शुद्ध बीज क्या है, बीज कितने प्रकार के होते है एवं बीज की अनुवांशिक शुद्धता

यहां बीज (seed in hindi) का तात्पर्य दानों तथा उन अन्य प्रवध्र्यो से है जिनका उपयोग फसल उगाने के लिए किया जाता है ।

उदाहरण के लिए - फसल उगाने के लिए उपयोग किए जाने वाले आलू के कन्द या गन्ने के तने बीज है ।

परंतु खाने के लिए उपयोग किए जाने वाले आलू के कन्द, गेहूं, जौ, चना, मटर आदि के दाने बीज (seed in hindi) नहीं है ।


बीज या शुद्ध बीज क्या है? What is seed in hindi

उन्नत बीज उन्नत किस्मों के शुद्ध वह स्वस्थ बीज को कहते है ।

किसान को साधारणतया प्रमाणित बीज दिया जाता है ।

केवल उसी किस्म को प्रमाणित बीज उत्पादित किया जा सकता है, जो कि किसी केंद्रीय या प्रादेशिक किस्म विमोचन समिति द्वारा विमोचन हो और जिसकी की अधिसूचना या नोटिफिकेशन जारी हो चुकी हो ।


बीज क्या है : अर्थ एवं परिभाषा (Meaning & defination of seed in hindi)

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 बीज क्या है एवं बीज के प्रकार (seed and types of seed in hindi)


बीज की परिभाषा defination of seed in hindi

पादप प्रजनन का मुख्य उद्देश्य फसलों की उन्नत किस्में का विकास करना है, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हो सके ।

ऐसा होना तभी संभव है, जब की उन्नत किस्मों के बीज किसानों को खेती के लिए उपलब्ध हो ।

बीज की परिभाषा - "वे सभी दाने बीज कहलाते है, जिनका उपयोग फसलों को उगाने के लिए किया जाता है, जैसे - गेहूं, धान, मक्का आदि ।"


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बीज या शुद्ध बीज की क्या विशेषताएं होती है?


कार्यात्मक पादप प्रजनन का ध्येय अच्छी उन्नत किस्मों का विकास करना है ।

उन्नत किस्मों का उत्पादन पादप प्रजनन विशेषज्ञों द्वारा सुरक्षित पादप प्रजनन की विधियों से किसानों तथा उपभोक्ताओं की आवश्यकता को ध्यान में रखकर किया जाता है ।


शुद्ध बीज की विशेषताएं (characteristics of pure seed in hindi)


अच्छी किस्मों की उत्तमता - जहां तक संभव हो सके, निम्नलिखित गुणों में होनी चाहिए ।


हेज इमर एवं स्मिथ (1955) के अनुसार -

1. स्थान तथा भूमि की अनुकूलता ( Adaptability of the soil and locality )
2.शुद्ध प्रकार ( Pure type )
3. उपज योग्यता ( Yielding ability )
4. इच्छित कृषि गुण ( Desirable agronomical characters )
5. रोग तथा कीट प्रतिरोधकता ( Disease and insect resistance )
6. विशेष गुणों के लिए गुणवत्ता ( Quality for particular characters )


अनुकूल किस्म का बीज निम्नलिखित बातों में उत्तम होना चाहिये -

1. अंकुरण की योग्यता ( Germinating ability ) 2. बीज का रंग तथा बीज का भार ( Colour of seed and seed weight )
3. समानता ( Uniformity )
4. बीज जनित रोगों से स्वतन्त्र ( Freedom from seed born diseases )
5. हानिकारक तथा दूसरे खरपतवारों से स्वतन्त्र ( Freedom from noxious and other weeds )
6. क्षति से स्वतन्त्र ( Freedom from damage )
7. दूसरी किस्मों तथा फसलों के साथ मिश्रणों से स्वतन्त्र ( Freedom from mixtures with other varieties or crops )


शुद्ध बीजों की ये विशेषतायें सामान्यत: अच्छी मानी जाती है ।

उत्तम बीज के उत्पादन में उगाई जाने वाली किस्मों का वरण, सबसे पहला कार्य होता है ।


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बीज कितने प्रकार के होते है? (types of seed in hindi)


मुख्य रूप से बीज चार प्रकार के होते है -

( अ ) प्रजनक बीज ( Breeder seed )
( ब ) आधार बीज ( Foundation seed )
( स ) पंजीकृत बीज ( Registered seed )
( द ) प्रमाणित बीज ( Certified seed )


अन्तर्राष्ट्रीय सस्य उन्नयन संघ (international crop improvement associations) से शुद्ध बीज के चार वर्ग स्वीकृत है -


