बोनसाई (bonsai in hindi) क्या है इसका अर्थ एवं बोनसाई ट्री बनाने की विधि

बड़े पौधों (वृक्षों, क्षुपों) के अति छोटे रूप बनाये रखना बोनसाई (bonsai in hindi) कहलाता है ।

बोनसाई पौधे (bonsai tree in hindi) को इस प्रकार छिछले या कम गहरे बर्तन जैसे ट्रे आदि में उगा कर वृक्ष की वृद्धि को अवरुद्ध कर बोना बनाया जाता है, जिसमें उस वृक्ष की सभी विशेषताएं बनी रहती है ।

बोनसाई (bonsai in hindi) कला की उत्पत्ति जापान में हुई और भारत में बोनसाई का प्रचलन श्री वी० पी० अग्निहोत्री (दिल्ली) महापुरुष द्वारा किया गया ।


बोनसाई का अर्थ | bonsai tree meaning in hindi


बोनसाई शब्द जापानी बोन (Bon=Shallow pan), तथा साई (Sai=Plant) से मिलकर बना है ।

बोनसाई का अर्थ (bonsai tree meaning in hindi) - इसका अर्थ होता है, छिछले बर्तन में पौधा उगाना जिससे उसके छोटे रूप का रख - रखाव किया जाता है ।

"To grow plant in shallow pan so that it miniature form is maintained."


बोनसाई की परिभााषा | defination of bonsai in hindi


बोनसाई की परिभाषा (defination of bonsai in hindi) - "बड़े आकार के पौधे, वृक्षों एवं क्षुपों को अति छोटे आकार में कलात्मक रूप से उगाना बोनसाई (bonsai in hindi) कहलाता है ।"


बोनसाई के लिए चार सामान्य वृक्षों की उदाहरण -

  • आम - Mangifera indica
  • बरगद - Ficus benghalensis
  • पीपल - Ficus religiosa
  • नीम - Melia azadirachta


बोनसाई क्या है? | bonsai in hindi


बोनसाई कला का विकास जापान में हुआ है, जो कि जापानी संस्कृति के अभिन्न अंग है ।

जापान में शताब्दियों से यह अद्भुत कला पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है । जापानी करो की बोनसाई एक विशिष्टता है ।

बोनसाई (bonsai in hindi) विभिन्न उपयुक्त वृक्षों, क्षुपों एवं आराही लताओं इत्यादि के कलात्मक नमूने होते हैं ।

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मैम बोनसाई क्या होते हैं? | Mame Bonsai In Hindi


मैम बोनसाई (mame bonsai in hindi) - अत्यधिक छोटे पौधे उगाना, जिनकी ऊचाई 5-20cm से अधिक न हो, मैम बोनसाई (mame or miniature bonsai in hindi) कहलाते हैं ।

इनका सूक्ष्म आकार रखने के लिए इन्हें बहुत छिछले या कम गहरे बर्तन में उगाया जाता है जिनमें 2-3cm गहरी ही मृदा भरी जाती है ।

मैम बोनसाई बीज बोकर उगाये जाते हैं । इनके छोटे आकार के कारण सीधे ऊर्च (up right), तिर्यक (oblique) तथा कैसकेड प्रारूप (casade style) में ही विकसित किया जाता है ।

समुह में मैम बोनसाई सुन्दर प्रतीत होते हैं । इनकी ट्रेनिंग तथा कृतन बोनसाई के समान ही होती है । इन्हें जल देने की आपेक्षित अधिक आवश्यकता पड़ती है ।

शीतोष्ण प्रदेशों में, एसर (acer) एजेलिय (azalea) बारबैरी (barberi), सैलिक्स (salix), पाइनस (pinus) इत्यादि जातियों के पौधे मैम बोनसाई के लिये उपयुक्त होते हैं ।

अत: बड़े पौधों को अति बोना रूप देना जिससे उसकी ऊंचाई 5-20cm रहे तथा वह उस पौधे का यथार्थ प्रतिरूप प्रतीत हो, मैम बोनसाई (mame bonsai in hindi) कहलाता है ।


