अफलत एवं बन्ध्यता के कारण तथा उनके उपाय

अफलत एवं बन्ध्यता के कारण तथा उनके उपाय 

अफलत एवं बन्ध्यता के कारण तथा उनके उपाय
अफलत एवं बन्ध्यता के कारण तथा उनके उपाय


अफलत क्या है? Unfruitfulness in hindi


प्राय: ऐसा देखा जाता है, कि बहुत - से फल वाले पौधे बिना अफलत (unfruitfulness in hindi) के ही रह जाते हैं ।

यहाँ तक कि एक ही क्षेत्र तथा समान परिस्थितियों में उगाये गये पौधे कुछ तो फल पैदा करते हैं और कुछ नहीं ।

पौधे की इस फल न पैदा करने की दशा को अफलत (Unfruitfulness in hindi) कहा जाता है ।

अफलत के क्या कारण होते है?


अफलत के निम्न दो कारण होते है -


1. भीतरी कारण 
2. बाहरी कारण

1. भीतरी कारण ( Internal Causes )


ऐसे कारण जो पौधे की भीतरी परिस्थितियों से सम्बन्ध रखते हैं, उन्हें भीतरी कारण (Internal Causes) कहा जाता है ।

2. बाहरी कारण ( External Causes )


इसके अन्दर ऐसे कारण सम्मिलित हैं, जो पौधे की केवल बाहरी परिस्थितियों से सम्बन रखते हैं, उन्हें बाहरी कारण (external Causes) कहा जाता है।

बन्ध्यता क्या है? Sterility in hindi


जब पौधे में अगली सन्तान पैदा करने की क्षमता नहीं होती है, तो उसे बाँझ पौधा कहते हैं, और इस दशा को बन्ध्यता (sterility in hindi) कहा जाता है।

बन्ध्यता कितने प्रकार की होती है? types of Sterility in hindi


बन्ध्यता निम्न तीन प्रकार की होती है -


( 1 ) मुख्य फूलों के अगों की अनुपस्थिति के कारण बन्ध्यता


जब पौधे के फूलों में नर या मादा या दोनों अंग अनुपस्थित होते हैं, तो इसको Sterility from Impotance कहा जाता है ।

यह दो प्रकार की होती है -

( अ ) पूर्ण बन्ध्यता ( Complete Sterility ) -


जब फूल में नर तथा मादा दोनों अंग अनुपस्थित होते हैं ।

( ब ) अपूर्ण बन्ध्यता ( Incomplete Sterility ) -


जब फूल में नर अथवा मादा एक ही अंग अनुपस्थित होता है ।

( 2 ) मिलने की असमर्थता के कारण


इस तरह की बन्ध्यता (sterility in hindi) में फूल के नर तथा मादा दोनों अंग उपस्थित होते हैं लेकिन वे दोनों आपस में मिलने तथा गर्भाधान की क्रिया करने में असमर्थ होते हैं ।

( 3 ) प्रण नष्ट हो जाने के कारण 


इस दशा में फल में नर तथा मादा अंग उपस्थित होते हैं और आपस में गर्भाधान की क्रिया भी करते हैं लेकिन बाद में भ्रूण नष्ट हो जाने से पौधे में बन्ध्यता पैदा हो जाती ।

बन्ध्यता के क्या कारण होते है? ( Causes of Sterility )



बन्ध्यता (sterility in hindi) के निम्नलिखित कारण होते है -


अनावश्यक परिस्थितियाँ ( Evolutionary Tendencies ) 


प्राकतिक परिस्थितियाँ ऐसी पैदा हो जाती हैं जो स्वयं सेंचन को असफल बनाती हैं ।

साथ ही अगर पर - सेंचन भी असफल हो जाता है तो पौधा फलरहित ही रहता है ।

ये परिस्थितियाँ अग्र प्रकार से हैं -


( अ ) अपर्ण फल : एकलिंगी तथा द्विलिगी पौधे 


जब फूल में नर या मादा एक अंग ही उपस्थित होता है तो से अपूर्ण फूल कहा जाता है जो स्वयं बाँझा होता है ।

जब नर तथा मादा फूल अलग - अलग पौधों पर पैदा होते हैं तो उन्हें एकलिंगी पौधे Direcious plants ) तथा जब नर और मादा फूल एक ही पौधे पर पाये जाते हैं तो उसे टिलिंगी पौधा ( Monoecious plant ) कहा जाता है ।

