्छा न होता हो, उन स्थानों पर घास और फलीदार पौधों को मिलाकर बोना चाहिये । कभी - कभी दो प्रकार की घासों को भी मिलाकर उगाया जा सकता है, उदाहरण के रूप में रोड्स घास एवं बहिया घास को एक साथ उगाना चाहिये । मिलवाँ चारे की उपज यद्यपि कुछ कम हो जाती है, परन्तु चारे की पौष्टिकता अधिक होती है ।

उदाहरण के लिये इस घास के साथ क्लाइटोरिया या एटिलोसिया उगा सकते ।


2. चारागाह में बहुवर्षी दलहनी पौधों की आवश्यकता -

कुछ चारागाहों में अधिकतर बरसाती घासें, खरपतवार एवं निम्न कोटि की घासें जैसे थिमेडा, अपलूडा - लम्पा घास , सेन घास आदि अधिक उगती हैं इस प्रकार के चारागाह (pasture in hindi) पशुओं के लिये घटिया माने जाते है । इन चारागाहों में प्रोटीन एवं पौष्टिकता बढ़ाने के लिये बहुवर्षी दलहनी लताओं के बीज बोने चाहिये । इससे चारे में 6-7 प्रतिशत तक प्रोटीन हो जाता है ।

इन लताओं में चूहा घास या एटीलोसिया स्कैरोबायडीज (Arylosia Scaro Bacoides) फैजियोलस एट्रोपरपूरिया, स्टाइलोसेंथिस, हम्यूलिस, रसाइसिन जवेनिका, डालिकस आग्जेलेरिस, डालीकस लवलब और क्लाइटोरिया टरनेटीआ सबसे मुख्य है ।

इन दलहनी लानाओं में 13-18 प्रतिशत तक प्रोटीन पाया जाता है । इसी प्रकार शीत कटिबंधी चारागाहों के लिये सबटेरेनियन क्लोवर तथा किरमिजी क्लोवर बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं ।


3. चारागाह में वृक्ष लगाने की आवश्यकता –

पशुओं के लिये चराई वाले चारागाह (pasture in hindi) में छायादार और रसीली पत्तियों वाले वृक्ष लगाने चाहिये । चराई से थकने के बाद पशु वृक्षों के नीचे आराम कर सकते हैं इसके साथ ही पत्तीदार वृक्ष लगाने से पशुओं को अच्छा चारा भी प्राप्त होता रहता है ।

एक उत्तम प्रकार के चारागाह में लगभग 18-20 वृक्ष प्रति हैक्टेयर क्षेत्र में लगाना चाहिये । इन पेड़ों में पीपल, बबूल, इस्त्राइली सिरोस, बांस इत्यादि काफी महत्वपूर्ण हैं इनके अतिरिवत बेर, शीशम, कचना, आदि वृक्षों की पत्तियाँ भी पशुओं को खिलाई जाती हैं ।

इन पौधों की स्थापना प्राय: जलवायु एव अन्य कारकों, जैसे मैदान, पहाड़ की ऊँचाई, वर्षा इत्यादि पर निर्भर करती है ।


4. चारागाह के लिये खाद की आवश्यकता

प्राय: उष्ण कटिबंधी चारागाहों की भूमि में कई पोषक तत्वों की कमी पाई जाती है । जब तक भूमि पर जंगली पेड - पौधे पायें जाते हैं, तब तक तत्वों का एक बन्द चक्र (closed cycle) चलता रहता है जिससे पेड़ अपनी गहरी जड़ों के कारण भूमि की गहराई से खनिज पदार्थ लेने की क्षमता रखते हैं ।

भूमि पर गिरी पत्तियों तथा सड़े - गले लकड़ी के टुकड़ों द्वारा मिट्टी की ऊपरी सतह पर कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है जिससे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा गंधक की मात्रा स्थिरीकृत हो जाती है । इससे वर्षा में खनिज लवणों की निक्षालन क्षति (leaching loss) भी काफी कम हो जाती है ।