बोनसाई का वर्गीकरण | classification of bonsai in hindi


बोनसाई के मुख्य वर्ग निम्नलिखित है -

  • चौकान प्रारूप (Chokkan or Upright Style)
  • क्योकुक प्रारूप (Kyokkuk or Winding Style)
  • शाकन प्रारूप (Shakan or Oblique Style)
  • हानकन प्रारूप (Hankan or Gnarled Style)
  • कैन्गाई प्रारूप (Kengai or Cascade Style)
  • इकाड़ी - बुकी प्रारूप (Ikadi - Buki Style)
  • स्टोन प्रारूप (Stone or Clasped Style)


बोनसाई का वर्गीकरण -


बोनसाई की प्रकार का निर्धारण स्तम्भ की आकृति तथा एक बर्तन में उगाये जाने वाले वृक्षों की संख्या के आधार पर किया जाता है ।


1. चौकान प्रारूप (Chokkan or Upright Style) -

इसमें एकल स्तम्भ को सीधे एवं ऊर्ध्व बढ़ाते हैं । इसमें ये सामान्य सुक्ष्म वृक्ष जैसे प्रतीत होते हैं ।


2. क्योकुक प्रारूप (Kyokkuk or Winding Style) -

इसमें एकल स्तम्भ को एक बार या कोई बार मरोड (twist) दिया जाता है जिससे ये प्रकृति में संघर्षरत प्रतीत होते हैं ।


3. शाकन प्रारूप (Shakan or Oblique Style) -

इसमें स्तम्भ को तिरछा (Oblique) ट्रेन किया जाता है जिससे ये तेज वायु में झुके प्रतीत होते हैं । इसे 'Wind swept Style' भी कहते हैं । इसमें सामान्यतः नीचले भाग की अधिक शाखाओं प्रतीत होती हैं ।


4. हानकन प्रारूप (Hankan or Gnarled Style) -

इसमें भी वृक्ष वायु के झोके से झुका प्रतीत होता है परन्तु इसमें भूमि के पास स्तम्भ को एक या दो बार मरोड (twist) दिया जाता है । इससे भूमि के पास स्तम्भ में लूप प्रतीत होती हैं ।


5. कैन्गाई प्रारूप (Kengai or Cascade Style) -

इसमें वृक्ष बर्तन (Container) के एक ओर झुककर लटका हुआ रहता है जिससे यह पर्वतीय श्रेणी के किनारे पर ऊपर से लटका हुआ सा प्रतीत होता है । जैसे की पर्वत के किनारे से वृक्ष नीचे गिर रहा हों । पर्वतीय दृश्य सा प्रतीत होता है ।


6. इकाड़ी - बुकी प्रारूप (Ikadi - Buki Style) -

इसमें वृक्ष को लेटा कर क्षैतिज रूप से (horizontally) ट्रेन किया जाता है जिसमें ऊपर की ओर ऊर्ध्व कई शाखायें वृद्धित करते हैं जिससे वे अलग - अलग वृक्ष - प्रतीत होती है । इसमें दूसरी विधि यह अपनायी जाती है कि एक झुड में एक बर्तन में कई बोनसाई एकल स्तम्भीय ऊर्ध्व उगाये जाते हैं ।


7. स्टोन प्रारूप (Stone or Clasped Style) -

इसमें एकल स्तम्भ वृक्ष की जड़ों के एक पत्थर (stone) पर आधारित उगाया जाता हैं । यह आयु एवं प्रबलता का प्रतीक प्रतीत होता है ।


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बोनसाई पौधे क्या है एवं बोनसाई के लिए उपयुक्त पौधे


वे सभी पौधे जो बोनसाई बनाने के लिए उपयुक्त होते है, बोनसाई पौधे (bonsai tree in hindi) कहलाते है ।

परंतु बोनसाई (bonsai in hindi) के लिए सभी पौधों को उपयोग नहीं किया जा सकता है, उनमें कुछ विशेषताओं का होना अति आवश्यक होता है ।


बोनसाई के लिए उपयुक्त पौधे (plants for bonsai in hindi)


