डेयरी पशुओं (ग्याभिन गाय व छोटे बछडे़-बछियों) की देखभाल एवं उनका प्रबन्धन

आदिकाल से ही मनुष्य पशुओं की देखभाल एवं उनका पालन पोषण करता रहा है और उनसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता आ रहा है ।

आज के आधुनिक समय में मनुष्य द्वारा पशुओं (पशु की नस्ल, पालन-पोषण, स्वास्थ्य एवं आवास प्रबंधन इत्यादि आधुनिक ढंग से किया जाने लगा है ।


डेयरी पशुओं की देखभाल एवं उनका प्रबन्धन | care and management of dairy cattle in hindi


भारत एक कृषि प्रधान देश है । और भारत एक गांवों का देश है जिसकी 70 प्रतिशत से भी अधिक जनसंख्या कृषि पर आधारित है जिसमे पशुधन भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है ।

पशुपालन (animal husbandry in hindi) ग्रामीण जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अंग है ।

पशुधन भारतीय कृषि में मुख्य रूप से शक्ति का स्रोत बैल, भैंसा, ऊंट आदि पशु ही है ।

डेयरी पशुओं की देखभाल एवं उनका प्रबन्धन, care and management of dairy cattle in hindi, ग्याभिन गाय व छोटे बछडे़-बछियों की देखभाल एवं उनका पालन पोषण, गाय के बियाने से पूर्व लक्षण, ग्याभिन गाय के लक्षण, बियाई गायों की देखभाल
डेयरी पशुओं (ग्याभिन गाय व छोटे बछडे़-बछियों) की देखभाल एवं उनका प्रबन्धन

समस्त डेयरी फार्मों व्यवसाय की वजह से ही भारत देश दुग्ध उत्पादन में अग्रणी बना हुआ है ।

इसीलिए आज के समय में हमें डेयरी पशुओं की देखभाल उनके पालन-पोषण (care and management of dairy cattle in hindi) पर ध्यान देना अति आवश्यक है ।


ये भी पढ़ें :-


दुधारू पशुओं की देखभाल के लिए किन-किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए?


दुधारू पशुओं की देखभाल के प्रमुख सिद्धांत -

  • पशुओं के लिय उत्तम जल व्यवस्था
  • पशुओं के लिये आवास की उत्तम व्यवस्था
  • पशुओं के लिये उत्तम एवं सन्तुलित आहार की व्यवस्था
  • पशुशाला की नियमित सफाई एवं विसंक्रमण की व्यवस्था
  • पशुओं की सफाई की व्यवस्था
  • पशुओं के व्यायाम की व्यवस्था
  • पशुचिकित्सा सम्बन्धी व्यवस्था
  • दूध दूहना
  • नियमानुसार नियमित कार्य प्रणाली अपनाना

उत्तम नस्ल के दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने तथा दूध के गुणों को बनाये रखने के लिये उपरोक्त निम्नांकित सुझाव दिये गये है, जिन्हें अपनाकर उत्तम गुणवाला दूध उत्पादन बढ़ाया जा सकता है ।


दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने एवं उनकी देखभाल के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित है -


1. पशुओं के लिये आवास की उत्तम व्यवस्था -

गर्मी की कड़ी धूप अत्यधिक ठण्ड तथा वर्षा, आँधी - तूफान से बचाने के लिये पशुओं को गौशाला में रखना चाहिये । पशुओं के लिये बनाई गई गौशाला में फर्श पक्का, दीवारों में खिड़कियों तथा रोशनदान होने चाहिये, जिससे पशुशाला में उत्तम प्रकाश तथा वायु संचार की व्यवस्था बनाई जा सकें ।


2. पशुओं के लिय उत्तम जल व्यवस्था –

पशुओं को पिलाने के लिये स्वच्छ जल की व्यवस्था होनी चाहिये । पशुओं को स्नान कराने तथा पशुशाला के फर्श आदि धोने के लिये ट्यूबवेल, टेपवाटर, नल आदि की उचित व्यव्स्था होनी चाहिये ।


3. पशुओं के लिये उत्तम एवं सन्तुलित आहार की व्यवस्था -

वर्षभर पशुओं के लिये हरे चारे जैसे ज्वार, बरसीम, लोबिया, सरसों आदि की व्यवस्था करनी चाहिये । भूसा, अगोला, साइलेज, खलियाँ विभिन्न प्रकार के दाने - चोकर, नमक तथा अस्थिचूर्ण आदि का उचित प्रबन्ध रखना चाहिये ।