( अ ) प्रजनक बीज ( Breeder seed ) -

मूल बीज वह बीज या वनस्पतिक पदार्थ है, जोकि प्रत्यक्ष रूप से मूलक या कुछ मलों में जमानतदार (sponsoring) पादप प्रजननकों या संस्था के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है जिससे आधार बीज (foundation Seed) का आरम्भिक तथा पुन: वर्धन किया जाता है । इस बीज के थैले पर सुनहरी पीला रंग का टैग लगाया जाता है ।


( ब ) आधार बीज ( Foundation Seed ) -

आधार बीज, बीज का वह संग्रह (stock) होगा जिसकी विशेष आनुवंशिकी पहचान तथा शुद्धता अधिकतम बनाई रखी जायेगी तथा जिसका कृषि अनुसन्धान केन्द्र के द्वारा प्रयोजन (designated) या वितरण किया जा सके । इसके उत्पादन की देखभाल ध्यानपूर्वक या कृषि अनुसन्धान केन्द्र के सदस्यों द्वारा मान्यता प्राप्त होनी चाहिये । 

आधार बीज सभी प्रकार के प्रमाणित बीजों का प्रत्यक्ष रूप से या रजिस्टर्ड बीज के द्वारा साधन होता है । इस बीज के थैले पर सफेद रंग का टैग लगाया जाता है ।


( स ) पंजीकृत बीज ( Registered Seed ) -

पंजीकृत बीज, आधार बीज या पंजीकृत की सन्तान होगी जिसकी सन्तोषजनक आनुवंशिक पहचान तथा शुद्धता बनाई रखी गई है और जो मान्यता प्राप्त है तथा प्रमाणीकरण एजेन्सी के द्वारा प्रमाणित है । 

बीज का यह वर्ग, एक गुण होना चाहिये जो कि प्रमाणित बीज उत्पन्न करने योग्य है । इस बीज के थैले पर बैंगनी रंग का टैग लगाया जाता है ।


( द ) प्रमाणित बीज ( Certified Seed ) -

प्रमाणित बीज, आधार पंजीकृत या प्रमाणीकृत बीज की सन्तान होती है जिसकी उत्पादन में सन्तोषजनक आनुवंशिकी पहचान तथा शुद्धता बनाई रखी जा सकती है तथा मान्यता प्राप्त होती है और जो प्रमाणीकरण एजेन्सी द्वारा प्रमाणित होता है । इस बीज के थैले पर नीला रंग का टैग लगाया जाता है ।


प्रमाणित बीज अधिक मात्रा में उत्पन्न किया जाता है इसका ध्येय कृषक को उचित मूल्य पर, उत्तम गुण वाला, अधिक उपजाऊ शक्ति वाला बीज देना है ।

शुद्धता तथा उत्तमता के मान, प्रत्येक वर्ग के बीज तथा प्रत्येक फसल के लिये ऑफिसियल सर्टिफाइन्ग एजेन्सी के द्वारा निर्धारित किये जाते है ।

ये एजेन्सी खेत तथा प्रयोगशाला का निरीक्षण करने तथा सर्टिफिकेशन के मान निर्धारित करने की उत्तरदायी होती है ।


नई किस्म का विमोचन कैसे किया जाता है? (How a new variety is released)


नई किस्मों का विमोचन (release of new varieties) कृषकों के लिये नयी किस्म का विमोचन करने की प्रविधियों में अत्यधिक भिन्नता पायी जाती है ।


आमतौर से किस्म का विमोचन (release) निम्न चरणों (steps) में किया जाता है -


( 1 ) उन्नत किस्मों का विमोचन (Release of Improved varieties)


सामान्यत: नई किस्मों के विमोचन का अधिकार कृषि अनुसंधान केन्द्र को होता है ।

प्रायोजक प्रजनक (sponsoring breeder) या एजेन्सी को इस प्रकार के प्रमाण प्रस्तुत करने चाहिये कि नई किस्म का विशिष्ट कृषि क्षेत्र में विशेष लाभ है ।

सामान्यत: ये प्रमाण विभिन्न वातावरणीय दशाओं में, कई वर्षों की अवधि में, भिन्न - भिन्न स्थानों पर मानक किस्म के साथ तुलनात्मक परीक्षणों के आंकड़ों पर आधारित होने चाहिये ।

नई किस्म के सम्बन्ध में दूसरे महत्वपूर्ण प्रमाण, रोगों तथा नाशकों की प्रभेदों के प्रति प्रतिरोधता, इसकी गुणवत्ता, यांत्रिक क्रियाओं के लिये उपयुक्त तथा दूसरी कृषि क्रियाओं की उपयुक्ता पर आधारित होने चाहिये ।

क्षेत्रीय परीक्षणों के आंकड़ों से किस्म का अनुसन्धान संस्थान से बाहर के क्षेत्रों लिये उपयुक्ता का निर्धारण होता है ।

