वन किसे कहते है - अर्थ, परिभाषा एवं भारत में वनों का वितरण व विस्तार

ऐसा क्षेत्र जहाँ प्राकृतिक रूप से उगे वृक्षों एवं वनस्पति का घनत्व अत्यधिक रहता है, उस क्षेत्र विशेष को वन (Forest in hindi) कहते है ।

साधारणत: जिस स्थान पर प्राकृतिक वनस्पति की अधिकता होती है, उस स्थान विशेष को "वन (Forest in hindi)" एवं सरल भाषा में 'जंगल' कहा जाता है ।

वन किसे कहते है? Forest in hindi


स्पष्ट है, कि वन (Forest in hindi) वृक्षों की सघनता के विस्तृत क्षेत्र है ।

पृथ्वी पर मौजूद सम्पूर्ण वनस्पति को दो भागों में बाँट कर देखा जा सकता है -


1. प्राकृतिक वनस्पति 
2. मानव रोपित वनस्पति ।

मनुष्यों के प्रयास एवं श्रम के बगैर प्राकृतिक रूप से अर्थात् स्वयमेव उग आने वाले पेड़ - पौधों, घास और झाड़ियों आदि को 'प्राकृतिक वनस्पति' कहा जाता है, जबकि 'मानव रोपित वनस्पति' मानवीय प्रयास का सुफल है ।

साधारणत: "जिस स्थान पर प्राकृतिक वनस्पति की अधिकता होती है, उस स्थान विशेष को 'वन (Forest in hindi)' कहते है ।"

किन्तु गत शताब्दियों में मानवीय गतिविधियों से प्राकृतिक वनों की इतनी अधिक हानि हुई है, कि आज वनों को रोपने की महति आवश्यकता हो गई है ।


वन (forest in hindi) किसे कहते है, अर्थ एवं परिभाषा, भारत में वनों का वितरण व विस्तार
वन किसे कहते है (Forest in hindi)


वन शब्द का अर्थ? Forest meaning in hindi


हिन्दी का वन शब्द (फॉरेस्ट मीनिंग इन हिंदी) अंग्रेजी के 'फोरेस्ट' (Forest) शब्द का रूपान्तरण है ।

अंग्रेजी का यह शब्द लेटिन भाषा के 'फोरिस' शब्द से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, 'आउट साइड'

वन के इस अर्थ (forest meaning in hindi) में वे क्षेत्र है, जो मानवीय क्रियाकलापों से परे / दूरस्थ है अर्थात् जहाँ न तो कृषि (एग्रीकल्चर) की जाती है और न वहाँ आबादी को ही बसावट है ।

वन की परिभाषा? Defination of forest in hindi


वन की परिभाषाएँ (Definitions of Forest in hindi) विभिन्न विद्वानों ने वन को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है -


( 1 ) लिजा ट्राम्बोयर (Lisa Trumbauer) के कथनानुसार,


“वृक्षों से आच्छादित भूमि का एक विस्तृत क्षेत्र एक वन (Forest in hindi) है ।"

"A Forest is an area of land covered with trees." What Are Forests?, p 5

( 2 ) फ्रांन होवर्ड (Fran Howard) के कालानुसार,


वन एक प्रकार का पर्यावास है, प्रर्यावास वे क्षेत्र हैं जहाँ पौधों एव जन्तुओ को भोजन, जल एवं निवास का स्थान उपलब्ध होता है । विभिन्न पौधे एवं जन्तु विभिन्न प्रकार के पर्यावास में वास करते हैं । संसार के अधिकांश पौधे एवं जन्तु वनों में वास करते है ।"

"A Forest is one kind of habitat. Habitats are the places where plants and animals find food, water, and places to live. Different plants and animals live in different habitats. Most of the world's plants and animals live in forests. They need sunlight and water to grow." Forests, p 5

( 3 ) विकीपीडिया - द फ्री इनसाइक्लोपीडिया (Wikipedia - The Free Encyclopedia) के अनुसार,


“एक वन (Forest in hindi), जिसे जंगल भी कहा जाता है, वृक्षों की सघनता का क्षेत्र है ।"

"A Forest, also referred as a wood or the woods, is an area with a high density of trees."


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वनों से आप क्या समझते हैं?