जब जंगल काट कर क्षेत्र में फसल उगाना आरंभ किया जाता है तो पोषक तत्वों का यह चक्र टूट जाता हैं सूखे मौसम में चारागाह (pasture in hindi) की घास जला दी जाये, तो भूमि की सतह से नाइट्रोजन तथा गंधक का वाष्पीकरण हो जाता है ।

इसके अतिरिवत वर्षा के आरम्भ में भूमि की सतह खुली होने के कारण पोषक तत्वों को निक्षालन से हानि हो जाती है । चारागाह की उत्पादन क्षमता तत्वों और पानी की सुलभता पर निर्भर होती हैं उष्ण कटिबंधी चारागाह वाली भूमि का पोषक - संतुलन उर्वरक एवं गोबर की खाद से उपयुक्त बनाया जा सकता है । फार्म पर चारे के लिये मक्का, ज्वार इत्यादि उगाये जाते है ओर फार्म के मवेशियों को खिलाये जाते हैं । बाद में इन मवेशियों से प्राप्त किया गया गोबर चारागाह में वापस डाल दिया जाता है ।

इस तरह पर्याप्त तत्व गोबर के रूप में चारागाह (pasture in hindi) में वापस आ जाते है । पर्याप्त खाद देकर चारागाह की उर्वरा शाक्ति बढ़ाने से घास की वृद्धि अच्छी होती है, जिसके द्वारा चारागाह में प्रति हैक्टेयर चराने के लिये पशुओं की संख्या बढ़ाई जा सकती है । अलग - अलग घासों और चारे की फसलों की खाद एवं उर्वरक - आवश्यकता भिन्न - भिन्न होती है ।


5. चारागाह की सफाई और सुरक्षा –

चारागाहों की सफाई की सबसे उत्तम विधि आग लगाकर जंगल को साफ करना है । इस विधि से शीघ्र ही अवांछनीय झाड़ियां, पौधों के अवशेष तथा खरपतवारों के बीज जल कर समाप्त हो जाते हैं इस प्रकार चारागाह में खरपतवार कम उगते है । इससे चारागाह मे उगने वाली प्रायः बहुवर्षी घासें ही उगती है । आग लगने के बाद चारागाह में घासों की बढ़वार तेज होती है ।

इस प्रकार प्रति हैक्टेयर घास का उत्पादन बढ़ जाता है और पशुओं को शीघ्र तथा अधिक मात्रा में चारा मिलता रहता है । नम तथा अधिक वर्षा वाले स्थानों के चारागाहों में आग लगाना अधिक लाभदायक होता है । इसके विपरीत शुष्क तथा अर्धशुष्क क्षेत्रों में यह विधि कम लाभदायक होती है क्योंकि इनमें आग बुझाना कठिन होता है ।


6. उत्तम विधि द्वारा चराई की आवश्यकता –

चराई के लिये तैयार किये गए चारागाहों में पहले वर्ष पशुओं द्वारा चराई नहीं करानी चाहिये । दूसरे वर्ष जब चारागाह की धासें भली - भाँति बढ़ जाए, तो अगस्त - सितम्बर से चारागाह में उपयुक्त ढंग से चराई आरम्भ करनी चाहिये । पशुओं की संख्या पर भी नियंत्रण करना आवश्यक है, अन्यथा अधिक पशु छोड़ने से न तो पशुओं का पेट भरता है और न ही चारागाह की दशा अच्छी रहती है ।

चराई की उपयुक्त विधियों का वर्णन पहले किया जा चुका है । इसके अतिरिक्त चारागाह की सुरक्षा के लिये आवश्यकतानुसार बाड़े (fencing) लगाने चाहिये । इससे नियंत्रित रूप में चराई कराने में सहायता मिलती है ।

चारागाह (pasture in hindi) के अन्दर पाई जाने वाली बेकार की झाड़ियाँ काटकर निकाल देनी चाहिये । इससे घास उगाने के स्थान में वृद्धि हो जाती है तथा उत्पादन बढ़ जाता है ।