मृदा के भौतिक गुणों का अध्ययन कीजिए | physical properties of soil in hindi

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मृदा के भौतिक गुणों का अध्ययन कीजिए | physical properties of soil in hindi


मृदा के भौतिक गुणों को ज्ञात करने के लिए परिच्छेदिका का अध्ययन करना आवश्यक होता है ।

दूसरे शब्दों में हम कह सकते है की मृदा परिच्छेदिका के अध्ययन से हमें मृदा के निम्नलिखित भौतिक गुण (physical properties of soil in hindi) ज्ञात होते है ।

मृदा के भौतिक गुण | physical properties of soil in hindi

  • मृदा गठन ( Soil texture )
  • मृदा संरचना ( Soil structure )
  • मृदा घनत्व ( Soil density )
  • मृदा रंग ( Soil colour )
  • मृदा रन्ध्राकाश ( Soil pore space or Porosity )
  • मृदा वायु ( Soil air )
  • गृदा नमी या मृदा जल ( Soil water )
  • मृदा ताप और मृदा तापमान ( Soil heat and soil temperature )
  • मृदा की दृढ़ता या गाढ़ता ( Soil consistency )
  • मृदा कोलाइड ( Soil colloids )


1. मृदा कणाकार क्या है? | soil texture in hindi

मृदा कणाकार से तात्पर्य मृदा में उपस्थित बालू सिल्ट एवं क्ले के आपेक्षिक अनुपात से है जिसका ज्ञान सामान्यतया मृदा को देखकर अथवा उसे हाथ से छूकर किया जाता है परन्तु वास्तविक अनुपात ज्ञात करने के लिए मृदा का यांत्रिक विश्लेषण किया जाता है।

मृदा में उपस्थित विभिन्न कणों का व्यास सामान्यतया निम्नलिखित है -

  • कंकड़ - >2.0
  • बहुत मोटी बालू - 2.0 - 1.0
  • मोटी बालू - 1.00 - 0.50
  • बालू - 0.50 - 0.25
  • महीन बालू - 0.25 - 0.10
  • बहुत महीन बालू - 0.10 - 0.05
  • मोटी सिल्ट - 0.05 - 0.005
  • महीन सिल्ट - 0.005-0.002
  • क्ले - <0.002

प्रोफाइल के अध्ययन के परिणामस्वरूप ज्ञात होता है कि ऊपरी संस्तरों का कणाकार महीन परन्तु निचले संस्तरों का मोटा एवं भारी होता है ।


मृदा कणाकार का कृषि में क्या महत्व है? | importance of soil texture in hindi


मृदा कणाकार का कृषि में महत्व -

  • उचित कणाकार वाली मृदायें (दोमट) उपजाऊ होती हैं।
  • इनकी जलधारण, जल ग्रहण क्षमता अधिक होती है।
  • इसमें लाभप्रद जीवाणु भली-भाँति कार्य करते हैं ।
  • मृदा की उर्वरा शक्ति स्थिर रहती है।
  • वायु एवं जल संचार उत्तम रहता है।
  • रन्ध्राकाश पर्याप्त होता है।
  • जुताई करने पर मिट्टी भुरभुरी हो जाती है।


मृदा संरचना ( Soil Structure ) -

मृदा संरचना द्वारा मृदा कणों के विशेष कण समूहों में विन्यास अथवा सजावट ज्ञात होती है । मृदा संरचना द्वारा मृदा की संरन्ध्रता पर विशेष प्रभाव पड़ता है जिससे अनेक मृदा के गुणों का नियन्त्रण होता है ।

संरचना के आधार पर मृदा को चार समूहों में विभाजित किया जाता है -

  • प्लेटी संरचना
  • प्रिज्मेटिक संरचना
  • ब्लाकी संरचना
  • दानेदार संरचना


मृदा रंग क्या है? | soil colour in hindi

मृदा में रंग प्राय: ह्यूमस की मात्रा तथा मृदा में विद्यमान आयरन के योग की रासायनिक प्रकृति के कारण होता है यह पदार्थ मृदा के रंग को प्रभावित करते हैं ।

मृदा पार्श्विका या परिच्छेदिका के विभिन्न संस्तरों एवं उपसंस्तरों के अपने रंग होते हैं। रंगों की गहनता विशेष रूप से ऊपर से नीचे की तरफ घटती जाती है परन्तु यह सर्वथा सत्य नहीं होता। कभी-कभी इसके विपरीत स्थिति भी पायी जाती है । मुदा पार्श्विका रंग कार्बनिक पदार्थों एवं उसके सहने गलने से प्राप्त ह्यूमस तथा खनिजों एवं लवणों पर निर्भर करता है । पार्श्विका का रंग अश्ववर्णी (lithochromic) अथवा अर्जित (acquired) किसी प्रकार का हो सकता है ।


