कृत्रिम गर्भाधान क्या है अर्थ, परिभाषा एवं इसके उद्देश्य, लाभ व हानि लिखिए

विश्व में सर्वप्रथम कृत्रिम गर्भाधान (artificial insemination in hindi) सन् 1932 में शुरू किया गया था ।

परन्तु भारत में कृत्रिम गर्भाधान सन् 1939 में डाॅ० समपत कुमारन ने पैलेस डेरी फार्म, मैसूर में शुरू किया गया ।

आज सम्पूर्ण विश्व भर और भारत वर्ष में पालतू पशुओं जैसे - गाय, भैंस आदि में कृत्रिम गर्भाधान विधि अपनायी जा रही है ।

अनेक विकसित देशों में कृत्रिम गर्भाधान विधि ने प्राकृतिक विधि का प्रचलन बिल्कुल समाप्त कर दिया है ।


कृत्रिम गर्भाधान क्या है? | artificial insemination in hindi

प्रजनन की वह विधि जिसमें सन्तानोत्पत्ति के लिए नर पशु का वीर्य मादा पशु के जनन अंगों में पहुंचाया जाता है इस प्रक्रिया को कृत्रिम गर्भाधान  (artificial insemination in hindi) कहा जाता है ।

अत: कृत्रिम गर्भाधान के लिए नर एवं मादा दोनों पशुओं का लैंगिक रूप से पूर्ण परिपक्व होना अति आवश्यक है ।


कृत्रिम गर्भाधान का क्या अर्थ है?  | artificial insemination meaning in hindi

कृत्रिम गर्भाधान का अर्थ - प्राकृतिक विधि से विपरीत कृत्रिम गर्भाधान या वीर्य सेचन में, नर पशु का वीर्य एकत्रित करके मनुष्य द्वारा के मादा पशु जननांग के गर्भाशय में पहुँचाया जाता है ।  

कृत्रिम गर्भाधान विधि पालतू पशुओं जैसे — गाय, भैंस, भेड़, बकरी तथा घोड़ी आदि के लिये विकसित की गई ।


कृत्रिम गर्भाधान की परिभाषा लिखिए? | defination of artificial insemination in hindi


कृत्रिम प्रजनन या कृत्रिम वीर्य सेचन (artificial insemination in hindi) की परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है -

"कृत्रिम विधि द्वारा स्वस्थ सांड का वीर्य एकत्र करके, मादा जननांग के ग्रीवा या गर्भाशय में यन्त्रों की सहायता से उचित समय पर, स्वच्छता पूर्वक स्थापित करना, कृत्रिम गर्भाधान या वीर्य सेचन कहलाता है ।

"Artificial insemination is the deposition of semsn, collected artificially from a healthy bull, into the cervix or uterus of the female reproductive tract, by mechanical means rather that natural service at the proper time and under most hygienic conditions."


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कृत्रिम गर्भाधान किसे कहते है? | artificial insemination in hindi

कृत्रिम ढंग से एक अच्छी नस्ल के स्वस्थ सांड का वीर्य एकत्रित करके मानुष्य द्वारा मादा पशु के गर्भाशय में स्थापित करना इस प्रक्रिया को कृत्रिम गर्भाधान (artificial insemination in hindi) कहते है ।

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कृत्रिम गर्भाधान (artificial insemination in hindi) क्या है अर्थ, परिभाषा एवं इसके उद्देश्य, लाभ व हानि लिखिए

कृत्रिम गर्भाधान हेतु एक स्टा में 0.5 मी० ली० वीर्य भरते है और कृत्रिम गर्भाधान करते समय वीर्य को ग्रीवा के मध्य भाग में छोड़ा जाता है ।

कृत्रिम गर्भाधान (artificial insemination in hindi) विधि द्वारा एक सांड के एक वर्ष में लगभग 10,000 गाय गर्भित की जा सकती है ।

कृत्रिम गर्भाधान का क्या उद्देश्य है? | object of artificial insemination in hindi


