अपक्षय (weathering in hindi) - खनिज एवं चट्टानों का अपक्षय कैसे होता है

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अपक्षय (weathering in hindi) - खनिज एवं चट्टानों का अपक्षय कैसे होता है 


अपक्षय क्या है? | weathering in hindi

भौतिक, रासायनिक एवं जैविक प्रक्रियाओं द्वारा चट्टानों के टूटने फूटने को अपक्षय (weathering in hindi) कहते हैं । खनिजों एवं चट्टानों के अपक्षय के अपघटन एवं विघटन की प्रक्रिया है ।

सामान्यत: अपघटन भौतिक एवं  विघटन रासायनिक अपक्षय की प्रक्रिया है इसमें रिगोलिथ या इसका ऊपरी भाग मृदा का पैतृक पदार्थ कहलाता है ।


खनिज एवं चट्टानों का अपक्षय कैसे होता है?

खनिजों एवं चट्टानों का अपक्षय प्रचलित वातावरण के कारण होता है इसीलिए यह पृथ्वी की सतह के पास होता है ।

चट्टान जो अपक्षय के लिए शुरुआती बिन्दू है, पहले छोटी-छोटी चट्टानों में एवं अलग खनिजों में जिनसे वह बनी होती है टूटती है इसके साथ-साथ अपघटित चट्टान तथा उसमें उपस्थित खनिज अपक्षय बलों के आक्रमण के कारण नये खनिजों में परिवर्तन (alteration) द्वारा या विघटन द्वारा परिवर्तित हो जाते हैं इसके परिणामस्वरूप घुलनशील पदार्थ मुक्त होता है । जिन खनिजों का संश्लेषण होता है । उनको दो समूहों में रख सकते हैं -
(a) सिलिकेट क्ले तथा
(b) प्रतिरोधक अन्तिम उत्पाद जिसमें आयरन एवं एल्युमिनियम शामिल है।


चट्टानों का अपक्षय कैसे होता है? | rocks weathering in hindi

अपक्षय के दो आधारीय भौतिक या यान्त्रिक एवं रसायनिक प्रक्रम है। भौतिक अपक्षय से अपघटन तथा रसायनिक अपक्षय से विघटन होता है अन्य प्रक्रम जो कार्य करता है वह जैविक विघटन है। ये सभी प्रक्रमें साथ-साथ कार्य करती हैं जबकि कुछ वातावरणों में कोई एक, अन्य से प्रबल हो सकती है। एक के कार्य को अन्य प्रक्रम सहारा प्रदान करता है और यह एक लगातार चलने वाली अभिक्रियाओं की श्रृंखला है।

चट्टानों के अपक्षय के प्रकार | types of rocks weathering in hindi

  • भौतिक/यांत्रिक अपक्षय (अपघटन)
  • रासायनिक अपक्षय (विघटन)
  • जैविक अपक्षय (अपघटन एवं विघटन)


1. भौतिक/यांत्रिक अपक्षय (अपघटन) -


चटटानों की भौतिक दशा (Physical condition of rocks ) —

चट्टानों की पारगम्यता अकेला एक ऐसा महत्त्वपूर्ण कारक है, जो चट्टानों के अपक्षय की दर को निर्धारित करता है। उदाहरण के लिए एक बड़े कणों वाली रेत पत्थर (sand stone), बारीक  कणों वाली (लगभग ठोस) बेसाल्ट की अपेक्षा तेजी से अपक्षयित होगी, क्योंकि रेत पत्थर की पारगम्यता अधिक होती है। असंगठित बारीक कणों वाली ज्वालामुखी राख का जा असंगठित बड़े कणों के जमाव जैसे कंकड़ (gravels) की अपेक्षा तेजी से होता है क्योंकि पानी का कंकड़ के बड़े कणों के बीच से अन्तः स्रवण होता है न कि उनके बीच से।