परिभाषाओं एवं वन उत्पत्ति की विवेचना से स्पष्ट है, कि वन (Forest in hindi) वृक्षों की सघनता के विस्तृत क्षेत्र है ।

ऐसे क्षेत्रों अर्थात् वनों ने वर्तमान में सम्पूर्ण पृथ्वी के लगभग 9.4 प्रतिशत भाग को घेर रखा है और कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 30 प्रतिशत भाग वनों से आच्छादित है ।

कुछ शताब्दियों पूर्व तक पृथ्वी के 50 प्रतिशत भाग में वन (Forest in hindi) फैले हुए थे ।

वन्य जीव जन्तुओं के लिए आवास स्थल उपलब्ध कराते हैं, पृथ्वी पर वायु चक्र को सन्तुलित रखते हैं और मृदा संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं ।

इसी आधार पर वन (Forest in hindi) पृथ्वी के सम्पूर्ण जैवमण्डल का अनिवार्य भाग हैं ।

वन : भूमि का महान शृंगार (Forest : Great Make - up of the Earth)


संसार की रचना में पहले पानी और फिर धीरे - धीरे भूमि की उत्पत्ति हुई ।

भूमि के उत्पन्न हो जाने के बाद उस पर अनुकूल वातावरण पाकर पेड़ - पौधे उगने प्रारम्भ हो गये ।

पेड़ - पौधों ‌की इस सघन संरचना में अनेक प्रकार के जीव - जन्तु उत्पन्न हुए और इस भाँति भूमि पर जीवन का सम्पूर्ण कलरव विद्यमान हो गया ।

पृथ्वी सम्पूर्ण ब्रह्माण में अद्भुद रूपाकार है ।

इसके धरातल पर जल की उपस्थिति के कारण अंतरिक्ष से देखने पर यह नीलाभ दिखाई देती है और इसी आधार पर इसे 'नीला ग्रह (Blue Planet)' कहा जाता है ।

जल एवं जीवन की अन्य परिस्थितियों के सौभाग्य से सम्पूर्ण ज्ञात ब्रह्मांडीय वस्तुओं में केवल पृथ्वी ही है जिस पर जीवन का स्पंदन उपस्थित है ।

पृथ्वी पर जीवन के दो स्वरूप हैं -


1. स्थावर
2. जंगम ।

स्थावन अर्थात् एक स्थान पर टिके हुए ‘पेड़ - पौधे' जो वनस्पति जगत का निर्माण करते हैं एवं यहाँ - वहाँ विचरण करते 'जीव - जन्तु' जो जन्तु जगत का कलरव हैं ।

यद्यपि जल, वायु एवं भूमि सभी के जीवन का आधार हैं किन्तु खाद्य श्रृंख्ला की दृष्टि से जन्तु जगत - वनस्पति जगत पर निर्भर है ।

वनों की उत्पति (Origin of forest in hindi)


वैज्ञानिकों के अनुमान के अनुसार वनों की उत्पति (Origin of forest in hindi) पृथ्वी की उत्पत्ति लगभग 4500 मिलियन वर्ष पूर्व हुई थी जबकि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति लगभग 4000 मिलियन वर्ष पूर्व हुई ।

पृथ्वी पर जीवन का प्रारम्भ एक - कोशीय जीवों के रूप में हुआ धीरे - धीरे जीव - धारियों का आकार बढ़ता गया और इसी क्रम में लगभग 350 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी पर वृक्षों एवं वनों की उत्पत्ति हुई ।

पृथ्वी पर मानव का आगमन वृक्षों एवं वनों की तुलना में बहुत बाद में हुआ, मानव की उत्पत्ति लगभग 500,000 वर्ष पूर्व ही हो सकी ।

इस भाँति वन मानव की उत्पत्ति से बहुत पहले से ही पृथ्वी पर लहराने लगे थे ।

यहाँ तक कि वन पृथ्वी पर विचरण करने वाले भीमकाय प्राणी डायनासोर से भी पहले विराजमान थे और डायनासोर के लगभग 160 मिलियन वर्ष पूर्व लुप्त हो जाने के बाद भी बाखूबी बने हुए हैं ।

यद्यपि समय के साथ वनों में अनेक परिवर्तन हुए हैं तथापि वन (Forest in hindi) सदैव मानव सहित समस्त जन्तु जगत के जीवन का आधार रहे हैं ।