कृत्रिम गर्भाधान के उद्देश्य है -

भारतवर्ष में लगभग 75 से 80 प्रतिशत गौवंशीय पशुओं देशी या अशुद्ध किस्म के हैं तथा इनमें भी अधिकांश भारवाही प्रकार के हैं । इस प्रकार की गाय, बहुत ही कम मात्रा में, लगभग 176 लीटर दूध प्रति ब्यांत देती हैं साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में कृषकों द्वारा रखी जाने वाली भैंस 400 से 500 किलो दूध प्रति वर्ष देती है, जबकि संगठित पशु समूहों में प्रति भैंस लगाभग 1500 से 2000 किलो दूध प्रति ब्यांत उत्पन्न करती है ।

इस प्रकार इन पशुओं की उत्पादन क्षमता बढ़ने की अच्छी सम्भावना है जिसे प्रजनन की उन्नतिशील विधियों के प्रयोग द्वारा पूरा किया जा सकता है । सीमित साधनों तथा अन्य कारणों से प्राकृतिक प्रजनन नहीं अपनाया जा सकता ।

अत: इन निम्न कोटि के पशुओं में सुधार का उपाय केवल कृत्रिम गार्भाधान (artificial insemination in hindi) विधि ही है ।

इस प्रकार कृत्रिम गर्भाधान विधि का मुख्य उद्देश्य शीघ्रता से पशु सुधार करना है जिससे इन पशुओं का दुग्धोत्पादन बढ़ सके तथा कृषि कार्यों हेतु उत्तम बैल प्राप्त हो सके ।


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कृत्रिम गर्भाधान के क्या लाभ है? | advantages of artificial insemination in hindi

पशुपालन व्यवसाय में कृत्रिम गर्भाधान एक क्रान्तिकारी अनुसंधान है । जिसके प्रयोग से बहुत ही शीघ्र पशुओं का सुधार किया जा सकता है ।