हमारे देश में नई किस्मों का विकास तथा परीक्षण सरकारी अनुसंधान केन्द्रों, कृषि संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों, कृषि अनुसन्धान परिषद् के अनुसन्धान केन्द्रो तथा संस्थाओं में पादप प्रजनकों एवं विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है ।

किस्म की उत्कृष्ठता स्थापित हो जाने के पश्चात् किस्म का विमोचन किया जाता है ।

नई किस्म को भारतीय बीज अधिनियम 1966 के अन्तर्गत विधिवत् अधिसूचित किया जाता है जिससे किस्म की गुणता पर नियन्त्रण रखा जा सके ।


( 2 ) किस्म का नामकरण (Naming of Variety)


प्रायोजक प्रजनक किस्म का नाम देता है जिससे उसकी पहचान होती है ।

सामान्यत: विश्व भर के अनुसन्धान केन्द्र एक शब्द के नाम को वरीयता देते हैं ।


( 3 ) प्रजनक बीज का उत्पादन (Production of Breeder Seed)


किस्म के विमोचन का निर्णयन करने तथा नामकरण करने के उपरान्त पादप प्रजनक नई किस्म का बीज सीमित मात्रा में वर्धन ( limited increase ) करता है, जिससे बीज की आनुवंशिक शुद्धता एवं उच्च गुणवत्ता को स्थापित रखा जाता है ।

जिसकी पुष्टि विशेष संगठित प्रजनन बीज मानिटरिंग टीम द्वारा की जाती है ।

प्रजनक बीज, आधार बीज (Foundation seed) के वर्धन व गुणन का स्रोत होता है, अत: इसे आधार बीज उत्पादक विभाग को दे दिया जाता है ।


( 4 ) आधार बीज का वितरण (Distribution of Foundation Seed)


आधार बीज, प्रजनक बीज की सन्तति होती है जिसका उत्पादन बीज प्रमाणीकरण संस्था के संरक्षण में किया जाता है जिससे उसकी आनुवंशिक शुद्धता और गुणवत्ता विद्यमान रहे तथा आगामी पीढ़ियों में आनुवंशिक शुद्धता बनायी रखी जा सके ।

आधार बीज का उत्पादन काफी मात्रा में विकसित करना चाहिये जिससे पंजीकृत (registered) बीज का उत्पादन काफी मात्रा में किया जा सके ।

आधार बीज का वितरण चयनित उत्पादकों द्वारा किया जा सकता है ।

जिनकी योग्यता प्रमाणित हो ।


( 5 ) पंजीकृत बीज का वितरण (Distribution of Registered Seed)


आधार बीज से वृद्धित बीज को पंजीकृत बीज या प्रमाणीकृत बीज कहते हैं ।

पंजीकृत बीज प्राय: कृषकों द्वारा आधार बीज से या प्रमाणीकरण संस्था द्वारा किया जाता है ।

इस बीज की आनुवंशिक शुद्धता तथा गुणवत्ता निर्धारित प्रमाणीकरण मानकों के अनुरूप होनी चाहिये ।

इसका गुणन पंजीकृत बीज अथवा प्रमाणित बीज से किया जा सकता है इसका संवर्धन (culture) पार्थक्य (isolation) के निर्धारित मानकों के अन्तर्गत उगाया जाता है ।

इसके क्षेत्रीय निरीक्षण तथा बीज निरीक्षण किये जाते हैं ।

बीज का उत्पादन मांग के अनुसार किया जाना चाहिये जिससे कृषकों की आवश्यकता पूर्ति सुचारु रूप से की जा सके तथा उचित वितरण किया जा सके ।

बीज अधिनियम के अन्तर्गत उचित लेबल लगाना आवश्यक है ।


बीज अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार - 

अधिसूचित किस्मों के बीज का विक्रय तब ही किया जाना चाहिये, जबकि पात्रों या थैलों में बीज को भरकर उन पर आवश्यक लेबल लगाये गये हों ।

बीज की शुद्धता एवं अंकुरण क्षमता का निरीक्षण समय - समय पर किया जाना चाहिये जिससे बीज के स्थापित मानकों को स्थापित रखा जा सके ।


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बीज की आनुवंशिक शुद्धता से आप क्या समझते है एवं इसका क्या महत्व होता है?


