कृषि वानिकी (krishi vaniki) - अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं कृषि वानिकी योजना

फसलों के साथ - साथ पेड़ों एवं झाडियों को समुचित प्रकार से लगाकर दोनों के (फसलों एवं वृक्षों के) लाभ प्राप्त करने की विधि को कृषि वानिकी (krishi vaniki) कहा जाता है ।

कृषि वानिकी (agroforestry in hindi) की तकनीकों का मिश्रण करके विविधतापर्ण लाभप्रद स्वस्थ्य एवं आम उपयोग सनिश्चित किया जाता है ।

वस्तुतः कृषि वानिकी का विकास कृषि को आधुनिक एवं मक है जिसके अंतर्गत एक ओर कषि उपज में वृद्धि होती है, तो दूसरी और स्वच्छ एवं संरक्षित किया जाना सुनिश्चित होता है ।


कृषि वानिकी का अर्थ | agroforestry meaning in hindi


शाब्दिक रूप से कृषि वानिकी का अर्थ (agroforestry meaning in hindi) खेतों पर वनों के विकास एवं विस्तार से है ।

व्यावहारिक दृष्टि से कृषि वानिकी (krishi vaniki) ग्रामीण मकानों के अहातों में एवं खाली पड़ी भूमि पर हवा के तज बहाव को रोकने हेत पेड लगाने से है । 

इसके लिए 'खेत वानिकी' तथा 'प्रसार वानिकी' शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है ।


कृषि वानिकी क्या है? | krishi vaniki kya hai?


कृषि वानिकी के अंतर्गत पारिस्थितिकी एवं आर्थिक पारस्पारिकता की क्रियायें वृक्षों एवं अन्य विशाल काष्ठ पादपों के संरक्षण, रोपण एवं स्वत: पुर्नजीवित होने देने की सहनशीलता को खेती से जोड़ती हैं ।

कृषि वानिकी (krishi vaniki) भू - प्रयोग तंत्र एवं तकनीकों के उस समुच्च का नाम है जिसमें काष्ठ पादपों (वृक्षों, झाड़ियों  ताड़ बाँस आदि) का उसी भूमि पर, किसी स्थनिक अथवा कालिक व्यवस्थापन के अंतर्गत, सुविचारित प्रयोग किया जाता है जिस पर फसलों एवं पशुओं का प्रबन्धन किया जाता है ।


कृषि वानिकी की परिभाषा | krishi vaniki ki paribhasha


कृषि वानिकी केे अंतर्गत परिस्थितिक एवं आर्थिक परंपरागत की क्रियाएं वृक्षों अन्य विशाल काष्ठ पादपों की संरक्षण, रोपण एवं स्वत: पुनर्जीवित होने देने की सहनशीलताा को खेती सेे जोड़ती है।

कृषि वानिकी की परिभाषा (defination of agroforestry in hindi) - "कृषि वानिकी उन अनेक कार्य प्रणालियों का सार है जिसके अंतर्गत वृक्षों एवं अन्य विशाल पादपों को पहले से लगे वृक्षों के संरक्षण एव क्रियाशील पौधारोपण एवं स्वत: पर्नजीवित होने वाले वृक्षों के द्वारा खेती में संबंधित किया जाता है ।"


कृषि वानिकी से जुड़ी पूरी जानकारी हिंदी में?


कृषि वानिकी (agroforestry in hindi) कृषकों का अकेले अथवा भागीदार में अपने संसाधनों के सम्बन्ध में, अपनी भूमि पर वन लगाने अथवा प्रबन्धन करने की दिशा में किया गया संकल्प है ।

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कृषि वानिकी (krishi vaniki) - अर्थ, परिभाषा, प्रकार एवं कृषि वानिकी योजना


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कृषि वानिकी का वर्गीकरण | classification of agroforestry in hindi

कृषि वानिकी (krishi vaniki) को अनेक आधारो पर वर्गीकृत किया जा सकता है । 


कृषि वानिकी के प्रमुख प्रकार | krishi vaniki ke parkar


1. भु-प्रयोग के आधार वर्गीकरण -

  • खेत वानिकी
  • चारागाह कृषि वानिकी
  • मिश्रित कृषि वानिकी
  • बागवानी कृषि वानिकी
  • मत्स्य कृषि वानिकी
  • प्रक्षेप कृषि वानिकी