भारत में वनों की विशेषताएं


वनों की निम्न प्रमुख विशेषताएँ है -


( 1 ) सघन वनस्पति क्षेत्र - वन सघन वनस्पति का क्षेत्र है । वस्तुत: मात्र वृक्षों का झुरमुट वन नहीं है वरन वृक्षों, लताओं, झाड़ियों एवं अन्य वनस्पति से आच्छादित क्षेत्र को ही वन (Forest in hindi) कहा जाता है ।

वनस्पति भूमि पर मौजूद स्थावर जीवधारी हैं अर्थात् एक ही स्थान पर टिकी रहती है ।

( 2 ) स्वपोशी - वन सामान्यत: स्वपोशी हैं अर्थात् ये अपने भोजन का निर्माण स्वयं करते हैं ।

इसके लिए वन वृक्षों की पत्तियों में मौजूद पर्णहरित (Chlorophyl) की उपस्थित में सूर्य की धूप के प्रयोग से वायु में मौजूद कार्बन डाईआक्साईड से कार्बन के घटक रूप में भोजन का निर्माण करते हैं तथा इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं, जो कि जन्तुओं के लिए प्राणवायु का कार्य करती है ।

( 3 ) जन्तुओं के प्राकृतिक आवास - वन अनेक जीव - जन्तुओ के प्राकृतिक आवास है ।

वनों में परिंदे, रेंगने वाले, दूध देने वाले, रीड़धारी एवं बिना रोड़धारी, शाकाहारी एवं मांसाहारी आदि अनेक प्रकार एवं श्रेणियों के जीव - जन्तु शरण लेते हैं ।

इन जन्तुओं में केंचुए, साँप - बिच्छू से लेकर, मोर, कबूतर, तीतर, बया, हिरन, हाथी, शेर, भालू, बंदर आदि विभिन्न जीवधारी प्रमुखता से मौजूद रहते हैं ।

( 4 ) आहार श्रृंखला के आधार - वन आहार श्रृंखला के आधार है अर्थात् वन्य उपज यथा - फल - फूल, कोंपल आदि ऐसी शाक - भाजी प्रदान करते हैं जिन्हें खाकर शाकाहारी जीव जन्तु जैसे - हिरन, खरगोश आदि फलते - फूलते हैं ।

तदुपरांत शाकाहारियों के मांस भक्षण पर मांसाहारी जीव - जन्तु जैसे - शेर, सियार, भालू आदि अपने जीवन का निर्वाह करते हैं ।

( 5 ) जीवन एवं पर्यावरण पोषक - वृक्ष न केवन अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ जीवधारियों को देते हैं वरन पर्यावरण के प्रमुख पोषक हैं ।

वृक्ष वायु में मौजूद कार्बन डाईऑक्साइड एवं अन्य हानिकारक गैसों एवं धूल - मिट्टी का शोधन कर प्राणवायु ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं ।

ऑक्सीजन की पर्याप्त उपलब्धता न होने पर कोई भी जन्तु अधिक देर तक जीवित नहीं रह सकता ।

साथ ही वन भू - क्षरण जैसी समस्याओं का भी हल करते हैं और वर्षा के लिए उपयुक्त वातावरण का निर्माण करते हैं ।

( 6 ) अनेक मानवीय आवश्यकताओं के पूरक - वन ईंधन, चारा, काष्ठ आदि अनेक मानवीय आवश्यकताओं के प्राथमिक पूरक हैं ।

इसके अतिरिक्त औषधियों, शहद, फल - फूल आदि की पूर्ति भी वनों से सतत होती रहती है ।

वनों के अभाव में इन सभी वस्तुओं का लगभग अकाल पड़ने की आशंका है ।

( 7 ) विभिन्नता एवं पर्यावरण अनुकूलता - वन सम्पूर्ण पृथ्वी पर भिन्न - भिन्न जलवायु एवं भू - प्रकार के अनुसार अनुकूलन की क्षमता रखते हैं ।

परिवर्तित भौगोलिक परिस्थितियों में वनों का प्रकार (types of forest in hindi) भी बदल जाते हैं ।

