बागवानी लगाने के लिए स्थान का चुनाव कैसे करें एवं बागवानी का क्या महत्व है?

नया बागवानी (उद्यान) लगाने से पहले उसके लिये उचित स्थान का चुनाव करना परम आवश्यक होता है ।

बागवानी के लिए ऐसा स्थान होना चाहिये, जहाँ पर पौधे अपनी वृद्धि सुचारु रूप से कर सकें तथा साथ ही साथ उन पर अच्छी फसल पैदा हो, जिससे उद्यानकर्ता को अधिक लाभ हो सके । 

विभिन्न फल वृक्षों की जलवायु एवं मिट्टी की आवश्यकता श्री भिन्न - भिन्न होती है, अतः उसको ध्यान में रखना चाहिये ।

बागवानी से लोगों को विभिन्न फलों व उनकी आवश्यकताओं के विषय में पूर्ण ज्ञान न होने से वे उनके लिये उपयुक्त स्थान का चुनाव नहीं कर पाते, परन्तु यह स्पष्ट है, कि बागवानी की सफलता पूर्ण रूप से स्थान के उचित चुनाव पर निर्भर करती है ।


बागवानी लगाने के लिए स्थान का चुनाव कैसे करें?

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बागवानी लगाने के लिए स्थान का चुनाव कैसे करें एवं बागवानी का क्या महत्व है?


बागवानी लगाने हेतु स्थान का चुनाव करते समय किन - किन बातों क्या ध्यान रखना चाहिए?


बागवानी लगाने के लिए स्थान का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना अति आवश्यक होता है -


1. जलवायु ( Climate )

बागवानी में जलवायु का विशेष महत्त्व होने से उनकी सफलता एवं असफलता जलवायु के ऊपर ही निर्भर करती है ।

 जलवायु में किसी भी प्रकार का परिवर्तन करना मनुष्य की शक्ति से बाहर होता है।

अतः फल - वृक्षों की आवश्यकतानुसार ऐसे स्थान का चुनाव करना चाहिये, जो कि फल विशेष के लिये उपयुक्त हो ।

किसी भी स्थान की जलवायु वहाँ की वर्ष भर की वर्षा, रोशनी, आर्द्रता, तापक्रम तथा हवा के दबाव के औसत को कहा जाता है ।

यह पूर्णतः स्पष्ट है, कि जलवायु के सभी कारकों का प्रभाव किसी विशेष स्थान पर समान न होने से प्रत्येक स्थान पर जलवायु में भिन्नता पाई जाती है ।

ऐसा कहा जाता है, कि फल - वृक्षों में विभिन्न तापक्रम सहन करने की काफी क्षमता पाई जाती है, परन्तु फिर भी कुछ फल - वृक्ष निश्चित तापक्रम के ऊपर या नीचे फलत नहीं करते हैं।

अतः विभिन्न फल - वृक्षों को ऐसे तापक्रम में उगाना चाहिये जहाँ पर उसकी वृद्धि तथा फलत अच्छी प्रकार से हो सके ।


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2. वायुमण्डलीय

आर्द्रता का प्रभाव भी फलों की किस्म के ऊपर पड़ता है, जैसे कि केला तथा अनन्नास को अधिक तापक्रम एवं अधिक आर्द्रता लाभदायक होती है।

लेकिन इसके विपरीत अधिक आर्द्रता के कारण बरसात के अमरूद छोटे, नीरस तथा कम आकर्षक होते हैं ।

उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है, कि विभिन्न प्रकार के फल - वृक्षों को ऐसी जलवायु में उत्पन्न करना चाहिये जो उनके लिये उपयुक्त हो ।


3. मिट्टी ( Soil )

मिट्टी को उद्यान का आधार कहा जाता है, अतः इसका चुनाव फल - वृक्षों के अनुरूप होना आवश्यक होता है ।