केला तथा अखरोट द्विलिंगी पौधे हैं, जबकि पपीता तथा स्ट्राबेरी एकलिंगी ।

इसी प्रकार से अलूचा की कुछ जातियों में इतना कम निकलता है कि उसको एकलिंगी ही समझा जा सकता है ।

मैगोस्टीन एक ऐसा फल वाला करे जिसमें केवल मादा फूल ही मिलता है परन्तु फिर भी उसमें बिना सेंचन तथा गर्भाधान की क्रिया हए ही फल बनते हैं और उन फलों में बीज भी होते हैं । 

नारंगी महानींबू की बहुत - सी ऐसी जातियाँ हैं तथा संतरे की टेंजेरिन्स जाति जिनमें केवल मादा फूल (Pistillate flower) ही पैदा होता है ।

अपूर्ण फूल वाले पौधों एवं एकलिंगी तथा द्विलिंगी पौधों में स्वयं सेचन तो नहीं हो सकता है और यदि परसेंचन भी असफल हो जाता है, तो अधिकतर पौधे बिना फलों के ही रह जाते हैं 

( ब ) अंगों की विभिन्न ऊँचाइयाँ ( Heterostyly ) -


जब फूल में नर तथा मादा अंगों की ऊँचाइयाँ असमान हों तो उसे Heterostyly कहते हैं । 

ऐसे फूलों में स्वयंसेंचन असफल हो जाने से गर्भाधान की क्रिया नहीं होती तथा फल भी नहीं बनते हैं ।

यह परिस्थिति डैलीसियस सेब बडे फल पैदा करने वाली नींबू प्रजाति की जातियों (Large flowered variety of citrus fruit) में देखने को मिलती है ।

Jeanned Arc pear में फूल लगभग बन्द से रहते हैं, जिससे सेंचन की क्रिया में अड़चन पैदा होती है 

( स ) अंगों के पकने में भिन्नता ( Dichogamy ) -


जब फूलों के नर तथा मादा अंग विभिन्न समय पर पकते हैं तो उस दशा को (Dichogamy) कहते हैं ।

जब नर भाग पहले पकता है, तो उसे 'Protandrous' तथा मादा के पहले पकने को Protogynous कहा जाता है । 

यह एवोकैडो, शरीफा (Custard apple) इत्यादि में पाई जाती है ।

( द ) अपूर्ण फूल कलिका या अपूर्ण फूलों का गिरना 


जब पौधे की अपूर्ण फूल कलिका या अपूर्ण फूल जमीन पर गिर जाते हैं तो पौधों में बन्ध्यता पैदा हो जाती है ।

( य ) नपुंसक पराग ( Impotance Pollen ) -


जब पूर्ण विकसित फूल थोड़ा पराग पैदा करते हैं और जिसका अधिकांश भाग नपुंसक होता है तो गर्भाधान क्रिया न होने से बन्ध्यता (sterility in hindi) पैदा हो जाती है ।

2 . पितृगत कारण 


जब पैतृक गुण बच्चे में हस्तान्तरित हो जाते हैं तो उसे Heredity कहते हैं 


यह निम्न तरह से बन्ध्यता (sterility in hindi) को बढ़ाती है -


( अ ) प्रसंकर पैदा होने से ( Due to Hybridity ) -


कुछ पौधों की जातियाँ वंशीय गुण सभा प्रोटोप्लाज्म की बनावट के अनुसार स्वयं बन्धित (Selfisteriles) होती है । अध्ययन द्वारा ऐसा पता चला है ।

कि बन्ध्यता (sterility in hindi) पौधे में पराग के निर्माण के समय क्रोमोसोम्स (Chromosome momosomes) के असमान (odd) संख्या वितरण होने से पैदा होती है ।

Waugh ने Troth Early pain तथा Wild goose plum के मिलाप से पैदा होने वाले प्रसंकर को म्यूल ( Muleso पुकारा था ।

इसमें बहुत - से फूल पैदा हुए लेकिन वे सभी बिना गर्भ केसर वाले थे ।

पंकेसा संख्या फूलों में अधिक थी लेकिन सभी खराब (Malformed) थे ।

( ब ) मिलने में असमर्थता होने से ( Due to Incompatability ) -


जब सन्तान के फली के मुख्य अंग कुछ पैतृक गुणों के कारण आपस में मिलने में असमर्थ हो जाते हैं तो बन्ध्यता (sterility in hindi) पैदा हो जाती है ।