बीज की आनुवंशिक शुद्धता (genetic purity of seed) - प्रत्येक किस्म के विशेष गुण (specific characters) होते है, जो कि उसकी पहचान (identity) होते है ।

उदाहरणतः बीज का रंग, रूप, आकार, आकृति, भार, जीवन क्षमता (viability), अंकुरण क्षमता एवं प्रकार, पौधे के आकारिक लक्षण, पादप ऊंचाई, पत्ती, तना, फल व पुष्प, पुष्पक्रम, रोग, कीट, प्रतिरोधता जलाभाव, सहिष्णुता, शीतलन सहिष्णुता, फसल अवधि, परिपक्वता, उत्पादक भाग की गुणवत्ता एवं रासायनिक संघटन इत्यादि ।

"किस्म सम्बन्धी विशिष्ट लक्षणों युक्त बीज को आनुवंशिक शुद्धता वाला बीज कहा जाता है ।"


यदि बीज ढेर में अधिकतर बीज पौधे आनुवंशिक लक्षणों के अनुरूप नहीं है तो बीज की आनुवंशिक शुद्धता असंतोषजनक कहलाती है, ऐसा बीज ह्रसित (deteriorated) होता है ।


आनुवंशिक शुद्धता का महत्त्व (importance of genetic purity in hindi)


उन्नत बीज का ध्येय उच्चतम उत्पादन तथा गुणवत्ता प्राप्त करना होता है, अतः कृषि के लिए शुद्ध बीज उपलब्ध कराना आवश्यक होता है ।

यदि आनुवंशिक रूप से शुद्ध बीज प्रदान नहीं किया जायेगा तो उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा । परिणामत: उपज घट जायेगी ।

"आनुवंशिक शुद्ध बीज सस्य उत्पादन का आधार होता है ।"


बीज की आनुवंशिक शुद्धता के ह्रास का कारण (causes of deterioration of the genetic purity of seed in hindi)


बीज की आनुवंशिक शुद्धता में ह्रास के मुख्य कारण निम्न है -


( 1 ) विकास काल में विभिन्नतायें ( Variations During Development )


किस्म की वृद्धि अनुक्रिया ( growth response ) वातावरण द्वारा प्रभावित हो सकता है ।

उदाहरणत: मृदा की दशाओं में भिन्नता, दीप्तिकाल (photoperiods) का प्रभाव, बसन्तीकाल का प्रभाव तथा भिन्न भिन्न जलवायु से पादप वृद्धि में भिन्नता हो सकती है ।

सुअनुकूलित वातावरण से भिन्न वातावरण में उगाये जाने पर उस किस्म के विशिष्ट गुणों में अन्तर उत्पन्न हो सकता है ।

नये वातावरण में किस्म को पुन: अनुकूलित (acclimatize) होना पड़ता है ।

अनुकूलन प्रक्रिया काल में किस्म के लक्षणों में परिवर्तन होने के फलस्वरूप किस्म की शुद्धता का ह्रास होने की सम्भावना रहती है ।

अत: प्रदत्त किस्म को उसके सुअनुकूलित क्षेत्र में ही उगाना चाहिये ।

यदि किस्म को अनुकूलित क्षेत्र से बाहर उगाने की आवश्यकता पड़ती है तो एक या दो पीढ़ियों से अधिक नहीं उगाया जाना चाहिये ।

ऐसी परिस्थितियों में परीक्षणो द्वारा आनुवंशिक शुद्धता की पुष्टि कर लेनी चाहिये ।


( 2 ) यांत्रिक मिश्रण ( Mechanical Mixture )


यांत्रिक मिश्रण बीज के आनुवंशिक ह्रास का प्रमुख कारण है ।

आमतौर से यांत्रिक मिश्रण निम्नलिखित अवस्थाओं में हो सकता है -


( a ) कृषक क्रियाओं में (during cultural practices) -

खेत या खेत से बाहर अवांछित पौधों का मिश्रण हो सकता है । पास - पास भिन्न - भिन्न किस्मों के बोने पर अनेक पौधों तदन्तर बीज का मिश्रण हो सकता है ।


( b ) संलवन तल (threshing floor) -

संलवन करते समय एक बार में एक किस्म का ही संलवन करना चाहिये । दो या अधिक किस्मों का एक संलवन तल पर संलवन करने पर उनके बीज का मिश्रण होने की सम्भावना बढ़ जाती है । इसके अतिरिक्त संलवन तल पर पहले संलवन की गयी किस्म के बीज शेष रहने पर भी मिश्रण हो सकता है । कंबाइन तथा भैसरों में कई किस्मों के प्रयुक्त करने पर भी मिश्रण हो सकता है ।


( c ) भंडारण (storage) -

भंडारण की कई विधियों का प्रयोग किया जाता है । सामान्यत: बोरों (gnny bags) में भंडारण किया जाता है । पुराने बोरों में पहली किस्म के बीज रह सकते हैं या बोरों के फटने से भिन्न - भिन्न किस्मों के बीज मिश्रित हो सकते हैं । बोरों को लाने - ले - जाने में बीज मिश्रित हो सकता है ।


