ढलवां लौहा (cast iron in hindi) क्या है यह कितने प्रकार का होता है इसकी प्रमुख विशेषताएं लिखिए

ढलवां लौहा (cast iron in hindi) क्या है यह कितने प्रकार का होता है इसकी प्रमुख विशेषताएं लिखिए
ढलवां लौहा (cast iron in hindi) क्या है यह कितने प्रकार का होता है इसकी प्रमुख विशेषताएं लिखिए


ढलवां लौहा (cast iron in hindi) कच्चे लोहे का दूसरा रूप होता है, कच्चे लोहे और इस्पात के अनुपयुक्त टुकड़ों को पिघलाकर मोल्ड या सांचे में डालकर ढलाई की जाती है जिससे ढलवां लौहा तैयार किया जाता है ।

ढलवा लोहे में कार्बन 2 से 4 प्रतिशत तक होता है यह कठोर वह भंगुर होता है तथा इसको गर्म करके पिघली अवस्था में हथौड़े से पीट कर इच्छित आकार नहीं दिया जा सकता ढलवा लोहे का मृदुकरण व चुंबकीयकारण नहीं किया जा सकता है ।

ढलवां लौहा कितने प्रकार का होता है? | types of cast iron in hindi


ढलवां लौहा मुख्यत: चार प्रकार का होता है -

  • श्वेत ढलवां लौहा (White Cast Iron)
  • धूसर या भूरा ढलवां लौहा (Grey Cast Iron)
  • द्रुतशीतित ढलवां लौहा (Chilled Cast Iron)
  • आघातवर्ध्य ढलवां लौहा (Malleable Cast Iron)


1. श्वेत ढलवां लौहा (white cast iron in hindi) -

मोल्ड या सांचे में पियले हुए कच्चे लोहे को शीघ्रता (rapid) से ठण्डा करने पर श्वेत ढलवां लौहा बनता है । इसे तोड़ने पर सफेद रंग दिखाई देता है । यह कठोर होता है और घिसावट कम होती है। इस लोहे में 2% से 4% तक संयुक्त कार्बन (कार्बन + लोहा) होती है । यह धूसर ढलवां लौहा की अपेक्षा शक्तिशाली होता है । इसमें कार्बन को अलग नहीं किया जा सकता । इस लोहे की ढली वस्तुएँ (castings) कठोर और भंगुर होती हैं ।

2. धूसर या भूरा ढलवां लौहा (grey cast iron in hindi) -

मोल्ड या साँचे में पियले हुए कच्चे तोहे को डालकर प्राकृतिक हवा में धीरे-धीरे ठण्डा करने से भूरा ढलवां लौहा बनता है । स्वतन्त्र ग्रेफाइट (graphite) की उपस्थिति के कारण इस लोहे की ढली वस्तुएँ तोड़ी जाने पर स्लेटी रंग की निकलती हैं । यह लोहा अपेक्षाकृत मुलायम (fairly soft) होता है । इसमें 3% से 4% तक कार्बन होती है, जो ग्रेफाइट की शक्ल में किसी सीमा तक पृथक् की जा सकती है । इस लोहे में खिंचाव की शक्ति कम होती है ।

3. द्रुतशीतित ढलवां लौहा (chilled cast iron in hindi) -

ढलवां लौहा को शीघ्र ही ठण्डा कर दिये जाने पर उसकी अधिकांश कार्बन की मात्रा मिश्रित दशा (combined stage) में रहती है और इस प्रकार ढली वस्तु (casting) श्वेत, कठोर (hard) और भंगुर (brittle) होती है । लेकिन प्रायः ऐसी वस्तुओं को ढालने की आवश्यकता आ पड़ती है जिनकी एक अथवा अधिक सतह (faces) बहुत कठोर हों जिससे कि वे अपघर्षण (abrasion) को भली प्रकार सहन (resist) कर सकें और शेष भाग कड़ेपन के लिए बले लोहे का हो । इस कार्य के लिए जिस स्थान को कठोर करने की आवश्यकता होती है वहाँ साँचे (mould) में धातु का एक टुकड़ा रख दिया जाता है जिसे चिल (chill) कहते हैं और शेष ढाँचा बालू (moulding sand) का होता है । इस सांचे में पिपले लोहे (molten metal) को उड़ेल दिया जाता है। साँचे का जो भाग बालू का बना होता है वहाँ लोहा धीरे-धीरे ठण्डा होता है। लेकिन जब पिघला हुआ लोहा चिल (chill) के सम्पर्क में आता है तो वह शीघ्रता से ठण्डा हो जाता है । ठण्डा होने की इस शीघ्रता के कारण लोहे के रेशे (fibres) लम्बवत् हो जाते हैं और ढली हुई धातु की चिल्ड सतह कठोर व कम घिसने वाली होती है तथा रेती भी इस पर काम नहीं करती है । पिघत्ते हुये लोहे को सांचे में उड़ेलने के पूर्व साँचे के उस भाग को जो धातु का बना होता है, 350°C तक गर्म कर लेना चाहिए, अन्यथा पिघले लोहे का ठण्डी धातु (chill) के सम्पर्क में आने पर घड़ाका (explosion) हो सकता है । हलों का फार (shares) और दाबरोधी (landside) प्रायः शीतित ढलवाँ लोहे (chilled cast iron) के बने होते हैं । इस प्रकार के फार जो ऊपरी घिसाव के कारण स्वतः ही पैने होते हैं ।