तापक्रम (Temperature ) —

तापक्रम में विशेषतौर पर अधिक एवं अचानक विभिन्नता चट्टानों के अपघटन को बहुत प्रभावित करती है। दिन के समय चट्टानें सूर्य की गर्मी द्वारा गर्म होकर फैल जाती है, रात के समय तापक्रम कम होने पर चट्टाने ठण्डी होकर सिकुड़ जाती है। इस प्रकार तापक्रम में दैनिक परिवर्तनों से निरन्तर फैलाव एवं संकुचन दिन प्रतिदिन चलता रहता है । यह प्रक्रिया गर्म एवं शुष्क क्षेत्रों में बहुत सामान्य है। हम जानते हैं, कि चट्टानों में ताप का प्रवाह (conduct) आसानी से नहीं होता है इसलिए, एक चट्टान की सतह तथा उसके नीचे के तापक्रम में बहुत विभिन्नता होती है। इसके अलावा, चट्टान में उपस्थित खनिजों के फैलाव एवं संकुचन की दर भी भिन्न होती है। हल्के रंग वाली चट्टानों की अपेक्षा गहरे रंग वाली चट्टानों के तापक्रम में तेजी से परिवर्तन होता है। घन के आकार वाले क्वार्टज में फेल्सफार की अपेक्षा दुगना फैलाव होता है । चट्टानों का वह भाग जो तापक्रम के सीधे सम्पर्क में होता है उसका आयतन बढ़ जाता है अर्थात् उसमें फैलाव अधिक तथा दूसरा भाग जो तापक्रम के सीधे सम्पर्क में नहीं है, कम फैलाव होता है। यही कारण है कि चट्टानों के बाहरी एवं भीतरी भागों के फैलाव एवं संकुचन में काफी अन्तर हो जाता है। चट्टानों का बाहरी भाग पैतृक पदार्थ से टूटकर अलग हो जाता है। इनकी दरारों में जल भर जाता है जल के जमने एवं पिघलने के प्रभाव से बारीक कण वाली मृदा का निर्माण होता है ।

बहता जल (Running Water ) –

बहते हुए जल में कटाव एवं बहाकर ले जाने की बहुत शक्ति होती है। यह अपने रास्ते को नीचे एवं साईड की ओर काटकर गहरा एवं चौड़ा करता रहता है। इसके साथ जो भी पदार्थ बहते रहते हैं उन्हें बारीक कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाता है। बहते हुए जल की रगड़कर पिसने की क्रिया उसमें उपस्थित पदार्थों के कारण होती है जो जल की गति के साथ बदलती रहती है । बहती हुई जलधारा की अभिगमन शक्ति उसके वेग की छः घात (VS) होती है। 15 सेमी/सेकण्ड 30 सेमी/सेकण्ड 1.25 मी०/सेकण्ड, 2.25 मी०/सेकण्ड एवं 10.0 मी०/सेकण्ड के वेग से बहने वाली जल धारा क्रमशः बारीक बालू कण, कंकड़, 1 किग्रा के पत्थर, 60 किग्रा के पत्थर तथा 320 टन के पत्थर हिस्सों को बहाकर ले जा सकती है । मृदाओं का औसत आपेक्षिक घनत्व 2.65 होता है लेकिन 0.01 मिमी मोटी जल परत से आच्छादित 0.001 मिमी आकार के मृदा कणों का आपेक्षिक घनत्व 1.002 ही रह जाता है। कणों का यह आ०घ० जल घनत्व (1.000) से इतना अधिक समान है कि ये कण जल में निरन्तर निलम्बित अवस्था में पड़े रहते हैं और बहती हुई जल धारा के साथ दूर तक चले जाते हैं।