4. पशुशाला की नियमित सफाई एवं विसंक्रमण की व्यवस्था -

पशुशाला केश एवं दीवारें पशुओं के गोबर एवं पेशाब से प्रतिदिन गंदी हो जाती हैं, अत: पशुशाला को साफ - स्वच्छ रखने के लिये प्रतिदिन नियमित रूप से पानी से धलाई करनी चाहिये । कभी - कभी पानी में साबुन या फिनाइल का बोल मिलाकर भी फर्श एवं दीवारों को घोना चाहिये । फर्श एवं नालियों में कभी - कभी चूना भी डालना चाहिये । 15 दिन या माह में एक बार 0-15 प्रतिशत मैलाथियान का घोल छिड़ककर विषैले कीटाणुओं, नाँद, चींचड़ी आदि को नष्ट कर देना चाहिये । वर्ष में एक या दो बार तूतिया (नीला याथा) डालकर दीवारों पर सफेदी करनी चाहिये । कुछ अन्य जीवाणुनाशी सोडियम काबॉनेट, पोटेशियम परमैगनेट, डिटोल, क्रिसोल, लाइसोल आदि का भी प्रयोग किया जाता है । पशुओं को चारा खिलाने वाली चरही (नाँद या खोर) की भी प्रतिदिन धुलाई करनी चाहिये । सर्दियों के मौसम में प्रतिदिन पशुओं के नीचे नया - सूखा बिछावन डालते रहना चाहिये । पशुओं के गोबर - पेशाब का गन्दा पानी पशुशाला से बाहर निकालने के लिये एक चौड़ी नाली होनी चाहिये ।


5. पशुओं की सफाई की व्यवस्था -

पशुओं को प्रतिदिन खुरेरा करना चाहिये तथा उसके बाद मोटे कपड़े या कम्बल के टुकड़े से रगड़कर उसके पूरे शरीर को साफ करना चाहिये । इससे रक्त संचार बढ़ता है तथा दुग्ध उत्पादन बढ़ता है । शरीर से धूल तथा जीवाणुओं की भी सफाई हो जाती है ।


6. पशुओं के व्यायाम की व्यवस्था -

पशुओं को प्रतिदिन घूमने - टहलने के लिये कम से कम एक घण्टे के लिये पशु चरागाह अथवा पशु - बाड़े में खुला छोड़ना अति आवश्यक होता है क्योंकि पशु स्वच्छंद कूद - फान्द करके अपना व्यायाम कर लेता है । जिससे पशु का स्वास्थ्य ठीक रहता है और वह बीमारियों से बचा रहता है ।


7. पशुचिकित्सा सम्बन्धी व्यवस्था -

पशुओं को कभी - कभी अनेक प्रकार की बीमारियाँ लग जाती हैं जिनसे पशु के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये पशु चिकित्सा का उचित प्रबन्ध होना चाहियें पशुओं को विभिन्न बीमारियों से बचाने के लिये टीकाकरण करवाना अत्यंत आवश्यक होता है ।


8. दूध दूहना -

पशुओं के दूध दोहन के लिये शान्त एवं स्वच्छ स्थान होना चाहिये । दूध दूहते समय पशुओं से नम्रता का व्यवहार करना चाहिये । दूध दोहन सदैव मुट्ठी के बीच थनों को दबाकर करना चाहिये । दूध दुहने वाले व्यक्ति के हाथ, कपड़े, बर्तन आदि पूर्ण स्वच्छ होने चाहिये । दूध दूहने वाले व्यक्ति को कोई बीमारी नहीं होनी चाहिये ।


9. नियमानुसार नियमित कार्य प्रणाली अपनाना -

पशुओं को दैनिक क्रियायें जैसे चारा खिलाना, पानी पिलाना, नहलाना, खुरेरा करना, दूध निकालना आदि नियमपूर्वक नियत समय पर करना चाहिये ।


ये भी पढ़ें :-


गायों को नियमित रूप से गर्भित कराना क्यों आवश्यक है?

