सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) क्या है इसके उद्देश्य, विशेषताएं एवं महत्व व कार्य क्षेत्र

सिल्वीकल्चर (silviculture in hindi) वनों एवं वन्य संसाधनों के विकास तथा गुणवत्तावर्धन का विज्ञान एवं कला है ।

सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) यह‌ एक कला है, कि इसमें वनों की खूबसूरती एवं स्वास्थ्य को नियंत्रित दशाओं में निखारा व सजाया-संवारा जाता है।

साथ ही सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) एक विज्ञान है, कि इसके अंतर्गत वैज्ञानिक एवं तकनीकी विधियों का समुचित प्रयोग किया जाता है ।

अर्थात् सिल्वीकल्चर (silviculture in hindi) एक कला एवं विज्ञान दोनों है ।


सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) क्या हैै: अर्थ एवंं परिभाषा (meaning & defination of silviculture in hindi)

सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) Silviculture in hindi क्या है अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य व विशेषताएं एवं वन संवर्धन प्रणाली का महत्व, क्षेत्र व विधियां
सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) silviculture in hindi


सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) का अर्थ silviculture meaning in hindi


शाब्दिक रूप से हिंदी शब्द 'वन संवर्धन' अंग्रेजी शब्द 'सिल्विकल्चर Silviculture' का भाषाई रूपांतरण है ।

अंग्रेजी शब्द 'सिल्विकल्चर Silviculture' लैटिन भाषा के शब्द 'Silvi' एवं 'Cultura' की शब्द संयुक्ति है ।

'Silvi' का अर्थ 'वन' है एवं 'Cultura' का अर्थ 'खेती' है, इस प्रकार शाब्दिक रूप में 'वनों की खेती' ही सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) है।


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सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) की परिभाषा Silviculture defination in hindi


सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है -


( 1 ) यू० एस० फोरेस्ट सर्विस ( US Forest Service ) के अनुसार,


“वन - संवर्धन वनों एवं वन्य क्षेत्र की स्थापना, विकास, रचना, एवं गुणवत्ता को भू - स्वामी एवं समाज की विभिन्न आवश्यकताओं एवं मूल्यों के अनुसार सतत नियंत्रित करने की कला एवं विज्ञान है ।"

( "Silviculture is the art and science of controlling the establishment, growth, composition, health and quality of forests and woodlands to meet the diverse needs and values of landowners and society on a sustainable basis." www.fs.fed.us )


( 2 ) डेविड एम.स्मिथ ( David M. Smith ) के कथनानुसार,


“वन - संवर्धन की कार्यप्रणाली के अंतर्गत वे अनेक उपचार सम्मिलित हैं जिन्हें वनों की उपयोगिता में किन्हीं उद्दश्यों की पूर्ति के लिए वृद्धि एवं निरन्तरता के लिए प्रयुक्त किया जाता है ।"

( "Silvicultrual practice consistes of the various treatments that may be applied to forest stands to maintain and enhance their utility for any purpose." The Practice of Silviculture : Applied Ecology, 1986 )


( 3 ) विकिपीडिया - द फ्री इनसाइक्लोपीडिया ( Wikipedia - The Free Encyclopedia ) के अनुसार,


“वन - संवर्धन विविध आवश्यकताओं एवं मूल्यों के अनुसार वनों की स्थापना, विकास, रचना, स्वास्थ्य एवं गुणवत्ता को नियंत्रित करने की विधि है ।”

( “Silviculture is the practice of controlling the establishment, growth, composition, health and quality of forests to meet diverse needs and values." )


सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) में किसका अध्ययन किया जाता है?


सिल्वीकल्चर के अंतर्गत प्राकृतिक वनों की दशा एवं स्थिति को विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संवारना एवं बेहतर करने के बारे में अध्ययन किया जाता है ।


सिल्वीकल्चर किससे संबंधित है?


सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) का तात्पर्य, कृषि वानिकी एवं समाजिक वानिकी के समान प्रतीत होता है ।

किंतु वास्तविक अर्थ में सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) silviculture in hindi इनसे भिन्न है ।

कृषि वानिकी जहां खेतों में फसलों के साथ वन्य वृक्षों की खेती है तथा सामाजिक वानिकी सक्रिय मानवीय गतिविधियों के भू - क्षेत्रों में समाज के सहयोग से समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वन्य वृक्षों का रोपण एवं विकास करना है ।

अर्थात् सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) वनों की खेती से संबंधित है ।


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सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) के उद्देश्य ( Main Objectives of Silviculture in Hindi )


सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार हैं -


( 1 ) जिन वन्य क्षेत्रों में प्राकृतिक प्रकोप यथा - आग, बाढ़ आदि से अथवा मानवीय गतिविधियों यथा - कटान, झूम खेती आदि के प्रभाव से वनों का आंशिक अथवा पूर्ण विनाश हुआ है वहाँ वनों का पुन: विकास एवं पुरुद्धार करना ।

( 2 ) भूतकाल में वनों के विनाश की भरपाई करने के लिए वन्य क्षेत्रों का वन्य भूमि में विकास करना ।

( 3 ) पर्यावरण क्षरण एवं प्रदूषण के प्रभाव से खराब हुए वनों की दशा को सुधारने का प्रयास करना ।

( 4 ) वनों में ऐसे हरे - भरे क्षेत्र विकसित करना जो कि वन्य पर्यटकों एवं पर्यावरण प्रेमियों को आकर्षित कर सकें ।

( 5 ) जंगली जीव - जन्तुओं की आवश्कयताओं के अनुसार संरक्षित वनों का विकास एवं वर्धन करना, जैसे - शेरों के लिए घास वनों एवं गैंड़ों के लिए दलदली वनों का विकास करना ।

( 6 ) क्षेत्रीय वन विषमता को दूर करना । जिन क्षेत्रों एवं राज्यों में वनों की कमी है उन क्षेत्रों एवं राज्यों में वन्य विकास की क्रियाओं पर अधिक ध्यान देना ।


सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) की प्रमुख विशेषताएँ ( Main Characteristics of Silviculture )


सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) परिभाषाओं से वन - संवर्धन की निम्न विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं -


( 1 ) यह प्राकृतिक वनों की दशा एवं गुणवत्ता में सुधार की एक प्रक्रिया है ।

( 2 ) इसके अंतर्गत प्राकृतिक वनों का विकास मानवीय सहयोग से किया जाता है ।

( 3 ) इसके अंतर्गत वन्य क्षेत्र में वृक्षों का रोपण एवं देखभाल प्रमुखता से सम्मिलित है ।

( 4 ) सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) का कार्य केवल उन्हीं क्षेत्रों में किया जाता है जहाँ वर्तमान में वन हैं अथवा भूतकाल में वन थे ।

( 5 ) सिल्वीकल्चर एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें विभिन्न उद्देश्यों के अनुसार वनों का विकास एवं वर्धन किया जाता है ।

( 6 ) सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) एक कला एवं विज्ञान दोनों है । यह इस अर्थ में एक कला है कि इसमें वनों की खूबसूरती एवं स्वास्थ्य को नियंत्रित दशाओं में निखारा व सजाया - संवारा जाता है । साथ ही इस अर्थ में यह एक विज्ञान है कि इसके अंतर्गत वैज्ञानिक एवं तकनीकी विधियों का समुचित प्रयोग किया जाता है ।


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सिल्वीकल्चर वन संवर्धन प्रणाली क्या है? Silviculture system in hindi


वन प्रकृति की देन हैं जबकि उद्यानों का विकास कृत्रिम रूप से किया जाता रहा है ।

वन संवर्धन प्रणाली के अंतर्गत वन एवं उद्यान के बीच का यह अंतर कम हो जाता है और वनों का उद्देश्यपूर्ण ढंग से रोपण किया जाता है, देखभाल की जाती है और आवश्यकतानुसार उन्हें काट - छांट कर उनसे लाभ उठाया जाता है ।

इस भाँति सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) प्रणाली (silviculture system in hindi) बहुत सीमा तक उद्यान प्रक्रिया पर आधारित है ।

प्रकृति ने सदियो से वनों एवं जीव - जंतुओं के मध्य एक संतुलन कायम कर रखा था किन्तु मानवीय गतिविधियों के कारण गत कुछ शताब्दियों में वनों को बेरहमी से काटा और नष्ट किया गया ।

जिसके कारण वर्तमान में वनों का भारी अकाल पड़ गया है । जबकि हमारी आवश्यकताएँ बढ़ती आबादी एवं भौतिकवादिता के कारण के मुख समान बढ़ती जा रही हैं ।

ऐसे में सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) silviculture in hindi को एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया के रूप में अपनाया जाना आवश्यक हो गया है ।


सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) प्रणाली की परिभाषा Defination of Silviculture system in hindi


सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) प्रणाली निम्नानुसार परिभाषित किया गया है -