2. वृक्षों की सघनता एवं रोपण के आधार पर वर्गीकरण -

  • मेढ़/बाड़ कृषि वानिकी
  • कतार कृषि वानिकी
  • प्रकृत कृषि वानिकी
  • विशिष्ट वृक्षारोपण कृषि वानिकी
  • मिश्रित वृक्षारोपण कृषि वानिकी


कृषि वानिकी के प्रकारों का वर्णन कीजिए? | types of agroforestry in hindi


कृषि वानिकी के प्रकार (krishi vaniki ke prkar) के अतिरिक्त आर्थिक उद्देश्यों के आधार पर, जलवायु के आधार पर, भूमि भौगोलिक स्थिति एवं उपजाऊ दशाओं के आधार पर तथा बस्ती के निकटता से सम्बन्धित अनेक अन्य आधारों पर भी कृषि वानिकी (krishi vaniki) को विभाजित किया जा सकता है । 


कृषि वानिकी के प्रकार (types of agroforestry in hindi) निम्न प्रकार हैं -


1. भू प्रयोग के आधार पर कृषि वानिकी के प्रमुख प्रकार है -

( i ) खेत वानिकी - 

फसलों के साथ वृक्षों को उगाना ।


( ii ) चरागाह कृषि वानिकी - 

पशुचारण क्षेत्र में वृक्षों को उगाना । 


( ii ) मिश्रित कृषि वानिकी - 

फसलों के स वृक्षों को उगाना एवं चरागाह का निर्माण करना ।


( iv ) बागवानी कृषि वानिकी - 

साथ वन्य (काष्ठ मूलक) एवं फलदार वृक्षों को लगाना । 


( v ) मत्स्य कृषि वानिकी - 

फसलो एवं वृक्षों के साथ तालाब बनाकर मछली पालन करना । 


( vi ) प्रक्षेप कृषि वानिकी - 

एक वक्षों के साथ डेयरी एवं मधुमक्खी पालन करना ।


2. वृक्षों की सघनता एवं रोपण के आधार पर कृषि वानिकी के प्रमुख प्रकार -


( i ) मेढ़ / बाड़ कृषि वानिकी - 

फसलों के मत्स्य कृषि वानिकी - फसलो वानिकी - फसलों वानिकी के अंतर्गत ढ़ / बाड़ कृषि इसके अंतर्गत खेत के बारे अंतर्गत खेत के चारों ओर बाड़ लगाने के लिए अथवा केवल मेढ़ पर ही वक्षा किया जाता है । 


( ii ) कतार कृषि वानिकी - 

इसके अंतर्गत पूरे खेत में कतारों में वक्षा रोपण किया जाता है ।


( iii ) प्रकृत कृषि वानिकी - 

इसके अंतर्गत खेत में प्राकृतिक रूप से न वक्षा रोपण किया जाता है तथा खेत में प्राकृतिक रूप से उगने वाले वक्षा को अर्थात् कतार रहित वृक्षा रोपण किया जाता है भी संरक्षित कर लिया जाता है । 


( iv ) विशिष्ट वृक्षारोपण कृषि वानिकी - 

इसके अंतर्गत किसी विशेष प्रकार के वृक्षों का हा रोपण किया जाता है ।
जैसे - सफेदा, पापुलर आदि का लगाया जाना ।


( v ) मिश्रित वृक्षारोपण कृषि वानिकी - 

इसके अंतर्गत भिन्न - भिन्न प्रकार के वृक्षों का किया जाता है ।
जैसे - नीम, बबूल, बेल, जामुन आदि का लगाया जाना ।


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कृषि वानिकी के क्या लाभ है? | krishi vaniki ke labh


कृषि वानिकी की समय की मांग है इसलिए कषकों के लिए इसे अपनाना नितांत आवश्यक से पड़ी बंजर, ऊसर एवं बीहड भमि में कृषि वानिकी (krishi vaniki) को अपनाने से केवल उनका सदुपयोग होगा साथ ही खाद्यान्न, ईंधन, सब्जियाँ, चारा, खाद, गोंद आदि अनेक वस्तुएं उपलब्धध होगी।