मृदा रंग के प्रमुख कारक निम्नलिखित है -

  • मृदा के कार्बनिक पदार्थ - काला, काला भूरा
  • ह्यूमस - काला
  • आयरन - लाल
  • एल्युमिनियम - लाल
  • केल्सियम, सिलिका - सफेद, हल्का, भूरा
  • लिमोनाइट - पीला
  • रेड सैंडस्टोन - लाल

मृदाओं का नामकरण उनके रंगों के अनुसार किया जाता है, जैसे-काली मृदा, लाल मृदा, भूरी मृदा, धूसर मृदा आदि ।


मृदा का क्या महत्व है? | importance of soil colour in hindi


मृदा रंग का कृषि में महत्व -

  • मृदा रंग के आधार पर मृदा में उपस्थित रासायनिक अवयवों का पता चलता है। उदाहरणार्थ-लाल मृदा में फैरिक ऑक्साइड और काली मृदा में कार्बनिक पदार्थ तथा ह्यूमस अधिक मात्रा में होते हैं।
  • मृदा रंग के आधार पर मृदा कणों का वर्गीकरण काली, लाल, बादामी तथा लाल-पीली मृदा कणों में किया जाता है।
  • प्रायः गहरे रंग की मुदायें कार्बनिक पदार्थ की अधिकता के कारण अधिक उपजाऊ होती है। हल्के रंग की मृदायें बालू या सिल्ट के आधिक्य के कारण कम उपजाऊ होती है।
  • मृदा रंग प्रत्यक्ष रूप से पौधों को प्रभावित नहीं करता किन्तु मृदा ताप तथा नमी को प्रभावित कर पादप वृद्धि को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।

मृदा रन्ध्राकाश क्या है? | soil porosity in hindi

मृदा के कणों के बीच कणान्तरिक छिद्र (रन्ध्राकाश) होते है। मृदा कणों के मध्य का वह रिक्त स्थान जिसमे जल एवं वायु विद्यमान रहते हैं. रन्ध्राकाश (pore-space) कहलाता है।

मृदा के कुल आयतन के उस प्रतिशत भाग को जो रिक्त होता है, सरन्ध्रता या रन्धिता कहते हैं। शुष्क मृदा के रन्ध्राकाशों में वायु भरी होती है, नम मृदाओं में इनमें वायु एवं जल भरे होते हैं और जल संतृप्त मृदाओं में जल भरा होता है। मृदा कणों का आकार समान न होकर इनके अनेक रूप होते हैं। सुविधा की दृष्टि से यह मानते हैं कि ये गोलाकार होते हैं। जो परस्पर स्तम्भवत (columnar), सघन (compact ), तिर्यक (oblique) तथा दानेदार (granular) क्रम में व्यवस्थित हो सकते हैं। मृदा रन्ध्राकाश केशीय (सूक्ष्म - micro) तथा अकेशीय (दीर्घ-macro) दो प्रकार के होते हैं। उपजाऊ एवं आदर्श मृदा में केशीय (capillary) तथा अकेशीय रन्ध्रों का आयतन समान होना चाहिए।


मृदा रन्ध्राकाश का क्या में महत्त्व है? | importance of soil porosity in hindi


मृदा रन्ध्राकाश का कृषि में महत्व -

  • बड़े आकार के कण वाली मृदा में अधिक रन्ध्र होते हुए भी पानी के अधिक शोषण तथा अपने अन्दर रोकने की क्षमता नहीं होती है। छोटे कणाकार वाली मृदा में रन्ध्रों का बाहुल्य होने से पानी शीघ्र शोषित हो जाता है और अधिक समय तक रुका रहता है।
  • जल के अभाव में वायु मृदा रन्ध्री में अपना स्थान बनाए रहती है। इस कारण पौधों की जड़ो को सरलतापूर्वक स्थान प्राप्त हो जाता है।
  • पर्याप्त रन्ध्राकाश वाली मृदा में कार्बनिक पदार्थों से पौधों को पोषक तत्व आवश्यक मात्रा में मिलते रहते हैं। अतः ये रन्ध्राकाश कृषि की दृष्टि से बहुत लाभकारी होते हैं।
  • रन्ध्रों का बाहुल्य मृदा के आन्तरिक ताप को अत्यधिक प्रभावित करता है।


