मृदा संरचना (soil structure in hindi) - मृदा संरचना कितने प्रकार की होती है

मृदा संरचना (soil structure in hindi) - मृदा संरचना कितने प्रकार की होती है
मृदा संरचना (soil structure in hindi) - मृदा संरचना कितने प्रकार की होती है 


मृदा पदार्थ के कणों के विशेष कान समूह में विभाजन या व्यवस्था को मृदा संरचना (soil structure in hindi) कहते हैं ।

मृदा संरचना के आधार पर ही इसके चार समूह होते है जो निम्नलिखित है - प्लेटी संरचना, प्रिज्मेटिक संरचना, ब्लाकी संरचना और दानेदार संरचना इत्यादि ।

मृदा संरचना से आप क्या समझते है? soil structure in hindi

मृदा बालू, स्लिट तथा क्ले आदि के आकार के अनेक कणों से मिलाकर बनी होती है । मृदा में यह कण विभिन्न प्रकार से व्यवस्थित रहते हैं । मृदा कणों और कण समूहों की विशेष व्यवस्था को मृदा संरचना या कणों का क्रम कहते हैं।


मृदा संरचना कितने प्रकार की होती है? | types of soil structure in hindi


मृदा संरचना के मुख्य प्रकार निम्नलिखित है -

  • एक कणीय (Single grain)
  • महापुँजीय (Massive)
  • अवचूर्णीय (Crumb)
  • कणात्मक (Granular)
  • नटाकार (Nutty)
  • प्रिज्मीय (Prismatic)
  • स्तम्भाकार (Columnar)
  • प्लेटी (Platy)
  • गोलाकार (Shot)
  • व्रजसार (Cemented)


मृदा कणों के क्रम के मुख्य प्रकार निम्नलिखित है -

  • एक कणीय (single grain) — इस क्रम में कण प्रायः पृथक् रहते हैं। यह क्रम बालू तथा रेतीली मृदा में पाया जाता है। इसमें जल अधिक देर तक नहीं ठहरता।
  • महापुंजीय (massive) - इस रचना में छोटे-छोटे कण एकत्रित होकर बहुत बड़े हो जाते हैं। इनमें कणान्तरिक छिद्र (pore Spaces) बहुत कम होते हैं।
  • अवचूर्णीय (crumb) - इसमें छोटे-बड़े कण परस्पर मिलकर मधुमक्खी के छत्ते के समान आकार बनाते हैं। ऐसी संरचना मृदा में जैव पदार्थ के सड़ने से उत्पन्न हो जाती है। इस संरचना में मृदा में जल तथा वायु अधिक समय तक ठहर सकते हैं। यह पौधों के लिए हितकर होती है।
  • कणात्मक (granular) – इस संरचना के कण परस्पर मिलकर छोटी-छोटी कंकड़ी बनाते हैं। ये ककड़ियाँ अनियमित रूप से वितरित होती हैं। इसमें जल कम समय तक ठहरता है और वायु की मात्रा भी कम होती है। यह पादप वृद्धि के लिए अधिक अच्छी नहीं होती।
  • नटाकार (nutty) — इस रचना में छोटे-छोटे कण, बड़े-बड़े पत्थर के टुकड़ों का रूप धारण कर लेते हैं। ये कण परस्पर मिलकर ठोस हो जाते है और अनियमित रूप से वितरित होते हैं। इस बनावट में जल नहीं ठहरता और इसमें कार्बनिक पदार्थ भी कम होता है। फलतः यह रचना पौधों की वृद्धि के लिए अच्छी नहीं होती।
  • प्रिज्मीय (prismatic) - यह संरचना मुदा कणों के त्रिकोणीय वितरण पर निर्भर है। जल एवं वायु की कमी के कारण यह रचना अधिक उपजाऊ नहीं होती।
  • स्तम्भकार (columnar) – इस संरचना में कण परस्पर मिलकर गोलाकार खम्बे का रूप धारण कर लेते हैं। इसमें बहुत कठोर मृदा बनती है।
  • प्लेटी (platy) — इस संरचना में मृदा के कण प्लेट की तरह का रुप धारण कर लेते हैं। इस रचना में मृदा में अभ्रक की भाँति एक के ऊपर दूसरी परतें रहती है। इस रचना में जल एक स्थान से दूसरी पर सुगमता से नहीं जा सकता। अतः यह पौधों के लिए लाभदायक नहीं है।
  • गोलाकार (shot) — इस संरचना के कण गेंद के समान गोल आकार धारण कर लेते हैं। इसमें कार्बनिक पदार्थ कम होने से मुदा की उर्वरा शक्ति कम होती है।
  • वज्रसार (cemented) — इस रचना में मृदा के सभी कण परस्पर आकर्षित होकर मजबूती से बन्ध जो हैं। इसके बनने में मृदा में उपस्थित लोहा तथा कैलशियम बहुत सहायक होते हैं। इसमें जल की गति सुगमतापूर्वक नहीं होती और वायु का समावेश भी नहीं होता। इसमें पौधों की जड़ों की वृद्धि नहीं होती। अतः यह रचना पौधों की वृद्धि के लिए अत्यन्त हानिकारक है। ऐसी मृदा मरुभूमि के समान होती है।