साथ ही रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी और पर्यावरण में निश्चित रूप से सुधार होगा।


कृषि वानिकी के लाभ (benefits of agroforestry in hindi) निम्न प्रकार से है -

  • कृषि वानिकी को सुनिश्चित कर खाद्यान्न को बढ़ाया जा सकता है । 
  • बहुउद्देश्यीय वृक्षों से ईंधन, चारा व फलियाँ, इमारती लकड़ी, रेशा, गोंद, खाद आदि प्राप्त होते हैं । 
  • कृषि वानिकी के द्वारा भूमि कटाव की रोकथाम की जा सकती है और भू एवं जल संरक्षण कर मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्धि कर सकते हैं । 
  • कृषि एवं पशुपालन आधारित कुटीर एवं मध्यम उद्योगों को बढ़ावा मिलता है । 
  • इस पद्धति के द्वारा ईंधन की पूर्ति करके 500 करोड़ मीट्रिक टन गोबर का उपयोग जैविक खाद के रूप में किया जा सकता है । 
  • वर्षभर गाँवों में कार्य उपलब्धता होने के कारण शहरों की ओर युवकों का पलायन रोका जा सकता है । 
  • पर्यावरण व पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान है, की में जोखिम कम है । सूखा पड़ने पर भी बहुउद्देश्यी वृक्षों से कुछ - न - कुछ उपज अवश्य ही प्राप्त हो जाती है । 
  • बेकार पड़ी बंजर ऊसर बीहड इत्यादि अनपयोगी भूमि पर घास, बहुउद्देशीय वृक्ष नाकर इन्हें उपयोग में लाया जा सकता है और उनका सुधार किया जा सकता है । 
  • कृषि वानिकी के अन्तर्गत वक्ष हमारी ऐसी धरोहर है, जो कि सदैव किसी न किसी रूप में हमारे आर्थिक लाभ का साधन बने रहते हैं ।
  • ग्रामीण जनता की आय, रहन - सहन और खान - पान में सुधार होता है ।


कृषि वानिकी का क्या महत्त्व है? | krishi vaniki ka mahatv


भारत उन गिने - चुने देशों में से एक है जिनमें राष्ट्रीय वन नीति अपनाई गई है, सके अंतर्गत कृषि वानिकी (krishi vaniki) को बढ़ावा दिया गया है । 

यद्यपि देश को खाद्यान्न उत्पादन में बनाने में हरित क्रांति के अंतर्गत कृषि वैज्ञानिकों एवं किसानों का महत्त्वपूर्ण योगदान किन्न देश में 1.85 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ती जनसंख्या और खाद्यान्न उत्पादन में पाव वर्तमान भारत की सर्वाधिक गम्भीर समस्या है ।

एक अनुमान के अनुसार 2025 तक भारत की जनसंख्या चीन की जनसंख्या को पीछे छोड़ कर दुनिया में प्रथम स्थान पर पहुँच जायेगी ।

भारत देश को प्रतिवर्ष 50 - 60 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्न की आवश्यकता होगी और साथ ही इस अनाज को पकाने के लिए लगभग 3300 लाख टन ईंधन लकड़ी, 1040 लाख टन फसल अवशेष तथा 2210 लाख टन गोबर की भी प्रति वर्ष आवश्यकता होगी ।

जबकि वर्तमान में इसकी उपलब्धता मात्र 170 लाख टन ईंधन लकड़ी, 1450 लाख टन फसल अवशेष तथा 2000 लाख टन गोबर ही है । 

स्पष्ट रूप से जलाऊ लकड़ी की भारी कमी है । ईंधन के अतिरिक्त, इमारती लकड़ी, चारा, रेशा आदि की अन्य आवश्कयताएँ भी निरन्तर तेजी से बढ़ ही रही है ।

