डेयरी फार्म या पशुशाला निर्माण की प्रमुख विधियां एवं आवश्यक भवन व शेड्स बताएं

पशुओं की आवास व्यवस्था - पशुओं के अच्छे जीवन एवं उनसे अधिकतम उत्पादन के लिए स्वच्छ और आरामदायक आवास व्यवस्था का होना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है ।

अत: दुधारू पशु के लिए साफ सुथरी एवं आरामदायक डेयरी फार्म या पशुशाला का निर्माण करना अति आवश्यक होता है क्योंकि अच्छा डेयरी फार्म न होने के कारण पशुओं पर दुर्बल प्रभाव पड़ता है और पशु बीमार रहने लगते है ।


डेयरी पशुओं की आवास व्यवस्था | housing of dairy animals in hindi


दुधारू पशुओं के लिए डेयरी फार्म या पशुशाला का निर्माण ऐसे स्थान पर करना चाहिए जहां पर पशुओं को गर्मी एवं सर्दी का प्रभाव कम हो ओर तापमान सामान्य रहें ।

डेयरी फार्म या पशुशाला का भवन व शेड्स इस तरह से होना चाहिए जहां पशुओं को सूर्य की सीधी धूप, तेज आंधी तूफान एवं मूसलाधार बारिश से सुरक्षित रखा जा सके ।

पशुओं की आवास व्यवस्था जितनी स्वच्छ तथा आरामदायक होगी पशु उतना ही स्वस्थ एवं अच्छा रहता है अन्यथा अच्छे आवास के अभाव के कारण पशु अक्सर बीमार पड़ने लगते है ।


डेयरी फार्म या पशुशाला निर्माण की कोन-कोन सी विधियां है? | methods of housing dairy animals in hindi


राजकीय एवं निजी डेरी फार्मों पर प्राय: दो प्रकार की पशुशाला प्रणालियां निर्मित की जाती है -

1. एक पंक्ति प्रणाली वाली पशुशाला
2. दो पंक्ति प्रणाली वाली पशुशाला
( i ) मुॅंह से मुॅंह वाली विधि
( ii ) पूॅंछ से पूॅंछ वाली विधि

उक्त प्रणालियाँ पशुओं की संख्या को देखते हुए अपनाई जाती हैं यदि पशुओं की संख्या कम हो तो एक पंक्ति प्रणाली उचित रहती है यदि पशुओं की संख्या 12 से अधिक हो तो दो पंक्ति वाली प्रणाली अपनानी चाहिये ।

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डेयरी फार्म या पशुशाला निर्माण की प्रमुख विधियां एवं आवश्यक भवन व शेड्स बताएं

दो पंक्ति वाली पशुशालाओं का निर्माण दो पंक्ति वाली पशुशालायें निम्न दो प्रकार की होती है -


  • मुँह से मुँह विधि ( Face to Face System ) - इसमें पशु एक दूसरे की ओर मुँह करके बाँधे जाते हैं ।
  • पूँछ से पूँछ विधि ( Tail to Tail System ) - इस विधि में पशुओं का मुंह बाहर की ओर होता है । उनकी पूँछे आमने - सामने होती हैं ।


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डेयरी फार्म या पशुशाला निर्माण की प्रमुख विधियां


( i ) मुँह से मुँह के सामने वाली विधि का निर्माण एवं इसके लाभ व हानि लिखिए-

इस विधि में एक लाइन में बंधे पशुओं के मुँह दूसरी लाइन में बंधे पशुओं के सामने होते हैं अर्थात् दोनों लाइनों में बंधे पशुओं के सिर आमने - सामने रहते है ।

इस विधि में पशुओं को चारा डालने का रास्ता एक ही होता है पशुओं के पिछली दोनों ओर नालियाँ होती हैं । इन नालियों को साफ करने के लिये दोनों ओर रास्ता छोड़ा जाता है


इस विधि को चित्र द्वारा निम्न प्रकार दिखा सकते हैं -

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मुँह से मुँह के सामने वाली विधि का निर्माण एवं इसके लाभ व हानि लिखिए