( 1 ) जॉन डी. मैथ्यूज ( John D. Matthews ) के कथनानुसार,


“वन - संवर्धन तंत्र का तात्पर्य उस प्रणाली से है जिसके अंतर्गत वन्य फसलों की देखभाल करना, काटना एवं नई फसलों का पुर्नजनन करना है जिसके परिणामस्वरूप विशेष जंगलों का उत्पादन होता है ।"

( "A silvicultural system may be defined as the process by which the crops constituting a forest are tended, removed, and replaced by new crops, resulting in the production of stands of distinctive form." Silvicultural Systems, p. 3 )


( 2 ) अंतर्राष्ट्रीय संगठन फोरेस्ट्री कमीशन ( Forestry Commission, International ) के अनुसार,


"वन - संवर्धन तंत्र देखभाल, फसलीय दोहन एवं वनों के पुनर्जनन की प्रणाली है ।'

( "A Silvicultural stystem is the process of tending, harvesting and regenerating a forest." www.forestry.gov.uk )


वन - संवर्धन प्रणाली के विभिन्न चरण ( Different Steps of Silviculture )


उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है, कि सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) silviculture in hindi वन एवं वानिकी विकास की एक चरणबद्ब, चक्रीय एवं प्रबन्धकीय प्रणाली है ।

यह चरणबद्ध है अर्थात् इसमे एक के बाद एक तीन चरण हैं; यह चक्रीय है अर्थात् इसके प्रथम चरण का निर्धारण आवश्यकतानुसार किसी भी एक से किया जा सकता है; यह प्रबन्धकीय है अर्थात् प्रत्येक चरण में विशेष एवं निर्धारित उप प्रक्रियाओं को समय एवं संसाधन दोनों के अनुरूप पूरा किया जाना आवश्यक होता है ।


सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) की प्रणाली के निम्न प्रमुख चरण है -


( 1 ) खड़े वृक्षों की देखभाल ( Stand Tending ) -


जंगल में प्राकृतिक रूप से खड़े अथवा कृत्रिम रूप से विकसित वृक्षों की उद्देश्यपूर्ण देखभाल करना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चरण है । इसके अंतर्गत, वृक्षों को दावानल से बचाना, वृक्षों की शाखाओं की कटाई - छंटाई आदि सम्मिलित है ।


( 2 ) वृक्षों की कटाई ( Harvesting ) -


इस चरण के अंतर्गत बड़े एवं विशाल वृक्षों की आवश्यकतानुसार कटाई कर वृक्ष उपज को काष्ठ आपूर्ति के लिए प्रयुक्त कर लाभ उठाया जाता है ।


( 13 ) पुर्नजनन ( Regeneration ) -


इस चरण के अंतर्गत कटाई से अथवा अन्य कारणों से खाली हुई भूमि पर वृक्षारोपण किया जाता है । वन - संवर्धन की सफलता स्पष्ट रूप से परिभाषित किये गये प्रबन्धकीय उद्देश्यों एवं प्रक्रिया चरणों के अंतर्गत इन चरणों का भली - भाँति निष्पादन करने पर निर्भर है ।

व्यावहारिक एवं प्रबन्धकीय दृष्टि से वन - संवर्धन के अनेक उद्देश्य हैं ।


जिन्हें दो भागों में बाँट कर देखा जा सकता है -


( अ ) वन - संवर्धन के आर्थिक उद्देश्य एवं
( ब ) वन - संवर्धन के अनार्थिक उद्देश्य ।


वन संवर्धन के आर्थिक उद्देश्यों के अंतर्गत प्रमुख है -


वन्य काष्ठ की प्राप्ति; जबकि अनार्थिक उद्देश्यों के अंतर्गत प्रमुख हैं - पर्यावरण सुधार, जंगली जीवों को बेहतर आवासीय सुविधाएँ प्रदान करता एवं मनोरंजन, प्राकृत प्रेम व आध्यात्मिक उद्देश्यों से वन गमन के लिए वनों में आने वाले शैलानियों एवं आत्म - खोजियों के लिए वनों की दशाओं एवं स्वास्थ्य में सुधार करना ।

इन दोनों प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वन संवर्धन प्रणाली को किंचित भिन्न प्रकार से लागू किया जाता है ।

आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के अंतर्गत वृक्षों की कटाई अधिक की जाती है, अन्य अनार्थिक उद्देश्यों में बहुत कम कटाई की जाती है ।