बागवानी हेतु दोमट या बलुई दोमट मिट्टी अच्छी समझी जाती है ।

जहाँ तक हो सके, भूमि गहरी होनी चाहिये ।

इसके नीचे अधिक गहराई तक कोई भी कड़ी सतह कंकड़ों या पत्थरों की नहीं होनी चाहिये क्योंकि ऐसी दशा में फल - वृक्षों की जड़ें भूमि में अधिक गहराई तक नहीं पहुँच सकतीं, फलतः फल - वृक्ष सूखने लगते हैं ।

अधिक उथली भूमि जहाँ पर हमेशा पानी भरा रहता हो फल उत्पन्न करने के लिये उपयुक्त नहीं समझी जाती ।

फल - वक्षों की अच्छी फलत के लिये उपजाऊ, भुरभुरी व हल्की दोमट मिट्टी आदर्श समझी जाती है ।

अधिक क्षारीय व अम्लीय मिट्टी फल - वृक्षों के लिये अच्छी नहीं समझी जाती है ।

रेतीली मिट्टी में खाद तत्त्वों का अभाव रहता है ।

अत: इसको चुनने में अधिक खाद तथा पानी देना पड़ता है ।

ऐसा ज्ञात किया गया है, कि मिट्टी में थोड़ी चूने की मात्रा उपस्थित होनी चाहिये क्योंकि इससे फलों के अन्दर मीठापन आ जाता है ।

अधिक भारी या चिकनी मिट्टी में जल निकलने में असुविधा रहती है, अतः इसको नहीं चुनना चाहिये ।

मृदा के साथ - साथ अधोमृदा की भी पूर्ण जानकारी होनी चाहिये क्योंकि फल - उत्पादन में अधोमृदा को भी कभी - कभी बदलना पड़ता है ।


4. धरातल ( Topography or Soil Surface )

बगीचे का आकार व उसकी सफलता भूमि के धरातल के ऊपर बहुत कुछ निर्भर करती है ।

इसके लिये अधिक ऊँची - नीची भूमि नहीं चुननी चाहिये क्योंकि ऐसी भूमि में जल द्वारा कटाव अधिक होता है तथा खाद्य - पदार्थ मिट्टी के साथ बहकर नीचे चले जाते हैं ।

इसके विपरीत अधिक निचली भूमि में जलानवेधन ( Waterlogging ) हो जाता है और पौधों की जड़ें सड़ जाती हैं ।

बागवानी लगाने के लिये मामूली ढलानदार या लगभग समतल भूमि अच्छी समझी जाती है ।


5. सिचाई तथा जल निकास की सुविधायें

फल - वक्षों की सन्तोषजनक वृद्धि एवं अच्छे फल उत्पादन के लिये सिंचाई की आवश्यकता होती है ।

इसलिये स्थान का चुनाव करते समय पानी के साधन का विशेष ध्यान रखना चाहिये ।

पानी आवश्यकतानसार सस्ते दामों पर मिलना चाहिये एवं उसका माध्यम क्षारीय नहीं होना चाहिये ।

साथ ही पानी के निकास की उचित व्यवस्था भी होनी चाहिये, क्योंकि पानी वृक्षों की जड़ों के पास भर जाने से हवा का आवागमन रुक जाता है और जड़ें सड जाती हैं तथा पौधों की वृद्धि रुक जाती है ।

पौधों पर अनेक प्रकार के रोग भी लग जाते हैं ।


6. बाजार तथा यातायात की सुविधायें

बगीचा बाजार के पास होना चाहिये क्योंकि फल शीघ्र नष्ट होने वाली फसल है ।

अगर इसको समय पर बाजार नहीं पहुंचाया गया तो फल सड़ने लगते हैं ।

किस्म खराब हो जाने से बाजार मूल्य कम मिलता है ।

बगीचे का बाजार के समीप होने के साथ - साथ यातायात की भी सुविधा होनी चाहिये जिससे फल सुगमतापूर्वक कम समय में बिना खराब हुए बाजार तक पहुँच सकें ।