इस भाँति जैसे वन (forest in hindi) हिमालय पर पाये जाते हैं वैसे वन रेगिस्तानी अथवा मैदानी क्षेत्रों में नहीं पाये जाते ।

( 8 ) प्राकृतिक एवं कृत्रिम विकास - यद्यपि पृथ्वी पर वनों का विकास प्राकृतिक रूप में हुआ है किन्तु आधुनिक युग में वनों की कमी के कारण वन रोपण में कृत्रिम एवं मानवीय साधनों का उपयोग भी किया जाने लगा है ।

इस भाँति वर्तमान में वन प्राकृतिक एवं कृत्रिम दोनों ही रूप में विकसित हो रहे हैं ।


भारत में वनों का वितरण एवं विस्तार


भारत में वनों का वितरण एवं विस्तार
भारत में वनों का वितरण एवं विस्तार


भारत में वनों का विस्तार


भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्र लगभग 32,80,500 वर्ग कि ० मी ० है, जिसमें लगभग 7,50,300 वर्ग कि ० मी ० अर्थात् लगभग 22.7 प्रतिशत भाग पर ही वनों का विस्तार है ।

यह मान सम्पूर्ण पृथ्वी पर विद्यमान वनों के मान से कम है अर्थात् भारतीय वनों की दृष्टि से वैश्विक पटल पर पिछड़ा हुआ है ।

हमारे देश में प्रति व्यक्ति वन - क्षेत्र की उपलब्धि केवल 0.2 हेक्टेयर है ।

भारत में वनों का वितरण


भारत में वनों का वितरण की मात्रा ही अल्प नहीं है अपितु उसका वितरण भी अत्यन्त असमान है ।

देश के कुल वन - क्षेत्र का 80 प्रतिशत भाग हिमालय के क्षेत्र में स्थित है और 20 प्रतिशत भाग इधर - उधर बिखरा हुआ है ।

विभिन्न राज्यों में वनों का अनुपात अत्यधिक विषम है । एक ओर कर्नाटक, त्रिपुरा, अण्डमान व मध्य प्रदेश जैसे क्षेत्र हैं जहाँ यथेष्ट वन हैं तो दूसरी ओर पंजाब में केवल 23 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 13 प्रतिशत तथा राजस्थान में 9.7 प्रतिशत क्षेत्र हैं ।

देश के कुल वन क्षेत्रफल का केवल 55 3 प्रतिशत भाग ही व्यापारिक महत्त्व का है, शेष भारत में वनों की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती ।

भारत में वनों का विवरण से स्पष्ट है, कि प्राचीन कालीन वन्य चेतना, समृद्ध भौगोलिक परिवेश के बावजूद वर्तमान भारत में वनों की स्थिति अत्यन्त दयनीय है ।

इसे दुरूस्त करने के लिए प्रत्येक आम एवं खास भारतीय को सतत एवं सघन प्रयास करने होंगे ।

विभिन्न आधारों पर भारत में वन वितरण ( Indian Forest Distribution on Different Basis )


भारत एक विशाल एवं विविधतापूर्ण देश है ।

भारत में वनों की स्थिति को जानने के लिए विभिन्न आधारों पर वन वितरण का अवलोकन किया जाना आवश्यक है ।

अभिलिखित वन क्षेत्र ( Recorded Forest area )


इस प्रकार के वन क्षेत्र के अंतर्गत सरकारी रिकार्डो में वन के रूप में अभिलिखित समस्त भौगोलिक क्षेत्र शामिल होता है, चाहे उसमें वनावरण या वृक्षावरण हो या न हो ।

इसके अंतर्गत मुख्यत: भारतीय वन अधिनियम, 1927 के अंतर्गत संस्थापित आरक्षित वन क्षेत्र तथा संरक्षित वन क्षेत्र आते हैं ।

साथ ही इसमें राज्यों के अधिनियमों द्वारा संस्थापित तथा राज्य रिकार्डों में वन के रूप में अभिलिखित क्षेत्र भी शामिल होते हैं, जिन्हें अवर्गीकृत वन कहा जाता है ।

वनावरण ( Forest Cover )