इस भाँति पुर्नजनन चरण के अंतर्गत आर्थिक उद्देश्यों के अंतर्गत काष्ठ पूर्तिकारण वृक्षों का रोपण किया जाता है, जबकि मनोरंजन के लिए सौन्दर्य परक एवं जंगली जीवों के लिए छायादार एवं घने वृक्षों का रोपण अधिक किया जाता है ।


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सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) की विधियाँ ( Major Silviculture Methods in hindi )


सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन)  के तंत्रों को दो आधारों पर बाँट कर देखा जा सकता है एक समान आयु के वृक्षों के लिए ( Even - aged Methods ) एक समान आयु के वृक्षों के लिए निम्न प्रमुख तंत्र है -


( 1 ) पूर्ण कटाई विधि ( Clear Cut Method ) -


इसके अंतर्गत एक ही कटाई में समूचे क्षेत्र के वृक्षों को काट लिया जाता है एवं तदुपरांत एक साथ ही समूचे क्षेत्र में पुर्नजनन का कार्य सम्पन्न किया जाता है । इस विधि का लाभ यह है, कि इसमें सम्पूर्ण वन्य फसल एक साथ प्राप्त हो जाती है एवं एक साथ पुर्नरोपण होने से वृक्ष पुन: समान रूप से विकसित होते हैं ।


( 2 ) चकती / पैबन्द कटाई विधि ( Patch Cut Method ) -


इस विधि के अंतर्गत सम्पूर्ण क्षेत्र से निश्चित आकार के क्षेत्र जैसे - आधा हेक्टेयर में कटाई कर वृक्षारोपण कर दिया जाता है, कुछ समय बाद दूसरे क्षेत्र में कटाई कर वृक्षारोपण किया जाता है । इस विधि का प्रमुख लाभ यह है, कि इसमें श्रम की उपलब्धता एवं आवश्यकतानुसार वृक्षों की कटाई एवं रोपण हो जाता है ।


( 3 ) बीज वृक्ष विधि ( Seed Tree Method ) -


इस विधि के अंतर्गत पूर्ण कटाई के अनुसार सभी वृक्षों को काट लिया जाता है, किन्तु केवल बीज के लिए आवश्यक वृक्षों को कटाई से बचा लिया जाता है । इस विधि में आगामी वृक्षारोपण के लिए बीज की उपलब्धता सुनिश्चित हो जाती है ।


( 4 ) रक्षिवितान कटाई विधि ( Shelterwood Method ) -


इस विधि के अंतर्गत सभी वृक्षों को न काट कर कुछ वृक्षों को आगामी रोपित पौधों को तीव्र धूप एवं वर्षा आदि से सुरक्षा प्रदान करने के लिए छोड़ दिया जाता है । पौधों के पर्याप्त बड़े हो जाने पर छोड़े गये बड़े वृक्षों को काट लिया जाता है ।


( 5 ) ठूठ कटाई विधि ( Coppice Method ) -


इस विधि के अंतर्गत पुराने वृक्षों की जड़ों एवं लूंठों को नवीन वृक्षों के उत्पन्न होने के लिए छोड़ दिया जाता है । वस्तुत: यह विधि केवल तब ही प्रयोग में लाई जाती है जब वृक्षों की प्रकृति ऐसी हो कि उनकी लूंठों से नवीन वृक्ष उत्पन्न हो सकें । इस विधि में पौधारोपण की आवश्यकता नहीं होती ।


( 6 ) अवरोधन / धारण कटाई विधि ( Retention Method ) -


इस विधि के अंतर्गत कटाई क्षेत्र में कुछ वृक्षों को अथवा कुछ वृक्ष झुरमुटों को क्षेत्र की शोभा, छाया अथवा विविधता के लिए छोड़ दिया जाता है । इस विधि का लाभ यह है कि इसके अंतर्गत सम्पूर्ण वन क्षेत्र एक साथ उजाड़ नहीं होता ।


विभिन्न आयु के वृक्षों के लिए ( Uneven - aged Methods )


विभिन्न आयु के वृक्षों की कटाई के लिए निम्न प्रमुख विधियों का प्रयोग किया जाता है -


( 1 ) एक समय चुनाव कटाई विधि ( On Time Selection Method ) -


इस विधि के अंतर्गत पूर्ण आयु के सभी बड़े वृक्षों को छांट कर काट लिया जाता है जबकि छोटे वृक्षों को आगामी विकास के लिए छोड दिया जाता है ।


( 2 ) चुनाव कटाई विधि ( Different Time Selection Method ) -


इस विधि के अंतर्गत आवश्यकतानुसार कुछ बड़े वृक्षों को बीज, छाया, शोभा आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए छोड़ दिया जाता है तथा छोटे वृक्षों के विकसित हो जाने पर उन्हें काट लिया जाता है ।