मृदा संगठन ( Soil constitution )  -

मृदा निर्माणकारी कारकों द्वारा मूल पदार्थ में धीरे-धीरे परिवर्तन होता रहता है जिसके परिणामस्वरूप प्रोफाइल एक निश्चित संगठन प्राप्त कर लेता है ।


मृदा प्रोफाइल के संघटन के अन्तर्गत निम्नलिखित गुण सम्मिलित किये जाते है-

  • सघनता (Compactness)
  • सिमेन्टीकरण (Cementation)
  • गाढ़ापन (Consistency)
  • सरन्ध्रता (Porosity)
  • सुघटयता (Plasticity)
  • चिपचिपापन (Stickiness)


मृदा प्रोफाइल की गहराई ( Depth of soil profile ) —

विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में निर्मित मृदा प्रोफाइल की गहराई परिवर्तनशील होती है। प्रोफाइल की गहराई कुछ सेन्टीमीटर से लेकर हजारो मीटर तक हो सकती है। मृदा प्रोफाइल की गहराई पर कई कारकों का प्रभाव पड़ता है, जैसे चट्टानों की संरचना, कणाकार, समय, मूल पदार्थों की अवस्था, खनिजों की प्रकृति एवं गुण इत्यादि। बालूयुक्त पैतृक पदार्थों से बनी प्रोफाइल की गहराई बहुत अधिक होती है परन्तु मरुस्थलों में प्रोफाइल अत्यन्त उथली होती है। कठोर चट्टानों से निर्मित प्रोफाइल उथली, अधिक वर्षा वाले स्थानों में काफी गहरी, पहाड़ों के ढालों पर अत्यधिक उथली होती है।


कंकरीकरण तथा बाह्य अन्तर्भेदन (Concretions and Foreign intrutions) —

मृदा प्रोफाइल के अध्ययन के अन्तर्गत विभिन्न संस्तरों में संचित होने वाले पदार्थों का भी अध्ययन आवश्यक है, जैसे- कंकड़ पदार्थ, कठोर पपड़ी अथवा परत, अवसाद (sediments) एवं रेखा वर्ग इत्यादि। मृदा संस्तरों के अध्ययन में इनका अध्ययन सावधानीपूर्वक कर लेना आवश्यक है।


फुटकर अवलोकन (Miscellaneous observations) –

प्रोफाइल के विभिन्न संस्तरो की नमी, नमी एवं कणाकार का सम्बन्ध, संस्तरों की प्रवेश्यता, प्रोफाइल में जड़ों का फैलाव, पोषक पदार्थों की उपलब्धता इत्यादि का अध्ययन करना भी आवश्यक है।


प्रकृति में मृदा प्रोफाइल ( Soil Profile In Nature )

मृदा निर्माण प्रक्रम एक अत्यन्त संकीर्ण प्रक्रम है जो अनेक कारकों द्वारा नियन्त्रित होता है। इन सभी कारकों की संख्या एवं उनकी प्रचण्डता प्रत्येक प्रकार की मृदा निर्माण में एक समान नहीं पायी जाती है। यही कारण है उनके विकास में निर्मित होने वाली संस्तरों की संख्या एवं उनका विस्तार विभिन्न प्रकार की मृदाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार से परिवर्तनशील है। अतः यह आवश्यक नहीं है कि सभी मृदाओं में ऊपर बताये गये समस्त संस्तर उपस्थित हो । संस्तरों की संख्या के अनुसार प्रकृति में एक पूर्णतया विकसित एवं अविकसित मृदा की पहचान की जा सकती है।

विभिन्न विशेषताओं वाली संस्तरों से मुक्त प्रोफाइल का निर्माण प्रकृति में उन्हीं सभी प्रक्रियाओं द्वारा होता है जिसका वर्णन मृदा निर्माण प्रक्रम में विस्तारपूर्वक किया गया है परन्तु प्रोफाइल विकास में किसी निश्चित प्रक्रम का कितना योगदान है, यह निर्णय कर पाना अत्यन्त कठिन है। संस्तरों की संख्या एंव विस्तार तथा विशेषताएँ वास्तव में इन्हीं प्रक्रमों की प्रकृति, प्रबलता एवं पारस्परिक सम्बन्धों पर आधारित है । 



Disclaimer - Copyright © डॉ जोगेंद्र कुमार (विभागाध्यक्ष) कृषि रसायन विभाग
(आर० एम० (पी० जी०) कॉलेज गुरुकुल नारसन (हरीद्वार)