जमा हुआ जल (Freeze Water ) —

भौतिक अपक्षय उत्पन्न करने के लिए ठण्ड, गरमी की अपेक्षा अधिक प्रभावी होती है। ठण्डे प्रदेशों में, जल चट्टानों की दरारों, छिद्रों व परतों में भर जाता है, जमकर बर्फ में बदल जाता है परिणामस्वरूप इसके आयतन में 9% से अधिक वृद्धि हो जाती है। जैसा कि जमाव ऊपर से शुरू होता है, जल के विस्तार के लिए कोई रास्ता ऊपर की तरफ जाने के लिए नहीं रहता है। इसलिए जल का बढ़ता हुआ आयतन चट्टानों पर बाहर की तरफ बहुत अधिक दबाव डालता है। इसका प्रभाव एक कोका कोला बोतल को रेफरीजरेटर में रखने पर उसका जमना और उसके बाद टूटने के समान होता है। इसी तरह से चट्टाने भी फट जाती हैं।

एकान्तर भीगना एवं सूखना (Alternate Wetting and Drying) —

कुछ प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाली अधिक क्ले युक्त चट्टानों का आयतन गीला होने पर बढ़ता है तथा सूखने पर सिकुड़ता है। उपरोक्त तथ्य को एक प्रयोगिक उदाहरण फैलने वाली क्ले युक्त चट्टान जैसे शेल्स (shales) द्वारा समझ सकते हैं। सूखे मौसम में, इस तरह की चट्टान में अधिक सिकुड़न होने पर उनकी सतह पर बहुत सी दरारें पड़ जाती है। इसके बाद भीगने पर ये चट्टान फैल जाती है। लगातार एकान्तर भीगने एवं सुखने की प्रक्रिया चट्टान को ढीला बना देती है। अन्त: कुछ समय बाद, ये टूटकर प्लेट के रूप में अलग हो जाती है।

बर्फ एवं ग्लेशियर (Ice and Glaciers ) — 

ग्लेशियर बर्फ के छोटे-बड़े पहाड़ होते हैं, जो कुछ सौ से हजारों मीटर चौड़े एवं मोटे होते है तथा आधे किमी० से सैकड़ों किमी० लम्बे होते हैं। ये अत्यन्त धीमी गति से चलते हैं। 100 मी० मोटे ग्लेशियर का दबाव लगभग 10 किग्रा०/सेमी० होता है। ये अपने असहनीय वजन के साथ पहाड़ों, नदियों, घाटियों एवं झीलों के ऊपर बढ़ते जाते हैं। अपने निर्विरोध रास्ते में ये चट्टानों एवं खनिजों के छोटे-बड़े सभी टुकड़ों को साथ में ले लेते है और उन्हें रगड़कर बारीक चूर्ण बना देते हैं। बहते हुए जल के साथ चट्टानी पदार्थ नदियों, झीलों एवं मैदानों में एकत्रित हो जाते है । इस प्रकार ग्लेशियर के अनवरत प्रभाव से बालू, कंकड़, सिल्ट, क्ले का विशालकाय जमाव बन जाता है जो मृदा निर्माण में महत्त्वपूर्ण होता है ।

लहरें (Waves) -

समुद्री लहरे किनारों पर बहते हुए पानी की तरह अपक्षय में सहायता करती है। नदियों के जल के विपरीत, जो केवल वर्षा ऋतु के समय तेज रफ्तार से बहती है धाराये निरन्तर समुद्री किनारों को काटती तोड़ती एवं रगड़ती रहती है । यद्यपि इनका क्षेत्र समुद्र के किनारे तक सीमित होता है । इनके प्रभाव से चट्टाने टूट कर एवं घिस कर छोटे-छोटे गोल पत्थरों में बदल जाती है, जो अपक्षय द्वारा आगे के क्रम में कंकड़, बालू, सिल्ट व क्ले में बदल जाती है ।

