गाय एवं भैंस के अयन (थनों) की आंतरिक संरचना का वर्णन कीजिए

दुधारू पशुओं में अयन (udder in hindi) एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंग माना जाता है क्योंकि इस पर पशु की दूध देने की क्षमता निर्भर करती है ।

इसीलिये पशुपालक को अयन को बनावट और उसकी कार्य प्रणाली (structure of udder in hindi) का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है ।


गाय एवं भैंस के अयन (थनों) की आंतरिक संरचना का वर्णन कीजिए? | structure of udder in hindi

अयन बाहर से देखने में एक थैले के समान दिखाई देता है । यह दांये और बांवे दो भागों में एक स्नायु के द्वारा बंटा होता है । प्रत्येक भाग में एक दूध उत्पन्न करने वाली ग्रन्थि होती है, जिसे दायीं और बायीं ग्रन्थि (पाली) कहते है ।

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गाय एवं भैंस के अयन (थनों) की आंतरिक संरचना का वर्णन कीजिए | structure of udder in hindi

प्रत्येक ग्रन्थि अथवा पाली दो भागों अग्रपाली और पश्चपाली में विभाजित होती है जिनके बीच में कोई झिल्ली नहीं होती अर्थात् एक पाली के दोनों भाग एक - दूसरे से सम्बन्धित होते हैं, परन्तु दूसरी तरफ की पाली से उनका कोई सम्बंध नहीं होता है ।

इस प्रकार अबन के चारों भाग स्वतन्त्र रूप से कार्य करते हैं तथा प्रत्येक एक - एक थन (udder in hindi) से जुड़ा होता है अर्थात् प्रत्येक पाली में दो - दो थन होते हैं और कुल मिलाकर दोनों पालियों में चार थन होते हैं जिनसे दूध दुहा (milking in hindi) जाता है ।


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थन (कूपिका) की आन्तरिक संरचना | structure of the udder in hindi


अयन के ऊपरी भाग में दुग्ध स्तन - ग्रन्थियाँ होती हैं जिनसे दूध स्त्रावित होता है । इन स्तन - ग्रन्थियों में कूपिका नामक गोलाकार आकृतियाँ होती है, जो वास्तव में दुग्ध स्त्रावी ग्रन्थियों का एक झुण्ड होता है, ये कूपिकायें संकुचनशील होती हैं जिनके बीच में कुछ खाली स्थान होता है जिसे अवकाशिका या ल्यूमन कहते हैं लघु वाहनियों के द्वारा इन अवकाशिकाओं का विकास बाहर की ओर होता है ।

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थन (कूपिका) की आन्तरिक संरचना | structure of the udder in hindi

स्तन ग्रन्थियों द्वारा दूध का स्त्राव एक जटिल प्रक्रिया हैं अयन में रक्त बहुत अधिक मात्रा में बहता है हृदय से शुद्ध रक्त धमनियों द्वारा अयन में पहुचँता है और शिराओं द्वारा अशुद्ध रक्त पुनः हृदय में पहुँच जाता है ।

प्रत्येक कुपिका में दो प्रकार की रूधिर वाहिकायें पहुचती हैं और ये आकृतियाँ ही दूध उत्पन्न करती हैं । दूध उत्पन्न होकर कृपिकाओं के रिक्त स्थान अवकाशिका में एकत्रित हो जाता है ।

यहाँ ये दूध लघुवहिनियों द्वारा बड़ी वाहिनयों और उनसे दुग्ध कुण्डिका में पहुंचता है जहाँ ये दूध थनों की मदद से दुह लिया जाता है ।


गाय के थनों में अवरोधिनी नामक मांसपेशी होती है जिससे गाय अपनी इच्छानुसार दूध का स्त्राव रोक सकती है । इस क्रिया को दूध चढ़ाना कहते हैं ।

कुछ वैज्ञानिक पहले यह मानते थे कि अयन में दूध उसी समय बनता है जब गाय पावसती है, परन्तु आज के वैज्ञानिक इस धारणा को गलत मानते है और उनकी विचारधारा से अयन में दूध का उत्पादन हर समय लगातार चौबीस घण्टे होता रहता है ।