नगरीकरण एवं औद्योगिकीकरण के कारण कृषि भूमि का सिकुड़ता स्वरूप एवं वन कटाव के कारण बढ़ता भूमि क्षरण व ऊसरीकरण एवं पर्यावरण की तेजी से बढ़ती दुर्दशा भी देश के कर्णधारों क साथ - साथ आम जन की चिन्ता का प्रमुख कारण बनते जा रहे हैं ।

इन सभी समस्याओं के एक मात्र समाधान के रूप में कृषि - वानिकी को देखा जा रहा है । इससे प्रति इकाई अधिक उत्पादन के साथ - साथ प्राकृतिक संसाधन (natural resource in hindi) का टिकाऊ प्रबन्धन भी सम्भव है ।

व्यावहारिक रूप से कृषि वानिकी (krishi vaniki) से ग्रामीण क्षेत्र में ईंधन की आवश्यकताएँ पूरी होती है और किसान पशुओं के गोबर से बने उपलों को जलाने से बच जाते हैं ।

इससे गोबर जैविक खाद (organic manure in hindi) की पूर्ति का साधन बन जाता है । साथ ही वृक्षों की पत्तियाँ भी हरी खाद का कार्य करता है ।

यही नहीं वृक्ष भूमि और जल के आघात से होने वाले कटान से भी भूमि की सुरक्षा करते है और पर्यावरण को स्वच्छता प्रदान करते हैं ।


कृषि वानिकी के उद्देश्य | purposes of agroforestry in hindi


कृषि वानिकी (krishi vaniki) से आवश्यक ईंधन एवं लकड़ी की पूर्ति होने के साथ - साथ किसानों को फल, खाद्यान्न एवं नगद फसलों की एक साथ प्राप्ति सम्भव होती है ।

अनेक पशुओं जैसे - भेड, बकरी व ऊंटों को पूर्णत: तथा गाय, भैस जैसे दुधारू पशुओं को अशत: चारे की पूर्ति सम्भव होती है ।

इससे वायु तथा भूमि में नमी एवं ताप नियंत्रित होकर सूक्ष्म जलवायु की दशाओं में सुधार होता है । जैसे - मधुमक्खियों के आकर्षण से परागण की क्रिया में वृद्धि होती है एवं कृषि उपज बढ़ती है । 


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कृषि वानिकी के उद्देश्य (krishi vaniki ke uddeshy) निम्नलिखित है -

  • कार्यमूलक आधार पर वनों का वर्गीकरण करना ।
  • गाँवों में वनों का विकास करना ।
  • लकड़ी एवं वन्य सामग्री की स्थानीय आवश्यकता को पूरा करने, पर्यावरण संरक्षण एवं तथा मौसम सम्बन्धी परिस्थितियों में सुधार के लिए खाद्यान्न फसलो के साथ वन लगाना ।
  • धूल, तूफान, गर्मी, हवाओं, भू - कटाव तथा बाढ़ आदि से कृषि भूमि एवं फसलों को सुरक्षा कवच प्रदान करना । 
  • गाँवों में गोबर के स्थान पर ईंधन के रूप में लकड़ी की आपूर्ति करना ।
  • इमारती लकड़ी की आपूर्ति करना ।
  • फसल रहित मौसम में भी पशुओं के लिए हरा चारा उपलब्ध कराना ।
  • धूल, गर्म हवाओं से कृषक आबादी की रक्षा करना ।
  • किसानों को अतिरिक्त आय एवं रोजगार के अवसर प्रदान करना ।
  • ग्रामीण जनसंख्या की सुषुप्त शक्ति और वानिकी निपुणता को प्रयोग में लाना ।
  • खेतों में हरी खाद तथा कार्बनिक खाद की उपलब्धता बढ़ाना तथा वृक्षों के माध्यम से परती एवं ऊसर भूमि को उपजाऊ भूमि में बदलना । 
  • खेतों एवं पशु बाड़ों में आवश्यक छाया उपलब्ध कराना ।