हवा (Wind) —

वायु अप्रत्यक्ष रूप से अपक्षय में सहायक होती है क्योंकि वायु में उपस्थित धूल, बालू और कंकड़ चट्टानों की ऊपरी सतह को घिसती है । इस तरह कण एक दूसरे से रगड़ कर और अधिक बारीक हो जाते हैं । सामान्य वायु के प्रतिघन किलोमीटर में 60 टन धूल कण होती है जबकि तूफानों में इसका आयतन 30,000 टन धूल तक हो सकता है। 5 मी०/सेकण्ड वेग वाली एवं 10 मी०/सेकण्ड वेग वाली हवा क्रमश: 0.25 मिमी आकार के एवं 1.00 मिमी आकार के कणों को उड़ाकर ले जा सकती है। रेगिस्तान में बालू के बड़े-बड़े टीले हवा के वेग द्वारा बनते रहते हैं । सहारा रेगिस्तान में बालू के कुछ टीले 500 मीटर ऊँचे होते हैं ।


चट्टानों का रसायनिक अपक्षय (विघटन)

भौतिक अपक्षय के विपरीत, रसायनिक अपक्षय प्रकृति में बहुत जटिल होता तथा इसमें मूल पदार्थों का कुछ नये यौगिकों में परिवर्तन हो जाता है, जो मूल पदार्थ से बिल्कुल अलग होते हैं। चट्टानों की सतह का क्षेत्रफल बढ़ने पर रसायनिक अपक्षय और अधिक प्रभावी हो जाता है।

चूंकि रसायनिक अभिक्रिया मुख्यतः चट्टानों की सतह पर होती है, इसलिए भाग जितना छोटा होता है उसकी सतह का क्षेत्रफल अभिक्रिया के लिए उतना ही अधिक उपलब्ध होता है। मृदा निर्माण के सन्दर्भ में रसायनिक अपक्षय बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। रसायनिक अपक्षय में जलवायु का मुख्य कार्य होता है । उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों (नम एवं गर्म) में, रसायनिक अपक्षय शुष्क एवं गर्म क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक निश्चित होता है। पौधे एवं जीव जन्तु भी परोक्ष या अपरोक्ष रूप से रसायनिक अपक्षय में योगदान देते हैं क्योंकि ये O2, CO₂ और कुछ निश्चित अम्लों का उत्पादन करते हैं जो पृथ्वी के पदार्थों से अभिक्रिया करते हैं।

यद्यपि प्रकृति में सभी रसायनिक क्रियायें एक साथ चलती रहती हैं, परन्तु आसानी से समझने के लिए उनका अलग-अलग वर्णन किया गया है—

जलयोजन (Hydration) —

जल का पदार्थ के साथ रसायनिक संयोग पदार्थ की संरचना में परिवर्तन कर देता है। जलयोजन द्वारा जल के अणु किसी भी खनिज द्वारा रसायनिक विधि से संयोग करके उसी के भाग बन जाते हैं जिससे खनिज के आयतन में वृद्धि हो जाती है और खनिज फैलने लगते हैं और छिद्रयुक्त हो जाते हैं। जिससे उनका अपघटन बहुत तीव्र गति से होने लगता है। बहुत से खनिज जैसे एल्युमिनियम ऑक्साइड, आयरन ऑक्साइड, जिप्सम आदि जल का अवशोषण कर फैल जाते हैं।
2Fe2O3 + 3H2O→ 2Fe2O3.3H2O
Al2O3 +3H2O⇒ Al2O3.3H2O
CaSO4 + 2H2O CaSO4.2H2O
इस प्रकार इन खनिजों का अपक्षय आसानी से हो जाता है । ये जल के साथ संयुक्त होकर हाइड्रेटस बनाते हैं जिससे इनके आयतन में वृद्धि हो जाती है। आयतन में वृद्धि से बाहर दाब बढ़ जाता है और वे चूर्णित हो जाते हैं ।

जल विघटन (Hydrolysis) –

यह सम्भवतः रसायनिक अपक्षय की सबसे महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में जल के वियोजन द्वारा H' एवं OH आयन प्राप्त होते हैं। जल के साथ ही साथ खनिजों का भी अपघटन होता है परिणाम स्वरूप क्षारों का निर्माण होता है ।
जैसे- Feldspar + Water Clay mineral + soluble cations and anions
KA1 Si3O4 + HOH HAI Si3 O + KOH
2HA1 SizO + 8HOH ⇒ Al2O3 3H2O + 6H2SO3