4. आघातवर्ध्य ढलवाँ लोहा (malleable cast iron in hindi)

साधारण ढलवाँ लोहे का बना सामान झटके सहन करने की क्षमता नहीं रखता । ऐसी दशाओं में जहां झटके सहने की आवश्यकता होती है, आघातवर्ध्य ढलवां लौहे का प्रयोग होता है । आयातवर्घ्य ढलवां लौहा, श्वेत ढलवां लौहे के बिना ग्रेफाइट बनाये कार्बन अलग कर देने पर बनता है । यह बिना टूटे कुछ हद तक मोड़े जाने की क्षमता रखता है।

आघातवर्घ्य ढलवाँ लोहा बनाने की विधि निम्नलिखित है -

पहले श्वेत कच्चे लोहे (white pig iron) को अनुपयुक्त लोहे (scrap iron) के साथ भट्टी में गर्म करके पिघला दिया जाता है और फिर गर्म अवस्था में ही इसे बालू के बने साँचे (sand moulds) में शीघ्रता से ढाल दिया जाता है। ठण्डा करके ढली वस्तु (casting) को साफ करके नीचे लिखी दो विधियों में से किसी एक विधि द्वारा लोहे को आपातवर्ध्य (malleable) बना लिया जाता है -

  • काली भ‌ट्टी विधि - इस विधि में उपरोक्त ढली वस्तुओं (castings) को जली मिट्टी (burnt clay), हड्डी की राख (bone ash) अथवा बालू में बन्द करके तापानुशीतन भट्टी (annealing furnace) में 3-4 सप्ताह तक गर्म किया जाता है। ऐसा करने पर प्रारम्भिक ढली वस्तुओं (original castings) सीमेंटाइट, फैराइड और स्वतन्त्र अमणिभ कार्बन (free amorphous carbon) में विघटित (decompose) हो जाता है । ऐसा करने में ढली वस्तु में झटका सहन करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।
  • श्वेत भट्टी विधि - इस विधि को यूिमर विधि (reumer process) भी कहते हैं । इस विधि में ढली वस्तुएँ ढलवाँ लोहे के बने हुये तापानुशीतन पात्रों (annealing pots) में आयरन ऑक्साइड (iron-oxide) के साथ बन्द करके भट्टी में रख दी जाती हैं और ताप को 145°C तक ले जाया जाता है। इसी ताप पर भट्टी को 3 से 4 दिन तक रखा जाता है । इसके बाद भट्टी को धीरे-धीरे ठण्डा होने दिया जाता है । यह एक ऑक्सीकारक (oxidising) विधि है जिसमें ढली वस्तुओं की कार्बन, फैरिक ऑक्साइड द्वारा ऑक्सीकृत (oxidised) हो जाती है। आघातवर्ध्य लोहा बनाने की दोनों ही विधियों द्वारा प्राप्त लोहा कड़ा (tough), तन्य (ductile) तथा यन्त्रों के ऐसे भाग बनाने के लिए अति उपयुक्त होता है जिन्हें झटका सहना होता है ।


ढलवां लौहे की विशेषताएं | characteristics of cast iron in hindi


ढलवां लौहे की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है -

ढलवाँ लोहा अपेक्षाकृत सस्ता होता है और साथ ही साथ इसे बड़ी आसानी से अनेक रूपों में ढाला जा सकता है। यही कारण है कि इसे हमारे देश में कृषि यन्त्रों के बनाने में अधिक से अधिक प्रयोग किया जाता है। ढलवाँ लोहे के उत्पादन के लिए कच्चे लोहे (pig iron) को क्यूपोला (cupola) चामक विशेष प्रकार की भट्टियों में कोयला (coke), अनुपयुक्त लोहा (scrap iron) नामक अन्य कई पदार्थों की विभिन्न मात्राओं के साथ गर्म किया जाता है। इस भट्टी में होकर तेज वायु प्रवेश करायी जाती है जिससे ताप बढ़ जाने के कारण लोहा पिघलकर भट्टी के पैंदे में बैठ जाता है। यहाँ से इसे पिघली दशा में ही निकालकर बालू के साँचे में ढालते हैं। इस प्रकार ढाले गये लोहे को ही ढलवाँ लोहा अथवा कास्ट आयरन (cast iron in hindi) कहते हैं।

