मृदा (soil in hindi) - मृदा किसे कहते है अर्थ, परिभाषा एवं मृदा के अवयव

 

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मृदा (soil in hindi) - मृदा किसे कहते है अर्थ, परिभाषा एवं मृदा के अवयव 

मृदा किसे कहते हैं? | what is soil in hindi

मृदा पृथ्वी की ऊपरी सतह पर उपस्थित एक गतिशील प्राकृतिक पिण्ड है, जो खनिज एवं कार्बनिक पदार्थ तथा जीवित रूपों से निर्मित है जिसमें पौधे उगते हैं उसे ही मृदा (soil in hindi) कहते हैं ।

मृदा एक स्वतन्त्र एवं गतिक पिण्ड है जिसका गुण इस पर कार्य करने वाली शक्तियों के अनुसार होता है।

मृदा समांग रूप से संगठित एवं प्राकृतिक पिण्ड है। जिसे सुगमता से पहचाना जा सकता है। अमेरिका के वैज्ञानिक मार्बुट ने भी पेडोलॉजी द्वारा मृदा विज्ञान (soil science in hindi) का अध्ययन करके मृदा को एक प्राकृतिक पिण्ड बतलाया।

पेडोलॉजी के संस्थापक डोकुचेव ने इस तथ्य को बतलाया। मृदा के तमाम गुण भौतिक एवं रसायनिक क्रियाओं द्वारा बनते हैं जो न केवल उन खनिजों एवं चट्टानों द्वारा प्रभावित होते हैं। जिनसे मृदा बनती है बल्कि जलवायु, वनस्पति, स्थलाकृति एवं समय द्वारा भी प्रभावित होते हैं।


मृदा का क्या अर्थ है? | meaning of soil in hindi

meaning of soil in hindi - मृदा शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द सोलम (Solum) से हुई है जिसका अर्थ 'Floor' अर्थात् फर्श है। सामान्यत: पृथ्वी के सबसे ऊपरी भाग को मृदा या मिट्टी कहते हैं।

मृदा का अर्थ अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग हो सकता है; जैसे-शहरी व्यक्तियों के लिए कीचड़, धूल या मलबा है, जो इससे दूर रहने की कोशिश करते हैं, जबकि एक किसान के लिए, उसकी धरती माँ है, जो उसको जीविका एवं जीवित रहने का साधन प्रदान करती है।


मृदा की परिभाषा | defination of soil in hindi

मृदा पृथ्वी की बाहरी पपड़ी का वह शिथिल एवं चूर्णशील भाग है जिसमें पौधे अपनी जड़ों की सहायता से एक आधार एवं पोषण के साथ-साथ वृद्धि के लिए आवश्यक सभी दशाओं को प्राप्त करने में समर्थ होते हैं ।

मृदा की परिभाषा - "मृदा एक प्राकृतिक पिण्ड है जो प्राकृतिक पदार्थों पर प्राकृतिक शक्तियों के प्रभाव से उत्पन्न होती है। यह खनिज एवं जैविक अवयव के विभिन्न गहराई वाले संस्तरों में विभक्त होती है जो नीचे स्थित पैतृक पदार्थ से आकारिकी, भौतिक गुण एवं संघटन, रसायनिक गुण एवं बनावट तथा जैविक विशिष्टताओं में भिन्न होती है।”


मृदा के अवयव क्या हैं? | soil components in hindi

मृदा में तीन प्रावस्थायें (Phases) ठोस, द्रव एवं गैस होती हैं। पौधों को खाद्य तत्व प्रदान करने की दृष्टि से केवल ठोस एवं द्रव प्रावस्थायें ही महत्त्वपूर्ण हैं। मृदा के ठोस अवयव महीन अवस्था में होते हैं तथा मृदा के अन्य अवयवों से भली-भाँति मिले (मिश्रित) होते हैं।

मृदा आयतन का लगभग 50% भाग ठोस पदार्थों से घिरा होता है, ठोस भाग कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थों से निर्मित होता है, शेष आयतन को रन्ध्रावकाश कहते हैं, जिसमें जल एवं वायु उपस्थित होते हैं।

इस प्रकार मृदा में कुल चार मुख्य अवयव -

  • खनिज पदार्थ ( Organic Material )
  • कार्बनिक पदार्थ ( Organic Material )
  • जल ( Water )
  • वायु ( Air )


1. खनिज पदार्थ ( Organic Material ) -

मृदाओं के खनिज पदार्थों के आकार एवं संगठन में विभिन्नता पायी जाती है क्योंकि यह पैतृक चट्टान की प्रकृति पर निर्भर करता है जिससे इसका निर्माण होता है । ये खनिज विभिन्न आकार के कणों के रूप में पाये जाते हैं। कुछ कण बड़े आकार के, कुछ कण छोटे और कुछ कण सूक्ष्म आकार के होते हैं। मृदा में पत्थर, कंकड़, मोटी बालू, महीन बालू, सिल्ट तथा क्ले भाग रहता है ।

मृदा के बालू तथा सिल्ट अंश में अधिक मात्रा में पाये जाने वाले खनिज क्वार्टज और फेल्सपार है। मृदा के महीन अंश में द्वितीयक खनिजों की प्रधानता होती है। मृदा के खनिज पदार्थों में लगभग 90% मात्रा सिलिका, एल्युमिनियम, आयरन व ऑक्सीजन की होती है शेष 10% भाग में Ca, Mg, K, Na तथा टाइटेनियम अधिक मात्रा में किन्तु N, S, P, B, Mn, Zn, Cu कुछ कम मात्रा में तथा अनेक दूसरे तत्व अल्प मात्रा में पाये जाते हैं ।