एक कृषक अथवा पशु पालक के लिये यह अति आवश्यक होता है कि उसकी गायें एक निश्चित अवधि में समय से गर्भ धारण करती रहे ।

यदि गाय के गर्भधारण में देरी अथवा वे नियमित रूप से गर्भित नहीं होती तो पशुपालक को लाभ के स्थान पर हानि उठानी पड़ती है ।


गायों के नियमित रूप से गर्भित कराना


एक उत्तम नस्ल की गाय नियमित रूप से गर्भित होकर प्रत्येक 12-14 महीने की अवधि पूरी होने पर बच्चा देती रहती है । जो गायें इस अवधि से अधिक समय लेती हैं वे पशुपालक के लिये लाभदायक सिद्ध नहीं होती ।

अत: पशुपालक का सदैव प्रयास होना चाहिये कि उसकी गायों दो ब्यांतों के बीच का अन्तर 12-14 महीने से अधिक न बढ़ने पाये । एक उत्तम नस्ल की गाय बच्चा देने के बाद 50-60 दिन बाद पुन: गर्मी (हीट) में आती है और इसके प्रत्येक 21 दिन बाद गर्मी में आती रहती है ।

पहली एक - दो गर्मी ( हीट ) प्रजनन विश्राम के लिये छोड़ कर अगली गर्मी में उस गाय को अवश्य ही गर्भित करा लेना चाहिये । इस प्रकार यदि गाय बच्चा देने के बाद 80-100 दिन तक गर्भ धारण कर लेती है तो पशुपालक को 12-14 महीने में दूसरा बच्चा मिल जाता है ।

अत: इसी क्रम को लगातार बनाये रखने के लिये गायों को नियमित रूप से गर्भित कराते रहना चाहिये ।


गायों के नियमित गर्भधारण के लिये आवश्यक सिद्धांत -

  • पशुओं के लिये उत्तम आहार की व्यवस्था करनी चाहिये ।
  • गाय कब ऋतुमयी (हीट) में आती है इसकी पहचान पशुपालक को होनी चाहिये ।
  • गायों को समय पर गर्भधारण कराने का सदैव प्रयास करना चाहिये ।
  • गाय के गर्भधारण के पश्चात गर्भ परीक्षण अवश्य करवा लेना चाहिये ।


दुधारू गायों के नियमित गर्भवती होने के लिये सुझाव

संकर नस्ल अथवा दुधारू पशुओं में आजकल अनियमित गर्भधारण की समस्या बढ़ती जा रही है जिसका मुख्य कारण इनकी ठीक प्रकार से देखभाल न होना होता है ।


ये गाय नियमित रूप से गर्भवती होती रहे, इसके लिये निम्नलिखित सुझावों पर ध्यान देना चाहिये -

  1. पशु को खिलाये जा रहे आहार को सन्तुलित बनाकर ही खिलाया जाये । खली, दाना, चोकर के साथ - साथ खनिज लवण, नमक, हडडी का चूर्ण उपयुक्त मात्रा में मिलाना अति आवश्यक होता है । मुख्य खनिज लवण जैसे मिल्कमिन, सुपर मिण्डिफ तथा मिनिमिकस आदि ।
  2. गाय के बियाने के दो महीने बाद जैसे ही वह ऋतुमयी हो (हीट में आये) तुरन्त उसके लक्षण पहचान कर 18 घण्टे बाद से 36 घण्टे के अन्दर उसे सांड से मिला देना चाहिये अथवा कृत्रिम गर्भाधान द्वारा ही हरी करा देना चाहिये ।
  3. यदि पशु दूसरे - तीसरे महीने के अन्दर ऋतुमयी (हीट) नहीं हो रहा है तो पशु चिकित्सक को दिखाकर सलाह लेनी चाहिये ।
  4. बहुत सी गाय ऋतुमयी होने के पूरे लक्षण स्पष्ट नहीं दिखाती, ऐसे में मासिक स्त्राव का ध्यान रखकर पशु को ग्याभिन करवाया जाता है । ऐसी गायों को 8-12 घण्टे बाद दोबारा हरी कराना उत्तम रहता है ।
  5. पशु को ऋतुमयी (हीट) में लाने के लिये आवश्यक दवाइयों का प्रयोग भी करना चाहिये ।


ग्याभिन या गर्भवती गाय की देखभाल एवं भोजन व्यवस्था (खिलाई एवं प्रबन्ध) | care and feeding of pregnant cow in hindi