मुँह से मुँह के सामने वाली विधि के लाभ एवं हानि -


मुँह से मुँह वाली विधि के लाभ -

  • पशुओं को चारे तथा रातब खिलाने में आसानी होती है । एक ही परिचायक सभी पशुओं को कम समय में चारा आदि खिला सकता है ।
  • पशुओं को अपने - अपने स्थान पर पहुँचने में आसानी होती है तथा कम समय में ही अपने स्थानों पर पहुँच जाते है ।
  • सूर्य की किरणें सीधी पेशाब नाली (gutter) पर पड़ती हैं जहाँ इनकी अधिक आवश्यकता होती है । पशुशाला बनाने में कम स्थान तथा कम खर्चा होता है ।
  • बाहर से आये अतिथियों को यह विधि अधिक सुन्दर दिखाई पड़ती है ।


मुँह से मुँह वाली विधि की हानि

  • पशु एक दूसरे की ओर श्वांस लेते हैं । इसलिये यदि कोई पशु रोगी है तो उसके श्वांस द्वारा अन्य स्वस्थ पशुओं में भी रोग लगने की सम्भावना होती है ।
  • इस विधि में दूध निकालते समय परिचालकों की ठीक प्रकार से देखभाल नहीं हो सकती है ।
  • पशुओं के गोबर, पेशाब आदि से पशुशाला की दीवारें प्रायः शीघ्र खराब हो जाती हैं इसलिये स्वच्छ रखने के लिये जल्दी - जल्दी सफेदी करानी होती है ।
  • पशुओं को सूर्य प्रकाश तथा ताजा वायु नही मिल पाती है । फलस्वरूप पशुओं का स्वास्थ्य ठीक नहीं रह पाता है ।
  • पशुशाला की सफाई करने में अधिक समय तथा व्यय करना पड़ता है । समय भी अधिक लगता है ।


( ii ) पूँछ से पूँछ वाली विधि का निर्माण एवं इसके लाभ व हानि लिखिए -


इस विधि में पशुओं के मुँह एक लाइन से दूसरी लाइन की विपरीत दिशा में रहते हैं और दोनों लाइनों के पशुओं की पूँछ आमने - सामने रहती है ।

इस विधि में बीच में रास्ता, नालियों को साफ करने के लिये होता है । नालियों से आगे दोनों ओर पशुओं के खड़े होने का स्थान होता है ।

पशुओं के सामने दोनों ओर खोर बनाई जाती है तथा इसके साथ - साथ दोनों तरफ चारा डालने के लिये रास्ता होता है ।


इस विधि को चित्र द्वारा निम्न प्रकार दिखा सकते हैं -

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पूँछ से पूँछ वाली विधि का निर्माण एवं इसके लाभ व हानि लिखिए

पूँछ से पूँछ वाली विधि के लाभ एवं हानि -


पूँछ से पूँछ वाली विधि के लाभ -

  • पशुओं को सदैव सूर्य प्रकाश एवं स्वच्छ वायु मिलती रहती है । इसलिये उनका स्वास्थ्य भी प्रायः ठीक रहता है ।
  • दूध निकालने तथा गोबर हटाने में भी सुविधा रहती है । दूध निकालते समय ग्वालों पर पूर्ण नियन्त्रण होता है ।
  • पशुशाला की दीवारें भी शीघ्र खराब नहीं हाने पाती हैं तथा उनकी सफेदी शीघ्र नहीं करनी पड़ती है ।
  • पशुओं से एक - दूसरे को बीमारी लगने का भय नही रहता है ।
  • पशुशाला की सफाई करने में भी सुविधा रहती है तथा समय की भी बचत होती है । श्रम भी कम लगता है ।
  • पशुओं के शरीर में कोई भी लगी हुई चोट तुरन्त मालूम पड़ जाती है तथा उसका शीघ्र इलाज हो जाता है ।


पूँछ से पूँछ वाली विधि की हानि -

  • पशुशाला के निर्माण में अधिक स्थान की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि इसकी चौड़ाई अधिक होती है ।
  • पशुओं को आहर खिलाने में अधिक कठिनाई तथा असुविधा होती है । समय तथा श्रम दोनों ही अधिक लगते हैं ।

उपर्युक्त सभी बातों को देखकर पशुओं के लिये आजकल पूँछ से पूँछ वाली विधि द्वारा निर्माण की हुई पशुशाला ही अधिक प्रचलित है । परन्तु यदि पशुओं की संख्या बहुत कम होती है तो फिर इकहरी लाइन वाली पशुशाला ही बनानी चाहिये ।


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दुहरी पशुशाला की बनावट को संक्षिप्त में समझाइए?