अन्य सभी सिलिकेट भी इस तरह परिवर्तित हो जाते हैं। यह अभिक्रिया दो कारणों से महत्त्वपूर्ण हैं-

  • इस अभिक्रिया में उत्पन्न क्ले, क्षार एवं सैलिसिक अम्ल पौधों की वृद्धि के लिए प्राप्य होते हैं।
  • जल, वातावरण से CO2 अवशोषित कर खनिजों से सीधा अभिक्रिया करके अघुलनशील क्ले खनिज, धन आवेशित धातु आयन्स (Ca++, Mgh, Nat, K े), ऋण आवेशित आयन्स (OH, HCO3) तथा कुछ घुलनशील सिलिका उत्पन्न करता है। ये सभी पौधों की वृद्धि के लिए प्राप्त होते हैं।

विलियन (Solution) —

प्राथमिक खनिजों का बिना रसायनिक परिवर्तन सीधा विलयन नहीं बनता, किन्तु चट्टानों में उपस्थित कुछ पदार्थ सीधे पानी में घुल जाते हैं। जब चट्टानों से घुलनशील पदार्थ जल के बहाव या अन्तः स्रवण द्वारा लगातार निकलते रहते हैं, तो चट्टाने बहुत अधिक समय तक ठोस नहीं बनी रहती है और उनमें छिद्र, नाली या उबड़-खाबड़ सतह विकसित हो जाती है और अन्तः में विघटन हो जाता है। यह क्रिया जल में कार्बनिक एवं अकार्बनिक अम्लों के विलेय होने पर अधिक तेज हो जाती है । इस तरह के जल में केवल क्षारीय पदार्थ ही नहीं बल्कि सिलिका भी घुल जाती है ।

कार्बनीकरण (Carbonation ) —

कार्बन डाई ऑक्साइड का किसी क्षार के साथ संयोग कार्बनीकरण कहलाता है। यह प्रक्रिया चट्टानों एवं मृदाओं में उपस्थित खनिजों के विघटन के लिए बहुत प्रभावी हैं । पदार्थ के विघटन की दर कार्बनिक पदार्थ के मिलाने पर तेज हो जाती है क्योंकि कार्बनिक पदार्थों के सड़ने-गलने से CO, एवं कार्बनिक अम्लों का उत्पादन होता है, जो विभिन्न चट्टानों की विशेषतः घुलनशीलता एवं अपघटन को प्रभावित करते हैं । CO2 का उत्पादन जड़ों द्वारा श्वसन से भी होता है । यह गैस क्षारों से शीघ्र संयोग करके उनके कार्बोनेट एवं बाइकार्बोनेट का उत्पादन करती है ।
जैसे- CO2 + 2KOH ⇒ K2CO3 + H2O
K2CO3 + H2O + CO2 → 2KHCO3
CO2 और H2O के संयोग से उत्पन्न कार्बोनिक अम्ल (H2CO3), कैल्साइट खनिज पर क्रिया करके बाइकार्बोनेट बनाता है—
CaCO3 + H2CO3 → Ca(HCO3 ) 2
अतः CO2 चट्टानों एवं खनिजों के विघटन में महत्त्वपूर्ण कारक हैं ।