गर्भवती गाय की देखभाल इसलिये अधिक सावधानीपूर्वक करनी पड़ती है, क्योंकि इस समय गाय की शारीरिक क्रियायें बढ़ जाती है और गर्भ का विकास माँ के शरीर से होता है । ऐसे समय में गाय को अधिक पौष्टिक खुराक की आवश्यकता होती है ।


एक गर्भवती गाय की देखभाल में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिये -

  • गाय के साथ उदारता एवं प्रेम - पूर्वक व्यवहार करना चाहिये ।
  • उसे अधिक परिश्रम जैसे दौड़ना, उछलना आदि से बचाना चाहिये ।
  • गर्भवती गाय को साफ - सुथरे एवं स्वच्छ स्थान पर रखना चाहिये तथा बैठने के स्थान पर रेत या पयाज आदि का विछावन रखना चाहिये ।
  • ऐसी गायों की भोजन व्यवस्था पर विशेष ध्यान देना चाहिये । उन्हें प्रोटीनयुक्त भोजन देना चाहिये । गाय के भोजन में कैल्यिश्म, फास्फोरस आदि खनिज लवण अधिक मात्रा में मिला देने चाहिये हरे चारे से पशुओं को विटामिन 'ए' मिलता है । ऐसे समय में चारे - दाने की मात्रा सवाई से डेढ़ गुनी कर देनी चाहिये जिससे पेट में पल रहे बच्चे की आवश्यकता की पूर्ति हो सके । आहार इस प्रकार का हो जो आसानी से पचाया जा सकें इस प्रकार गर्भवती गाय को सन्तुलित आहार ही देना चाहिये जिसमें अलसी की खली तथा चोकर सम्मिलित हो । गाय की खोर (नाँद) में सैंधें नमक का एक ढेला चाटने के लिये रख देना चाहिये ।
  • गर्भवती गाय को खुला छोड़कर बाहर नहीं जाने देना चाहिये गाय को दौड़ाना या डराना नहीं चाहिये ।
  • बियाने के समय का अनुमान करके दो महीने पहले दूध सुखा देना चाहिये और अच्छी खुराक गाय को देनी चाहिये । इसे प्रीस्टीमिंग या अगले ब्यांत की तैयारी कहते हैं ।
  • कोई अन्य पशु गर्भवती गाय से न लड़ने पाये ।
  • बियाने के लगभग 2-3 दिन पूर्व गाय को अजवाइन डालकर गुनगुना पानी पिलाना चाहिये ।
  • गर्भवती गायों को ऐसी गायों के साथ नहीं बाँधना चाहिये जिनका गर्भपात हो गया हो ।
  • गाय का समय - समय पर पशु चिकित्सक के द्वारा पूरा निरीक्षण कराना चाहिये ।


ये भी पढ़ें : -


गाय के ब्याने के बाद एवं ब्याने के समय देखभाल के बारे में लिखिये?

गर्भवती गाय की उचित देखभाल की आवश्यकता वैसे तो गर्भधारण के दिन से ही करनी होती है परन्तु नवें मास अर्थात् बियाने के कुछ समय पूर्व से यह देख - भाल और भी सावधानीपूर्वक करनी पड़ती है, क्योंकि पशु के जीवन के लिये यह समय बहुत ही नाजुक होता है ।

इस समय पशु में कुछ विशेष लक्षण दिखाई देते हैं, जो निम्न प्रकार हैं गाय के बियाने के पूर्व लक्षण (characteristics of cows before calved) बियाने के दर्द प्रारम्भ होने पर गाय में निम्नलिखित लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं ।


गाय के बियाने से पहले के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित है -

  • गाय बार - बार पैर पटकती है ।
  • गाय बार - बार उठती - बैठती है और पूंछ हिलाती है ।
  • गाय थोड़ी - थोड़ी देर बाद मल - मूत्र त्याग करती है ।
  • वह एकान्तवास पसन्द करने लगती है ।
  • वह चारा - दाना खाना कम कर देती है ।
  • उसका अयन तथा थन फूल जाते हैं तथा थनों में दूध आ जाता है ।
  • गाय की अपलास्थियों के निकट एक गड्डा दिखाई देने लगता है ।
  • उसका जनन छिद्र आकार में फैलकर बड़ा हो जाता है ।
  • योनि से हल्के पीले रंग का द्रव निकलने लगता है ।