भारत वन स्थिति रिर्पोट में प्रयुक्त वनावरण क्षेत्र के अंतर्गत एक हैक्टेअर से अधिक क्षेत्रफल वाले ऐसे समस्त भौगोलिग क्षेत्रों (अभिखित वन के भीतर और बाहर सभी क्षेत्रों) को शामिल किया जाता है, जहाँ वृक्ष छत्र घनाभ 10 प्रतिशत से अधिक हो सकते है, इसके अंतर्गत मैंग्रोव वन भी शामिल होते हैं । 

इसे तीन भागों में बाँटा जाता है -


( अ ) अति सघन वन ( Very desnse Forest ) - वृक्षों का घनत्व 70 प्रतिशत से अधिक ।

( ब ) मध्यम सघन वन ( Mederately dese Forest ) - वृक्षों का घनत्व 40-70 प्रतिशत के बीच ।

( स ) खुले वन ( Open Forest ) - वृक्षों का घनत्व 10-40 प्रतिशत के बीच ।

झाड़ी ( Scrub )


इसके अंतर्गत 10 प्रतिशत से कम वृक्षों के घनत्व वाली निम्न स्तरीय वन भूमि को शामिल किया जाता है ।

भारत वन स्थिति रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 1.28 प्रतिशत झाड़ी है अर्थात् झाड़ी का कुल क्षेत्रफल 42,177 वर्ग किमी ० है ।

वृक्षावरण ( Tree cover )


इसके अंतर्गत अभिलिखित वन क्षेत्र के बाहर के तथा 1 हैक्टेअर क्षेत्रफल से कम क्षेत्रफल वाले वृक्षाच्छादित क्षेत्रों (वनावरण क्षेत्र के अतिरिक्त) को शामिल किया जाता है ।

टीओएफ ( Tree outside Forest )


इसके अंतर्गत अभिलिखित वन क्षेत्र से बाहर के सभी वृक्षीय क्षेत्रों को शामिल किया जाता है । 

1.0 हैक्टेअर से अधिक क्षेत्रफल वाले टोओएफ को सैटेलाइट आंकड़ों के आधार पर वनावरण में शामिल कर लिया जाता है, जबकि 1.0 हैक्टेअर से कम क्षेत्रफल वाले टोओएफ को वृक्षावरण में शामिल किया जाता है ।

मैंग्रोव वन या ज्वारीय वन ( Mangrove forests or Tidal forests )


इस प्रकार के वन उन भागों में पाए जाते हैं जहाँ समुद्र तट पर ज्वार - भाटा के कारण खारा जल फैल जाता है ।

यहाँ की मिट्टी भी दलदली होती है । यहाँ मुख्यतः ऐसी वनस्पति पैदा होती है, जिसकी जड़ें सदैव नमकीन जल में डूबी रहती है ।

इसकी शाखाएँ निकलकर चारों ओर फैल जाती हैं ।इस प्रकार के वन को जैव विविधता का संरक्षक माना जाता है ।

( 1 ) भारत वन स्थिति रिपोर्ट, 2011 के अनुसार 2009 में भारत में मैंग्रोव वन का वनावरण विश्व की सम्पूर्ण मैंग्रोव वनस्पति का 3 प्रतिशत है जो देश के 12 तटीय राज्यों एवं संघ शासित क्षेत्रों के 466.56 वर्ग किमी ० क्षेत्रफल में फैला है ।

( 2 ) पश्चिम बंगाल के सुन्दरवन क्षेत्र में भारत के कुल मैंग्रोव आवरण का 46.22 प्रतिशत स्थित है ।

( 3 ) सर्वाधिक मैंग्रोव आच्छादित चार राज्य हैं- 

( i ) पश्चिम बंगाल 46.22 %,
( ii ) गुजरात 22.88,
( iii ) अण्डमान व निकोबार 13.23 %,
( iv ) आन्ध्र प्रदेश 7.55 % ।

( 4 ) भारत में सर्वाधिक मैंग्रोव आच्छादित चार जिले (घटते क्रम में)

( i ) दक्षिण चौबीस परगना ( पश्चिम बंगाल ),
( ii ) कच्छ ( गुजरात ),
( iii ) अण्डमान,
( iv ) पूर्वी गोदावरी ( आन्ध्र प्रदेश ) ।


पहाड़ी जिलों में वनावरण ( Forest Cover in Hilly States )