मृदा वर्गकरण या पृथक्कृत क्या है? soil separates in hindi

मृदा के बड़े आकार के कण प्रायः रेत में विद्यमान रहते हैं जबकि छोटे आकार के कण क्ले में पाए जाते हैं। इन दोनों आकार के कणों के मिश्रण द्वारा विभिन्न प्रकार की मुदाये बनती है। यान्त्रिक विश्लेषण द्वारा मृदा कणों का सही आकार ज्ञात किया जाता है। इसके आधार पर मृदा को विभिन्न आकार के कण समूहों में विभाजित किया जाता है। इन मृदा कण समूहों को मृदा वर्गकण कहते हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय माप प्रणाली द्वारा मृदा के कणों को निम्न वर्गों में रखा गया है-

  • मोटी बालू (Coarse Sand) - 2.0-0.2 मिलीमीटर
  • महीन बालू (Fine Sand) - 0.2-0.02 मिलीमीटर
  • सिल्ट (Silt) - 0.02-0.002 मिलीमीटर
  • चिकनी मिट्टी (Clay) - 0.002 मिलीमीटर से कम

मोहर (Mohr) नाम वैज्ञानिक के अनुसार मृदा वर्गकणों को निम्न दस प्रभागों में वर्गीकृत किया गया है -

  • बहुत मोटी बालू
  • मोटी बालू
  • मध्यम बालू
  • बहुत महीन बालू
  • महीन बालू
  • मोटी सिल्ट
  • सिल्ट (गाद)
  • चिकनी मिट्टी (क्ले)
  • महीन सिस्ट
  • कोलॉइडी क्ले


मृदा संरचना का क्या महत्व है? | importance of soil structure in hindi


मृदा संरचना का कृषि में क्या महत्व है -

  • यह मृदा में जल एवं वायु के अनुपात को निर्धारित एवं नियन्त्रित करती है । मृदा में जल तथा वायु का उचित अनुपात होने से फसल अच्छी होती है ।
  • मृदा संरचना उचित होने पर जुताई तथा गुड़ाई आदि क्रियाएँ करने में भी आसानी होती है ।
  • उचित मृदा संरचना मृदा अपरदन की रोकथाम में सहायक होती है ।
  • मृदा सरन्ध्रता, मृदा में जलधारण एवं जल संचालन आदि गुण भी मृदा संरचना पर निर्भर करते हैं ।


मृदा संरचना को प्रभावित करने वाले कारक कोन कोन से है?


मृदा संरचना को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित है -

जलवायु -

शुष्क क्षेत्र तथा आई क्षेत्र की मृदाओं में समुच्चयन (aggregation) बहुत कम होता है। शुष्क दशाओं में क्ले की मात्रा अत्यन्त कम होती है जबकि मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों में क्ले तथा कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि होने पर समुच्चयन अधिकतम होता है। वर्षा के आधिक्य से क्ले जल के साथ नीचे के संस्तरों में चली जाने के फलस्वरूप पृष्ठ सतह में समुच्चयन बहुत कम होता है। अर्धशुष्क (semi-arid) तथा अर्धआई (semi-humid) क्षेत्रों की मृदाओं में स्थायी समुच्चयों (aggregates ) की प्रतिशतता प्रायः अधिकतम होती है। ताप में वृद्धि होने से कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कम होकर समुच्चयन भी कम होता है ।

कार्बनिक पदार्थ –

जीवांश पदार्थ मृदा में कणीभवन (granulation) को प्रोत्साहित करता है और मृदा कण समूहों को स्थिर करता है। कार्बनिक पदार्थ की सुघट्यता (plasticity) तथा संसजन कम होने के कारण यह सरन्ध्र तथा पोला होता है। अतः मृदा में कार्बनिक पदार्थ मिलाने पर मृदा की संरचना सुधर जाती है। इस प्रकार कार्बनिक पदार्थ मृदा में बन्धक कारक (binding Agent) या कणिकायन कारक (granulating Agent) के रूप में कार्य करता है।