बच्चा प्रजनन -

जब गाय व्याने के पूर्व लक्षण प्रकट हो तो गाय को तुरन्त ही किसी साफ - सुथरे, आरामदायक एवं शान्त स्थान पर बाँध देना चाहिये । इस समय उसे बहुत हल्का: आहार तथा हल्का गर्म पानी पीने के लिये देना चाहिये । कमरे के फर्श पर घास - फँस बिछा देना चाहिये । गाय को इस समय अधिक गर्मी या सर्दी से बचाना चाहिये । गाय को बियाते समय अकेला देना चाहिये और बच्चा प्रजनन स्वाभाविक रीति से ही होने देना चाहिये तथा उसमें किसी प्रकार की बाधा नहीं डालनी चाहिये ।

परन्तु साथ ही साथ गाय पर बड़ी सर्तकता से सावधानीपूर्वक नजर रखनी चाहिये क्योंकि यदि बच्चा पैदा होने में कोई बाधा आ रही हो तो उस समय गाय की तुरन्त मदद करनी चाहिये । बियाते समय पहले बच्चे के सामने के पैर और सिर बाहर आता है, फिर धड़ और शेष अंग बाहर आते हैं । बच्चे के पेट से बाहर निकलते ही उसकी देख - भाल करनी चाहिये ।


गाय के बियाते समय देखभाल और सावधानियाँ | care and precautions of cow parturition in hindi


गाय के बियाते समय निम्नलिखित देखभाल और सावधानियाँ रखनी चाहिए -

  • गाय के बियाते समय व्यर्थ का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये वियाने में यदि कोई जटिलता या बाधा हो तो गाय की मदद स्वयं या पशु चिकित्सक द्वारा करनी चाहिये ।
  • गाय को बियाने से पहले और बियाने के तुरन्त बाद सूखा भूसा या गर्म - गर्म दलिया खिलाना चाहिये ।
  • बच्चा देने के बाद गाय को बच्चे को चाटने दें ओर स्वयं बच्चे के मुँह - नाक और कान को अच्छी तरह साफ कर देना चाहिये । फिर बच्चे के शरीर को किसी बोरी के टुकड़े से हल्का - हल्का रगड़कर सुखायें ।
  • एक स्वस्थ बच्चा बियाने के एक घण्टे बाद स्वंय उठने की कोशिश करने लगता है । इस कार्य में उसकी मदद करनी चाहिये । उसके पैरों पर हल्के हाथ से मालिश करनी चाहिये जिससे उसमें रक्त संचार तेजी से हो सके ।
  • बच्चों की नाल को 2-5 सेमी की दूरी पर धागे से बाँधकर फिर 1.5 सेमी की दूरी से काटकर टिंचर आयोडीन लगाना चाहिये ।
  • गाय के अयन और थनों को गुनगुने (गर्म) पानी से साफ करके बच्चे को थन चुसाइये ।
  • गाय की जेर डालने की 8 घण्टे तक प्रतीक्षा कीजिये अन्यथा पशु चिकित्सक की मदद लेनी चाहिये ।
  • गाय को बियाने के आधे घण्टे बाद 1 बाल्टी गुनगुना या ताजा पानी पिलाना चाहिये ।
  • गाय को बियाने से 2-3 घण्टे बाद गुड़, अजवाइन तथा घी की आवटी (उबला हुआ शर्बत) पिलाने से पशु जेर शीघ्र डालता है और उसके शरीर को गर्मी एवं शाक्ति प्राप्त होती है ।


हाल की बियाई गायों की देखभाल कैसे करें? | look after of cows just calved in hindi