यद्यपि ढलवाँ लोहे की किस्म (quality) उसके उत्पादन में प्रयुक्त हुए कच्चे लोहे की किस्म (grade) तथा साथ में मिलाये गये अनुपयुक्त लोहे (scrap iron) तथा अन्य पदार्थों की मात्रा पर निर्भर करती है, लेकिन औसतन ढलवाँ लोहे में 2.2 से 4.3% कार्बन और 1 से 3.5% सिलिकन के अतिरिक्त फॉस्फोरस, गन्धक और मैंगनीज की विभिन्न मात्रायें उपस्थित रहती हैं।

ढलवां लौहे के गुण | properties of cast iron in hindi

ढलवां लौहे के गुण -

  • ढलवाँ लोहा दानेदार (granular) होता है। इस लोहे को तोड़कर देखे जाने पर टूटे भाग में ये दाने स्पष्ट दिखाई देते हैं।
  • यह लोहा भंगुर (brittle) होता है अर्थात् हथौड़े से चोट मारने पर टूट जाता है।
  • इसे बड़े से बड़े आकार में ढाला जा सकता है।
  • इस लोहे में इतनी अधिक कार्बन होती है कि भले ही इसे चाहे जितना गर्म कर लिया जाये यह आघातवर्ध्य (mal- leable) नहीं हो पाता ।
  • इस लोहे पर अधिक बल डाला जाये तो यह यकायक टूट जाता है।
  • यद्यपि कई कार्यों के लिए इसमें पर्याप्त तनन सामर्थ्य (tensile strength) पाई जाती है, लेकिन सम्पीड़न (com- pressive strength) इसमें सर्वाधिक होती है।
  • यह मशीन द्वारा सरलता से काटा-छाँटा नहीं जा सकता।
  • इस लोहे को गर्म करके जोड़ नहीं सकते। लेकिन इसकी वैल्डिंग (welding) या ढलाई की जा सकती है।
  • यह गर्म होने पर फैलता हैं।


ढलवां लौहे की उपयोगिताएं | uses of cast iron in hindi


ढलवां लौहे की कुछ प्रमुख उपयोगिताएं निम्नलिखित है -

  • यह सबसे सस्ता लोहा है और इसको सुगमतापूर्वक विभिन्न आकृतियों में ढाला जा सकता है।
  • सस्ते, छोटे हलों के फाल, मोल्ड बोर्ड तथा हल मूल (frog) इत्यादि के बनाने में इस लोहे का प्रचुर मात्रा में प्रयोग होता है।
  • पंजाब तथा टनरेस्ट हलों के बहुत से भाग भी ढलवाँ लोहे के ही बनाये जाते हैं।
  • चारा काटने की मशीन, मक्का के भुट्टे से दाना निकालने की मशीन, कोल्हू इत्यादि के निर्माण में इस लोहे का विशेष रूप से प्रयोग होता है।
  • इसके पाइप (pipe) भी बनाए जाते हैं।
  • इसका प्रयोग फ्रेम, खम्भे, तल पट्टिका (bed plates), वेलन नली, सिलिण्डर, गति पालक पहिया, और इन्जन के ब्लाक आदि के निर्माण में किया जाता है।


ढलवां लौहे के लाभ एवं हानियां | advantages and disadvantages of cast iron in hindi


ढलवां लौहे के लाभ -

  • ढलवाँ लोहे के यन्त्र सस्ते होते हैं।
  • यह लोहा सरलतापूर्वक ढाला जा सकता है।
  • यह लोहा गर्मी तथा सर्दी को अधिक सहन कर सकता है।
  • इस लोहे के यन्त्र अपेक्षाकृत कम घिसते हैं।


ढलवाँ लोहे की हानियाँ -

  • ढलवाँ लोहे को पीटकर (hammering) कांम में नहीं लाया जा सकता।
  • आघातवर्ध्य (malleable) और धूसर (grey) ढलवाँ लोहे के यन्त्र रेती (file) के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु से पैने नहीं किये जा सकते।
  • ढलवाँ लोहे के यन्त्रों को मोटा बनाने के कारण उनकी नोक पैनी नहीं की जा सकती।
  • ढलवाँ लोहे पर गाँव का साधारण लुहार काम नहीं कर सकता।
  • यह भंगुरता (brittleness) के कारण शीघ्र टूट जाता है जो केवल वैल्डिंग (welding) से ही जोड़ा जा सकता है।

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