अन्तर्दहन इंजन क्या है इसके भाग, प्रकार एवं कार्य प्रणाली

अन्तर्दहन इंजन क्या है इसके भाग, प्रकार एवं कार्य प्रणाली


अन्तर्दहन इंजन क्या है इसके भाग, प्रकार एवं कार्य प्रणाली
अन्तर्दहन इंजन क्या है इसके भाग, प्रकार एवं कार्य प्रणाली


अन्तर्दहन इंजन  क्या है? I.C. Engine in hindi


अन्तर्दहन इंजन (i.c engine in hindi) एक मशीन है जो द्रव या गैस ईधन की संग्रहित रासायनिक ऊर्जा को , ईधन के जलने के बाद यान्त्रिक ऊर्जा के रूप में मुक्त करती है, अन्तर्दहन इंजन (i.c engine in hindi) को ऊमा इंजन भी कहते हैं ।

अन्तर्दहन इंजन के प्रकार (Types Of I.C. Engine in hindi)


अन्तर्दहन इंजन (i.c engine in hindi) का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जाता है -


1 . इंधन के आधार पर ( According to fuel )

2 . सिलेंडर की व्यवस्था के अनुसार ( According to cylinder arrengment )

3 . आघातों की संख्या के अनुसार ( According to the number of strokes )

4 . क्रियाचक्र के आधार पर ( According to working cycle )

5 . गति के आधार पर ( According to speed )

6 . सिलेंडरों की संख्या के आधार पर ( According to number of cylinders )

ईधन के आधार पर का पेट्रोल इंजन की कार्य प्रणाली ( Petrol Engine )


इन इंजनों में ईधन के रूप में पेट्रोल का प्रयोग होता है । पहले पेट्रोल को परमाणुओं के रूप में तोड़ा जाता है, वाष्पीकरण किया जाता है ।

फिर उचित अनुपात में वायु तथा वाधीकृत पेट्रोल को तैयार किया जाता है ।

इस मिश्रण को दहन कक्ष में पहुंचा कर चिंगारी की सहायता से जलाया जाता है जिसके कारण इसे चिंगारी दहन इंजन ( Spark ignition engine ) भी कहा जाता है ।

डीजल इंजन की कार्य प्रणाली ( Diesel Engine ) -


इसमें ईधन के रूप में डीजल का प्रयोग होता है । डीजल को लगभग 105 या इससे अधिक किग्रा . प्रति वर्ग सेमी . के दवाव पर सिलेंडर में भेजा जाता है ।

यहां पर वायु अत्यधिक दवाव पर पहले से ही उपस्थित रहती है । अत्यधिक दाब के कारण इंधन में जाता है ।

दहन हो जाता है, जिसके कारण इसे दवाव दहन इंजिन ( Compression ignition engine ) कहा जाता है।

गैस इंजन की कार्य प्रणाली ( Gas Engine ) -


इनमें कोल गैस, प्राकतिक गैस प्रोडयसरगैस आदि गैसों का हवा के साथ मिश्रण तैयार किया जाता है ।

इस मिश्रण को दहन कक्ष में भेजा जाता है जहाँ इसे चिंगारी की सहायता से जलाते हैं ।

इस प्रकार के इंजनों का प्रयोग आधुनिक समय में अत्यन्त सीमित है ।

( 2 ) सिलेण्डर की व्यवस्था के आधार पर


( i ) क्षतिज सिलेंडर इंजन ( Horizontal cylinder Engine ) 


जिन इंजनों में पिस्टन निज तल में चलता है उन्हें हम क्षैतिज सिलेंडर इंजन कहते हैं ।

इनकी गति कम होती है और इनका प्रयोग स्थिर कार्यों के लिये किया जाता है ।

( ii ) उर्ध्वाधर सिलेंडर इंजन ( Vertical Cylinder Engine ) -


जिन इंजनों में पिस्टन उर्ध्वाधर दिशा में गति करता है उन्हें हम उर्ध्वाधर सिलेंडर इंजन कहते हैं ।

इनकी गति अधिक होती है । अधिकतर इन्हीं इंजनों का प्रयोग किया जाता है । ये स्थिर तथा खिचाव वाले दोनों प्रकार के कार्य कर सकते हैं ।

जैसे - ट्रेक्टर इंजन

आघातों की संख्या के आधार पर


( i ) द्विघात चक्र इजेन ( Two stroke Cycle Engine ) -


वे इंजन, जो दो आघातों में एक क्रिया चक्र पूरा कर लेते हैं, द्विघात चक्र इंजन कहलाते हैं