बोनसाई के लिए पौधे का चयन करने के लिए निम्नलिखित कारक महत्वपूर्ण होते हैं -

  • बोनसाई में उपयुक्त होने वाले पौधों का तना सख्त होना चाहिए जिससे कि इसे छिछले बर्तन में उगाया जा सके ।
  • इसमें जड़ों, शाखाओं एवं पत्तियों के गहन कृतन को सहन करने की शक्ति होनी चाहिये ।
  • सघन ट्रेनिंग के बावजूद भी इसमें अपने प्राकृतिक स्वरूप को बनाये रखने की शक्ति होनी चाहिये ।
  • अपने सामान्य पौधे का प्रतिरूप (replica) प्रतीत होना चाहिये ।
  • पौधा कलात्मक प्रतीत होना चाहिये ।
  • जिन पौधों में ऋतुगत वृद्धि परिवर्तन, फलतः तथा पूष्पन होता है अधिक सहज प्रतीत होते हैं ।


बोनसाई में उपयोग होने वाले पौधों के नाम


बोनसाई पौधे (bonsai tree in hindi) किसी भी पौधे का किया जा सकता है, परंतु निम्नलिखित पौधे अधिक उपयोग होते हैं -

  • काला बांस - Bambusa nigra
  • शहतुत - Bombax mulbaricum
  • ढाक - Butea monosperma
  • कैलिस्टैमोन - Callistemon lanceolatus
  • पीपल - Ficus religiosa
  • बरगद - Ficus benghalensis
  • नीली गुलमोहर - Jacaranda mimosifalia
  • पुत्रन्जिवा - Putranjiva roxburghii
  • थीसपैसिया - Thespesia populnea
  • नीम - Melia azeddirachta
  • आम - Mangifera indica

इस प्रकार के दूसरे अन्य वृक्षों, कोनिफर्स, तथा क्षुपों के बोनसाई (bonsai in hindi) तैयार किये जा सकते हैं


बोनसाई पौधे बनाने की विधि | bonsai tree makeing in hindi


बोनसाई पौधे विकसित करने की विधि (बोनसाई ट्री मेकेंग इन हिंदी) के निम्नलिखित चरण होते हैं -

  • पौधों का चयन
  • बर्तन एवं मृदा
  • रोपण तथा पुन: रोपण
  • ट्रेनिंग
  • कृन्तन
  • जल एवं खाद देना
  • रोग तथा कीट नियंत्रण


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बोनासाई पौधे विकसित करने की विधि | Method of Developing Bonsai in hindi


पौधों का चयन ( Selection of Plants )

सर्वप्रथम बोनसाई विकसित करने के लिए उपयुक्त पौधों का चयन किया जाता है । पौधों का निर्धारण स्थान , स्थिति देश एवं प्रदेश पर निर्भर करता है ।

बोनसाई (bonsai in hindi) के लिये पौधा बीज, अंकुरण, कलम, इत्यादि द्वारा उगाकर प्राप्त किया जाता हैं । जंगली एवं पुराने पौधों को आपेक्षित थोड़ी ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है ।

नरसरी से प्राप्त पौधों को एक या हो वर्ष गमलों में उगाकर पुनः बर्तन (Container) में प्रतिस्थापित करते हैं ।

कुछ पौधों को आवश्यकतानुसार भूमि में उगाकर ट्रे में प्रतिस्थापित करते हैं । इनकी जड़ों व शाखाओं का आवश्यकतानुसार कृतन (prunning) कर लिया जाता है ।

गमलों से लिये गये पौधों को प्रत्यक्ष रूप से छिछलों बर्तनों (shallow pan or trey) में स्थान्तरित कर सकते हैं ।


बर्तन एवं मृदा ( Container and Soil )

बर्तन का वरण व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर करता है तथापि चयनित बर्तन का छिछला (कम गहरा = Shallow) होना आवश्यक होता हैं । इसकी आकृति गोलाकार, अंडाकार, आयताकार, वर्गाकार अथवा अन्य पसन्दीदा आकार की रखी जा सकती है ।

एकल सीधे ऊर्ध्वाधर स्तम्भ के लिये गोलाकार या अंडाकार बर्तन अच्छा रहता है ।

कैसकेड या इकाड़ी - बुकी प्रारूप के लिये आयताकार संरचना अधिक कलात्मक प्रतीत होती है ।

बर्तन में मृदा वातन (acration of soil) का प्रबन्ध होना भी आवश्यक होता है । आकार के आधार पर बर्तन में जल निकासी (drainage in hindi) के लिए एक या दो छेद होना चाहिये । बर्तन का रंग सामान्यतः प्रकृतिक प्रतीत होना चाहिये ।