ऑक्सीकरण (Oxidation) —

किसी तत्व या यौगिक से इलेक्ट्रान का हास या ऑक्सीजन का संयुक्त होना ऑक्सीकरण कहलाता है। ऑक्सीजन वायुमण्डल में पर्याप्त मात्रा में (लगभग 21%) होती है । चूंकि चट्टाने वायुमण्डलीय हवा में खुली रहती हैं ऐसे में ऑक्सीजन का खनिजों के साथ संयुक्त होने की पूरी संभावना रहती है । ऑक्सीजन के इस संयुक्तीकरण को ऑक्सीकरण कहते हैं। ऐसी चट्टाने एवं खनिज जिनमें लोहा, मैग्नीशियम, कापर एवं कैल्शियम तत्व अधिक मात्रा में होते हैं, ऑक्सीकरण अधिक होता है।
2FeO + O2 → 2Fe203 4Fe2O3 + 02→6Fe2O3
2Fe2O3 + 3H2O 2Fe2O3.3H2O
ऑक्सीकरण की प्रक्रिया अधिकतर जल अपघटन के बाद होती है । ऑक्सीकरण द्वारा निर्मित यौगिक मूल खनिजों की अपेक्षा अत्यधिक स्थूलकाय एवं शीघ्र घुलनशील होते हैं । जिससे चट्टाने शीघ्रता से अपक्षयित हो जाती है ।

अवकरण या अपचयन (Reduction) -

यह क्रिया ऑक्सीकरण की उल्टी (reverse) होती है। इसमें इलेक्ट्रान का जुड़ाव या ऑक्सीजन का ह्रास होता है। जल की अधिकता वाले क्षेत्रों में, ऑक्सीजन की कमी हो जाती है जिससे विभिन्न प्रकार के ऑक्साइडों का अपचयन होने लगता है। अपचयन का अपक्षय में बहुत अधिक महत्त्व नहीं है फिर भी इससे पदार्थों का रसायनिक संगठन परिवर्तित हो जाता है ।
2Fe2 O3 → 4FeO + O2
इस तरह से रसायनिक अपक्षय द्वारा आग्नेय एवं रूपान्तरित / कायान्तरित चट्टानों में उपस्थित प्राथमिक खनिजों का विनाश तथा द्वितीयक खनिजों का निर्माण होता है जबकि तलछटी चट्टानों में, जिनमें प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के खनिज होते हैं प्रारम्भ में अपक्षय की क्रिया द्वारा उनके कमजोर बन्ध टूट जाते हैं तथा खनिज व्यक्तिगत रूप से स्वतन्त्र होकर अपक्षय को विवश होते हैं।


चट्टानों का जैविक अपक्षय (अपघटन+विघटन)

भौतिक एवं रसायनिक अपक्षय से भिन्न जैविक अपक्षय चट्टानों एवं खनिजों के विघटन एवं अपघटन के लिए जिम्मेदार होता है । जैविक जीवन का नियन्त्रण उपस्थित वातावरण द्वारा होता है; जैसे-फंगस गर्म आर्द्र तथा जीवाणु ठण्डे आर्द्र वातावरण में सक्रिय रहते हैं । पाईन वनस्पति वाले अम्लीय क्षेत्रों में केंचुआ बहुत कम पाया जाता है। जैविक अपक्षय को प्रभावित करने वाली शक्तियाँ हैं—

मनुष्य एवं पशु (Man and Animals) -

मनुष्य अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए चट्टानों को तोड़कर अपक्षय में मदद करता है। बहुत से कार्यों जैसे-रेल, सड़कें, नदियाँ, नहरे, खाने खोदने के लिए चट्टानों को तोड़ता रहता है। इस सभी क्रियाओं के परिणाम स्वरूप चट्टानों की सतह का क्षेत्रफल रसायनिक कारकों के लिए बढ़ जाता है और चट्टानों के विघटन की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है । जन्तुओं का कार्य भी मनुष्यों के समान होता है। बहुत से पक्षी, जन्तु, कीट, केंचुए आदि चट्टानों में रहते है तथा अपनी क्रियाओं द्वारा उनमें सुरंग/छेद बना देते हैं तथा अपक्षय  में मदद करते हैं। उष्ण कटिबन्धीय एवं उपउष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में, चींटी एवं दीमक सुरंग एवं रास्ता बनाती है तथा नीचे के पदार्थों को खोदकर ऊपर लाते रहते हैं तथा मल द्वारा अम्ल का त्याग (फोरमिक अम्ल) करते हैं । इनके द्वारा बनाये गये बिलों, रास्तों मे वायु एवं जल नीचे तक प्रवेश कर जाता है जिससे उनका अपक्षय हो जाता है ।