कृत्रिम गर्भाधान के प्रमुख लाभ निम्नलिखित है -

  • इस विधि द्वारा उत्तम सांड की उपयोगिता बढ़ जाती है । क्योंकि उत्तम अनुवंशिकता वाले सांड का प्रयोग, पहले जहाँ कुछ ही पशुपालक कर पाते थे, इस विधि द्वारा एक क्षेत्र से सभी पशुपालक कर लेते हैं अत : सांड में उपस्थित उत्तम गुणों का लाभ सीमित रहने के स्थान पर विस्तृत हो जाता है ।
  • उत्तम सांडों की कमी की समस्या का समाधान हो जाता है । क्योंकि प्राकृतिक विधि से एक सांड एक वर्ष में लगभग 50 से 60 गायों को ही गर्भित कर सकता है जबकि कृत्रिम विधि से उसी सांड द्वारा एक वर्ष में 10,000 गायों को गर्भित कराया जा सकता है । इसका तात्पर्य यह हुआ कि प्राकृतिक विधि द्वारा उन सांड को इस कार्य में 200 वर्ष का समय लगेगा । इस प्रकार कम सांडों, द्वारा ही इच्छित परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं ।
  • प्रत्येक पशुपालक द्वारा अपने पशु समूह हेतु सांड रखना आवश्यक नहीं रहता है । इस प्रकार सांड के पोषण तथा प्रबन्ध में होने वाला व्यय बच जाता है ।
  • प्राकृतिक विधि में पशुपालक अन्त प्रजनन के घातक परिणाम से बचने के लिये प्रति दो वर्ष बाद अपने सांड बदलते रहते हैं । कृत्रिम विधि अपनाने पर यह समस्या नहीं रहती ।
  • इस विधि द्वारा दूरस्थ सांडों के वीर्य को, वायुयान द्वारा शीघ्रता मंगाकर संकरण हेतु प्रयोग किया जा सकता है । अर्थात् संसार में किसी भी स्थान पर उपलब्ध उत्तम सांड का उपयोग शीघ्रता पूर्वक किया जा सकता है ।
  • यदि कृत्रिम विधि को पूर्ण स्वच्छता तथा प्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा क्रियान्वित किया जाता है तो नर तथा मादाओं में जननेन्द्रिय रोग फैलने की सम्भावना नहीं रहती है ।
  • प्राय: भारी तथा बड़े सांडों द्वारा छोी गाय गर्भित करने में कठिनाई आती हैं, परन्तु इस विधि द्वारा इस प्रकार की समस्या नहीं रहती है ।
  • इस विधि द्वारा गायों की गर्भित रहने की दर (conception rate) बढ़ जाती है । क्योंकि प्राकृतिक विधि द्वारा कभी - कभी कई बार गर्भाधान कराने की आवश्यकता पड़ जाती है ।
  • यह विधि पशुओं के प्रजनन अभिलेख रखने में सहायक होती है । जिससे उनके वरण तथा प्रजनन में महत्वपूर्ण सहायता मिलती है ।
  • उत्तम सांड जो चोट लग जाने, लकवा मार जाने अथवा किसी अन्य कारण से गाय पर नहीं चढ़ सकते, इस विधि द्वारा प्रजनन हेतु प्रयुक्त किये जा सकते हैं ।
  • इस विधि द्वारा विभिन्न जातियों के नर तथा मादा का सहवास कराया जा सकता है । इस प्रकार नई - नई जातियाँ उत्पन्न की जा सकती हैं ।
  • एक निर्धन पशुपालक जो अच्छा सांड नहीं खरीद सकता, इस विधि द्वारा इच्छित परिणाम प्राप्त कर सकता है ।
  • कभी - कभी हष्ट - पुष्ट सांड के वीर्य में दोष होने के कारण, या मादा में बांझपन आदि होने के कारण, मादा गर्भित नहीं रह पाती, इसके लिये उत्तरदायी नर या मादा का पता लगाया जा सकता है ।
  • सांडों की प्रजनन क्षमता का पता लगाया जा सकता है कि वह सन्तति में कितने प्रतिशत गुण भेजता है ।
  • उन मादाओं को भी जो लूली, लंगड़ी होने के कारण प्राकृतिक विधि द्वारा गर्भधारण नहीं कर पाती है । इस विधि द्वारा गर्भित किया जा सकता है ।
  • कृत्रिम गर्भाधान (artificial insemination in hindi) द्वारा उत्पन्न सन्तति का उत्पादन बढ़ता है तथा लागत व्यय कम आता है । अतः पशुपालक को आर्थिक लाभ प्राप्त होता है ।


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कृत्रिम गर्भाधान की हानियां या दोष लिखिए? | demerits of artificial insemination in hindi


कृत्रिम गर्भाधान की प्रमुख हानियां निम्नलिखित है -

  • इस विधि में प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है जो उचित मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पाते हैं ।
  • इसमें प्रयुक्त होने वाला सामान मूल्यवान होता है ।
  • कार्यकर्ता को पशु जननांगों की रचना तथा कार्य विधि का भली - भाँति ज्ञान होना आवश्यक होता है । यदि यंत्रों को साफ रखने की समुचित व्यवस्था नहीं है, तो नर एवं मादा दोनों को ही जननेन्द्रिय रोग लगने का भय रहता है । अत: थोड़ी सी लापरवाही के कारण बहुत बड़ी हानि हो सकती है ।
  • कृत्रिम गर्भाधान की उत्तम सेवाओं के लिये यातायात के उचित साधन उपलब्ध होने आवश्यक हैं ।
  • मादा के मदकाल की परीक्षा बहुत कठिन है इसके लिये अधिक ज्ञान, परिश्रम तथा समय की आवश्यकता होती है ओर यदि मदकाल की सही परीक्षा नहीं हो पाती है तो अच्छित परिणाम प्राप्त नहीं हो पाते हैं ।
  • कभी - कभी पशु कठिनता से वश में आता है ।
  • कृत्रिम गर्भाधान (artificial insemination in hindi) की सफलता मादा पशुओं की अधिक संख्या पर निर्भर करती है ।