( d ) पौधशाला तथा खेत (seed beds and planted field) -

बीज क्यारियों (seed bed) को बनाते समय, जहाँ पर पहले मौसम में उसी फसल को उगाया गया था, बीज मिश्रण की सम्भावना रहती है । अत: पौधशालाओं को नये स्थान पर बनाना उचित रहता है । क्यारियों को तैयार करने में काफी समय लगाना चाहिये जिससे कि छिटका हुआ बीज (shattered seed) अंकुरित हो जाये । सीमा क्षेत्रों में मिश्रण की सम्भावना अधिक होती है । एक क्यारी से दूसरी क्यारी में सिंचाई के जल के साथ भी बीज जा सकता है, जिससे मिश्रण हो सकता है ।


( 3 ) उत्परिवर्तन ( Mutation In Hindi)


हालांकि उत्परिवर्तन की दर बेहद कम होती है तथापि कुछ धान्यों में प्राय: उत्परिवर्तन पाये जाते हैं जैसे जई इत्यादि में ।

इन्हें प्रेक्षित करने के उपरान्त बीज खेत से निकाल देना चाहिये ।


अलैंगिक प्रवर्धित फसलों में कायिक उत्परिवर्तन (somatic mutation) के फलस्वरूप उपयोगी कलिका स्पाट (bud spots) बन जाते है, जिन्हें सरलता से पहचाना जा सकता कायिक उत्परिवर्तनों का प्रयोग नई किस्म विकसित करने के लिये किया जा सकता है ।

अवांछित उत्परिवर्तनों युक्त पौधों को बीज खेत से निष्कासित कर देना चाहिये ।

समय - समय पर वरण करने से किस्म के ह्रास को रोका जा सकता है ।


( 4 ) प्राकृतिक संकरण ( Natural Crossing )


प्राकृतिक संकरण, बीज की आनुवंशिक शुद्धता के ह्रास का प्रमुख कारण होता है ।

लैंगिक जनन में विशिष्ट किस्म का संकरण दूसरी किस्मों से होने पर संकर पौधे उत्पन्न होते है जिनकी पृथक्करण पीढ़ियों में विभिन्न पुनः संयोजन (recombinations) बनते है ।

जैसा कि विदित है, मेन्डेलियन पुन: संयोजन विभिन्नता उत्पन्न करने के प्रमुख कारण होते हैं जिससे किस्म का वास्तविक आनुवंशिक ह्रास होता है ।


प्राकृतिक संकरण से ह्रास निम्न प्रकार के पौधों से हो सकता है -


( I ) दूसरी किस्मों या जातियों के पौधों से संकरण ( Cross with other varieties or species ) -

यांत्रिक मिश्रण के फलस्वरूप दूसरी किस्मों के पौधे खेत में उगते हैं जिनसे संकरण हो सकता है या अलग - अलग खेतों में उगी अलग - अलग किस्मों में संकरण होने की सम्भावना होती है । विशेषरूप से सीमावर्ती पौधों में संकरण की सम्भावना अधिक होती है । यदि दो किस्मों में पार्थक्य ( isolation ) कम होता है तो यह सम्भावना बढ़ जाती है ।


( II ) निकृष्ट प्रकार के पौधों से संकरण ( Crossing with inferior types ) -

किस्म में निकृष्ट संयोजन होने पर उनसे संकरण हो सकता है जिनसे निकृष्ट पुनः संयोजन उत्पन्न हो सकते हैं ।


( III ) रोगग्रस्त पौधों से संकरण ( Cross with Diseased plants ) -

रोगग्रस्त अथवा कीट ग्रस्त पौधों से संकरण होने पर संवेदी पुनः संयोजनों के उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है । प्राकृतिक संकरण की मात्रा जनन विधि पर निर्भर करती है । प्रबल रूप से स्वनिषेचित फसलों जैसे गेहूँ, जौ, जई इत्यादि में प्राकृतिक संकरण अत्यधिक अल्प मात्रा में होता है । पर परागित फसलों में प्राकृतिक संकरण की मात्रा अधिक होती है अत: उपयुक्त पृथक्करण न रखने पर आनुवंशिक अशुद्धता ह्रास की सम्भावना अधिक रहती है ।


प्राकृतिक संकरण को मुख्यत: निम्न कारक प्रभावित करते है -


( a ) जनन विधि ( Mode of reproduction ) ( b ) पृथक्करण ( Isolation )
( c ) परागक ( Pollinator )
( d ) उपजातिय जनन द्रव्य ( Sub species germ plasm )


किस्मों की बीच में पृथक्करण की दूरी उचित होनी चाहिये ।

कीट परागित फसलों में प्राकृतिक संकरण की मात्रा कीटों की संख्या तथा उनकी सक्रियता पर निर्भर करती है ।


( 5 ) समग्र की आनुवंशिक परिवर्तिता ( Genetic Variability of the material )