कृषि वानिकी की विशेषताएँ | characteristis of agroforestry in hindi


कृषि वानिकी (krishi vaniki) की प्रमुख निम्नलिखित विशेषताएं है -

  • यह खेती की ऐसी पद्धति है जो कृषि संसाधनों में वृद्धि करने के साथ - साथ पर्यावरणीय गुणवत्ता में भी बढ़ोतरी करती है ।
  • इसके अंतर्गत कृषि भूमि पर काष्ठ पादपों (लकड़ी देने वाले वृक्षों) को फसलों के साथ प्रमुखता से उगाया एवं संरक्षित किया जाता है । 
  • इसके अंतर्गत भोजन उपलब्धता के साथ - साथ कृषि वानिकी से ईंधन, चारे एवं रश की पूर्ति भी होती है ।
  • कृषि वानिकी के अंतर्गत वृक्षों एवं फसलों को इस प्रकार सम्मिलित किया जाता है जिससे किसान की कुल उपज एवं लाभ में वृद्धि होती है ।
  • कृषि वानिकी (agroforestry in hindi) के अंतर्गत लगाये गये वृक्षों / पादपों से आर्थिक लाभ एक अथवा अधिक वर्ष के उपरांत ही मिल पाता है ।
  • कृषि वानिकी के अंतर्गत मुख्यत: खेतों की सीमाओं तथा मेड़ों पर पेड लगाये जाते हैं ।


कृषि वानिकी योजना कार्यक्रम


कृषि वानिकी विकास परियोजना वनों के संरक्षण एवं विकास के कार्यक्रमों को निरन्तर सुदृढ़ करने के लिए स्वतंत्रता के तत्काल बाद 1948 ई० में केन्द्रीय कृषि वानिकी (krishi vaniki) परिषद् की स्थापना की गई जिसके अंतर्गत वृक्षारोपण कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई ।

कृषि वानिकी योजना कार्यक्रम में आम आदमी की भागीदारी सुनिश्चित करने एवं कार्यक्रम के प्रति जन चेतना विकसित करने के लिए 1950 ई ० में 'वन महोत्सव' अभियान का आयोजन प्रारम्भ किया गया ।

इस अभियान के प्रारम्भिक चरण में ही गैर कृषक भूमि के साथ ही कृषि भूमि में भी वृक्षारोपण एवं वन विस्तार के महत्त्व को समझा गया और 1952 ई० में जब भारत की प्रथम राष्ट्रीय वन नीति निर्धारित की गई तो कृषि वानिकी को भी इसमें प्रमुखता से सम्मिलित एवं रेखांकित किया गया ।

तदुपरांत 1988 ई० में बनी नई राष्ट्रीय वन नीति में तो वक्षारोपण एवं वन विस्तार में कृषि वानिकी की आवश्यकता, भूमिका, महत्ता एवं उपलब्धियों पर समुचित ध्यान केन्द्रित किया गया है । 


कृषि वानिकी की अवधारणा | concept of agroforestry in hindi


प्रकृति अपनी मनोहारी छटा, नैसर्गिक एवं अनन्त सौन्दर्य, शाश्वत् गतिशीलता, निश्चल सरलता, शांत वातावरण एवं अद्भुद दृश्यावली से मानव को सदैव प्रभावित एवं आकृष्ट करती रही है ।

प्रकृति के इस आकर्षण एवं विशेषता में वनों की सर्वप्रथम एवं अपरिहार्य भूमिका है ।

वस्तुत: वनों के अभाव में पृथ्वी पर न केवल सौन्दर्यपूर्ण जीवन वरन किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है । मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति में तो वनों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है ।

सभी धर्मों के आदि ग्रन्थों में वनों के महत्त्व का जयगान किया गया है । हिन्दू धर्म ग्रंथों का सृजन वनों की शीतल छाँव में किया गया ।

भगवान महावीर स्वामी ने वन गमन में ही कैवल्य की प्राप्ति की एवं भगवान बुद्ध को बोधिवृक्ष के नीचे ही निर्वाण की प्राप्ति संभव हो सकी ।

नन्दन वन, दण्डकारण्य, अशोक वन, वृन्दावन आदि ऋषि - मुनियों की तपोभूमि रहे हैं । वनों को धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, आर्थिक दृष्टि से भी राष्ट्र की अमूल्य निधि में सम्मिलित किया जाता है । 