उच्च पौधे एवं उनकी जड़ें (Higher plants and their roots ) -

विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों की जड़ें चट्टानों की दरारों एवं जोड़ों में घुस जाती है तथा पौधों की वृद्धि के साथ-साथ जड़ों की वृद्धि भी होती है, जो चट्टानों के ऊपर बाहर की तरफ दाब डालती है परिणामस्वरूप ये दरारे और चौड़ी हो जाती हैं उनमें जल भर जाता है और वे टपकने लगती है। इस प्रकार चट्टाने कमजोर होकर विखण्डित हो जाती है। जड़ों की श्वसन क्रिया से CO निकलती है जो जल में घुलनशील होती है जिससे कार्बोनिक अम्ल का निर्माण होता है। ये अम्ल जल की विलेयता एवं सक्रियता दोनों को बढ़ा देता है। वनस्पतियों के अवशेष सड-गलकर विभिन्न प्रकार के अम्ले उत्पन्न करती हैं। ये अम्ले जल से मिलकर चट्टानों का अपक्षय करती है।

सूक्ष्मजीवाणु (Micro-organisms) -

मृदा एवं खनिज पदार्थों में अनेक प्रकार के सूक्ष्मजीवाणु काफी संख्या में पाये जाते है जो इनके जैविक अपक्षय में क्रियाशील होते हैं। सूक्ष्मजीवाणु पेड़ पौधों एवं जन्तुओं के अवशेषों के विघटन में भाग लेते हैं जिसके परिणामस्वरूप अनेक अम्लों एवं CO2 का निर्माण होता है, जो चट्टानों एवं खनिजों से संयोग करके उन्हें अपघटित करते हैं ।


खनिजों का अपक्षय | minerals of weathering in hindi

खनिजों के अपक्षय को बहुत से कारक प्रभावित करते हैं जिनमें से तीन मुख्य कारक निम्न है—

  • जलवायवीय दशायें (Climatic conditions)
  • भौतिक गुण (Physical characteristics)
  • रसायनिक एवं संरचनात्मक गुण (Chemical and structural characteristics)


जल वायवीय दशायें -

जलवायवीय दशायें अपक्षय के प्रकार एवं दर को नियन्त्रित करती हैं। कम वर्षा की स्थिति में भौतिक अपक्षय अधिक होता है परिणामस्वरूप खनिजों के आयतन में परिवर्तन से उनका आकार घट जाता है और उनकी सतह का क्षेत्रफल बढ़ जाता है जबकि नमी की मात्रा बढ़ने पर भौतिक एवं रसायनिक दोनों अपक्षय को बढ़ावा मिलता है तथा नये घुलनशील खनिज यौगिक उत्पन्न होते हैं। नम एवं ठण्डे क्षेत्रों में, सिलिकेट क्ले का संश्लेषण होता है। सामान्यतः नम उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में रसायनिक अपक्षय की दर बहुत तेज होती है इस दशा में, रसायनिक अपक्षय के अवरोध उत्पाद जैसे आयरन एवं एल्युमिनियम हाइड्रस ऑक्साइड का संचय होता है । जलवायु अधिकतर वनस्पतियों की प्रधानता के प्रकार को नियन्त्रित करती है, जो मृदा एवं खनिजों में होने वाली जैव रसायनिक अभिक्रियाओं का नियामन करती है।

भौतिक गुण -

खनिजों के बहुत से भौतिक गुण जैसे खनिज का आकार, कठोरपन, जुड़ाव की स्थिति एवं चट्टानों का संगठन आदि अपक्षय को प्रभावित करने वाले मुख्य गुण है-