दुहरी पशुशाला की बनावट (construction of double row cattle shed) इसका निर्माण भी इकहरी लाइन वाली पशुशाला की भाँति ही होता है ।

अन्तर केवल इतना होता है कि पशुओं को दो लाइनों में, जिसका वर्णन हम पहले कर चुके हैं, बाँधा जाता है । इस पशुशाला में 50 से ज्यादा गाय बाॅंधी जा सकती है ।


पशुशाला के विभिन्न भागों का विभाजन निम्न प्रकार से किया जाता है -


मुँह से मुँह वाली विधि ( Face to race System )

  • पशुशाला की लंबाई = 87-6 से 100 फुट
  • पशुशाला की चौड़ाई = 25-6 फुट (दीवार दीवार)
  • चारा डालने का रास्ता = 4 फुट
  • चारे की नाँद की चौड़ाई = 2 फुट
  • पशु के खड़े होने का स्थान = 4 फुट
  • मूत्र एवं गोबर नाली = 2 फुट
  • गोबर आदि उठाने का रास्ता = 2 फुट
  • दीवार की चौड़ाई = 0.75 फुट


पूँछ से पूँछ वाली विधि ( Tail to Tail System )

  • पशुशाला की लम्बाई = 87-6 से 100 फुट
  • पशुशाला की चौड़ाई = 29-6 फुट (दीवार सहित)
  • चारा डालने का रास्ता = 4 फुट
  • चारे की नाँद (manger) = 2 फुट
  • फुट के खड़े होने का स्थान = 4 फुट
  • मूत्र एवं गोबर नाली = 2 फुट
  • दूध दुहन स्थान = 4 फुट
  • दीवार की चौड़ाई = 0.75 फुट

भारतवर्ष के सभी मैदानी क्षेत्रों में पशुओं के लिये 1-525 मीटर ( 5.0 फुट ) ऊँची दीवारों के खुले बाड़े अधिक उपयुक्त होते हैं इन बाड़ों की छतें प्रायः टीन अथवा एस्बोस्टस (asbostos) चादर की बनी होती हैं बाड़ों के बीच में ईंटों अथवा लोहे के थमले या खम्बे बने होते हैं जिन पर कि टीन की चादरें रखी जाती हैं पहाड़ी क्षेत्रों में पशुओं को ठंडी हवाओं से बचाने के लिये बन्द बाड़े बनाए जाते हैं ।

इन बाड़ों को प्रति पशु 6.5 वर्ग मीटर स्थान के हिसाब से बनाते हैं । बाड़ों की ऊँचाई इतनी रखनी चाहिये ताकि प्रत्येक पशु के हिस्से में लगभग 25.0 घ० मीटर वायु मण्डल आ सके ।


पशुओं को बाँधने के लिये किन - किन विधियों का प्रयोग किया जाता?


पशुओं को बाँधने के लिये तीन मुख्य विधियाँ काम में लाई जाती हैं -

  • पशुशाला विधि ( Animal shed System )
  • पशु एवं दुग्धशाला विधि ( Cattle and Milking shed )
  • खुले बाड़ों में रखना ( Open Air System )


प्रगतिशील देशों में पशुओं को बाँधने के लिये तीन मुख्य विधियाँ काम में लाई जाती हैं -


1. पशुशाला विधि -

इसके अन्तर्गत पशुओं को शेड में रखा जाता है । वहीं उनको चारा, दाना खिलाया जाता हैं वहीं पर उनका दूध भी निकाला जाता है । इसी में पशुओं के चारे के लिये खोर (feeding manger) एवं पानी की नाँद का भी प्रबन्ध होता है । इस प्रकार की पशुशाला में प्रत्येक पशु के खड़े होने के स्थान का भी विभाजन होता है ताकि पशु एक - दूसरे से लड़ने न पायें ।