 Incompatability in hindi में पराग तथा गर्भ शय में एक प्रकार की क्रिया होने से पौधे फल बनाने में असफल रहते हैं ।

( स ) पौधे की भीतरी परिस्थितियों के कारण


पौधे के अन्दर कुछ खास परिस्थितियाँ पैदा हो जाने से बन्ध्यता आ जाती है ।

जो कि निम्नलिखित हैं -


( अ ) पराग नलिका की धीमी वृद्धि ( Slow growth of pollen tube ) 

( ब ) शीघ्र व देर में परागण ( Premature or delayed pollination ) 

( स ) पौधे में खास तत्त्वों की कमी ( Lack of nutrients ) जो अपना प्रभाव निम्न प्रकार दिखाती है।

( क ) पराग में खराबी आ जाने से उसका अधिकांश भाग बेकार हो जाता है ( Effect on pollen viability ) 

( ख ) गर्भाशय खराब हो जाता है । ( Defectiveness of pistil ) 

( ग ) फल विभिन्न दशाओं में पैदा होने से गिर जाते हैं । ( Fruit setting in different positions causes dropping of fruits )

( घ ) अधिक ओजस्वी या अधिक कमजोर फल - बूँटियाँ पैदा होना ( Production of very strong or weak spur ) जिससे फलत मारी जाती है ।

2. बाहरी कारण ( External Causes ) -


इसके अन्दर ऐसे कारण सम्मिलित हैं जो पौधे की केवल बाहरी परिस्थितियों से सम्बन रखते हैं ।

जैसे - पौधों में

( 1 ) खादय पदार्थ की अनिश्चित मात्रा 


कार्बोहाइड्रेट तथा नत्रजन का अनुपात (C : N) बिगड़ जाने से पौधों के ऊपर बुरा असर है ।

जैसे कि कम कार्बोहाइड्रेट तथा कम नत्रजन होने से पौधों में वद्धि तथा फलत का अधिक नत्रजन तथा अधिक कार्बोहाइड्रेट द्वारा वृद्धि अधिक लेकिन फलत नहीं होती ।

ऐसे पौधे जिनमें काबोहाइड्रेट अधिक तथा नत्रजन कम होती है, उनमें फल अधिक आत सद्धि कम होती है ।

यह अनुसन्धान कार्य Kraus and Kraybill वानस्पतिक वृद्धि कम होती है, टमाटर के अन्दर किया था ।

द्धि तथा फलत कम होगी न फलत नहीं होती है लेकिन अधिक आते हैं।

raybill ने ( 1918 ) ऐसा देखा गया है कि फल कलिका बनते समय का काफी मात्रा तथा कार्बोहाइडेट की अपेक्षाकृत पौधों के अन्दर नत्रजन की क्षाकृत अधिक उपस्थित होनी चाहिये ।

यह परिस्थिति जब पौधे में नहीं पाई जाती तो पौधे पर फलत खराब होती है ।

( 2 ) कृन्तन तथा रोपण ( Pruning and Grafting ) -


जब पौधों में अधिक गहन कृन्तन जाती है तो पत्तियों के कम हो जाने से कार्बोहाइड्रेट का उत्पादन रुक जाता है, जो फलत क लिये जरूरी है ।

फूल आने के थोड़े ही दिनों पहले कन्तन करने से विपरीत प्रभाव पड़ता है ।

जब रोगग्रसित मूलवन्त तथा शाख के मिलाप से रोपण किया जाता है, तो पौधे खराब पैदा होते हैं जो फलत कम देते हैं ।

( 3 ) वातावरण ( Locality ) -


बहुत - से फल वाले पौधे एक क्षेत्र में फल देते हैं लेकिन दसरे क्षेत्र में नहीं यह दशा वातावरण की परिस्थितियों के बदल जाने से होती है ।

( 4 ) मौसम ( Season ) -


स्थान तथा वातावरण बदल जाने से पौधों की फलत का मौसम भी बदल जाता है, जिससे पौधा दूसरी जगह उसी मौसम में फल देने में असमर्थ हो जाता है । 

