जापानी उद्यान शैली क्या है इसके प्रकार एवं भारत में जापानी उद्यानों का महत्व

जापानी उद्यान शैली सुंदर एवं इसमें प्राकृतिक सौंदर्य का समावेश अत्यधिक सुखद एवं शांति प्रदान करें वाला होता है ।

उद्यान का जापानी विन्यास सुंदरता उत्तमता तथा सौम्यता के फलस्वरुप सबसे विकसित माना जाता है ।

हालांकि उद्यान कि इस शैली का विकास जापान में हुआ है, परंतु जापानी उद्यान (japanese garden) की उत्पत्ति प्राचीन काल में भारत में हुई थी तथा कालांतर में अपने जन्म स्थान से लुप्त हो गई ।


जापानी उद्यान शैली क्या है? | styles of Japanese garden in hindi


जापानी उद्यान शैली - हालांकि जापानी उद्यान प्राकृतिक प्रारूप या लैंड स्केप गार्डन प्रकार के होते हैं, तथापि इनकी शैली एक भिन्न विशेषताएं रखती है ।

इसीलिए जापानी उद्यान शैली विशेष विधि के रूप में विश्व विख्यात है ।

जापानी लैंड स्केप गार्डन्स शैली संसार के लगभग सभी देशों में अपनायी जा रही है ।


जापानी उद्यानों के उदाहरण -

  • रोशनारा उद्यान दिल्ली
  • बुद्ध जयंती उद्यान दिल्ली
  • लोदी उद्यान दिल्ली
  • पूसा संस्थान उद्यान दिल्ली


जापानी उद्यान पूरी जानकारी | Japanese Garden In Hindi


जापानी उद्यानों का मुख्य ध्येय सुंदर दृश्य वाली उत्पन्न करना होता है ।

जापानी उद्यानों के अनुरूप ही इन के मुख्य अंग जैसे - जल टापू, फूल, पत्थर की लालटेन, जलपात्र, एवं पत्थरों के पायदानों से बने पथ इत्यादि होते हैं ।

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जापानी उद्यान कितने प्रकार के होते हैं?


जापानी उद्यान मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं -

  • पहाड़ी उद्यान (Hill Garden)
  • समतल उद्यान (Flat Garden)
  • चाय उद्यान (Tea Garden)


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जापानी उद्यानों के प्रकारों का विवरण | types of japanese garden in hindi


1. पहाड़ी उद्यान (Hill Garden)

इन उद्यानों में पहाड़ी (hill) केन्द्रीय संरचना होती है, जिसके साथ तालाब एवं झरनों समन्वय होता है । उद्यान की इस व्यवस्था को जपानी भाषा में "टसूकीयामा सनसुई" कहते । ये उद्यान विस्तृत क्षेत्रों में ही बनाये जाते हैं ।


2. समतल उद्यान (Flat Garden)

ये उद्यान समतल क्षेत्र में बनाये जाते हैं । इन उद्यानों में पत्थर (stones) वृक्ष (tress), पत्थर की लालटेन (stone lanten), जल - पात्र (water basin) कुआँ इत्यादि संरचनाओं से दृश्यावली उत्पन्न की जाती है । इस प्रकार के उद्यमों को जापानी भाषा में “हीरा नीवा" कहते हैं । इनमें साधारणतः पहाड़ी तथा तालाब नहीं होते हैं ।


3. चाय उद्यान (Tea Garden)

ये उद्यान चाय गृह (tea house) से सम्बन्धित होते हैं, जिससे उद्यान की सम्पूर्ण दृश्यावली प्रतीत होती है । उद्यान के बाहरी भाग को "सोती रोजी" कहते हैं । इसके बाह्य क्षेत्र में एक प्रतीक्षा स्थल होता है जिसे "माची ये" कहते हैं । उद्यान के अन्दर के भाग को "उची रोजी" कहते हैं ।


इन उद्यानों में जल - पात्र (ivater basin) हाथ धोने के लिये उपयोग किया जाता है । पत्थर की लालटेन (stone lanten) से प्रकाश किया जाता है । इसमें पत्थर के पायदानों से पथ बनाया जाता है ।