2. पशु एवं दुग्धशाला विधि -

इसके अन्तर्गत पशुशाला एवं दुग्ध शाला दो अलग - अलग कक्ष होते हैं । दुग्धशाला में पशु को केवल दूध निकालने के समय ही लाते हैं यहाँ पर पशु को केवल भीगा हुआ रातब ही खिलाते हैं दूध के निकाल लेने के तुरन्त पश्चात् पशु को फिर उसके चारे खाने के स्थान अर्थात् पशुशाला में पहुंचा दिया जाता है ।


3. पशुओं को खुले बाड़ों में रखना -

इस विधि के अन्तर्गत पशु सदैव ही खुले स्थान पर रखे जाते हैं यह विधि प्राय: उसी डेयरी फार्म पर अपनायी जाती है जहां पर कि पशुओं की संख्या अधिक होती है । चारा भी प्राय: बगैर कटे ही चबूतरों पर डाल कर खिलाया जाता है । बरसीम, हरी ज्वार एव लोबिया आदि इसी प्रकार खिलाए जाते हैं दूध निकालते समय रातब भी खिलाते हैं । यह विधि आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत सस्ती एवं स्वास्थ्यवर्धक होती है ।


डेयरी भवनों या पशुशाला का निर्माण करते समय किन - किन बातों का ध्यान रखना चाहिये?


डेयरी फार्म या पशुशाला का निर्माण करते समय ध्यान रखने योग्य बातें -

  • स्थान वर्णन एवं पानी निकासी ( Topography and Drainage )
  • भूमि का प्रकार ( Soil Type )
  • पहुँच या प्रवेश ( Accessibility )
  • तेज हवाओं से एवं सूर्य की सीधी किरणों से बचाव ( Exposure to sun and Protection from Wind )
  • भवनों का टिकाऊपन एवं आकर्षण ( Durability and Attractiveness of Building )
  • पानी की पूर्ति ( Supply of Water )
  • परिस्थितियाँ ( Circumstances )
  • क्रय - विक्रय ( Marketing )
  • बिजली ( Electricity )


डेयरी भवनों का निर्माण निम्न बातों को ध्यान में रखकर करना चाहिये -


1. स्थान वर्णन एवं पानी निकासी ( Topography and Drainage ) -

डेयरी भवनों का निर्माण सदैव ही ऊँचे स्थानों पर होना चाहिये ताकि वर्षा का पानी सुगमता से बाहर निकल सके । नीचे तथा बदबू पैदा करने वाले स्थानों को कभी भी भवनों के निर्माण के लिये नहीं चुनना चाहिये ।


2. भूमि का प्रकार ( Soil Type ) -

उर्वर भूमि को कभी भी भवनों के निर्माण के लिये नहीं चुनना चाहिये । रेती वाली भूमि (dehydrated and desiccated soil) भी भवनों के निर्माण के लिये ठीक नहीं होती है क्योंकि वर्षा के दिनों में ऐसी भूमि पानी के कारण फूल जाती है जो भवनों के लिये हानिकारक होती है ।


3. पहुँच या प्रवेश ( Accessibility ) -

डेयरी भवनों का निर्माण मुख्य मार्गों तथा सड़कों से अधिक दूरी पर नहीं होना चाहिये । यह दूरी 100 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिये । ताकि दूध एवं दुग्ध पदार्थों को सुगमता से बाजार भेजा जा सके तथा अन्य आवश्यक सामग्री आसानी से डेयरी में लाई जा सके ।


4. तेज हवाओं से एवं सूर्य की सीधी किरणों से बचाव ( Exposure to sun and Protection from Wind ) -


डेयरी भवनों की स्थिति इस प्रकार से होनी चाहिये जिससे उत्तर की दशा में अधिक से अधिक तथा दक्षिण की दिशा में कम से कम सूर्य की धूप प्राप्त हो । साथ ही तीव्र हवाओं से भी पशुओं का बचाव हो सके । सूर्य की किरणें सीधी पशुशाला में पेशाब व गोबर की नाली (gutter) एवं खोर (feed manger) में सुगमता से पहुँच सकें ।