( 5 ) पौधे की उम्र तथा शक्ति ( Age and vinour of plants ) -


तरुण अवस्था पर पौधे अधिक शक्तिशाली होने की वजह से अच्छी फलत देते हैं लेकिन जैसे - जैसे उनकी शक्ति क्षीण होती जाती है वैसे - वैसे उनकी फलत भी कम होती जाती है ।
 

( 6 ) तापक्रम ( Temperature ) -


तापक्रम के कम या अधिक हो जाने से पराग ले जाने वाले कीड़े शिथिल पड़ जाते हैं जिससे परागण एवं गर्भाधान की क्रिया न होने से पौधे में फल पैदा नहीं होते हैं ।

बहुत - से पत्ती गिराने वाले फल वृक्ष (Deciduous truit trees) जैसे - सेब, नाशपाती, चैरी तथा आलू बुखारा के परागकण 10° से. ग्रे. या इससे कुछ अधिक तापक्रम पर ही उग पाते हैं, कम पर नहीं ।

यदि तापक्रम कम रहता है, तो उनका उगना (Germination) रुक जाता है । 

( 7 ) प्रकाश ( Light ) -


जहाँ पर बाग घने होते हैं या जहाँ प्रकाश पौधों को नहीं मिलता है तो बहुत - सी कलियाँ जमीन पर गिर जाती हैं एवं कार्बोहाइड्रेट की कमी के कारण फूल तथा फल कम पैदा होते हैं ।

( 8 ) पानी का अनुपात बिगड़ जाना 


वातावरण में कम नम, ऊँचा तापक्रम, तेज हवायें तथा भूमि में नमी का अभाव होने से फूलों या फलों के जुड़ाव बिन्दु पर Abscission layer बनने से वे गिरने लगते हैं । 

( 9 ) फूलने के समय वर्षा ( Rain at Blossoming Time ) -


पेड़ में बौर आने के समय वर्षा हो जाने से बहत - से फल नीचे गिर जाते हैं और बहुतों के परागकण घुल जाते हैं, जिससे वे फल पैदा करने में असमर्थ हो जाते हैं । 

( 10 ) हवा ( Wind ) -


वैसे हवा परागण में सहायता करती है लेकिन जब यह अधिक । चलती है तो फूलों को जमीन पर गिरा देती है, जिससे पौधों की फसल नष्ट हो जाती है । 

( 11 ) बीमारियाँ तथा कीड़े ( Diseases and Insects - Pests ) -


कीड़ों एवं बीमारियों का प्रकोप फूल या फलों पर अधिक मात्रा में हो जाने से फलत नष्ट हो जाती है ।

आम के पौधों फूलते समय अगर वातावरण में अधिक नमी हो जाती है या वर्षा हो जाती है, तो चंपा की मारा लग जाने से उसके फूल बेकार हो जाते हैं तथा फलत कमजोर पड़ जाती है ।

( 12 ) फूल आने के समय छिड़काव ( Spraying at Flowering Time ) -


फूल आने के समय पौधे के ऊपर छिडकाव करने से पंकेसर नष्ट हो जाते हैं, परागकण बह जाते हैं ।

बहुत - से पराग ले जाने वाले कीडे मर जाते हैं जिससे गर्भाधान की क्रिया न होने से पौधों में फलत नहीं होती है ।

इन्हे भी देखें


बन्ध्यता के क्या उपाय है? Control of Sterility in hindi



बन्ध्यता के निम्नलिखित उपाय हैं -


( 1 ) मूल कृन्तन ( Root Pruning ) -


इस कार्य में पौधे के तने के चारों तरफ फैलाल की दूरी पर 60 सेमी से 75 सेमी गहरी खाई खोद दी जाती है ।

यह क्रिया फूल आने से देत माह पहले की जाती है । खाई को पार करने वाली सभी जड़ें काट दी जाती है ।

कुछ दिनों उपरान्त खाई को खाद तथा मिट्टी के मिश्रण से भरकर हल्की सिंचाई कर दी जाती है ।

पौधों में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ जाने से फ़लत अच्छी होती हैं । 

( 2 ) वलयन ( Ringing ) -


इस कार्य में वृक्षों की शाखाओं के चारों तरफ 1 से 1.5 सेमी चौड़ी वलय ( Ring ) बना देते हैं ।