चाय ग्रह में प्रवेश के लिए छोटा द्वार होता है । चाय ग्रह में चाय उपलब्ध की जाती है । आजकल सभी जापानी उद्यानों में चाय ग्रह होते हैं ।


जापानी उद्यानों का मुख्य विशेषताएं


जापानी उद्यानों का मुख्य ध्येय प्राकृतिक सुन्दर दृश्यावली उत्पन्न करना होता है, इसके अनुरूप ही इनके मुख्य अंग होते हैं जैसे -

  • जल टापू
  • पुल
  • पत्थर
  • पत्थर की लालटेन
  • जल - पात्र
  • पत्थरों के पायदानों से बने उद्यान के रास्ते आदि ।


जापानी उद्यानों का महत्व | Impotance of japanese garden in hindi


पुल सुन्दरता तथा उपयोग के लिये बनाये जाते हैं, यह पत्थर या लकड़ी का बनाया जाता है । टापू प्राकृतिक दृश्य उपस्थित करते हैं ।

इनके आधार चट्टानों के बनाये जाते हैं तथा उन पर मिट्टी डाल कर उभारा जाता है । कुछ टापुओं को मुख्य भूमि से पुल द्वारा जोड़ा जाता है । जबकि कुछ एकान्तरण (Isolated) में छोड़े जाते हैं ।


पत्थर की लालटैन का उपयोग प्रकाश के लिये किया जाता है । ये विभिन्न प्रकार की होती है ।

इनके आकार भी भिन्न - भिन्न होते हैं तथा इनकी ऊँचाई 2 से 7 फीट तक रखी जाती है । पत्थर के जल - पात्र सुन्दर आकृतियों के बनाये जाते हैं ।


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जापानी उद्योगों में पत्थर के पायदानों के रास्ते अति आवश्यक अंग होते हैं । ये सुन्दर लगते हैं । तथा उपयोगी होते हैं जापानी उद्यानों में पत्थरों का उपयोग बड़ी खूबी के साथ किया जाता है ।

ये पत्थर या एन्डेसाइट, होरूसटोन, ग्रेनाइट एवं स्लेट होते हैं । इनका उपयोग विभिन संरचनायें बनाने के लिये किये जाता है ।

इन उद्यानों में असुन्दर दृश्यों को छुपाने के लिये लकड़ी या पत्थरों की बाड़ का उपयोग किया जाता है ।


वृक्ष (Trees) जापानी - उद्यानों के आवश्यक अंग होते हैं । सूच्याकार (needle shape) पत्तियों वाले वृक्षों का उपयोग अधिक किया है चीड़ (Pine) जातिय वृक्षों को अधिकतर लगाया जाता है ।

वृक्षों को विभिन्न आकारों में ट्रेनिंग करके सुन्दर बनाया जाता है । वृक्षों के अलावा क्षुपों (Shrubs) का उपयोग किया जाता है ।


जापानी उद्यानों का इतिहास एवं विस्तार


महात्मा बुद्ध अहिंसा एवं शान्ति के प्रतीक माने जाते हैं । उन्होंने संसार को निर्वाण का रास्ता बताया ।

बौद्ध धर्मावलम्बी अध्यात्मिक शान्ति के लिये अपने आवास, मन्दिरों एवं मठों के पास प्राकृतिक दृश्यों की सृष्टि करते थे ।


सुन्दर फूलों के व शाकीय पेड़ - पौधों को लगाते थे, जोकि मुख्यतः नदियों, झीलों अथवा तालाबों के किनारे होते थे ।

प्रकृति के आंचल में वे ध्यान अवस्था में अपने आपको समर्पित कर देते थे ।

एक समय में भारत में बौद्ध धर्म चर्मोत्कर्ष पर था । अशेक ने बौद्ध धर्म को राज धर्म के रूप में स्वीकार किया ।