5. भवनों का टिकाऊपन एवं आकर्षण ( Durability and Attractiveness of Building ) -

डेयरी भवनों का निर्माण इस प्रकार का होना चाहिये ताकि बाहर से आने वाले सज्जनों को भवनों को देखते ही एक प्रकार का आकर्षण पैदा हो । भवन ठीक प्रकार से बने होने चाहिये ताकि अधिक समय तक टिकाऊ रह सकें ।


6. पानी की पूर्ति ( Supply of Water ) -

डेयरी भवनों में सर्दव ही स्वच्छ, ताजा पानी उपलब्ध होना चाहिये ताकि पशु स्वस्थ रह सकें एवं स्वच्छ पानी का अधिक से अधिक सेवन कर सकें ।


7. परिस्थितियाँ ( Circumstances ) -

डेयरी भवनों की स्थापना ऐसी जगह पर होनी चाहये ताकि जंगली जानवरों से पूर्ण रूप से सुरक्षा हो सके । भवनों के दरवाजे बड़े तथा फर्श इस प्रकार के बने होने चाहिये ताकि पशुओं के आने - जाने में कोई परेशानी न हो ।


8. क्रय - विक्रय ( Marketing ) -

डेरी भवनों का ऐसी जगह निर्माण होना चाहिये जहाँ से डेरी फार्म मैनेजर सुगमता से डेरी फार्म की पैदावार जैसे दूध, मक्खन, घी, आइसक्रीम आदि को आसानी से बेच सकें । इन पदार्थों की उस क्षेत्र में मांग होनी चाहिये ।


9. श्रमिक ( Labour ) -

डेयरी फार्म के भवन की शापना ऐसी जगह पर होनी चाहिये जहाँ पर सुगमता से हर प्रकार के श्रमिक आसानी से उपलब्ध हो सकें श्रामक - सस्ते दामों पर मिलने चाहिये ।


10. बिजली ( Electricity ) -

बिजली की सप्लाई एक डेयरी फार्म पर सदैव अति आवश्यक होती है । एक आधुनिक डेयरी फार्म पर विभिन्न प्रकार के यन्त्रों को चलाने के लिये बिजली अति आवश्यक होती है । डेयरी फार्म पर स्थापित भवनों की सफाई के लिये भी बिजली की निरन्तर आवश्यकता होती है ।


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डेयरी फार्म पर पशुओं के लिए आवश्यक भवन


डेयरी फार्म पर विभिन्न प्रकार के पशुओं के लिये निम्न प्रकार के भवनों की आवश्यकता होती है -

  • पशुशाला
  • बच्चे के लिये कक्ष
  • ब्याने का कक्ष
  • अलगाव कक्ष
  • साँड या बैल कक्ष


डेरी फार्म के लिये किन - किन भवनों एवं शेड्स की आवश्यकता होती है?


डेरी फार्मों में निम्न भवनों की आवश्यकता होती है -

  • डेरी कार्यालय एवं दुग्ध अभिलेख गृह
  • पशु एवं दुग्ध शालाएँ
  • सूखी गायों की शेड
  • बछियों की शेड
  • बछड़ों को शेड
  • साँड गृह
  • पशु ब्याने का कक्ष
  • दाने का कमरा
  • अलगाव गृह
  • उपकरण या यन्त्र घर
  • गोदाम
  • चारा काटने का शेड
  • पाद स्नान
  • पानी की नाँद
  • पशु चिकित्सालय
  • प्रबन्धक आवास गृह
  • पशु चिकित्सक निवास
  • श्रमिक एवं लिपि आवास गृह
  • बर्तन धोने का कक्ष
  • बॉयलर कक्ष
  • शीत घर
  • पास्तुरीकरण कक्ष
  • बोतल भरने का कक्ष
  • मक्खन बनाने का कक्ष
  • डेरी गोदाम
  • गाड़ी कक्ष
  • ट्यूब - वैल