वलय बनाते समय यह ध्यान रखा जाता है, कि एधा (Cambium) तथा ऊपर की छाल ठीक प्रकार से हट जाये तथा Xylem या लकड़ी को किसी भी प्रकार की क्षति न पहुँचे ।

ऐसा करने से पत्तियों द्वारा तैयार किया गया कार्बोहाइड्रेट वलय के ऊपरी भाग में इकट्ठा होता रहता है । कार्बोहाइड्रेट की पर्याप्त मात्रा बढ़ जाने से फलत अच्छी होती है । 

( 3 ) गोचिंग ( Nouching ) -


इस क्रिया में कली के नीचे या ऊपर अंग्रेजी के 'वी' ( V ) अक्षर की शक्ल बना दी जाती है ।

यह कटान छिलके (Bark) को हटाते हुए बनाया जाता है, जो फूलों को फल - कलिकाओं में परिवर्तित करने में मदद करता है ।

बहुत - से मनुष्यों का कहना है कि नोचिंग की क्रिया अंजीर में कली के ऊपर करने से वानस्पतिक वृद्धि होती है जिस पर फल पैदा होते हैं । 

( 4 ) पराग देने वाले वृक्षों को लगाना ( Planting of Pollinizers ) -


जो वृक्ष दूसर ते म उन्हें 'pollinizers' कहते हैं । इन पौधों को फल देने बीच में लगाना चाहिये, जिससे गर्भाधान की क्रिया के लिये पराग पर्याप्त मात्रा में मिल सके ।

जैसे - सेब की स्वयं बँधित जातियों के बीच पुंकेसर वाले पौधे लगाना इसी तरह पपीते में मा पौधे लगाये जाते हैं । 

( 5 ) पराग ले जाने वाले कीड़ों को पालना ( Up - keep of Pollen Carriers ) -


बाग में पराग ले जाने वाले कीड़े जैसे - मधुमक्खी, भोरे, तितली इत्यादि पालना चाहिये जिससे पराग की क्रिया शीघ्र तथा निश्चित रूप से हो सके । 

( 6 ) समय पर कर्षण क्रियायें करना ( Timely Agricultural Operations ) -


खाद निराई - गुड़ाई इत्यादि क्रियायें उपयुक्त समय पर पर्याप्त मात्रा में करने से पौधों का तथा फलत को बढ़ाया जा सकता है । 

( 7 ) बीमारिया एवं कीड़ों पर नियन्त्रण ( Control on Diseases and Insta Pasts ) -


बहुत - से कार नथा बीमारियाँ फूल तथा फलों को कोष्ट - भ्रष्ट कर देती हैं, उनका मा के लिये पेड़ों क मारक का प्रयोग करना चाहिये ।


( 8 ) वायुवृत्ति को रोपना ( Planting of Wind - break ) -


गर्म व तेज हवाओं, आँधियों तथा पाले से फूल, फल तथा पेड़ों की रक्षा हेतु बाग के चारों तरफ वायुवृत्ति वाले पौधे लगाने चाहिये ।

( 9 ) बाग का घनापन दूर करना ( Avoidance of Over - crowding ) -


कृन्तन की सहायता से जो पौधे अधिक घने हों काटकर खुले हुए बना देने चाहिये जिससे पौधे प्रकाश एवं वायु पर्याप्त मात्रा में मिलने से फलत अच्छी पैदा कर सकें ।

( 10 ) हारमोन या रासायनिक तत्त्वों को छिड़कना 

हारमोन के प्रयोग से भी फलत को बढ़ाया जा सकता है । 50 c.c. नेफ्थलीन एसिटिक एसिड ( 50 c.c. N.A.A. ); 0.25 से 0-5 मिग्रा प्रति लीटर का घोल अनन्नास दे ।

ऊपर छिड़कने से पौधों में अधिक मात्रा में फूल पैदा हुए । 2 , 4 - डाइक्लोरोफिनोक्सी एसिटिक एसिड (2, 4 - D) के प्रयोग से फूल पर्याप्त मात्रा में पैदा होते हैं लेकिन फलों का आकार कुछ कम हो जाता है ।

पश्चिमी देशों में सेब, नाशपाती तथा अंजीर में रासायनिक पदार्थों के प्रयोग से फलों के लगने तथा बीजरहित बनाने में सफलता प्राप्त हुई है ।