7. मजदूरों की उपलब्धता ( Availability of Labour )

बगीचे के पास मजदर सस्ते व अधिक मात्रा में उपलब्ध होने चाहिये क्योंकि बागवानी एक ऐसा व्यवसाय है, जिसमें एक - साथ अधिक मजदूरों की आवश्यकता होती है और उनको बाहर से लाना अधिक महँगा व कठिन पड़ता है ।

मजदूर बगीचे के विभिन्न कार्यों में निपुण होना चाहिये क्योंकि प्रत्येक आदमी बगीचे के कार्यों को करने में सामर्थ नहीं होता ।


8. स्थिति या स्थान का चुनाव ( Location )

बगीचे की स्थिति जंगल के पास नहीं होनी चाहिये , क्योंकि जंगली जानवरों से बाग को हानि पहुँचने की सम्भावना रहती है ।

साथ ही चिड़ियाँ भी जंगलों में बसेरा कर लेती है, और फलों को काटकर नुकसान पहँचाती हैं ।

ईटो के भट्टे ( Brick kiln ) के पास आम का बगीचा नहीं लगाना चाहिये, क्योंकि इसके धुएँ से आम के फल काले पड़कर गिर जाते है, जो कि एक बीमारी ( Black tip of mango ) पैदा हो जाने से होता है ।


9. कीट तथा बीमारियों से रहित स्थान

बगीचे के लिये स्थान चुनते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि चुना हुआ स्थान कीट एवं बीमारियों से रहित हो क्योंकि इससे फल वृक्षों एवं फलत को काफी हानि पहुँचती है ।

किसी - किसी क्षेत्र में विशेष प्रकार की बीमारी या कीड़ों का अत्यधिक प्रकोप होता है, अतः इस तरफ ध्यान रखना चाहिये ।


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मानव जीवन में बागवानी का निम्न महत्व है -

उदाहरण के लिए आम तथा केला को न्यून तापक्रम होने से काफी हानि होती है ।

अतः उनको ऐसे प्रदेशों में नहीं उगाया जा सकता जहाँ तापक्रम जमाव बिंदु पर पहँच जाता है ।

इसके विपरीत सेब तथा चैरी जो ठण्डे प्रदेश के फल है, ऐसे स्थानों पर नहीं उगाये जा सकते जहाँ पर तापक्रम ऊंचा रहता है तथा जाड़े की फसल कम लम्बी होती है ।

इन पौधों को अधिक न्यून तापक्रम की आवश्यकता होती है, जिससे वे अपनी पत्तियों गिराकर सप्तावस्था में प्रविष्ट कर सकें । 

सुषुप्तकाल समाप्त होने के बाद ये पौधे नई पत्तियाँ व शाखायें पैदा करते हैं तथा इन पर फूल और फल आते हैं ।

वर्षा की मात्रा व उसका वितरण फल - उत्पादन पर विशेष प्रभाव डालता है ।


फूल के समय अगर वर्षा हो जाती है, तो फूल के अंग नष्ट - भ्रष्ट हो जाने से व पराग बह जाने से फसल नहीं हो पाती ।

अधिक वर्षा के कारण भी बहुत - से फल - वृक्षों की जड़ें सड़ जाती है, तथा इसके विपरीत कम वर्षा होने से बहुत से पौधों को अत्यधिक सिंचाइयाँ देनी पड़ती हैं ।

तेज हवाओं द्वारा फल - वृक्षों को काफी हानि होती है।


अत: ऐसे स्थान जहाँ हवायें तेज चलती हैं फल - वृक्षों को सफलतापूर्वक नहीं उगाया जा सकता ।

तेज हवाओं में वृक्ष के फूल तथा पल जमीन पर गिर जाते है, तथा उनकी शाखायें भी टूटकर नष्ट - भ्रष्ट हो जाती है ।