वनों से जलावन, टिम्बर, फल - फूल, औषधियाँ एवं लाखों लोगों को रोजगार के अवसर तो उपलब्ध होते ही हैं, साथ ही इनका भू - क्षरण को नियन्त्रित करने में भी महत्त्वपूर्ण स्थान है ।

भारत में जैसे - जैसे जनसंख्या में वृद्धि होती जा रही है वनों पर मानव आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दबाव बढ़ता जा रहा है ।

प्राकृतिक वनों के ऐतिहासिक कटान ने पर्यावरणीय प्रदूषण की भीषण समस्या को विकसित कर दिया है ।

पृथ्वी पर मानव जीवन सहित सम्पूर्ण जीवन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं । ऐसे में कृत्रिम रूप से वनिकरण एवं वनों का पुर्नविस्तार ही एक मात्र हल बचा है ।


भारत एक कृषि प्रधान देश है?


यहाँ की अधिकांश भूमि कृषि में प्रयुक्त हो रही है एवं अधिकांश जनता कृषि कार्य में जुटी हुई है ।

जनता की वन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कृषि भूमि में वन लगाना अर्थात् ‘कृषि वानिकी को अपनाया जाना आवश्यक हो गया है ।

कृषि वानिकी (krishi vaniki) से कृषि उपज को किसी प्रकार की हानि नहीं होती वरन कृषि एवं कृषक को अनेक अतिरिक्त लाभ मिल जाते हैं ।


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कृषि वानिकी की सीमाएँ एवं बाधाएँ | agroforestry : limitations and obstacles


कृषि वानिकी (krishi vaniki) एक विशेष प्रकार की सामाजिक वानिकी है जिसके अंतर्गत किसी किसान द्वारा अपनी निजी भूमि पर वृक्षारोपण कर अपनी ईंधन, चारे एवं लकड़ी की आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है ।

कृषि वानिकी के अंतर्गत वृक्षों को फसल माना जाता है तथा उनके प्रबन्धन, कटान आदि के अनेक अधिकार कृषक को दिये जाते हैं । कृषि वानिकी के अंतर्गत छोटे बड़े किसान सम्मिलित होते हैं ।

बीते कुछ सालों में कृषि वानिकी (agroforestry in hindi) अपनाने वाले किसानों की संख्या में वृद्धि हुई है, किन्तु इसके बावजूद कृषि वानिकी कार्यक्रम को अभी भी पूरी तरह एक सफल कार्यक्रम नहीं माना जा सकता ।

वस्तुत: इस समूचे कार्यक्रम के अंतर्गत पैदा की गई उपज जैसे - लकड़ी एवं अन्य वन्य सामग्री के देहात के काम में आने की रूपरेखा खींची गई थी, किन्तु पाया गया कि यह समूचा कार्यक्रम वर्तमान में अधिक से अधिक शहरी एवं औद्योगिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समर्पित कर दिया गया है ।

कृषि वानिकी (krishi vaniki) के अंतर्गत, एक ओर ग्रामीण क्षेत्र में कृषि क्षेत्रफल घट रहा है जबकि दूसरी ओर रोजगार में भी कमी हो रही है ।

कृषि वानिकी से सीधे - सीधे अनाज पैदा करने योग्य भूमि कम हो रही है और भूमि पर बाह्य नगरीय शक्तियों का कब्जा होता जा रहा है ।

वास्तव में, अनेक भौतिक एवं भू - जलवायु लाभ के बावजूद कृषि वानिकी के कृषीय भूमि पर कुछ प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ते हैं ।