सामान्यत: कोई भी किस्म पूर्णरूपेण समयुग्मजी नहीं होती है अतैव, यहाँ तक कि स्वनिषेचित फसल की किस्में भी पूर्णरूपेण समजात (homogenous) नहीं होती हैं ।

वरित प्रकारों (selected types) में परिवर्तिता का प्रेक्षण किया जा सकता है ।

हालांकि फीनोटाइप में सब पौधे सजातीय प्रतीत होते है, तथापि इनमें जीनोटाइप में अल्प मात्रा में अन्तर होता है । जिससे विभिन्नतायें उत्पन्न हो सकती हैं ।

इन परिवर्तनों से उत्पादन क्षमता प्रभावित हो सकती है ।

अन्ततः इन विभिन्नताओं पर वातावरणीय अनुकूलनता (environmental adaptation) का प्रभाव पड़ता है जिससे अन - अनुकूलित प्रकार समाप्त हो सकती है जो कि हानिकारक अथवा लाभप्रद हो सकती है ।

अवशेष विभिन्नता पर प्राकृतिक वरण के क्रियानवयन से निकृष्ट प्रकार का गुणन हो सकता है जिसके परिणामस्वरूप बीज का आनुवंशिक ह्रास होता है ।


( 6 ) नाशकों का वरणात्मक प्रभाव ( Selective effect of Pests )


सस्य रोगों एवं कीटों (नाशकों) का वरणात्मक प्रभाव किस्म के ह्रास का प्रमुख कारण हो सकता है ।

रोगों एवं कीटों की नयी शरीर - क्रियात्मक प्रभेद उत्पन्न हो सकती है जो कि किस्म की विशेष रूप (form) को प्रभावित कर सकती है ।

वनस्पति प्रवर्धित फसलों के बीज में कवको तथा जीवाणुओं से संक्रमित (infected) रहने की सम्भावना रहती है अत: इन रोग जनकों का बीज परीक्षण करना अत्यावश्यक होता है ।

परीक्षित रोगमुक्त बीज का ही गुणन करना चाहिये । अन्यथा ये रोग बीज ह्रास का कारण बनते हैं अतः सभी प्रकार के रोगों से मुक्त बीज (disease and insect free seed) को रोगजनकों से मुक्त वातावरण में उगाना सिद्धान्त होना चाहिये ।

बहुत से कीट रोग वाहक होते है, उन पर नियन्त्रण करना भी आवश्यक होता है ।


( 7 ) पादप प्रजनन की प्रविधि ( Technique of Plant Breeding )


किस्म प्रजनन में अस्थिर (unstable) प्रकारों का उपस्थित रह जाना ह्रास का कारण हो सकता है जैसे कि कोशकीय अनियमितायें, रोग संवेदिता इत्यादि ।

इन रूपों (forms) में पृथक्करण होता है जिससे आनुवंशिक विषमतायें उत्पन्न होती हैं ।

यदि किस्म को अनाधिकृत रूप से, उपयुक्त रूप से विकसित होने से पूर्व ही विमोचित (release) कर दिया जाता है तो ऐसी किस्म का शीघ्रता से आनुवंशिक ह्रास होना स्वाभाविक ही है ।


( 8 ) अन्य वंशागत परिवर्तन ( Other heritable changes )


बीज उत्पादन काल में कुछ दूसरे वंशागत परिवर्तन हो सकते है ।

उदाहरणतः क्रोमोसोमस में संरचनात्मक परिवर्तन (structural changes of chromosomes) -न्यूनता (deficiency), द्विगुणन (duplication), प्रतिलोमन (inverison), स्थानान्तरण (translocation) या बहुगुणिता (poly ploidisation) इन परिवर्तनों से उत्पन्न प्रभाव को रोकने के लिये सामयिक वरण आवश्यक होता है ।

लव ने प्रदर्शित किया है, कि कनाडा में डाऊसन गोल्डन - चैफ शीतकालीन गेहूँ को अनुरक्षित रखना, कठिन हुआ क्योंकि उनमें क्रोमोसोम परिवर्तनों से भिन्नता उत्पन्न हुई ।

इनसे निकृष्ट रूप उत्पन्न हो सकते है ।


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बीज की आनुवंशिक शुद्धता के अनुरक्षण की विधियों का वर्णन कीजिये?