आमतौर से काला, हरा या भुरा अच्छा प्रतीत होता है । कुछ प्रतिदशों के लिए सफेद भी प्रभावशाली होता है । लाल या गुलाबी फूलों वाले बोनसाई के लिये भूरा रंग अच्छा नहीं लगता है ।

सामान्यतः बोनसाई (bonsai in hindi) के बर्तन में अलंकार नहीं लगाना चाहिये । बोनसाई बर्तन में एक वर्ष तक या कभी कभी दो या तीन वर्ष तक रहना चाहिये ।

तदोपरान्त पुन: रोपण (repotting) या भराई करना चाहिये ।


रोपण तथा पुन: रोपण ( Potting and Repotting )

रोपण के लिए इस प्रकार की मृदा का प्रयोग करना चाहिये जिसमें जलाक्रान्ती (Water logging) न हो तथा इसमें उर्वरकों की अधिकांशता भी नहीं होनी चाहिये । मृदा लगभग उदासीन (neutral) pH के लगभग होनी चाहिये ।

मृदा में सामन्यतः 2 भाग बलुई मिट्टी, भाग मोटा बालु तथा 1 भाग पत्ती खाद होना चाहिये । जल निकासी छिद्र (drainage hole) को कंकड़ से ढक देना चाहिये तथा मृदा भर देनी चाहिये । मृदा को कठोरता से दबा कर नहीं भरना चाहिये जिससे वातन (acration) अवरुद्ध न हो ।

सीधे बोनसाई पौधे को बर्तन के मध्य में लगाना चाहिये । कैसकेड प्रकार के बोनसाई (bonsai in hindi) को एक कोने की ओर लगाया जाता है जिस ओर पह लटकाया जाता है ।

जिस बोनासाई में एक ओर अधिक शाखाओं होती है उसे केन्द्र से थोड़ा हट कर लगाया जाता है जिससे भारी पार्श्व लम्बे क्षेत्र की ओर रहे । समुह में लगाये गये पौधों को कलात्मक रूप से लगाना चाहिये ।

सतह पर आकृषक पत्थर बिखेर देने चाहिये जिससे सुन्दरता बढ़े तथा मृदा पर प्रत्यक्षरूप से जल न गिरे ।

पादप रोपण के उपरान्त पौधे को कुछ दिनों के लिए छाया में रख देना चाहिये । पुनः रोपण (repotting), प्रथम रोपण (potting) के समान ही होती हैं । तेजी से वृद्धि करने वाले पौधों को प्रतिवर्ष पुनः रोपण करनी चाहिये ।

मन्द वृद्धि करने वाले पौधों का पुन: रोपण प्रति दो या तीन वर्ष उपरान्त करना चाहिये । पौधे को चक्के (earth ball) के साथ सावधानीपूर्वक बाहर निकाल लेते हैं ।  जल निकासी सामग्री को भी निकाल दिया जाता है ।

लगभग 1/3 नीचे की मृदा (subsoil) तथा सतह मृदा (surface soil) को निकाल देते हैं । लम्बी बढ़ी हुई जड़ों को भी तेज चाकू या स्कैटिया से काट कर अलग कर देना चाहिये ।

पौधे को पुनः यथा स्थिति रोपित कर देते हैं तथा नयी मृदा कम्पोस्ट भर देते हैं पौधे की तुरन्त सिंचाई कर देते हैं । पुनः रोपण के उपरान्त छ: माह तक कृतन या तार नहीं लगाना चाहिये ।


ट्रेनिंग ( Training )

जब तार जोड़ना सम्भव हो जाय तभी ट्रेनिंग प्रारम्भ कर देनी चाहिये । कोमल छाल वाले पौधों पर बहुत पहले तार बान्धने से छाल को हानि हो सकती है ।

स्तम्भ को मोड़ने, झुकाने एवं ट्रेनिंग के लिए तांबे का तार सर्वोत्तम रहता है । तार की मोटाई प्रतिदर्श अथवा पौधे के आधार पर निर्धारित की जाती है तथापि तार सरलता से मोड़ने योग्य होनी चाहिये ।