हाल की बियाई गाय की देखभाल -

  • बच्चे देने के उपरान्त गाय को गर्म पानी से भिगोये कपड़े से अच्छी प्रकार पोंछकर साफ कर देना चाहिये ।
  • जब तक गाय जेर न डाले , उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहिये, क्योंकि गाय जेर खा जाती है, जो जहर के समान होती है । गाय के जेर डालने पर उसे तुरन्त वहाँ से हटाकर दूर किसी गड्ढे में गाड़ देनी चाहिये ।
  • गाय को गर्म पानी से नहलाकर बच्चे का दूध पिलाने के लिये गाय के नीचे ले जाते हैं और उसका थन बच्चे के मुंह में डालते हैं, जब बच्चा दूध पी लेता है उसे हटाकर बाकी दूध दुह लिया जाता है । इसे खीस कहते हैं कभी भी सारा दूध एक बार में नहीं निकालना चाहिये ।
  • गाय के बियाने के स्थान को फिनाइल से धोकर साफ कर देना चाहिये ।
  • अधिक दूध देने वाली गायों को खीस सारा का सारा एक बार में नहीं निकालना चाहिये बल्कि थोड़ा - थोड़ा 3-4 बार में निकालना चाहिये अन्यथा गाय को दुग्ध - ज्वर हो जाता है । दुग्ध - ज्वर अक्सर कैल्सियम की कमी के कारण होता है ।
  • हाल की बियाई गाय को गुड़, सोंठ अजवाइन को पानी में उबालकर गाढ़ा करके उसमें घी डालकर पिलाते हैं उसके बाद गेहूँ का दलिया आदि और बाद में तीन दिन तक सूखा तथा हरा चारा मिलाकर खिलाते हैं ।
  • एक सप्ताह के पश्चात् चारे के साथ खली, चोकर और दाना खिलाना शुरू कर देते हैं ।


ये भी पढ़ें : -


पशुओं के नवजात बच्चों की देखभाल आप किस प्रकार करेंगे?

नवजात पशु बच्चों की देखरेख नवजात पशु बच्चों की जन्म से लेकर प्रथम तीन महीने में अधिक देखभाल की आवश्यकता होती हैं ।


नवजात पशु बच्चों की देखभाल में निम्नांकित बिन्दुओं को सम्मिलित किया जाता है -

  • नवजात पशु बच्चे का जन्म होने के तुरन्त बाद उसकी सफाई करना ।
  • बच्चे की श्वास क्रिया की जाँच करना ।
  • बच्चे की सूंड काटकर दवाई लगाना ।
  • बच्चे के खुरों पर लगे मृत भाग काट कर साफ करना ।
  • लगभग जन्म के एक घण्टे बाद बच्चे को खड़ा होने में सहायता करना ।
  • बच्चे को अत्यधिक गर्मी, सर्दी आदि से रक्षा करना ।
  • बच्चे को दूध पिलाना सिखाना ।
  • बच्चे को माँ का पहला दूध (खीस) अवश्य पिलाना चाहिये ।
  • कृत्रिम विधि (निप्पिल लगी बोतल) से बच्चे को दूध पीना सिखाना ।
  • बच्चे की विभिन्न छूत के रोगों से रक्षा के लिये टीके लगवाना ।
  • बच्चे की दस्त रोगों से सुरक्षा करना ।
  • बच्चे को पेट के कीड़ो से सुरक्षा के लिये दवाई देना ।
  • नवजात पशु बच्चों की अलग आवास व्यवस्था करनी चाहिये ।
  • बच्चों के लिये उचित भोजन व्यवस्था करना ।


पशु के नवजात बच्चों को खीस पिलाना क्यों आवश्यक है?


नवजात बच्चों को खीस पिलाने के निम्नलिखित लाभ होते है -

  • इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है जो बच्चों के शरीर के निर्माण में मदद करती है ।
  • यह दस्तावर होता है जो बच्चे के पेट में गर्भकाल में जमे मैल को तुरन्त साफ करता है ।
  • इसमें बीमारियों से बचाव की प्रतिरोध शाक्ति होती है ।
  • इसमें दूध की अपेक्षा कई गुना लोहे की अधिक मात्रा होती है जो रक्त निर्माण में सहायक होता है ।
  • इसमें विटामिन 'ए', 'बी' ओर खनिज लवण अधिक मात्रा में होते हैं जो बच्चों के लिये आवश्यक होते है ।
  • इसमें पाचक अम्ल भी होते हैं तथा बच्चे के लिये यह बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक होता है ।


गाय से अलग रखकर बछड़ा पालने की दो हानियों को लिखिये?


  1. गाय से अलग करके बछड़े को दूध पीना सिखाने में अत्यंत कठिनाई होती है । बछड़ा पूरा दूध नहीं पी पाता, भूखा रहता है जिससे उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।
  2. इस विधि से बछड़े को पालने में पशु पालक को अधिक समय, श्रम लगाना पड़ता है तथा व्यक्तिगत रूचि के साथ कार्य करना पड़ता है ।