( ii ) चतुर्घात चक्र इंजन ( Four Stroke Cycle engine ) -


वे इंजन, जो चार आघातों में एक क्रिया चक्र पूरा करते हैं, चतुर्घात चक्र इंजन कहलाते हैं ।

क्रिया चक्र के आधार पर


( i ) ऑटो चक्र इंजन ( Otto Cycle engine ) 


यह चक्र श्री ऑटो द्वारा प्रतिपादित किया गया था इसलिये इसे ऑटो चक्र कहते हैं ।

ऑटो चक्र में ऊष्मा स्थिर आयतन पर अन्दर ली जाती है और सिलेण्डर के दूसरे स्थिर आयतन पर निकाली जाती है ।

( ii ) डीजल चक्र इंजन ( Diesel Cycle engine ) 


इस चक्र का प्रतिपादन डा० रूडोल्फ डीजल ने किया था इसलिये इसे डीजल चक्र कहते हैं ।

डीजल चक्र में ऊष्मा एक निश्चित दबाव पर अन्दर ली जाती है तथा एक निश्चित आयतन पर छोड़ी जाती है ।

गति के आधार पर


( i ) कम गति के इंजिन ( Low speed Engines ) - 


जिन इंजनों की क्रेक शाफ्ट की गति 100 या इससे कम चक्कर प्रति मिनट होती है उन्हें कम गति के इंजन कहते हैं ।

( ii ) मध्यम गति के इंजन ( Medium Speed Engines ) - 


इन इंजनों की केंक शाफ्ट 100 से 250 चक्कर प्रति मिनट लगाती है ।

( iii ) उच्च गति के इंजन ( High Speed Engine ) -


इन इंजनों की केंक शाफ्ट 250 या इससे अधिक चक्कर प्रति मिनट लगाती है ।

सिलेंडरों की संख्या के आधार पर


( i ) एक सिलेंडर इंजन ( Single Cylinder Engine ) -


जिस इंजन में दहन के लिये केवल एक सिलेंडर होता है उसे एक सिलेंडर इंजन कहते हैं ।

जैसे — आयशर ट्रेक्टर में ।

( ii ) एक से अधिक या बहु सिलेंडर इंजन ( Multi Cylinder Engine ) -


जिन इंजनों में दहन के लिये एक से अधिक सिलेण्डर होते हैं । उन्हें बहु सिलेंडर इंजन कहते हैं ।

जैसे - स्वराज महिन्द्रा, एस्कोर्ट आदि ट्रेक्टरों में ।

अन्तर्दहन इंजन के प्रमुख भाग ( Key parts of the I.C. Engine in hindi )


एक अन्तर्दहन इंजन (i.c engine in hindi) में महत्वपूर्ण भाग होते हैं -


एक साधारण अन्तर्दहन इंजन में निम्नलिखित महत्वपूर्ण भाग होते हैं -

1 . सिलेंडर ( Cylinder )

2 . सिलेंडर शीर्ष ( Cylinder Head )

3 . सिलेण्डर लाईनर ( Cylinder liner or sleeve )


4 . पिस्टन ( Piston ) 


5 . पिस्टन छल्ले ( Piston rings )


6 . पिस्टन पिन ( Piston Pinor Gudgeon pinor wrist pin )


7 . संयोजक दण्ड ( Connecting Rod )


8 . केंक शाफट ( Crank Shaft ) 


9 . गतिपालक पहिया ( Fly Wheel ) 


10 . केम शाफ्ट ( cam Shaft ) 


11 . केंक केस ( Crank Case ) 


12 . टाइमिंग गियर ( Timing Gear ) 


13 . वाल्व प्रणाली ( Valye System )




सिलेण्डर ( Cylinder ) -


इंजन का वह भाग, जिसमें पिस्टन ऊपर नीचे या आगे पीछे गति करता है, तथा जिसमें ईंधन का दहन होता है, सिलेण्डर कहलाता है ।

आमतौर पर सिलेंडर ढलवा लोहे का बना होता है । इसकी ताप व दाब सहने की क्षमता अधिक तथा कीमत कम होती है ।

आजकल कई धातुओं को मिलाकर भी सिलेंडर लगाये जाते हैं । सिलेंडर हैड उसमें विभिन्न वाल्व, स्पार्क प्लग लगे होते दहन के लिये स्थान प्रदान करता है ।