सामान्यतः मृदा के बड़े आकार के कणों में प्राथमिक खनिज अर्थात् क्वार्टज, बायोटाइट, मस्कोवाईट आदि पाये जाते हैं जबकि महीन कणों में द्वितीय खनिज अर्थात् सिलिकेट क्ले तथा आयरन एवं एल्युमिनियम हाइड्रस ऑक्साईड क्ले आदि पाये जाते हैं ।

2. कार्बनिक पदार्थ ( Organic Material ) -

मृदा कार्बनिक पदार्थ वनस्पतियों एवं जन्तुओं के अवशेषों, मृत अथवा जीवित शरीर आंशिक अथवा पूर्ण रूपेण विघटित होने के पश्चात् बने हुए अवयव और संश्लेषित अवयवों का मिश्रण है। इस प्रकार के कार्बनिक पदार्थों का जटिल मिश्रण ह्यमस कहलाता है ।

अधिकांश मृदाओं की ऊपरी सतह में इस अंश का प्रतिशत 1-6 तक होता है परन्तु औसत मात्रा 3% होती है। झीलों, वनों, जंगलों तथा कार्बनिक पदार्थ वाले क्षेत्रों में विकसित मृदाओं में कार्बनिक भाग 20% से भी अधिक होता है। ऐसी मृदायें जिनमें कार्बनिक पदार्थों की मात्रा 20% या अधिक होती है, कार्बनिक मृदायें (organic soils) कहलाती है जबकि 20% से कम कार्बनिक पदार्थ वाली खनिज मृदायें (mineral soils) कहलाती हैं ।

मृदा कार्बनिक पदार्थ पोषक तत्वों के संग्रहण का कार्य करता है। इसके अलावा यह मृदा की संरचना को भूरभूरी एवं दानेदार बनाता है तथा मृदा की जल रोकने की क्षमता (water holding capacity) एवं वातन (aeration) में सुधार करता है ।

यह नाइट्रोजन का मुख्य स्रोत है तथा कुल P का 5-60% एवं कुल S का लगभग 80% कार्बनिक रूप में होने के कारण पौधों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कार्बनिक रूप खनिजीकरण (mineralization) द्वारा अकार्बनिक रूप में बदल कर पौधों को पोषक तत्व प्रदान करते हैं। यह मृदा में सूक्ष्मजीवाणुओं की ऊर्जा का मुख्य स्रोत है ।

3. मृदा जल ( Soil Water ) -

मृदा जल, मृदा-पादप वृद्धि सम्बन्ध में बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। मृदा जल की मात्रा विभिन्न प्रकार की मृदाओं में भिन्न-भिन्न होती है, जो जल की उपलब्धता एवं रन्ध्रावकाश पर आधारित है ।

मृदा में जल या तो विभिन्न बलों द्वारा मृदा कणों पर धारित होता है अथवा मृदा रंध्रावकाश में मृदा विलयन (soil solution) के रूप में भरा होता है। जल के अभाव में अथवा अत्यधिक शुष्क प्रदेशों में रंध्रावकाश वायु से परिपूर्ण होता है  परन्तु आर्द्र जलवायु अथवा जल की अधिकता होने पर रंध्रावकाश पूर्णतया जल से संतृप्त होता है ।

सामान्य मृदाओं में आयतन के आधार पर रंध्रावकाश का 20% भाग और सम्पूर्ण मृदा का 25% भाग जल होता है। अनेक भौतिक एवं रसायनिक क्रियायें मृदा के अन्तर्गत जल के द्वारा संचालित होती है। यह पोषक तत्वों के घोलक एवं वाहक का कार्य करता है। मृदा विकास में जल का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वनस्पतियों, जन्तुओं के विघटन एवं उनके श्वसन से उत्पन्न CO2 जल से संयुक्त होकर कार्बोनिक अम्ल बनाती है। जो पौधों के पोषक तत्वों की उपलब्धता में प्रमुख भूमिका निभाता है।

4. मृदा वायु ( Soil Air ) -

वायु स्थान या रंध्रावकाश मृदा आयतन का वह भाग है जो मृदा ठोस पदार्थों से रहित होता है। मृदा रंध्रावकाश में उपलब्ध वायु को मृदा वायु कहते हैं।

मृदा में इसकी मात्रा रंध्रावकाश एवं उसमें उपस्थित जल की मात्रा पर आधारित है। मृदा वायु में लगभग 79.2% नाइट्रोजन, 20.6% ऑक्सीजन तथा 0.25% कार्बन डाई ऑक्साइड उपस्थित होती है ।

उपयुक्त जल निकास के अभाव में ऑक्सीजन की कमी एवं CO2 की मात्रा में वृद्धि हो जाती है । वनस्पतियों की जड़ों में श्वसन, सूक्ष्मजीवाणुओं की क्रियाशीलता एवं कार्बनिक पदार्थों के सड़ने-गलने से उत्पन्न CO2 के कारण मृदा वायु में इसकी मात्रा में वृद्धि हो जाती है तथा O2 की मात्रा घट जाती है । मृदा वायु में इसके अतिरिक्त अन्य गैसें सूक्ष्म मात्रा में जैसे-आर्गन, क्रिप्टोन, नियोन, जियोन इत्यादि भी पायी जाती हैं। वायु की अपेक्षा मृदा में CO2 अधिक व O2 कम होती है । 


Disclaimer - Copyright © डॉ जोगेंद्र कुमार (विभागाध्यक्ष) कृषि रसायन विभाग
(आर० एम० (पी० जी०) कॉलेज गुरुकुल नारसन (हरीद्वार)