  • चट्टानों का संगठन (Composition of crocks) - चट्टानों में अपघटन की प्रक्रिया को उसमें उपस्थित विभिन्न संगठन वाले विभिन्न खनिजों के कारण बढ़ावा मिलता है। तापक्रम में बदलाव के दौरान, विभिन्न खनिजों का फैलाव एवं संकुचन की मात्रा में विभिन्नता विभिन्न प्रकार के खनिजों की उपस्थिति के कारण होती है। इस तरह से तनाव में विभिन्नता से चट्टानों में दरारे पड़ जाती है, जो खनिज पदार्थों में टूट जाती है ।
  • खनिज का आकार (Size of Mineral) - बारीक आकार के फेल्सफार का विघटन अधिक आसानी एवं तेजी से होगा अपेक्षाकृत मोटे आकार के फेल्सफार के, जो अन्तः सव्रण जल के सम्पर्क में होता है। इसके अलावा बारीक आकार के खनिजों में बहुत सी रसायनिक अभिक्रिया होती हैं । उदाहरण एक क्ले आकार के क्वार्टज की अपेक्षा एक बालू के आकार का क्वार्टज रसायनिक अपक्षय के प्रति अत्यधिक अवरोधक होता है ।
  • कठोरता एवं जुड़ाव (Hardness and Cementation) — कठोरता एंव जुड़ाव अपक्षय को प्रारम्भिक रूप से उसके बारीक कणों में अपघटन की दर को प्रभावित करते हैं. जो रसायनिक अपक्षय के अनुकूल होता है । उदाहरण एक दृढ क्वार्टजाइट या बालू पत्थर कठोरता से जुड़ा होने के कारण बहुत मन्द गति से अपक्षयित होता है। और भौतिक अपक्षय का अवरोध करता है तथा रसायनिक अपक्षय के लिए बहुत कम सतह क्षेत्रफल प्रदान करता है। जबकि, रन्ध्रावकाश वाली चट्टाने जैसे ज्वालामुखी राख या बड़े आकार वाली चूना पत्थर बहुत आसानी से अपघटित होकर छोटे कणों में बदल जाती है। इसमें सतह का क्षेत्रफल अधिक होने के कारण रसायनिक अभिक्रियायें बहुत तेज होती है ।

रसायनिक एवं संरचनात्मक गुण -

एक खनिज के विघटन की दर इसके आकार, रसायनिक एवं कणीय (crystalline) गुणों पर निर्भर करती है । उदाहरण - जिप्सम जो पानी में आसानी से घुल जाता है, घुल कर घोल के रूप में निकल जाता है। यदि पर्याप्त मात्रा में वर्षा हो। कार्बनिक अम्ल, कम घुलनशील खनिज जैसे कैल्साइट एवं डोलोमाइट को घोल देता है। गहरे रंग के फैरोमैगनीशियम खनिज रसायनिक अपक्षय के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं अपेक्षाकृत फेल्सफार एवं क्वार्टज के, क्योंकि धन आवेशित धातु आयना (Fe व Mo) के कारण उसकी खुली संरचना होती है, जो चतुष्फलकीय इकाई में ऋण आवेश को सन्तुलित कर देती है । कोई आयन किसी क्रिस्टल में कितनी दृढ़ता से जुड़ा है यह गुण उसकी अपक्षय की दर को प्रभावित करता है । ओलिविन एवं बायोटाइट माइका खनिज कम दृढ़ता से जुड़े होने के कारण आसानी से अपक्षयित हो जाते हैं। जबकि जिस्कॉन एवं मस्कोवाइट अधिक दृढ़ता से जुड़े होने के कारण आसानी से अपक्षयित नहीं होते हैं ।


अपक्षय के परिणाम | results of weathering in hindi

चट्टान→ कंकड़, बालू, सिल्ट में बदल जाती है । 


Disclaimer - Copyright © डॉ जोगेंद्र कुमार (विभागाध्यक्ष) कृषि रसायन विभाग
(आर० एम० (पी० जी०) कॉलेज गुरुकुल नारसन (हरीद्वार)