वन - संवर्धन : अवधारणात्मक विकास ( Silviculture : Conceptural Development )


आधुनिक काल में मानवता के सम्मुख सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चुनौति प्राकृतिक संसाधनों की सतत पूर्ति पर आधारित पर्यावरण के निर्माण की है और इस चुनौति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक वनों का स्वस्थ विकास एवं संवर्धन है ।

इस पर्यावरण आवश्यकता की पूर्ति का मार्ग अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एवं साथ ही प्रत्येक राष्ट्र के पटल पर वनों का सतत एवं समुचित प्रबन्धन किया जाना है ।

इसी के अनुरूप 1992 ई ० में पर्यावरण के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्त्वाधान में रियो डी जेनेरो में सम्पन्न हुए सम्मेलन में वनों की विनाश पर चिन्ता जताई गई एवं वन विकास एवं संवर्धन का संकल्प लिया गया ।


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भारत में सिल्वीकल्चर (वन - संवर्धन) का महत्व एवं क्षेत्र


मानव अपनी मूलभूत आवश्यकताओं हेतु प्रकृति पर निर्भर है । वनों का मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण स्थान है ।

वेद, कुरान, उपनिषद् आदि ग्रन्थों में वनों के महत्त्व को स्पष्ट किया गया है तथा इनका जयगान किया गया है ।

उपनिषदों एवं आरण्यकों का सृजन वनों की शीतल छाँव के नीचे ही किया गया है । नन्दन वन, दण्डकारण्य, अशोक वन, वृन्दावन आदि ऋषि - मुनियों की तपोभूमि रहे हैं ।

महात्मा बुद्ध को बोधिवृक्ष के नीचे ही कैवल्य प्राप्त हुआ था । इतना ही नहीं, कालिदास की शकुन्तला वन - कन्या थी ।

महात्मा बुद्ध का विचार था कि - वन उस असीम दया एवं उदारता के अनुपम सावयव हैं, जो अपने अस्तित्व के लिए मनुष्य से कोई माँग नहीं करते अपितु उदारतापूर्वक अपने जीवन की कीमत पर भी मानवता का संरक्षण करते हैं ।

धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, आर्थिक दृष्टि से भी वनों को राष्ट्र की अमूल्य निधि माना जाता है ।

वनों से जलाने के लिए लकड़ी, फर्नीचर तथा खेल का सामान बनाने के लिए कच्चा माल, फल - फूल, औषधियाँ, जंगली पशुओं के लिए आवास एवं लाखों लोगों को रोजगार के अवसर तो उपलब्ध होते ही हैं, साथ ही इनका भू - क्षरण को नियन्त्रित करने में महत्त्वपूर्ण स्थान है ।

भारत में जैसे - जैसे जनसंख्या में वृद्धि होती जा रही है, वनों पर मानव आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दबाव बढ़ता जा रहा है और वनों का निरन्तर विनाश हो रहा है ।

वनों का कटान पर्यावरणीय प्रदूषण को विकसित कर रहा है । अनेक विद्वान ‘साइलेंस स्प्रिक', 'क्लीजिंग सर्किल', 'पापुलेशन एक्सप्लोजन', 'लिमिट टू ग्रोथ', 'मॉर्डन ब्लू प्रिंट फार सर्वाइवल', 'इन्वायरमेंटल हैजारड्स एण्ड इम्पेक्ट ऑन ह्यूमन सोसायटी' एवं 'ऑवर कामन फ्यूचर एण्ड फ्यूरर' आदि के माध्यम से अनेक पर्यावरणीय चेतावनी निरंतर दे रहे हैं ।

एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग 7 मिलियन टन कार्बन - डाईआक्साइड ( CO2 ) वायुमण्डल में प्रवाहित हो रही है । जिससे वायुमंडल के औसत तापमान में निरन्तर वृद्धि हो रही है और 'हरित प्रभाव' ( Green House Effect ) का खतरा बढ़ने लगा है ।

इससे धरती की ध्रुवीय एवं पहाडों पर जमी बर्फ तेजी से पिघलने लगी है और समुद्र तल के हानिकारक स्तर तक ऊँचा उठने का खतरा उत्पन्न हो गया है । इसका एक मात्र समाधान सिल्वीकल्चर (वन - संवर्धन) silviculture in hindi है ।