यह सिलेंडर के ऊपर एक ढक्कन का भाति नट व बाल्ट का सहायता से कसा रहता है ।

सिलेंडर हैट व सिलेंडर के बीच में एस्बेस्टस का गास्कटलगा हैं व यह ईधन के दहन के लिये स्थान प्रदान करता है ।

सिलेण्डर लाईनर व स्लीव ( Cylinder liner or sleeve ) - 


कुछ सिलेंडरों में अन्दर की और उच्च श्रेणी की कास्ट आयरन या एल्वाय की बनी हुई एक खोखले बेलन के आकार की रचना फिट की हई होती है । जिसे सिलेन्डर लाईनर कहते हैं ।
यह सिलेंडर के अन्दर इसलिये लगाई जाती है म्योंकि इसमें घिसावटं बहुत कम होती है ।

इसे आसानी से बदला जा सकता है । पूरा ब्लाक इस धात का इसलिये नहीं बनाया जाता क्योंकि यह धातु अधिक महँगी होती है और सिलेंडर के घिसने पर उसे बदलना अधिक महंगा पड़ता है ।

पिस्टन ( Piston ) -


पिस्टन एक ओर से ठोस तथा दूसरी ओर से खोखला होता है । सिलेंडर में ईधन के दहन से जो शक्ति उत्पन्न होती है।

वह सीधी पिस्टन को प्राप्त होती है जिस के कारण पिस्टन में रेखीय ( आगे पीछे बनने वाली ) गति उत्पन्न हो जाती है ।

पिस्टन साधारणतया ढलवां लोहे के, एल्यूमीनियम के तथा मिश्र धातु के बने होते हैं ।

पिस्टन की ऊपरी सिरे को हैड या क्राऊत तथा निचले सिरे को स्कर्ट कहते हैं ।

पिस्टन रिंग - 


पिस्टन के ऊपरी सिरे की ओर खाँचे बने होते हैं जिनमें रिंग लगे होते हैं ।

पिस्टन रिंग में लचक अधिक व घिसावट कम होने चाहिये इसलिये ये ढलवाँ लोहे के बनाये जाते हैं ।

पिस्टन रिंग दो प्रकार के होते हैं  -


( A ) सम्पीडन छल्ले ( Compression rings )


ये संख्या में 3 से 5 तक होते हैं जो पिस्टन के ऊपरी सिरे की ओर लगे रहते हैं ।

इनका व्यास पिस्टन से थोड़ा अधिक होता है । इनका कार्य अधिक दबाव को बनाये रखता है

( B ) तेल के छल्ले ( Oil Rings ) -


यह पिस्टन में नीचे स्कर्ट की तरफ के खांचे में लगा होता है । जब पिस्टन नीचे को चलता है तो आयल रिंग सिलेंडर में लगे अधिक तेल को खुरचकर हौज की तरफ पहुँचाती है ।

पिस्टन पिन ( Piston Pin ) -


इसे गजन पिन ( Gudgen pin ) तथा रिस्ट पिन ( Wrist Pin ) भी कहा जाता है ।

इसका कार्य संयोजक दण्ड ( Connecting Rod ) को पिस्टन को जोड़ना है ।

यह एक खोखली नाली के आकार की होती है और केस हार्डेड स्टील की बनी होती है ।

जिससे इसका वजन कम तथा शक्ति अधिक हो जाती है ।

संयोजी दण्ड ( Connecting Rod ) -


साधारणतया आकार की, फोर्ड स्टील या कास्ट स्टील की बनी होती है जो कि पिस्टन की गति को क्रेन्क शेफ्ट तक पहुँचाती है ।

जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है यह पिस्टन तथा केन्क शेफ्ट की जोड़ने का कार्य करती है ।

छोटा सिरा पिस्टन से जुड़ता है जिसमें ब्रोज धातु का बुशिंग या बुश लगा होता है ।

बड़े वाला सिरा क्रेन्क शेफ्ट से जडता है । जिसमें वियरिंग लगाने की व्यवस्था होती है ।

केंक शाफ्ट ( Crank Shaft ) -


इसका कार्य पिस्टन की रेखीय गति को चक्रीय गति में बदलना होता है ।

जिस स्थान पर ( Connecting Rod ) क्रेक शैफ्ट से जुड़ती है केंक शाफ्ट के उस स्थान को क्रेन्क जर्नल ( Crank Journal ) कहा जाता है ।