इनमें से कुछ का उल्लेख निम्न प्रकार है -

  • कृषि वानिकी के अंतर्गत उन वृक्षों का रोपण होता है जिसका वाणिज्यिक महत्त्व हो, ये वृक्ष पारिस्थितिक तंत्र को क्षति पहुंचाते हैं । इनमें प्रमुख हैं - पहाड़ी पीपल (पॉपलर) तथा यूकेलिप्टस । इनका अत्याधिक रोपण इसी श्रेणी की समस्या है ।
  • प्रायः ईंधन के लिए लकड़ी तथा चारा प्रदान करने वाले वृक्षों की उपेक्षा की जाती है । इसके कारण गाँव में ईंधन के रूप में खाद के काम आ सकने वाला गोबर ईंधन के रूप में जला दिया जाता है और साथ ही साल में कई महीने चारे की समस्या बनी रहती है ।
  • कृषि वानिकी के अन्तर्गत लगाए गए अस्थानिक वृक्ष मिट्टी की नमी कम कर देते हैं इन वृक्षों के कारण क्षेत्र में जल का अभाव हो जाता है तथा भौम जलस्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।
  • कृषि - वानिकी के अंतर्गत क्षेत्र अनुत्पादक बन जाता है, क्योंकि वृक्षों की जड़ें इतनी घनी होती हैं कि उन्हें सामान्य खुदाई के द्वारा हटाना अत्यन्त जटिल हो जाता है, इन्हें हटाने के लिए तथा भूमि को कृषि - अनुकूल बनाने के लिए अधिक निवेश की आवश्यकता होती है ।
  • उन खेतों की उत्पादकता घट जाती है जिनके किनारे वृक्ष लगाए गए हों क्योंकि वृक्षों से लगभग दो मीटर की दूरी तक मिट्टी में नमी एवं पोषण घट जाता है । इससे कृषि की मुख्य उपज घट जाती है और किसान को हानि होती है ।
  • वृक्ष अनेक महामारी तथा बीमारियों के घर बन जाते हैं । अक्सर वृक्षों की ये बीमारियाँ फसलों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में कुप्रभावित करती हैं । इन्हें दूर करने के लिए किसान को महंगी दवाइयों का छिड़काव करना पड़ता है ।
  • कृषि वानिकी का लाभ छोटे किसानों की अपेक्षा बड़े किसानों को ही अधिक हुआ है । कई नामौजूद जमींदार अपनी जमीन पर वाणिज्यिक उपयोग के लिए वृक्ष लगाते हैं ताकि उनकी भूमि को बेदखली से बचाया जा सके । इससे कृषि प्रदेश में श्रमिकों के रोजगार घट जाते हैं ।
  • उत्तम कृषीय भूमि का उपयोग अन्न एवं खाद्य पदार्थों के स्थान पर वन्य उपज के लिए करने से अनेक खाद्य, सामाजिक एवं आर्थिक समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं । खाद्यांश की कमी हो जाने पर देश को विदेशों से खाद्यांश आयात करना पड़ता है जिससे बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की हानि होती है ।


उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि कृषि वानिकी (agroforestry in hindi) के केवल लाभ ही लाभ नहीं हैं वरन इसकी अनेक सीमाएँ एवं बाधाएँ भी हैं ।

इन्हें दूर करने से ही कृषि वानिकी (krishi vaniki) कार्यक्रम को अधिक जनोपयोगी एवं हितकारी बनाया जा सकता है ।


कृषि वानिकी को वास्तविक उदाहरण देकर समझाएं?


कृषि वानिकी व्यवहार में किस भाँति कार्य करती है . इसका एक वास्तविक उदाहरण 'भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने अपनी वेब साईट www.icar.org.in पर कृषि वानिकी ने लौटाई धनी राम की मुस्कुराहट' के नाम से दिया है ।

इसके अनुसार धनी नाम कुशवाह उर्फ धनुआ गाँव उवारो, तहसील निवारी, जिला टीमकगढ़, मध्यप्रदेश काएक किमान है, जिसके पास गाँव से जंगल के पास चार एकर क्षेत्रफल का खेत है ।

उसका खेत कम उपजाऊ, लाल मिट्टी एवं कम पोषक तत्त्व वाला है । यही उसके जीवनयापन का एकमात्र कोत है । पुरानी खेती के तरीके तथा लगातार सूखे के कारण उसकी ज्यादा कमाई नहीं हो पाती थी ।

सालाना 14,000 रूपये की कमाई में वह बहुत मुश्किल से गुजर बसर कर पाता था । उसे जानकारी मिली की कृषि वानिकी संस्थान का राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र एक कार्यक्रम के माध्यम से जल संग्रह, फसल प्रदर्शन और कृषि वानिकी की जानकारी दे रहा है ।