वनों के महत्त्व को देखते हुए सम्पूर्ण विश्व के साथ - साथ भारत में भी सिल्वीकल्चर (वन - संवर्धन) की ओर कदम बढ़ने लगे हैं ।

इसी के अंतर्गत भारत में 1950 ई ० में ' वनमहोत्सव कार्यक्रम' प्रारम्भ किए गए तथा 1952 ई ० में एवं तदुपरांत 1988 ई ० में सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय वन नीति' की घोषणा की गई ।

राष्ट्रीय वन नीति का प्रमुख उद्देश्य वनों का संरक्षण एवं विकास करना है । सरकार द्वारा ‘वन संरक्षण नीति' के अंतर्गत वन एवं जनता के बीच पारस्परिक निर्भरता एवं उत्तरदायित्व की भावना विकसित करने हेतु 1979 ई ० में 'सामाजिक वानिकी कार्यक्रम' भी प्रारम्भ किए गए हैं ।


भारत में सिल्वीकल्चर (वन संवर्धन) के लिए प्रयास ( Affords of Silviculture in India )


भारत सरकार ने समय - समय पर वन - नीति बनाकर वनों के संवर्धन के लिए कार्य किया है ।


इसके प्रमुख पड़ाव निम्न प्रकार हैं -


( 1 ) वन महोत्सव (Van mahotsav in Hindi) -


वन महोत्सव (van mahotsav in hindi) में वृक्षारोपण के लिए सरकार पौधे नि: शुल्क या नाममात्र के मूल्य पर देती है । सरकारी अधिकारी तथा विभाग, स्कूल तथा आम जनता इस कार्य में रुचिपूर्वक भाग लेते हैं । वर्तमान में प्रत्येक बच्चे के लिए एक पेड़ योजना पर अमल किया जा रहा है ।


( 2 ) राष्ट्रीय वन नीति का निर्धारण -


सरकार ने 1952 ई ० में 'राष्ट्रीय वन नीति' का निर्धारण किया जिसके अंतर्गत वनों का क्षेत्रफल 23 % से बढ़कर 33 % करने का निश्चय किया गया ।


( 3 ) पंचवर्षीय योजनाएँ -


1951 ई ० से ही वनों के विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से प्रयास किया गया है । प्रथम चार योजनाओं के अंतर्गत 165 करोड़ रुपये वनों के विकास पर व्यय किए गए । पाँचवीं योजना में वनों के विकास पर 310 करोड़ रुपये व्यय किए गए और छठी योजना में इस मद पर 693 करोड़ रुपये व्यय करने का प्रावधान था । सातवीं व आठवीं योजनाओं से वनों की सुरक्षा तथा वनों के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है । नवीं एवं दसवीं योजना में भी इस ओर विशेष ध्यान दिया गया है ।


( 4 ) विशेष पेड़ लगाओ अभियान -


लाखों हेक्टेयर भूमि में मुलायम लकड़ी के तथा औद्योगिक महत्त्व के वृक्ष लगाए गए ताकि उद्योगों के लिए कच्चे माल की कोई कमी न रहे ।


( 5 ) वनों में सड़कें बनाना -


सरकार ने 1951 ई ० से 1981 ई० के बीच वनों के अन्दर 68 हजार किलोमीटर लम्बी सड़कों का निर्माण कराया, जिससे वनों की लकड़ी व अन्य प्रकार की वस्तुएँ सरलता से उपभोक्ता क्षेत्रों तक लाई जा सकें ।


( 6 ) वन अनुसंधानशालाओं की स्थापना -


सरकार ने देहरादून में 'राष्ट्रीय वन अनुसंधानशाला' की स्थापना की है । यह प्रयोगशाला विभिन्न किस्म की लकड़ियों तथा अन्य प्राप्त वस्तुओं के गुणों व उपयोग के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण खोज तथा अनुसंधान कार्य करती है । इसके अतिरिक्त, वन सम्बन्धी शिक्षा देने के लिए देहरादून तथा चेन्नई में ‘फॉरेस्ट कॉलेज' खोले गए हैं । 1965 ई ० में देहरादून में ही, वन उद्योग की तकनीकी जानकारी प्रदान करने के लिए 'काष्ठ कला प्रशिक्षण केन्द्र' की स्थापना की गई है ।


( 7 ) नई वन नीति -


वन सम्पदा के विकास हेतु सरकार ने 1988 ई ० में 'नई वन नीति' की घोषणा की गई तथा वनों के विकास के लिए 'सामाजिक वानिकी' के माध्यम से विशेष प्रयास करने का संकल्प लिया गया ।