जबकि जिस स्थान से केंक शेफ्ट इंजन में सिलेंडर ब्लाक पर रखी जाती है । उस स्थान को मुख्य जर्नल ( Main Journal ) कहते हैं ।

केंक शाफ्ट में केंको की संख्या इंजिन में सिलेंडरों की संख्या के अनुसार कम या अधिक होती है ।

प्रत्येक क्रेक जर्नल के सामने कुछ वजन लगाया जाता है जिसे Counter Weight कहते हैं ।

इस वजन का कार्य इंजन में कम्पनों को कम करना होता है । साधारणतया केंक शेफ्ट फोर्ड तथा कास्ट स्टील की बनी होती है ।

गतिपालक पहिया ( Frwheelp )


जैसा नाम से स्पष्ट है, कि इसका कार्य केंक शेफ्ट को गति को जड़त्व के नियमानुसार एक समान बनाये रखना होता है ।

पावर स्ट्रोक के समय यह शक्ति को संग्रहित कर लेता है और निक्रिय स्टोक ( adle strock ) के समय यह उसी शक्ति को केंक शाफ्ट के दे देताहे ।

कम सिलेंडर होने पर गतिपालक पहिया बड़ा व भारी तथा अधिक सिलेंडर होने पर उल्का प्रयोग किया जाता है ।

इस पर एक रिंग मिथर लगा होता है । जो कि इंजन चलाने के लिये लगाई गई विद्युत मोटर के पिनियब गियर से मिला रहता ।

गति पालक पहिये की पिछली सतह जो कि चिकनी होतो है , क्लच प्लेट के लिये दावप्लेट ( Pressure Plate ) का कार्य करती है । पहिये पर कभी - कभी इंजन काटाइमिंग प्रीलिखा होता है ।

केम शेफ्ट ( Cam Shaft ) -


केम शाफ्टका कार्य उचित समय पर इन्लेट तथा एक्जहास्ट वाल्वों को उठाना तथा गिराना होता है । कैम शाफ्ट फ्रेंक शाफ्ट द्वारा गियर, चैन व स्मोकेट की सहायता से चलाई जाती है ।

वर्षातीय इंजन में इसकी गतिक शाफ्ट की गति से ठीक आधी होती है ।

यह फेक केस के अन्दरकशाफट के समानान्तर लगी होती है । प्रत्येक वाल्व के लिये एक कैम होता है ।

कैम के उठे हये भाग जिसे लोग कहते हैं अलग - 2 स्थिति में रहते हैं क्योंकि सभी वाल्वों के खुलने का व बन्द होने का समय अलग - अलग होता है ।

केम शाफ्ट इंधन पम्प, स्नेहक तेल पम्प तथा दहन प्रणाली को चलाने में भी काम आती है ।

कैक केस ( Crank Case ) -


यह वह केस होता है जिसके अन्दर केंक शाफ्टकैम शाफ्ट बन्द रहती है ।

इस केस के साथ आयल पम्प, आयल फिल्टर, जनरेटर, स्टाटिंग मोटर व दहन प्रणाली आदि सहायक भाग जुड़े रहते हैं ।

इसके अन्दर स्नेहक तेल भरा होता है । केस का ऊपरी भाग साधारणतया सिलेंडर के साथ ढला हुआ होता है ।

क्रेक केस का निचला भाग आयल पेन कहलाता है । और आयरन या कास्ट एल्यूमीनियम का बना होता है ।

टाइमिंग गियर Timing Gear ) -


टाइमिंग गियर दूसरी गियरों का एक संयोजन होता है । जिनमें से एक गियर कैम शाफ्ट के एक सिरे पर तथा दूसरा कैंक शाफ्ट के उसी ओर के सिरे पर लगे होते हैं कैम शाफ्ट का गियरक्रेक शाफ्ट के गियर से आकार में दो गुणा होता है । अर्थात् उसमें दो गुने दाँट होते हैं ।

वाल्व प्रणाली ( Talve System ) -


वाल्ल प्रणाली में दो वाल्व होते है । एक अन्तर्दहन इंजन (i.c engine in hindi) वाल्व तथा दूसरा बाझर्गम वाल्व ।

वाल्व प्रणाली में इन दोनों वाल्वों को चलाने के लिये केम शाफ्ट, टेपिट, स्प्रिं , राकर आर्म, पुशराड आदि भाग होते हैं ।