इस काल में बौद्ध धर्म का प्रचार संसार के अन्य देशों में हुआ । चीन, बर्मा, कम्बोडिया, थाईलैंड के रास्ते जापान में बौद्ध धर्म का प्रचार तथा प्रसार हुआ ।

धर्म के साथ - साथ बौद्ध उद्यान शैली का भी प्रसार हुआ ।


जापान में बौद्ध धर्म अपने चर्मोत्कर्ष पर पहुँचा । इसके साथ - साथ अध्यात्मिक शान्ति के लिये प्राकृतिक शैली का विकास हुआ ।

कालान्तर में जापानी शैली एक विशेष शैली के रूप में विकसित हुई ।


जापानी उद्यानों का ध्येय


जापानी उद्यानों का ध्येय बौद्ध धर्म के समान अध्यात्मिक शान्ति प्रदान करना है ।

प्राकृतिक सुन्दर एवं स्वच्छ वातावरण से मानसिक तनाव कम होता है, चिन्ता दूर होती है तथा मन को शान्ति मिलती है ।

यह ऐसे स्थल होते हैं, जहाँ ध्यान योग किया जाता है । इन उच्चतम कलात्मक कृतियों का मुख्य ध्येय आध्यात्मिक होता है, जो कि आत्मिक आनन्द प्रदान करते हैं ।


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जापानी उद्योगों में शैलाय (rockery), पायदानों (stepping) व सेतु बन्धनों (bridging) का ऐसा कलात्मक समन्वय होता है, कि व्यक्ति एक टक देखता रहता है ।

हाया में पौधे, चाय - गृह (tea house), तालाब में सुनहरी मछलिया एवं जल प्रपातों का प्रभाव मन को मोह लेता है ।

द्वार पर लगे दो लम्बे चीड़ के वृक्ष लम्बी एवं खुशहाल जीवन की दुआयें करते प्रतीत होते हैं ।


चेरी के लाल कोमल फूल तथा कोनीफर्स प्राकृतिक दृश्य उपस्थित करते हैं । विभिन्न रंगों के कोमल पुष्पों के दृश्य हृदय को लुभावने लगते हैं ।

जल जापानी उद्यानों का जीवन स्वरूप होता है, शैल (rocks) तथा पत्थर इनके कंकाल का निर्माण करते हैं पुष्प हरियाली तथा वृक्ष इनके वस्त्र का कार्य करते हैं । पानी की परछाइयों में इनकी सुन्दरता कई गुना बढ़ जाती है ।

पत्थर की लालटेन जीवन की ज्योति (enlightement) प्रदान करती है तथा शैल जीवन को स्थिरता प्रदान करते प्रतीत होते हैं ।


भारत में जापानी उद्यान शैली का विकास एवं भविष्य


भारत में जापानी उद्यान (japanese garden in india) - जापानी प्रारूप के उद्यानों की सुन्दरता एवं विशेषताओं के परिणामस्वरूप भारत में इस प्रकार के उद्यान विकसित किये जा रहे हैं ।

भारत में विशेषकर, हिमालय का क्षेत्र इन उद्यानों के योग्य है । यहाँ की जलवायु भी जापान के समान है ।


यहाँ पर इन उद्यानों का विकास करने के लिये जापानी पुष्पोत्पादन तथा लैंड स्केप गार्डन विशेषज्ञ श्री के० मोरी को बुलाया, उन्होंने पूरे देश का भ्रमण किया व निरीक्षण किया तथा देश के बहुत से भागों में इन उद्यानों के योग्य स्थिति की सिफारिश की ।


दिल्ली में रोशनारा उद्यान, बुद्ध जयन्ती उद्यान, दिल्ली जन्तु उद्यान, पूसा संस्थान उद्यान, लोदी उद्यान तथा जापानी दूतावास में इस प्रकार के उद्यान विकसित किये जा रहे हैं ।

भारत के दूसरे नगरों हैदराबाद, बंगलौर, नैनीताल, चण्डीगढ़, पिन्जोर, उटकमन्ड, कोनूर, शिमला आदि में जापानी प्रारूप के उद्यान विकसित किये जा रहे हैं ।