बीज की आनुवंशिक शुद्धता का अनुरक्षण (maintenance of the genetic purity of seed) ह्रास के सैद्धान्तिक रूप से बीज की आनुवंशिक शुद्धता के अनुरक्षण के लिये, बीज के कारणों पर नियन्त्रण करना चाहिये ।


इस उद्देश्य के लिए निम्नलिखित विधियों का प्रयोग किया जाता है -


( 1 ) बीज स्रोत का नियन्त्रण ( Control of the source of seed )


मौलिक रूप से, आनुवंशिक शुद्ध बीज का ही गुणन करना चाहिये ।

अत: बीज उत्पादन प्रारम्भ करने से पहले बीज की जातीय शुद्धता की पृष्टि करना अत्यावश्यक है । जिससे उस किस्म के वंशावली आलेख्यों (pedigree records) के आधार पर किया जा सकता है ।

बीज एवं पौधे के विशिष्ट लक्षणों का सावधानीपूर्वक निरीक्षण कर लेना चाहिए ।


( 2 ) पार्थक्य ( Isolation )


बीज फसल का संदूषण स्रोतों से उपयुक्त पार्थक्य अत्यावश्यक है जिससे प्राकृतिक परागण का प्रभावी नियन्त्रण हो ।

परपरागित फसलों में पर्याप्त पार्थक्य परपरागण की मात्र, परागण की विधि, वायु की दिशा , कीटों की संख्या तथा उनकी सक्रियता इत्यादि कारकों पर निर्भर करती हैं ।

संकरण की सम्भावना किस्म से सम्बन्धित अन्य कृषिगत एवं जंगली जातियों से भी रहती है अत: ऐसी जातियों से भी पार्थक्य आवश्यक हैं ।

सामान्यत: सभी बीज फसलों के लिये पार्थक्य की दूरी निर्धारित की गयी है ।

सीमित संख्या के पौधों में परपरागण से बचाव पुष्पों की थैला बन्दी (bagging) द्वारा भी किया जा सकता है ।


( 3 ) अवांछनीय पौधों का निष्कासन ( Roguing )


बीज फसल में उपजातिय मिश्रण में से हस्तवरण द्वारा अवांछनीय पौधों को निकालना रोगिंग कहलाता है ।

"The act of removing undesirable individuals from a varietal mixture in the field by hand selection is termed roguing ."

अवांछनीय पौधों को उचित समय पर निकालने पर बीज फसल की आनुवंशिक एवं भौतिक शुद्धता निर्भर करती है ।


अवांछनीय पौधों में निम्न प्रकार के पौधे आते है -

( i ) अन्य फसलों के पौधे ।
( ii ) उसी फसल के दूसरी किस्मों के पौधे ।
( iii ) खरपतवारी पौधे ।
( iv ) रोग एवं कीट प्रभावित पौधे ।


रोगिंग करने से पहले उस किस्म की विशेषताओं एवं गुणों का ध्यानपूर्वक अध्ययन कर लेना चाहिये तथा सभी अप्रारूपिक (atypical) पौधों को निकाल देना चाहिये ।

विभिन्न फसलों में अवांछनीय पौधे विभिन्न अवस्थाओं पर संदूषण फैलाते हैं अत: इस अवस्था के आने से पहले ही ऐसे पौधों को निकाल देना चाहिये ।

यह कार्य बड़ी सर्तकतापूर्वक एवं संगठित रूप से करना चाहिये ।

खेत में रोगिंग कई बार करना चाहिये तथा दिन के भिन्न - भिन्न वक्तों पर करना चाहिये ।

खेत में विभिन्न दिशाओं से घूम कर रोगिंग करना चाहिये । पर - परागित फसलों में, यदि सम्भव हो सके, तो परागण से पहले ही रोगिंग करना चाहिये ।

अवांछनीय पौधों को जड़ समेत उखाड़ लेना चाहिये तथा एकत्र करके गड्ढे में दबा देना चाहिये जिससे उनके पुन: फैलने की सम्भावना न रहे ।


( 4 ) किस्म परीक्षण या ग्रो आउट परीक्षण ( Grow out test )


बीज फसल की किस्म का मानक (varietal standard) स्थापित रखना अत्यावश्यक होता है ।

अत: किस्म को उगाकर उसके मानक आनुवंशिक लक्षणों का कई बार निरीक्षण करना चाहिये जिससे सम्बन्धित किस्म के आनुवंशिक लक्षणों का अध्ययन क्रमानुसार किया जा सके तथा किस्म के मानकों की पुष्टि की जा सके ।

ग्रो आऊट परीक्षण पौधशालाओं अथवा ग्लास हाऊस में करने चाहिए ।


( 5 ) यांत्रिक समिश्रण पर नियन्त्रण ( Control on mechanical admixture )


यांत्रिक समिश्रण, किस्मों की आनुवंशिक शुद्धता के ह्रास का प्रमुख कारण होता है ।

अतः यांत्रिक समिश्रण से बचाव अत्यधिक आवश्यक है ।


यांत्रिक मिश्रण को रोकने के लिये निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिये -

( i ) फसल की कटाई के समय भिन्न - भिन्न किस्म के पौधों का मिश्रण नहीं होना चाहिये ।
( ii ) भिन्न - भिन्न किस्मों का संलवन पृथक रख कर करना चाहिये ।
( iii ) फसल कटाई अथवा संलवन यन्त्रों जैसे कम्बाइनो, धैशरो, को एक किस्म की कटाई करने के उपरान्त सफाई करके ही दूसरी किस्म की कटाई के लिये प्रयोग करना चाहिये ।
( iv ) बीज को नये बोरों में भरना चाहिये । यदि पुराने बोरों का इस्तेमाल करना है तो उनकी अच्छी प्रकार सफाई कर लेनी चाहिये ।
( v ) भंडार ग्रह की अच्छी प्रकार सफाई कर लेनी चाहिये तथा भंडारण के दौरान भिन्न - भिन्न किस्मों के बीज का समिश्रण नहीं होना चाहिये ।


( 6 ) आनुवंशिक विस्थापन ( Genetic Shifts )


सामान्यतः बीज फसल का उत्पादन किस्म के लिये निर्धारित अनुकूलन क्षेत्र (adaptation region) में करना चाहिये क्योंकि अनुकूलित एवं भिन्न पारिस्थितिकी क्षेत्रों में लगातार उगाने पर विभिन्नतायें उत्पन्न हो सकती हैं तथा आनुवंशिक विस्थापन हो सकता है क्योंकि नयी परिस्थितयों में अपेक्षाकृत उत्कृष्ट अनुकूलन वाले पौधों या शरीर क्रियात्मक प्रभेदों की उत्तरजीविता (survival) अधिक होती है ।

परिवर्तित पारिस्थितिकी दशाओं में उत्पादन क्षमता, रोग प्रतिरोधिता, अनुकूलता को प्रभावित करने वाले शरीर क्रियात्मक परिवर्तनों इत्यादि की पहचान कठिन होती है ।


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( 7 ) पीढ़ी पद्धति ( Generation System )


पादप प्रजनक द्वारा नयी किस्म के विकास , प्रमाणीकरण तथा व्यवसायिक बीज उत्पादन का कार्य विभिन्न चरणों (setps) में किया जाता है ।

इस कार्यविधि में बहुत सी पीढ़ियाँ लगती है ।

शुद्ध बीज क्या है, बीज कितने प्रकार के होते है एवं बीज की अनुवांशिक शुद्धता, seed in hindi, बीज क्या है-अर्थ एवं परिभाषा, बीज कितने प्रकार के होते है।
बीज के प्रकार (types of seed in hindi)


अतः आनुवंशिक शुद्धता के अनुरक्षण के लिये भिन्न - भिन्न स्तरों पर मानक स्थापित किये गये हैं जिससे फसल उत्पादकों को उत्कृष्ट गुणवत्ता का बीज, जिसकी आनुवंशिक पहचान तथा आनुवंशिक शुद्धता का अनुरक्षण मानक स्तरों पर किया गया हो, प्राप्त हो सके ।


बीज वर्ग शुद्धता के लिये विभिन्न स्तर निम्न प्रकार है -

बीज वर्धन उपरोक्त पीढ़ी पद्धति के आधार पर किया जाता है ।

मूल बीज (Breeder seed) का वर्धन प्रजनकों या प्रजनन संस्था द्वारा नियन्त्रित किया जाता है ।


आधार बीज (Foundation seed) का वर्धन तथा वितरण कृषि अनुसंधान केन्द्र या अधिकृत बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा किया जाता है ।


पंजीकृत बीज  (Registered seed) का उत्पादन प्रमाणीकरण संस्था के निरीक्षण में किया जाता है ।


प्रमाणित बीज (Cerified seed) आधार बीज, पंजीकृत बीज या प्रमाणित बीज की सन्तान होती है जिसका उत्पादन बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा निरीक्षित होता है ।

इसके उत्पादन के अन्तर्गत सन्तोषजनक आनुवंशिक पहचान तथा शुद्धता अनुरक्षित रखी जाती हैं ।


( 8 ) बीज प्रमाणीकरण ( Seed Certification )


बीज प्रमाणीकरण का उद्देश्य कृषकों को फसल की उत्तम किस्मों उच्च गुणवत्ता एवं आनुवंशिक शुद्धता का बीज तथा प्रवर्धन पदार्थ प्रदान करना होता है ।

अत: शुद्धता तथा उत्तमता के मानक प्रत्येक वर्ग के बीज एवं फसल के लिये ऑफिसियल सर्टिफाइना एजेन्सी के द्वारा निर्धारित किये जाते हैं ।

ये एजेन्सी खेत एवं प्रयोगशाला का निरीक्षण करने तथा सर्टिफिकेशन के मान निर्धारित करने के लिये उत्तरदायी होती है ।