पहाड़ी जिलों में वनावरण का वितरण निम्न प्रकार है -


( 1 ) 1988 की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार देश के कुछ भौगोलिक क्षेत्रफल के एक तिहाई भाग पर वन होने चाहिए ।
इसी वन नीति के अनुसार पहाड़ी क्षेत्रों में अपरदन और भूमि अवनयन को रोकने हेतु दो - तिहाई क्षेत्र पर वनावरण होना चाहिए, ताकि पारिस्थितिकी सन्तुलन के द्वारा पर्यावरणीय स्थायित्व का अनुरक्षण किया जा सके ।

( 2 ) भारत के योजना आयोग ने उन राज्यों, जिलों और तालुकों को पहाड़ी माना है, जिनकी ऊँचाई औसत समुद्र तल से 500 मीटर से अधिक है ।

पहाड़ी क्षेत्रों और पश्चिमी घाट के विकास कार्यक्रमों के लिए योजना आयोग ने इसी मापदण्ड को आधार बनाया है ।

( 3 ) वनावरण की मात्रा के निर्धारण के लिए जिलों को इकाई माना गया है और उन्हीं जिलों को पहाड़ी जिलों की श्रेणी में रखा गया है, जिन जिलों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 50 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पहाड़ी है । इस आधार पर देश में 124 पहाड़ी जिले हैं ।

( 4 ) इन पहाड़ी जिलों में 2,81,295 वर्ग किमी ० क्षेत्र में वनों का आवरण है, जो इन 124 पहाड़ी जिलों के कुछ भौगोलिक क्षेत्रफल का 39.74 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार पहाड़ी जिलों के 66 प्रतिशत क्षेत्र पर वनावरण होना चाहिए ।

( 5 ) अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय मिजोरम, नागालैण्ड, सिक्किम, त्रिपुरा एवं उत्तराखण्ड के सभी जिले पर्वतीय जिले हैं, तथा इन नौ राज्यों में वनावरण 63.07 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय वन नीति के अनुकूल है ।

जनजातीय जिलों में वनावरण ( Forest Cover in Tribal Districts )


जनजातीय जिलों में वनावरण का वितरण निम्न प्रकार है -


( 1 ) जनजाति अर्थव्यवस्था में वनों का अत्यधिक महत्त्व है, क्योंकि जनजाति समुदायों के जीवन निर्वाह एवं आजीविका का साधन वन ही हैं ।

सामान्यत : यह माना जाता है कि जनजाति लोगों की जीवन शैली पर्यावरण भिन्न होती है और ये लोग वनों का संरक्षण करते हैं ।

जनजाति जिले वे हैं, जिनका चयन भारत सरकार के समन्वित जनजाति विकास कार्यक्रम के अंतर्गत किया गया है ।

इसके साथ ही अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैण्ड, सिक्किम, त्रिपुर , दादरा एवं नागर हवेली तथा लक्षद्वीप राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेश के सभी जिलों को भी जनजाति जिलों के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है ।

( 2 ) भारतीय सर्वेक्षण विभाग 1997 से ही जनजाति जिलों में वनावरण की मात्रा का आकलन कर रहा है ।

जनजाति जिले वे हैं जिनका चयन भारत सरकार के समन्वित जनजाति विकास कार्यक्रम के अंतर्गत किया गया है ।

( 3 ) एकीकृत जनजातीय विकास कार्यक्रम ( IMDP ) के अंतर्गत देश के 26 राज्यों संघीय क्षेत्रों के 188 जिलों की पहचान जनजातीय जिलों के रूप में की जा चुकी है ।

( 4 ) इन 188 जनजातीय जिलों में विद्यमान वन क्षेत्र 4,11,881 वर्ग किमी ० है । यह वन क्षेत्र इन जनजातीय जिलों के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 37.25 प्रतिशत है ।

( 5 ) देश के आठ उत्तर - पूर्वी राज्यों – अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैण्ड, सिक्किम एवं त्रिपुरा के अंतर्गत देश का मात्र 7.98 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र है, परन्तु इनमें देश के कुल वनावरण का 25 प्रतिशत भाग स्थित है ।

( 6 ) इन आठ राज्यों में 2009 में कुल वनावरण 1,73,219 वर्ग किमी ० था जो इनके कुल भौगोलिक क्षेत्र का 66.07 प्रतिशत था ।