धनीराम से संस्थान से संपर्क करके अपनी खेती देखने का अनुरोध किया । उसने अपने खेत के लिए कृषि वानिकी प्रणाली अपनाने का निर्णय लिया ।


वर्ष 2006 के खरीफ के मौसम में एक एकड़ भूमि में प्रदर्शन के लिए उसे कौशल नामक प्रजाति के मूंगफली के बीज और संतुलित मात्रा में उर्वरक उपलब्ध कराए गये ।

इस तरीके से उसने 6 क्विंटल मूंगफली का उत्पादन किया, जो उसकी खेती करने के पुराने तरीके से हुई पैदावार से 1.5 गुना अधिक थी ।

तदुपरांत रवी के मौसम में अपने चार एकड़ खेत में गेहुँ वोए । इसमें से एक एकड़ खेत पर उसने डब्ल्यूएच 147 प्रजाति के बीज तथा विशेषज्ञों द्वारा बताए गए , उर्वरकों का प्रयोग किया ।

तीन एकड़ खेत पर संस्थान द्वारा अमरूद और नीबू के पेड़ लगाए गए, जिसमें 68 अमरूद (इलाहाबादी सफेदा) और 42 नींबू (कागजी) के पौधों को 6 गुणा 8 मीटर की दूरी पर लगाया गया ।

गोबर की खाद के अनुप्रयोग, पानी देने और खाद देने के खर्चे को किसान ने स्वयं वहन किया । खरीफ और रबी के प्रदर्शन में मूंगफली के कौशल और गेहूं के डब्ल्यूएच 147 प्रजाति के बीज तथा सही मात्रा में खाद का प्रयोग किया गया ।


वर्ष 2007 के दौरान धनी राम के खेत के पास वर्षा जल को रोकने के लिए विशेष रूप से बनाए गये चेक डैम का पानी ओवर फ्लो हो गया ।

इसके फलस्वरूप कुंए के पानी का स्तर लगभग 2 मीटर बढ़ गया । पहले ही साल में धनी राम की आय दोगुनी हो गई ।

आगले वर्ष उसे सड़क के किनारे बोने के लिए लसोडा के बीज दिये गये तथा खेत को एक ओर से सुरक्षित रखने के लिए करौंदे के पौधे लगाए गये जबकि जंगल वाले हिस्से को सुरक्षित करने के लिए टीक के पौधे लगाया गया ।

नाले के दूसरी तरफ कृष्णा प्रजाति का आंवले का पौधा लगाया गया और नाले के दूसरी ओर उपलब्ध आधे हेक्टेयर भूमि में उसने मीठी मिर्च बोई ।

चैक डैम से कुंए के जलस्तर में हुई वृद्धि एवं एक साल पुराने उन्नत गेहूँ के बीज की वजह से उसे 35 क्विंटल प्रति हैक्टेअर की बंपर पैदावार मिली ।

रबी की फसल के बाद उसने बैंगन, करेला, मिर्च आदि को 0.2 हैक्टेअर भूमि में उगाया, जिससे उसे गर्मी में नियमित आय मिली ।

वर्ष 2009 में उसका चैक डैम फिर से ओवरफ्लो हुआ और खरीफ और रबी की बंपर उपज हुई ।

अमरूद के पेड़ों ने इस दौरान 2 क्विंटल फल दिए, जिससे उसकी नियमित आय में बढ़ोतरी हुई । खेत के एक छोटे हिस्से (लगभग 50 वर्ग मीटर) में उसने बैलों के चारे के लिए घास उगाई ।

रबी 2009 के दौरान उसकी खेत पर 21 प्रकार की फसलें, सब्जी, मसाले और फल लगे । खेत को उपजाऊ बनाने के लिए उसने जैविक खाद का प्रयोग किया । इससे उसके परिवार को पूरे साल नियमित काम तथा आय मिली ।

वह साल 2009-10 से अपनी खेती से 40-50 हजार रूपये की प्रतिवर्ष की कमाई कर रहा वास्तव में, कृषि वानिकी (krishi vaniki) से आज धनी राम की मुस्कुराहट वापस लौट आई है ।