पक्षान्तर (alternate) भीगने तथा सूखने की क्रिया का प्रभाव -

पक्षान्तर भोगने तथा सूखने की क्रियाओं द्वारा कठोर, संघनित तथा अधिक बल से जुड़े हुए मृदा के ढेले टूटकर दानेदार मृदा बन जाती है। मृदा के सूखने पर क्ले कण सिकुड़ते हैं तथा संघनित होकर परस्पर जुड़ जाते हैं। इस प्रकार इनके बीच रन्ध्राकाश बन जाते हैं जिनमें वायु प्रवेश कर जाती हैं। जब पानी सूखे ढेलों में शीघ्रता से प्रवेश करता है तो ढेलों के अन्दर असमान फूलन (swelling) होती है। फलतः ढेले टूट कर छोटे-छोटे कण समूहों में विभक्त हो जाते हैं।

पक्षान्तर जमने तथा पिंघलने की क्रिया का प्रभाव —

इसका प्रभाव मृदा के भीगने तथा सूखने की क्रिया के समान होता है। बर्फ का बनना निर्जलीकरण और पिघलना मृदा को पुनः गीला करने के समान होता है।

पौधे —

पौधों की पत्तियाँ तथा तने वर्षा की बूंदों के प्रखर प्रहार से मृदा संरचना की रक्षा करते है। पौधों की जड़ें एक प्रकार के लसदार पदार्थ स्त्रावित करती है जिससे मृदा कणों के बंध जाने से समुच्चयों का निर्माण होता है। जड़ें अपने सम्पर्क में आने वाली मृदा नमी को शोषित करती है जिससे सूखने की क्रिया के कारण मृदा सिकुड़कर मृदा संरचना सुधर जाती है। घास तथा दलहनी फसले मृदा संरचना को सुधारते हैं जबकि कपास, ज्वार या मक्का को निरन्तर उगाने से मृदा संरचना पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

मृदा जीव -

मृदा में विद्यमान बड़े जीव जैसे केंचुए तथा रोडेन्ट्स मृदा को खोदकर तथा पलट कर मृदा के कार्बनिक पदार्थ को भली-भाँति मिलाकर समुच्चयन में सहायता करते हैं। सूक्ष्म जीव भी कार्बनिक पदार्थ का अपघटन करके परोक्ष रूप से मृदा संरचना में सुधार करते हैं।

अधिशोषित धनायन्स - 

कलिलो पर अधिशोषित धनायनां द्वारा कलिलों के भौतिक गुण प्रभावित होते हैं। इस प्रकार Ca तथा Mg आयन क्ले तथा ह्यूमस पर ऊर्णीपिण्डन (flocculation) द्वारा समुच्चय निर्माण में सहायता करते हैं। इन आयनों से सूक्ष्म जीवाणुओं की सक्रियता में वृद्धि होकर कार्बनिक पदार्थ का अपघटन शीघ्र हो जाता है। सोडियम के आधिक्य में पौधों को पोषक तत्व अप्राप्य हो जाते हैं और सूक्ष्म जीवों की सक्रियता कम होकर मृदा संरचना खराब हो जाती है।

जुताई तथा गुड़ाई आदि क्रियाओं का प्रभाव -

जुताई तथा गुड़ाई आदि क्रियाओं में कार्बनिक पदार्थ मृदा के खनिज अवयवों में भली-भाँति मिल जाता है। इससे मृदा पोली (loose) होकर वायु संचार में सुधार हो जाता है। अत्यधिक जुताई, गुड़ाई, अधिक नम या शुष्क दशा में जुताई, भारी मशीनों का प्रयोग और पशुओं द्वारा अधिक चराई आदि से मृदा समुच्चयन नष्ट हो जाता है ।


मृदा संरचना प्रबन्ध | management of soil structure in hindi

मृदा संरचना का प्रबन्ध करने के मुख्य उद्देश्य पादप वृद्धि के लिए उपयुक्त दशा विकसित करना और मृदा कटाव तथा बहाव को कम करके मृदा संरक्षण करना है। मृदा की संरचना उपयुक्त होने पर मिट्टी में पौधों की जड़ें गहराई तक प्रवेश कर सकती हैं जिससे पादप वृद्धि भली-भाँति होती है मृदा संरचना के उचित प्रबन्ध की दशा में जल एवं वायु द्वारा मृदा का कटाव एवं बहाव भी कम होता है। अतः मृदा संरचना का उचित प्रबन्ध करना अत्यावश्यक होता है।

मृदा संरचना के प्रबन्ध हेतु निम्नलिखित विधियाँ अपनायी जाती हैं -

  • मृदा का उचित प्रयोग
  • कार्बनिक पदार्थ का मिलाना
  • खाद एवं उर्वरक का प्रयोग
  • जल निकास की उचित व्यवस्था
  • मृदा सुधारकों का प्रयोग
  • भूमि का संरक्षण
  • मर्दा गाढता का नियंत्रण
  • मृदा का वर्षा से बचाव 


Disclaimer - Copyright © डॉ जोगेंद्र कुमार (विभागाध्यक्ष) कृषि रसायन विभाग
(आर० एम० (पी० जी०) कॉलेज गुरुकुल नारसन (हरीद्वार)