तार को नर्म बनाने के लिये (pliable) प्रयोग से पहले तापित (heated) कर लेना चाहिये । जब किसी शाखा पर तार बांधना होता है तब पहले स्तम्भ पर कई बार लपेटकर फिर शाखा पर बांधना चाहिये ।

तार की कुन्डलन 0-5 से 0.6 cm अन्तर से रखी जानी चाहिये । विशिष्ट आकृति देने के लिये तार के कई वर्ष तक बांधे रखा जा सकता है परन्तु प्रति छ: माह बाद तार को पुनः बान्धना चाहिये ताकि तने की छाल को आयात न हो ।

कोमल छाल वाले तनों को आघात से बचाने के लिये उन पर रुई (Cotton) लपेटकर तार बान्धना अच्छा रहता है । आवश्यक मोड़ पर सहारा लगाना (stake) चाहिये ।

तार बान्धना, मोड़ देना, कुन्डल करना, सहारा लगाना इत्यादि प्रक्रियायें प्रारूप के अनुसार समायोजित करनी चाहिये ।


कृन्तन ( Pruning )

बोनसाई (bonsai in hindi) स्थापित करने के लिए ट्रेनिंग तथा कृन्तन प्रक्रियायें समकालिक होती हैं ।

बोनसाई को बौना भूख से पिड़ित रख कर नहीं बनाया जाता है बल्कि स्तम्भ तथा जड़ों की काँट - छाँट (pruning) तथा पत्तियों को तोड़ने (punching) से बनाया जाता है ।

बोनसाई की वृद्धि पर नियन्त्रण उपयुक्त विधि से कृतन करके करना चाहिये । यह योजना पौधे की प्रकृति, वृद्धि करने की दर, प्रारूप की प्रकार इत्यादि पर निर्भर करती है ।

यदि वृद्धि अधिक ओजपूर्ण है तो एक वर्ष से पहले भी कृन्तन किया जा सकता है । आकृति के आधार पर भी कृतन निर्भर करता है ।

कुछ शाखाओं की शीर्ष कलिका (apical bud) तोड़ी जाती है । कुछ को नीचे तक काटा जा सकता है ।

यदि किन्हीं द्वित्तीयक स्तम्भों की आवश्यकता नहीं है तो उन्हें नवजात अवस्था में ही काटकर पृथक कर देना चाहिये क्योंकि बाद में काटने पर प्राथमिक स्तम्भ पर चिन्ह बना रह जाता है ।

तेज वृद्धि करने वाले वृक्षों, जैसे पर्णपाती वृक्षों (deciduous tree) में पत्तियों को तोड़कर (leaf pinching) से पत्ती क्षेत्र को घटाया जाता है ।

पत्तियां तोड़ने की प्रक्रिया वर्ष में केवल एक बार करनी चाहिये । कृन्तन की प्रक्रिया में पौधे को आधार पर से हिलने नहीं देना चाहिये । अन्यथा जड़े बाधित हो सकती हैं ।

स्तम्भ को बोना बनाने के लिए जड़ों का कृन्तन भी आवश्यक हो जाता है । पौधे के स्थान्तरण तथा पुनः भराई के समय जड़ों का आवश्यकतानुसार कृन्तन करना चाहिये ।


जल एवं खाद देना ( Watering and Manuring )

बोनसाई (bonsai in hindi) को छिछले बर्तन में उगाया जाता है अतः जल देने की प्रक्रिया महत्वपूर्ण होती है ।

शीतकाल में सप्ताह में केवल एकबार जल देना काफी होता हैं । ग्रीष्मकाल में प्रतिदिन तीन बार जल देना चाहिये ।

पौधों जल छिड़क देना अच्छा प्रभाव डालता है । वर्षाकाल में आवश्यकतानुसार जल देना चाहिये । अधिक जल देना हानिकारक होता है ।

सामान्यत: वर्ष में दो बार खाद डाली जाती है । एक बार वर्षाकाल तथा एक बार बसन्त काल में खाद डालनी चाहिये । खाद की मात्रा का निर्धारण पौधे की आवश्यकतानुसार करना चाहिये ।


रोग तथा कीट नाशक ( Disease and Insect pests )

रोग तथा कीट नाशकों से रक्षा के लिए कीट - नाशक एवं रोग नाशक का आवश्यकतानुसार प्रचरण करना चाहिये ।